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'गरीबी देखना चाहते हैं पश्चिमी दर्शक'

२१ जुलाई २०१२

'हम तुम' और 'फना' जैसी फिल्में बनाने वाले कुणाल कोहली अपनी नई फिल्म 'तेरी मेरी कहानी' के साथ श्टुटगार्ट इंडियन फिल्म फेस्टिवल में शामिल हुए. उनकी शिकायत है कि पश्चिम के फिल्म फेस्टिवल भारत की गरीबी पर ही ध्यान देते हैं.

तस्वीर: DW/I.Bhatia

कुणाल श्टुटगार्ट फिल्म फेस्टिवल्स अन्य फेस्टिवल से किस तरह अलग है?

मैं यहां तीसरी बार आया हूं. मैं 2008 और 2009 में भी आया था. यह बाकी के फेस्टिवल की तरह बहुत बड़ा फेस्टिवल नहीं है, लेकिन यहां यह बात अच्छी है कि यह सिर्फ भारतीय फिल्मों पर ही आधारित है. यह इस फेस्टिवल की खास बात है. इसीलिए मैं तीसरी बार यहां आया हूं ताकि इसका समर्थन कर सकूं. मेरा ऐसा मानना है कि अगर फिल्म निर्माता ऐसी जगहों पर जाएं जहां हिंदी फिल्में इतनी ज्यादा मशहूर नहीं हैं, तो हमारी फिल्में थोड़ी और मशहूर हो सकेंगी. कल मेरी फिल्म 'तेरी मेरी कहानी' यहां पर चल रही है. उस से पहले मेरी कोई फिल्म यहां पर नहीं आई है, लेकिन मैं एक मेहमान के रूप में यहां आया हूं.

कुणाल कोहली की फिल्में बाकी की फिल्मों से अलग कैसे होती हैं?

कुणाल कोहली की फिल्में फेस्टिवल्स में नहीं दिखाई जाती हैं, वे फेस्टिवल के लिए नहीं बनती. लेकिन कुणाल कोहली की फिल्मों में बहुत ज्यादा रोमांस होता है, यही उन्हें अलग बनाता है.

विद्या बालन ने जिस तरह कहा था कि फिल्म बनाने के लिए अगर कोई हिट फॉर्मूला चाहिए तो वह है एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट. क्या आप भी उसी को मानते हैं?

जी हां, जरूर. एंटरटेनमेंट के बिना फिल्में नहीं चलती, चाहें वे भारतीय फिल्में हों या पश्चिमी. मैं विद्या की बात से बिलकुल सहमत हूं. मैं अपनी फिल्मों में एंटरटेनमेंट के साथ साथ प्यार, मोहब्बत, इश्क भी डालना चाहता हूं.

तस्वीर: AP

आज कल अनुराग कश्यप जैसे निर्देशकों की फिल्में बहुत चल रही हैं, जो आम जिंदगी पर आधारित होती हैं. क्या आप भी उस तरह की फिल्में बनाना पसंद करेंगे?

जी नहीं, जिस तरह वे रोमांटिक फिल्में नहीं बनाते हैं, उसी तरह मैं उनके जैसी फिल्में नहीं बनाता हूं, क्योंकि वह अनुराग कश्यप हैं और मैं कुणाल कोहली हूं. हम अलग किस्म की फिल्में बनाते हैं. कभी वे फिल्में चलती हैं, कभी मेरी फिल्में चलती हैं. हर तरह की फिल्म का दौर होता है. यह अच्छी बात है कि हर किस्म की फिल्में चल रही हैं.

क्या आप आगे भी फना और हम तुम जैसी बड़ी स्टारकास्ट वाली फिल्में ही बनाते रहना चाहते हैं?

हम तुम जब बनी थी तब वह इतनी बड़ी फिल्म नहीं थी. सैफ अली खान इतने बड़े स्टार नहीं थे. उस फिल्म के साथ वह स्टार बन गए, मैं भी मशहूर हो गया उस फिल्म के साथ. यह जरूरी नहीं है कि सिर्फ बड़े स्टार के साथ ही फिल्म बनाई जाए, लेकिन अगर आपके पास बड़े स्टार के साथ काम करने का मौका है तो क्यों ना किया जाए. हर फिल्म निर्माता की यह उम्मीद होती है कि उसकी फिल्म को ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. और जब एक स्टार आपकी फिल्म में होता है, तो ज्यादा से ज्यादा लोग आपकी फिल्म देखते हैं.

Interview: Kunal Kohli_MMT - MP3-Mono

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क्या किसी स्टार को लेकर सीधी सादी फिल्म नहीं बन सकती?

यह बहुत मुश्किल है, क्योंकि आपको बजट नहीं मिलता. आप बना सकते हैं, जैसे हम तुम बनी थी, लेकिन यह बहुत मुश्किल है.

आप आज कल किन फिल्मों पर काम कर रहे हैं?

अभी तो तीन हफ्ते पहले ही मेरी फिल्म रिलीज हुई है. फिलहाल मैं दो फिल्में बतौर निर्माता बना रहा हूं. मैं दो तीन फिल्मों की स्क्रिप्ट पर भी काम कर रहा हूं. कभी कभी आप एक स्क्रिप्ट शुरू करते हैं, लेकिन वह पूरी नहीं हो पाती क्योंकि आप ही को वह अच्छी नहीं लगती. इसलिए मैं एक साथ दो से तीन स्क्रिप्टों पर काम करता हूं और जो मुझे अच्छी लगती है, उसे मैं पूरा करता हूं.

आपकी फिल्में अक्सर काफी लंबे अंतराल के बाद आती हैं. ऐसा क्यों है?

हां, आम तौर पर लोगों को मुझसे यह शिकायत रहती है. मीडिया वाले और फैन्स मुझसे पूछते हैं कि हर दो साल बाद आपकी फिल्म क्यों आती है. मैं फिल्म बनाने में, उसे सोचने में वक्त लगाता हूं. जब मैं एक फिल्म बना रहा हूं तो मैं पूरी तरह से उसी में घुस जाता हूं. मैं उस वक्त उस फिल्म के अलावा और कुछ भी नहीं सोच पाता. जाहिर है जब फिल्म पूरी हो जाती है, तब मैं दूसरी फिल्म के बारे में सोचता हूं. फिर मैं कलाकारों के पास जाता हूं. और क्योंकि मैं बड़े अभिनेताओं के साथ काम करता हूं, तो अक्सर उनकी डेट्स नहीं मिलती. तो उसके लिए सात आठ महीने इंतजार करना पड़ता है. फिर फिल्म शुरू होती है. और उसे बनाने और रिलीज होने में दो साल लग जाते हैं. और मुझे नहीं लगता कि संख्या से कोई फर्क पड़ता है. क्वॉलिटी ज्यादा मायने रखती है. कभी फिल्में चल जाती हैं, कभी नहीं चलती. यह आपके हाथ में नहीं होता.

आप फिल्म समीक्षक के काम को ज्यादा पसंद करते हैं या फिल्म निर्देशक के?

मैं फिल्म समीक्षक बना ही इसलिए क्योंकि मुझे निर्देशक बनने का मौका नहीं मिल रहा था. मैं यह चाहता था कि अगर मुझे फिल्में बनाने का मौका नहीं मिल रहा तो मैं फिल्मों से जुड़ा कुछ काम तो जरूर करूं. मेरा शुरू से सपना फिल्म निर्देशक बनने का ही था. तो जैसी ही मैं वह बना, मैंने बाकी सब काम छोड़ दिया.

क्या श्टुटगार्ट या ऐसे ही अन्य फेस्टिवल में आपकी और फिल्में देखने को मिलेंगी?

मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसा होगा. मेरे ख्याल से यह बहुत गलत बात है कि फिल्मों को यह कह कर अलग कर दिया जाता है कि यह आर्ट हाउस फिल्म है और यह कमर्शियल फिल्म है. हमें इस सोच को बदलने की जरूरत है. मेरे ख्याल से जो पॉप्यूलर फिल्में हैं, या आप इन्हें जो भी नाम देना चाहें, इन्हें भी फेस्टिवल में दिखाया जाना चाहिए.

आपकी फिल्में फेस्टिवल में क्यों नहीं दिखाई जाती?

क्योंकि फेस्टिवल में ऐसी फिल्मों को दिखाया जाता है जो आर्ट हाउस फिल्में कहलाती हैं. मैं फिल्मों को इस तरह से बांटता नहीं हूं, क्योंकि आज कल भारत में आर्ट हाउस फिल्में ज्यादा हिट हो रही हैं. इस साल ऐसी फिल्में बहुत हिट हुई हैं, जैसे पान सिंह तोमर, गैंग्स ऑफ वासेपुर, कहानी. तो अगर फिल्मों को बांटा ना जाए, वही बेहतर है. लेकिन क्योंकि ऐसा किया जाता है, इसलिए मेरी फिल्में नहीं दिखाई जाती.

तस्वीर: AP

आपको क्या लगता है कि पश्चिम में भारत की गरीबी और भ्रष्टाचार जैसे विषय ज्यादा बिकते हैं, इसीलिए इन फेस्टिवल में ऐसी फिल्में दिखाई जाती हैं?

जी, यह मेरी शिकायत है, हमारे फिल्म निर्माताओं से भी, फेस्टिवल के आयोजकों से भी और पश्चिमी दर्शकों से भी. स्लमडॉग मिलियनेयर को ही देख लीजिए. उसमें भारत के स्लम्स के बारे में कहानी थी. मेरा मानना है कि लगान उससे बेहतर फिल्म थी. लेकिन लगान को उतनी पहचान नहीं मिली. उसे ऑस्कर के लिए नामांकित जरूर किया गया, लेकिन वह ऑस्कर जीत नहीं पाई. शायद हम अपनी फिल्मों को बेचना नहीं जानते. हम नहीं जानते कि अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए अपनी फिल्म का प्रचार किस तरह से करना है. हम अपने दर्शकों के साथ ही खुश रहते हैं. शायद हमें इस पर और गौर करने की जरूरत है. अजीब बात यह है की हमारी जो भी फिल्में मशहूर हुई हैं वे सब गरीबी पर ही आधारित होती हैं. यह बहुत दुख की बात है, क्योंकि भारत का मतलब केवल स्लम्स और गरीबी नहीं है.

पश्चिम में माना जाता है कि भारतीय फिल्मों में संजीदगी नहीं होती, उन्हें उतनी बारीकी से नहीं बनाया जाता और उनमें उतनी मेहनत नहीं होती जितनी यूरोपीय सिनेमा में है. क्या आप इस बात से सहमत हैं?

यह बात बिलकुल गलत है कि उनमें मेहनत या संजीदगी नहीं है. इस बात से मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं. फेलिनी जैसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्देशकों की तुलना में गुरुदत किसी भी तरह से कम नहीं हैं. या फिर राज खोसला की फिल्में, रमेश सिप्पी की शोले, यश चोपड़ा, राज कपूर की आवारा, ऐसी सैंकड़ों फिल्में हैं. हां, हम एंटरटेनमेंट फिल्में बनाते हैं, लेकिन हॉलीवुड भी ऐसा ही करता है. अगर हम मसाला फिल्में बनाते हैं तो वे भी स्पाईडरमैन बनाते हैं. ऐसा नहीं है कि हम तुम में या फना में बारीकी पर ध्यान नहीं दिया गया. आप दुनिया के किसी भी देश में चले जाइए, यूरोपीय सिनेमा देख लीजिए या इरानी सिनेमा, किसी ने एक आतंकवादी की प्रेम कहानी नहीं बनाई है. वह कहानी फना में थी. और किसी में हिम्मत नहीं थी कि आतंकवादी को ले कर एक लव स्टोरी बना सके. उसे सराहा भी गया, अवॉर्ड भी मिले. ऐसा नहीं कह सकते कि उसमें किसी बारीकी पर गौर नहीं दिया गया. कश्मीर के बारे में उसमें जो भी सब था वह सच था, और हमने उसमें एक प्रेम कहानी जोड़ दी.

इंटरव्यू: ईशा भाटिया, श्टुटगार्ट

संपादन: महेश झा

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