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गरीबों के बच्चे भी बोलेंगे विदेशी जुबान

५ सितम्बर २०१३

भारत में अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की भरमार हैं, इसके बावजूद गरीबों के बच्चे वहां नहीं पढ़ पाते. अब महाराष्ट्र सरकार ने विशेष भाषा केंद्र खोलने का फैसला किया है, जहां मजदूरों के बच्चों को मुफ्त में कई भाषाएं सिखाई जाएंगी.

तस्वीर: DW/Nirmal Yada

भारतीय भाषाओं का रोजगार से रिश्ता जिस तेजी से कमजोर होता जा रहा है, उसी रफ्तार से अंग्रेजी भाषा के स्कूलों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है. अंग्रेजी का ज्ञान रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के साथ ही जीवन स्तर को सुधारने में भी सहायक साबित हो रहा है. ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं. कमजोर आर्थिक वर्ग या श्रमिक वर्ग भी अपने नौनिहालों को इन्हीं स्कूलों में भेजना चाहता है लेकिन आर्थिक या अन्य कारणों की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है. श्रमिक वर्ग के बच्चों के लिए अब सरकार सामने आई है. राज्य का श्रमिक कल्याण बोर्ड मजदूरों के बच्चों के लिए राज्य भर में विशेष भाषा केंद्र खोलने जा रहा है, जहां अंग्रेजी के साथ-साथ जर्मन, फ्रेंच, रशियन, जैपेनीज और चाइनीज भाषा की शिक्षा दी जाएगी.

भारतीय भाषाओं के स्कूलों की हालत बुरीतस्वीर: Vishwaratna Srivastava

करियर में सहायक

भूमंडलीकरण के इस दौर में विदेशी भाषाओं का ज्ञान रोजगार के नए और बेहतर अवसर उपलब्ध करा सकता है, इसी भावना के साथ राज्य के श्रमिक कल्याण बोर्ड ने पूरे राज्य में कई भाषा केंद्र खोलने का फैसला किया है. मुंबई के श्रमिक कल्याण आयुक्त एनबी नागभिरे का कहना है कि मराठी या अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों की तुलना में अंग्रेजी माध्यम के छात्र रोजगार के मैदान में बाजी मार ले जाते हैं. मराठी या हिंदी माध्यम के छात्रों के आत्मविश्वास को बढ़ाने और प्रतिस्पर्धी बनाने के उद्देश्य से ही इस योजना को शुरू किया जा रहा है.

श्रम विभाग का मानना है कि विदेशी भाषाओं को सीखकर बच्चे अपना भविष्य सुधार सकते हैं जो इनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में सहायक साबित होगा. विदेशी भाषा का ज्ञान होने पर इन्हें टूरिस्ट गाइड या अनुवादक के रूप में भी करियर बनाने में मदद मिलेगी.

एनबी नागभिरे ने बताया कि भाषा केंद्र के लिए श्रमिक कल्याण बोर्ड आर्थिक मदद भी देगा. छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा. इसमें पहली से लेकर स्नातक तक की पढ़ाई करने वाले मजदूरों के बच्चे पढ़ सकेंगे. ऐसे लोग भी इन केंद्रों में आकर विदेशी भाषा सीख सकेंगे जो कहीं पर काम कर रहे हों. वैसे यह योजना सिर्फ पंजीकृत श्रमिकों के बच्चों के लिए ही है. जूते बनाने का काम करने वाले तुषार कहते हैं कि उन्हें भी किसी योजना के तहत पढ़ने का मौका मिला होता तो आज फटे पुराने जूतों से नहीं उलझता पड़ता.

जर्मन के प्रति विशेष उत्साह

मुंबई और पुणे जैसे शहरों में जर्मन भाषा के प्रति छात्रों में विशेष दिलचस्पी है. यहां के कई स्कूलों और कालेजों में जर्मन भाषा एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है. श्रमिकों के बच्चे भी आम छात्रों से अलग नहीं हैं इन्हें भी जर्मन भाषा के प्रति ज्यादा दिलचस्पी है. एनबी नागभिरे के अनुसार, "मुंबई और पुणे में ज्यादातर छात्रों ने जर्मन भाषा सीखने के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखाई है. कुछ जगहों पर चाइनीज और फ्रेंच भाषा के प्रति भी छात्रों में उत्साह है.”

पुणे के सहायक श्रमिक कल्याण आयुक्त समाधान भोंसले का कहना है कि पुणे मंडल में आने वाले 42 केन्द्रों में अब तक लगभग 2,000 बच्चों ने अपना पंजीकरण कराया है. पुणे, कोल्हापुर और सोलापुर में बच्चों ने जर्मन, फ्रेंच रशियन भाषा सीखने में रूचि दिखाई है. नागभिरे कहते हैं कि "विदेशी भाषाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है."

मजदूरों के बच्चों के लिए बराबरी का कोई अवसर नहींतस्वीर: Vishwaratna Srivastava

गोएथे इंस्टीट्यूट का साथ

जर्मनी का सांस्कृतिक संस्थान गोएथे इंस्टीट्यूट भारत में मैक्स म्यूलर भवन के नाम से जाना जाता है. गोएथे इंस्टीट्यूटर महाराष्ट्र श्रम कल्याण बोर्ड को सहयोग देगा. जर्मन भाषा की बेहतर पढ़ाई के लिए मैक्स म्यूलर भवन से सहयोग मांगा था. मैक्स म्यूलर भवन मुंबई में भाषा विभाग की प्रमुख बिएटा वेबर कहती हैं कि श्रम कल्याण बोर्ड के साथ इस संबंध में सहमति बनी है, हम उन्हें पूरा सहयोग देंगे. वेबर के अनुसार "उनकी संस्था शुरू में तीन केन्द्रों के लिए तीन शिक्षक मुहैया करा रही है."

श्रम कल्याण बोर्ड ने फ्रेंच भाषा के लिए फ्रांसिसी दूतावास से संपर्क कर योग्य शिक्षकों की मांग की है जिस पर दूतावास ने हामी भर दी है. इसके अलावा भाषा विशेषज्ञों एवं प्रशिक्षकों से भी संपर्क किया जा रहा है.

रिपोर्ट: विश्वरत्न, मुंबई

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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