गरीबी में भी मनता है क्रिसमस
२५ दिसम्बर २०१३हर परिवार की तरह मारिया का परिवार भी तोहफों के साथ क्रिसमस मनाना चाहता है. 16 साल की मारिया भागती हुई मां के पास जाती है और बताती है कि छोटी बहन को तोहफे में जो हेडफोन चाहिए, वो कबाड़ी बाजार में केवल 20 यूरो में मिल रहे हैं. मारिया जानती है कि 200 यूरो में नया तोहफा खरीदने की उसकी हैसियत नहीं है. वह मां को वादा करती है कि इस महीने जेब खर्च नहीं मांगेगी. मां के पास अब बस इतने ही पैसे और बचे हैं, पर बेटी के आगे वह कमजोर पड़ जाती है और पैसे निकाल कर दे देती है.
मारिया की मां मानुएला चेराचानु दफ्तरों और लोगों के घरों में साफ सफाई कर अपने परिवार का खर्च चलाती हैं. कई साल पहले उनके पति उन्हें छोड़ कर चले गए थे. 38 साल की मारिया पांच बच्चों के साथ रहती हैं. महीने में वह 120 यूरो ही कमा पाती हैं. हालांकि इस बार उन्हें 50 यूरो का क्रिसमस बोनस भी मिला है, पर इतने पैसे में गुजारा तो नहीं हो सकता. इसलिए वह सरकारी मदद पर निर्भर हैं.
जर्मनी में बढ़ती गरीबी
ताजा आंकड़ों के अनुसार जर्मनी में एक अकेले व्यक्ति को महीना में खर्च के लिए औसतन 869 यूरो की जरूरत होती है और दो बच्चों वाले परिवार को 1,826 यूरो की. इससे कम आय वालों को गरीबी रेखा के नीचे रखा गया है. जर्मनी में फिलहाल 15 फीसदी लोग इस रेखा के नीचे हैं. देश में कम से कम 15 लाख बच्चे सोशल सिक्यूरिटी स्कीम पर निर्भर हैं.
गरीबी पर शोध कर रहे जर्मनी के क्रिस्टोफ बुटरवेगे का कहना है कि सरकार को और सक्रिय होने की जरूरत है. वह चाहते हैं कि बेरोजगार लोगों को कुछ फायदे दिए जाने चाहिए, जैसे कि अगर घर पर किसी चीज की मरम्मत करानी हो तो उसके लिए कुछ छूट मिले. हालांकि उनका मानना है कि कागजों पर ये सब ज्यादा आसान लगता है और इसे हकीकत में पूरा कर पाना बेहद मुश्किल है. मानुएला भी अपने परिवार की दशा से परेशान हैं, "हमें महीने के 2,000 यूरो मिलते हैं, लेकिन उसमें से आधा तो किराया भरने में ही चला जाता है."
जर्मनी का सबसे कम गरीबी वाला राज्य है बाडेन वुर्टेमबर्ग. इस दक्षिणी राज्य में 10 फीसदी लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं. लेकिन नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के रूअर इलाके में हालात बहुत बुरे हैं. यहां हर पांच में से एक व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है. वहीं उत्तरी राज्य ब्रेमन में तो आबादी का एक चौथाई हिस्सा गरीबी की चपेट में है. यूरोप के देशों में औसत राष्ट्रीय आय की 60 फीसदी रकम को गरीबी रेखा माना जाता है.
क्रिस्टोफ बुटरवेगे का कहना है कि जर्मनी की हालत अब अमेरिका जैसी होने लगी है, "अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर बढ़ता ही जा रहा है." वह इसके लिए कंपनियां की उस नीति को कसूरवार मानते हैं जिसके चलते या तो लोगों को पार्ट टाइम नौकरी दी जाती है या कुछ ही वक्त के कॉन्ट्रैक्ट. देश में महंगाई भले ही बढ़ रही हो, पर वेतन नहीं बढ़ रहा.
नेक बंदों से मदद
जर्मन शहर बॉन में गरीबों को खाने का सामान बांटने वाली संस्था बॉनर टाफेल के हॉर्स्ट डीटर टोनटार्स्की भी सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, "सब कुछ महंगा हो रहा है, लेकिन पेंशन केवल 0.25 फीसदी की दर से बढ़ रही है. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि लोग गरीब हो रहे हैं. हमारे पास इतने सारे लोगों के आवेदन आए हैं कि हम समझ ही नहीं पा रहे हैं कि करें क्या. किसी 80 साल की महिला हो यह कहना आसान नहीं है कि हम उसकी मदद नहीं कर सकते."
बॉनर टाफेल में हर हफ्ते 3,000 लोग खाने का सामान लेने आते हैं. यह संस्था ज्यादातर लोगों की मदद पर निर्भर करती है. कई लोग यहां आ कर सामान छोड़ जाते हैं जिसे यह संस्था गरीबों में बांट देती है. हालांकि बॉनर टाफेल क्रिसमस पर बच्चों के लिए खिलौने तो नहीं जुटा पाती, लेकिन कुछ नेक लोग तोहफे जरूर छोड़ जाते हैं, "हम खुद को भाग्यशाली मानते हैं, जब कभी कभार लोग कॉफी और चॉकलेट के पैकेट छोड़ जाते हैं, क्योंकि गरीब लोग इनका खर्च नहीं उठा सकते."
कई शहरों में क्रिसमस ट्री को "विश ट्री" के तौर पर भी लगाया जाता है. इन पर गरीब परिवारों के बच्चे अपनी "विश" यानि इच्छाएं लिख सकते हैं. कई लोग इन्हें पढ़ कर वहां बच्चों के लिए उपहार छोड़ आते हैं. कहना गलत नहीं होगा कि ये लोग बच्चों के लिए सैंटा क्लॉज का काम करते हैं.
बहरहाल मारिया भी आज सैंटा क्लॉज जैसी ही लग रही हैं. वह बॉनर टाफेल से चार थैले भर कर उपहार ले आई हैं, जिसे वह अपनी इमारत के बच्चों में बांट रही हैं, "बच्चों की खुशी देख कर बहुत अच्छा लगा. मैं उन सब लोगों की एहसानमंद हूं जिन्होंने हमारी क्रिसमस को खूबसूरत बनाने में मदद की." मारिया का परिवार एक सस्ते से क्रिसमस ट्री के आसपास बैठ कर आज त्यौहार मना रहा है. जिस वक्त दूसरे परिवारों में लजीज खाना परोसा जाएगा, मारिया बॉनर टाफेल से लाए गए सामान से अपने परिवार का पेट भरेंगी. लेकिन उन्हें इससे कोई शिकायत नहीं, "जरूरी बात यह है कि हम सब आज एक साथ हैं."
रिपोर्ट: क्रिस्टियान इगनात्सी/आईबी
संपादन: महेश झा