अमेरिका ने गजा के पुनर्निर्माण के लिए अतिरिक्त आर्थिक मदद देने का वादा किया है. अमेरिकी विदेश मंत्री ऐंटनी ब्लिंकन ने यरूशलम में अमेरिकी उच्चायोग को फिर से खोलने की भी बात कही.
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इस्लामिक संगठन हमास और इस्राएल के बीच युद्ध विराम को मजबूत और स्थायी बनाने के इरादे से मध्य पूर्व पहुंचे ब्लिंकन ने वेस्ट बैंक के शहर रमल्लाह में फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बगल में खड़े होकर कहा कि अमेरिका इस साल इस्राएल के पड़ोसी को साढ़े सात करोड़ डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच अरब रुपये देगा.
इसके अलावा करीब 40 करोड़ रुपये गजा में आपदा राहत के लिए और लगभग ढाई अरब रुपये गजा फलस्तीन स्थित संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी को दिए जाएंगे. ब्लिंकन ने कहा, "हम जानते हैं कि दोबारा हिंसा होने से रोकने के लिए हमें जो मौका मिला है उसका इस्तेमाल मूलभूत मुद्दों और चुनौतियों को हल करने के लिए करना है. और उसकी शुरुआत गजा में पैदा हुए गंभीर मानवीय संकट को हल करने से होती है.”
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश सुनिश्चित करना चाहता है कि उसकी आर्थिक मदद का लाभ हमास को न पहुंचे. अमेरिका हमास को एक आतंकवादी संगठन मानता है, जिसकी गजा में मजबूत पकड़ है. ब्लिंकन ने कहा कि अगर मदद सही तरह से बंटी तो यह असल में हमास का प्रभाव कम कर सकती है जो, लोगों की "निराशा, दुख, परेशानी और अवसरों की कमी” से फलता-फूलता है.
येरूशलम को लेकर बड़ा वादा
अमेरिकी विदेश मंत्री ने अपने दौरे की शुरुआत येरूशलम से की जहां उन्होंने इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्याममिन नेतनयाहू से मुलाकात की. ब्लिंकन की मौजूदगी में इस्राएली नेता ने मीडिया से कहा कि अगर हमास ने रॉकेट हमले फिर शुरू किए तो उसे "बहुत जोरदार जवाब” मिलेगा. ब्लिंकन ने कहा कि येरूशलम में अमेरिकी उच्चायोग को फिर से खोलना फलस्तीनी लोगों से संपर्क बढ़ाने और मदद पहुंचाने में अहम साबित होगा. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि उच्चायोग कब खोला जाएगा.
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ट्रंप सरकार ने 2019 में उच्चायोग को अमेरिकी दूतावास का हिस्सा बना दिया था. 2017 में इस्राएल ने अपनी राजधानी तेल अवीव से येरूशलम कर दी थी जिसके बाद अमेरिका ने भी येरूशलम में अपना दूतावास खोल लिया था. यह अमेरिका की लंबे समय से चली आ रही नीति के उलट था और फलस्तीन ने इसका विरोध किया था. फलस्तीन पूर्वी येरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता है. लेकिन 1967 से ही पूरे येरूशलम पर इस्राएल का कब्जा है.
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की येरूशलम स्थित दूतावास को हटाने की कोई योजना नहीं है लेकिन वह फलस्तीनियों का भरोसा फिर से जीतने की कोशिश कर रहे हैं. अप्रैल में उन्होंने ट्रंप सरकार द्वारा बंद की गई फलस्तीन की अरबों रुपये की मदद फिर से शुरू की थी.
दोनों पक्षों को चेतावनी
ब्लिंकन ने इस्राएल और फलस्तीनियों को ऐसे काम करने के खिलाफ भी चेतावनी दी जो तनाव बढ़ाएं और दो राष्ट्रों के सिद्धांत को कमजोर करें. अमेरिका दो राष्ट्र के सिद्धांत को लेकर आज भी प्रतिबद्ध है. ब्लिंकन ने जिन गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी दी उनमें फलस्तीनी इलाके में इस्राएल के बस्तियां बसाने, पूर्वी येरूशलम से फलस्तीनियों को निकाले जाने या फलस्तीन की ओर से उग्रवादी हिंसा शामिल थे.
इस्राएल और हमासे के बीच 11 दिन तक लड़ाई के बाद मिस्र की मध्यस्थता से बीते शुक्रवार ही युद्ध विराम हुआ है. 11 दिन की लड़ाई में गजा में 254 लोगों की मौत हुई और 1900 से ज्यादा घायल हुए. इस्राएल की ओर से 13 लोगों की मौत की सूचना है जबकि सैकड़ों लोग घायल बताए गए हैं.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
क्या है इस्राएल
मुस्लिम देश इस्राएल को मध्यपूर्व में विवादों का केंद्र कहते हैं. एक तरफ उसके आलोचक हैं तो दूसरी तरफ उसके मित्र. लेकिन इस रस्साकसी से इतर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्राएल आखिर कैसा है.
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राष्ट्र भाषा
आधुनिक हिब्रू के अलावा अरबी इस्राएल की मुख्य भाषा है. ये दोनों 1948 में बने इस्राएल की आधिकारिक भाषाएं हैं. आधुनिक हिब्रू 19वीं सदी के अंत में बनी. पुरातन हिब्रू से निकली आधुनिक हिब्रू भाषा अंग्रेजी, स्लाविक, अरबी और जर्मन से भी प्रभावित है.
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छोटा सा देश
1949 के आर्मिस्टिक समझौते के मुताबिक संप्रभु इस्राएल का क्षेत्रफल सिर्फ 20,770 वर्ग किलोमीटर है. इस समझौते पर मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया ने दस्तखत किए थे. लेकिन फिलहाल पूर्वी येरुशलम से लेकर पश्चिमी तट तक इस्राएल के नियंत्रण में 27,799 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस्राएल के उत्तर से दक्षिण की दूरी 470 किमी है. देश का सबसे चौड़ा भूभाग 135 किलोमीटर का है.
अनिवार्य सैन्य सेवा
इस्राएल दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां नागरिकों और स्थायी रूप से रहने वाली महिला व पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. 18 साल की उम्र के हर इस्राएली को योग्य होने पर तीन साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. महिलाओं को दो साल सेना में रहना पड़ता है.
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फलीस्तीन के समर्थक
नेतुरेई कार्टा का मतलब है कि "सिटी गार्ड्स." यह 1939 में बना एक यहूदी संगठन है. यह इस्राएल की स्थापना का विरोध करता है. इस संगठन का कहना है कि एक "यहूदी मसीहा" के धरती पर आने तक यहूदियों को अपना देश नहीं बनाना चाहिए. इस संगठन को फलीस्तीनियों का समर्थक माना जाता है.
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राष्ट्रपति पद ठुकराया
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन भले ही पूजा नहीं करते थे, लेकिन जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के दौरान उनका यहूदी धर्म की तरफ झुकाव हो गया. उन्होंने यहूदी आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिए ही अमेरिका की पहली यात्रा की. बुढ़ापे में उन्हें इस्राएल का राष्ट्रपति बनने का न्योता दिया गया, आइनस्टाइन ने इसे ठुकरा दिया.
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ईश्वर को चिट्ठियां
हर साल येरुशलम के डाक घर को 1,000 से ज्यादा ऐसे खत मिलते हैं, जो भगवान को लिखे जाते हैं. ये चिट्ठियां कई भाषाओं में लिखी होती हैं और विदेशों से भी आती हैं. ज्यादातर खत रूसी और जर्मन में होते हैं.
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येरुशलम की पीड़ा
इतिहास के मुताबिक येरुशलम शहर दो बार पूरी तरह खाक हुआ, 23 बार उस पर कब्जा हुआ, 52 बार हमले हुए और 44 बार शहर पर किसी और का शासन हुआ. गिहोन झरने के पास शहर का सबसे पुराना इलाका है, कहा जाता है कि इसे 4500-3500 ईसा पूर्व बनाया गया. इसे मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का पवित्र शहर कहा जाता है.
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पैसेंजर फ्लाइट का रिकॉर्ड
24 मई 1991 को इस्राएली एयरलाइन कंपनी एल अल का बोइंग 747 विमान 1,088 यात्रियों को लेकर इस्राएल पहुंचा. किसी जहाज में यह यात्रियों की रिकॉर्ड संख्या है. इथियोपिया के ऑपरेशन सोलोमन के तहत यहूदियों को अदिस अबाबा से सुरक्षित निकालकर इस्राएल लाया गया.
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खास है मुद्रा
इस्राएली मुद्रा शेकेल दुनिया की उन चुनिंदा मुद्राओं में से है जिनमें दृष्टिहीनों के लिए खास अक्षर हैं. दृष्टिहीनों की मदद करने वाली मुद्राएं कनाडा, मेक्सिको, भारत और रूस में भी हैं.