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गरीबी शब्द को मिटाएंगे प्रणब

२५ जुलाई २०१२

भारत के 13वें राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी ने गरीबी हटाने को पहला लक्ष्य बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत की डिक्शनरी से इस शब्द को खत्म करना होगा. भारत की लगभग एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारतीय संसद के केंद्रीय कक्ष में भव्य समारोह में शपथ लेते हुए 76 साल के प्रणब मुखर्जी ने गरीबी को सबसे भद्दी गाली बताया और कहा, "हमें निचले स्तर के लोगों को उबारना होगा ताकि हम आधुनिक भारत के शब्दकोश से गरीबी नाम का शब्द मिटा देना चाहते हैं."

लंबे समय तक वित्तीय मामलों को देखने वाले और 2010 में एशिया के बेहतरीन वित्त मंत्री का खिताब जीत चुके मुखर्जी का कहना है, "हमारे विकास को सच्चाई का रूप तभी मिलेगा, जब हमारे देश के सबसे गरीब लोग भी खुद को उस विकास का हिस्सा समझ सकें."

तस्वीर: AP

विकास पर नजर

भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने मुखर्जी को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई. इस मौके पर पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद थे. लगभग 46 साल तक का राजनीतिक सफर पूरा कर चुके प्रणब मुखर्जी ने अपना ज्यादा समय कांग्रेस पार्टी के साथ बिताया, जो इस वक्त भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में फंसी है. शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने इसका भी जिक्र किया, "भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है, जो विकास में बाधक है. हम अपने विकास को भ्रष्टाचार के हाथों गिरवी नहीं रख सकते."

भारत में राष्ट्रपति शोभा का पद होता है जबकि सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री सबसे ताकतवर होता है. लेकिन प्रशासनिक तौर पर कुछ अहम फैसले राष्ट्रपति के हाथों में जरूर होते हैं और खास तौर पर चुनाव के बाद डांवाडोल स्थिति पर प्रधानमंत्री की नियुक्ति का आखिरी फैसला राष्ट्रपति को ही लेना होता है. कभी कांग्रेस पार्टी में रहे प्रणब मुखर्जी की पकड़ दूसरी पार्टियों के अंदर भी बहुत अच्छी है और उन्हें कांग्रेस का संकटमोचक भी कहा जाता था. ऐसे में 2014 के चुनावों के बाद त्रिशंकु संसद बनने पर मुखर्जी की भूमिका बढ़ सकती है.

ममता भी आईं

कांग्रेस की सहयोगी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने शुरू में मुखर्जी की राष्ट्रपति पद की दावेदारी का विरोध किया लेकिन बाद में वह शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने कोलकाता से निजी विमान से दिल्ली पहुंचीं. उनके अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हाजिर थे, जबकि बीजेपी शासित दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें शामिल नहीं हुए.

तस्वीर: Reuters

पश्चिम बंगाल में 1935 में पैदा हुए मुखर्जी ने वकालत और पत्रकारिता करने के बाद 1966 में राजनीति में कदम रखा. उन्होंने विदेश, गृह, रक्षा और वित्त मंत्रालयों को संभाला. शपथ लेते वक्त उन्होंने अपने सफर को बखूबी याद किया, "मैंने अपने राजनीतिक सफर में अद्भुत बदलाव देखे. मेरी यात्रा बंगाल के एक ऐसे गांव से शुरू हुई, जहां दीये की रोशनी थी और बाद में मैंने दिल्ली के विशाल झाड़ फानूस भी देखे."

चौथा विश्व युद्ध

इससे पहले उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई. उन्होंने आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया और इसे चौथा विश्व युद्ध बताया. मुखर्जी की नजर में दुनिया ने शीत युद्ध के तौर पर तीसरा विश्व युद्ध पहले ही देख लिया है.

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक मुखर्जी की पकड़ भले ही सभी पार्टियों में रही हो लेकिन वित्त मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं रहा. इस दौरान भारत की विकास दर नीचे की ओर गिरी और वह भारत की अर्थव्यवस्था और खोलने में नाकाम रहे. मंत्रालय से हटने के बाद निवेशकों को उम्मीद है कि भारत एक बार फिर से बड़ा बाजार बनेगा. खास तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वजह से, जिन्होंने वित्त मंत्रालय अपने ही पास रखा है.

एजेए/एमजे (रॉयटर्स, डीपीए, पीटीआई, एएफपी)

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