केन्या में बहुत से गरीब लोगों का सहारा गधे हैं. गधों की चोरी से बेसहारा हुए बहुत से परिवार अब अपराधी नेटवर्कों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, विजिलांटे गैंग बनाकर.
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पिछले तीन सालों में केन्या चीन को गधों के चमड़े की आपूर्ति के तेजी से बढ़ते कारोबार का केंद्र हो गया है. इन्हें उबालकर एजिआव नाम का जिलेटिन बनाया जाता है जिसका इस्तेमाल बढ़ती उम्र के असर को कम करने और सेक्स की ताकत बढ़ाने के लिए परंपरागत चिकित्सा में होता है. केन्या ने 2016 से गधों के लिए चार बूचड़खाने खोल रखे हैं. आस पास के दूसरे देशों में कहीं इतने गधों के बूचड़खाने नहीं हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार यहां हर रोज 1000 गधों को मारा जाता है.
चीन में गधों के चमड़े की बढ़ती मांग के कारण इसका काला बाजार बन गया है. चमड़े की तस्करी करने वाले गैंग किराए के गुर्गों से केन्या के गांवों में गधों की चोरी करवाते हैं. इसकी वजह से इन गैंगों पर गुस्सा बढ़ रहा है क्योंकि गधे वहां के गरीब किसानों का सहारा हैं. वे गधों पर अपनी जिंदगी, खेती और परिवहन के लिए निर्भर हैं.
गधी के दूध की बढ़ी मांग, हजारों में मिलता है एक लीटर
दक्षिण पूर्वी यूरोप के देश मोंटेनीग्रो में इन दिनों गधी के दूध की मांग खासी बढ़ गई है. इस दूध को बेहद स्वास्थ्यवर्धक बताया जा रहा है और एक लीटर 50 यूरो यानी साढ़े तीन हजार रुपए तक में बिक रहा है.
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नई जिंदगी
समाचार एजेंसी एएफपी ने खबर दी है कि गधी के दूध की बढ़ती मांग को देखते हुए मोंटेनीग्री में गधों को एक नई जिंदगी मिल गई है.
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सेहत के लिए
गधी का दूध खरीदने वालों का कहना है कि यह सेहत के लिए बहुत ही अच्छा होता है.
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कम मिलता है दूध
डारको बताते हैं कि गधी से उतना दूध हासिल नहीं किया जा सकता है जैसे गाय और भैंस से मिलता है. यह जानवर बहुत कम मात्रा में दूध देता है.
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त्वचा के लिए फायदेमंद
गधों के एक फार्म के मालिक डारको स्वेलजिक का कहना है, “ये दूध त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है. और इसके इस्तेमाल से कई बीमारियों से बचा जा सकता है.”
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फायदा हुआ
वेलेरिया मार्कोविक नाम की महिला का कहना है कि उनके बेटे को कई तरह की एलर्जी थी और गधी के दूध से उनके बेटे को काफी फायदा हुआ है.
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गधी के दूध से स्नान
वेलेरिया का कहना है कि उन्होंने ये भी सुन रखा है कि दुनिया में सुंदरता की मिसाल कही जाने वाली क्लियोपेट्रा गधी के दूध से नहाती थी.
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रिसर्च के संकेत
साइप्रस यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर फोटिस पापादेमस का कहना है कि रिसर्च से पुख्ता संकेत मिलते हैं कि कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए गधी का दूध फायदेमंद होता है.
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सबसे महंगा चीज
वैसे गधी के दूध को मोंटेनीग्रो के पड़ोसी देश सर्बिया में भी पसंद किया जाता है. वहां इससे बने 50 ग्राम चीज को लगभग 48 यूरो में बेचा जाता है. इसे दुनिया का सबसे महंगा चीज माना जाता है. (फोटो सांकेतिक है)
मोंटेनीग्रो में 2010 के आंकड़ों के मुताबिक गधों की संख्या 500 थी. लेकिन गधों के एक फार्म के मालिक डारको का कहना है कि अब सिर्फ 150 गधे बचे हैं.
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मशीनों ने ली जगह
वो बताते हैं कि दशकों पहले मोंटेनीग्रो में लगभग हर घर में गधे पाए जाते थे, लेकिन वक्त के साथ इनकी जगह काम करने के लिए मशीनें इस्तेमाल की जाने लगीं.
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उम्मीद
वो उम्मीद करते हैं कि इस जानवर के प्रति अब लोगों में जागरूकता पैदा होगी जिससे इसे बचाने में मदद मिलेगी.
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राजधानी नैरोबी से 100 किलोमीटर दूर नइवासा शहर के प्रमुख फिलिप अरीरी बताते हैं, "जब से अप्रैल 2016 में बूचड़खाना खुला है, चोरी के मामले बढ़ गए हैं." अब गधों के मालिकों ने भी अपने मवेशियों को बचाने के लिए गैंग बनाना शुरू कर दिया है. वे रात को गश्त लगाते हैं और गधों के खोने पर दस्ता बनाकर उन्हें खोजते हैं.
जब से चीन में इजिआव की मांग दस गुना बढ़कर 6,000 टन सालाना हो गई है, अफ्रीका में गधों की मांग भी बढ़ गई है. अफ्रीका में गधों की आबादी 1990 में 1.1 करोड़ हुआ करती थी लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार ये घटकर अब 45 लाख रह गई है.
सेक्स की ताकत बढ़ाने वाली औषधि इजिआव कभी अमीर लोगों की लग्जरी हुआ करती थी. यह गोलियों के रूप में मिलता है जिसे पानी में घोल कर पिया जाता है या फिर एंटी एजिंग क्रीम में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन अब यह चीन के तेजी से बढ़ते मध्यवर्ग और विदेशों में रहने वाले चीनियों में लोकप्रिय हो गया है. साल 2000 में 30 डॉलर प्रति किलोग्राम की दर से मिलने वाले इजिआव की कीमत अब 780 डॉलर प्रति किलोग्राम हो गई है.
खत्म हो जाएंगे गधे
हालांकि गधों के व्यापार का बड़ा हिस्सा कानूनी है लेकिन बढ़ती मांग के कारण केन्या के अलावा, बोत्स्वाना, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका और बुरकिना फासो के गांवों में गधों की चोरी की समस्या सामने आ रही है. यहां से हजारों मवेशियों की चोरी हो रही है.
आलू की बोरियां, केले, घास या मुर्गियां, जब उन्हें ट्रांसपोर्ट करने की बारी आती है तो लोग वही इस्तेमाल करते हैं जो उपलब्ध हो. कभी मोपेड, कभी साइकिल, कभी ट्रक तो कभी गधे. लोग किसी न किसी तरह अपना सामान पहुंचा ही लेते हैं.
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कांगो: शुकुडू
दो छोटे पहिए, एक हैंडल और सामान लादने की बड़ी सी जगह, सब कुछ लकड़ी से बनी. इसे शुकुडू कहते हैं. यह असामान्य सी दिखने वाली गाड़ी मुख्य रूप से अफ्रीकी देश कांगो में बनाई और इस्तेमाल की जाती है. इसे धकेल कर चलाया जाता है इसलिए ईंधन का भी कोई खर्च नहीं.
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फिलीपींस: जीपनी
फिलीपींस में जीपनी पर्यावरण की बिल्कुल परवाह ना करने वाले दिखते हैं. उनकी आलोचना हो रही है क्योंकि वे बहुत ज्यादा जहरीली गैसों का उत्सर्जन करते हैं. उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकियों द्वारा छोड़ी गए जीपों से बनाया गया है. इस बीच नए मॉडल भी बन रहे हैं.
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वियतनाम: मोपेड
इसमें भी मोटर लगा है लेकिन कम हॉर्सपॉवर वाला. दक्षिण पूर्व एशियाई देश वियतनाम में ये खूब लोकप्रिय हैं. 65 लाख की आबादी वाली राजधानी हनोई में 40 लाख मोपेड होने की बात कही जाती है. इस बीच देश को करीब से देखने के लिए मोपेड टूर पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय हो गया है.
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कंबोडिया: बांसगाड़ी
इस बांसगाड़ी को नोरी भी कहा जाता है लेकिन अब कंबोडिया के लोगों के ट्रांसपोर्ट में उसकी कम ही मदद ली जाती है. इनका इस्तेमाल कभी पैसा बचाने के लिए किया जाता था, लेकिन अब वे पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए हैं. पांच वर्गमीटर की सतह पर 50 किलोमीटर की रफ्तार का मजा.
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थाइलैंड: टुक टुक
पर्यटकों में टुक टुक भी बहुत लोकप्रिय हैं. ये सिर्फ थाइलैंड ही नहीं, भारत सहित दूसरे देशों में भी पाए जाते हैं. ये गाड़ियां ड्राइविंग के रोमांच के कारण ही नहीं बल्कि किफायती होने के कारण भी लोकप्रिय हैं. कई देशों में इन्हें ऑटो रिक्शा भी कहा जाता है क्योंकि ये साइकिल रिक्शा का मोटरवाला रूप हैं.
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कंबोडिया: साइकिल रिक्शा
ये भी इंसान द्वारा खींचे जाने वाले रिक्शा का बेहतर रूप हैं. हाथ रिक्शा मूल रूप से जापान से आया है और पहले कोलकाता में भी चलता था. वैसे इस तरह के साइकिल रिक्शा का कई देशों में सामान ट्रांसपोर्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके आगे या पीछे से चलाए जाने वाले दो मॉ़डल हैं.
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अफगानिस्तान: खच्चर
खच्चर पर सवारी करने वाला दरअसल परिवहन के प्राचीन और परंपरागत साधन का इस्तेमाल कर रहा है. उनका इस्तेमाल करीब 5,000 सालों से सामान और सवारी ढोने के साथ साथ खेती में हो रहा है. खासकर जिनके पास गाड़ियां नहीं हैं, वे खर्च बचाने के लिए इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं.
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जर्मनी: सामान ढोने वाला साइकिल
यूरोप में बहुत से लोग अब पर्यावरण की सुरक्षा के लिए गाड़ी छोड़कर दूसरे साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. खरीदारी के लिए बगल में गाड़ी ले जाने के बदले वे साइकिल लेते हैं. इसमें सामान के लिए अतिरिक्त जगह होती है जिसमें घरेलू सामान और फूल के अलावा बच्चों को भी ले जाया जा सकता है.
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केन्या के खाद्य शोध संस्थान कालरो के अनुसार पिछले तीन सालों में करीब 300,000 गधों को चमड़े और मांस के निर्यात के लिए मार दिया गया है. इसी अवधि में करीब 4000 गधों की चोरी की रिपोर्ट की गई है.
शोध संस्थान का कहना है कि गधों को मारे जाने की दर उनके पैदा होने की दर से पांच गुनी ज्यादा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2023 तक केन्या से गधे खत्म हो जाएंगे. केन्या के मुख्य पशु अधिकारी ओबादियाह न्जागी कहते हैं, "मैं चिंतित हूं, गिनती गिर रही है और उसकी भरपाई संभव नहीं."
पशु संरक्षण ग्रुप और गधों के मालिक केन्या सरकार से गधों के चमड़े का व्यापार रोकने और बूचड़खानों को बंद करने की मांग कर रहे हैं. नाइजीरिया से लेकर सेनेगल और बुरकिना फासो तक में ऐसे कदम उठाए गए हैं. नैरोबी के पशु कल्याण संस्था के प्रमुख फ्रेड ओचांग कहते हैं, "गधे लाखों परिवारों का सहारा हैं, खेती से लेकर बच्चों को स्कूल पहुंचाने में. लेकिन अब वे खतरे में हैं." विकासशील देशों में करीब 60 करोड़ लोग आजीविका चलावने के लिए गधों, खच्चरों और घोड़ों पर निर्भर हैं.
चोरी और हत्या
केन्या में स्थिति तब बिगड़नी शुरू हुआ जब 2016 में नइवासा में चीनी निवेशकों की मदद से पहला बूचड़खाना स्टार ब्रिलिएंट जंकी एक्सपोर्ट खुला. कुछ महीनों के अंदर ही बूचड़खाने के सप्लायरों ने इलाके में बड़े पैमाने पर गधों को खरीदना शुरू किया, जिसकी वजह से पहले तो इलाके में गधों की कमी हुई फिर उसके दाम आसमान छूने लगे.
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उसके बाद गांवों में अपराधी गैंग आने लगे और गधे गायब होने लगे. 40 साल के चार्ल्स मैना ने बताया कि अगस्त 2017 में उनके गधे चोरी हो गए और दो दिनों के बाद उनका बचा खुचा अवशेष घर के पास मिला. गले के पास नीचे तक उनका चमड़ा निकाल लिया गया था. उनकी पहचान माथे के मिशान से हुई. गधे के नहीं रहने से उससे होने वाली आमदनी भी नहीं रही. चार्ल्स को खर्च में कटौती करनी पड़ी है.
गधों की चोरी को लेकर गांव के लोगों और बूचड़खानों के संचालकों के बीच विवाद बढ़ रहा है. जब थॉमसन रॉयटर्स के पत्रकार स्टार ब्रिलिएंट के प्रमुख जॉन कारियुकी से जानकारी लेने पहुंचे तो उन्होंने जवाब देने से मना कर दिया और उनका कैमरा तोड़ दिया गया. अब पुलिस मामले की जांच कर रही है.
गधों की बढ़ती चोरी के कारण गांव के लोगों ने उन्हें बचाने के लिए रक्षक दल बना लिए हैं. नइवासा के निकट कामेरे के गधा मालिक संघ के जॉन कुइयाकी बताते हैं कि संगठन के 30 सदस्यों के पास पहले 100 गधे थे, अब सिर्फ 50 बचे हैं. "अब हम बारी बारी से रात में इलाके में गश्त लगाते हैं."
गधों के गायब हो जाने पर मालिक पुलिस के साथ मिलकर बूचड़खानों में भी अपने गधों को खोजने जाते हैं. कारियुकी कहते हैं, "मुझे चीनी चिकित्सा के बारे में पता नहीं, लेकिन हमारे गधों को मारकर वे हमें भी मार रहे हैं."
केन्या के लामू द्वीप पर गधों के लिए खास जगह है. वे गाय बकरियों की तरह आम जनजीवन का अहम हिस्सा हैं.
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हर काम में
सामान्य तौर पर गधे अफ्रीका में दिखाई नहीं देते क्योंकि उन्हें शेरों, गैंडों और हाथियों की कड़ी टक्कर मिलती है. लेकिन केन्या के लामू द्वीप पर मामला कुछ अलग है.
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संकरी गलियों में
द्वीप की संकरी गलियों में कारों के लिए जगह नहीं, लेकिन गधे आसानी से जा सकते हैं. इसलिए बोझा तो उन पर लादा ही जाता है, बच्चे बूढ़े भी उन पर लद जाते हैं.
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नौकरी भी
युवा लोग गधों को हांकने वाले की नौकरी कर सकते हैं. इससे काफी लाभ भी हैं. उन्हें बढ़िया पाला पोसा जाता है और गायों की तरह रखा जाता है.
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रेस भी
लामू द्वीप के सालाना समारोह में मुख्य है गधों की रेस. जीतने वाले को करीब आठ हजार रुपये का इनाम मिलता है. केन्या के लिए यह बड़ी रकम है.
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स्नान भी
रेस से पहले मालिक गधों को हिंद महासागर में बढ़िया नहलाते हैं. सिर्फ गधों को ही बढ़िया से खिलाया पिलाया जाता है ताकि वे जीतें.
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विरोध भी
अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए गधों से बेहतर आवागमन का साधन क्या हो सकता है. जैसे यहां बंदरगाह बनाने के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है.
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सवारी का मजा
स्थानीय लोग ही सिर्फ गधों के फैन नहीं हैं, बल्कि यहां आने वाले पर्यटकों को भी इसकी सवारी लेने का मौका मिलता है.
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वैश्विक धरोहर
लामू अपने सुंदर तटों और ऐतिहासिक शहर के लिए मशहूर तो है ही, अपने गधों के लिए भी.