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गरीब देशों में आबादी की चुनौती

१२ अगस्त २०१३

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2100 आते आते धरती पर करीब 11 अरब लोग होंगे. गरीब देशों में आबादी तेजी से बढ़ेगी और इसके साथ ही इन देशों की चुनौतियों का भी पारावार न रहेगा.

तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE

मानव नाम का यह प्राणी पहले ही धरती के दोबारा इस्तेमाल होने वाले संसाधनों के आधे से ज्यादा हिस्से का इस्तेमाल कर रहा है. प्राकृतिक संसाधनों पर इसका दबाव बढ़ना जारी रहेगा क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने आबादी बढ़ने के अपने पूर्वानुमानों में करीब 25 करोड़ और का इजाफा कर दिया है. इसका मतलब है कि इस सदी के आखिर तक करीब 11 अरब लोग धरती पर होंगे. फिलहाल दुनिया की आबादी 7 अरब है.

आबादी बढ़ने की सबसे तेज रफ्तार गरीब देशों में है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के मुताबिक सब सहारा अफ्रीकी देशों में आबादी 2100 तक चार गुना बढ़ जाएगी. अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन जर्मन फाउंडेशन फॉर वर्ल्ड पॉपुलेशन से जुड़ी उटे श्टालमाइस्टर के मुताबिक प्रजनन की दर में कमी न होना आबादी में इतनी बढ़ोतरी के अनुमान का आधार है. उटे श्टालमाइस्टर का कहना है, "यौन शिक्षा और जन्म दर पर रोक उस तरह विकसित नहीं हुई जैसी हमने उम्मीद की थी."

तस्वीर: AP

बहुत कम और बहुत ज्यादा बच्चे

हर साल विकासशील देशों में करीब आठ करोड़ महिलाएं अनियोजित गर्भ धारण करती हैं क्योंकि न तो उनके पास यौन शिक्षा है, ना ही गर्भधारण रोकने का उपाय. संयुक्त राष्ट्र का तो अनुमान है कि अगर आबादी की मौजूदा विकास दर कम न हुई तो 2100 तक दुनिया की आबादी 28.6 अरब तक जा सकती है. श्टालमाइस्टर शिक्षा और जन्म दर को नियंत्रित करने के बेहतर उपायों की मांग करती हैं. (आर्थिक संकट में कम बच्चे)

इसी दौर में औद्योगिक देशों की आबादी सिमट रही है. 2050 तक जर्मन आबादी में एक करोड़ की कमी आने का अनुमान है. श्टालमाइस्टर ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे पास पहले ही कुशल कामगारों की कमी है, निश्चित रूप से हमें भविष्य में दूसरे देशों से ज्यादा लोगों को बुलाने की जरूरत पड़ेगी."

उटे श्टालमाइस्टरतस्वीर: Foto: Stiftung Weltbevölkerung

गरीबी मिटाने के लिए शांति

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का कहना है कि जिन देशों में तेज विकास दर है उन्हें पहले ही अपनी आबादी को खिलाने में दिक्कत हो रही है. दुनिया भर में पानी, ऊर्जा और भोजन जैसी जरूरी चीजों की कमी पड़ रही है और वे महंगी होती जा रही हैं. इसी मुश्किल में दुनिया को पर्यावरण में होने वाले बदलाव से भी जूझना पड़ रहा है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रमुख हेलेन क्लार्क ने डीडब्ल्यू से कहा, "अगर आसपास के पर्यावरण को नष्ट करते हुए मानव विकास हुआ तो उस कारण दूसरी समस्याएं खड़ी हो गई. अगले 12-15 साल में हम देखेंगे कि गरीबी का भूगोल बहुत हद तक उन इलाकों में सिमट जाएगा जहां जंग है, हथियारबंद हिंसा है, आपदा का जोखिम है, कम धैर्य, कमजोर प्रशासन और नाजुक सरकार है."

हेलेन क्लार्कतस्वीर: DW/H. Jeppesen

रोल मॉडल इथियोपिया

विकास को टिकाऊ होना जरूरी है. और इसमें पर्यावरण की रक्षा, सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास को शामिल करना होगा. क्लार्क का कहना है कि यह संभव है. मध्यम आय वाला इथियोपिया 2025 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाएगा. क्लार्क ने कहा, "अगर पृथ्वी के सबसे गरीब देशों में एक पर्यावरण के साथ दोस्ती रखते हुए मानव विकास को ऊपर ले जा सकता है तो हमें उसके पीछे चलना चाहिए और देखना चाहिए कि कितने और इथियोपिया के इस लक्ष्य के साथ हैं."

मौका हैं युवा

श्टालमाइस्टर ने कहा कि वह शिक्षा पर ध्यान दिए जाने को अहम मानती हैं साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि आबादी के विकास में केवल नकारात्मक बातों पर ही ध्यान नहीं होना चाहिए. श्टालमाइस्टर ने कहा, "बड़ी संख्या में युवा आबादी इन देशों के लिए बड़ा मौका भी है. एशियाई शेरों ने रास्ता दिखा दिया है, उन्होंने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बिल्कुल सही समय पर निवेश किया है. युवा कमाई कर रहे हैं और अपने देश को आगे ले जा रहे हैं." अफ्रीकी देश ये फॉर्मूला अपने देश में लागू करने का लक्ष्य बना सकते हैं.

हालांकि श्टालमाइस्टर कहती हैं कि इससे पहले कि अफ्रीकी शेर छलांग लगाएं, बढ़ती आबादी की समस्या से निबटा जाना चाहिए. लड़कियां या युवा महिलाएं जो ज्यादा पढ़ी लिखी हैं उनके कम पढ़े लिखी महिलाओं की तुलना में कम बच्चे हैं." उनका कहना है कि साल 2100 के लिए बेहतरीन परिदृश्य यह होगा कि दुनिया तब तक गरीबी, भूखमरी और विपत्तियों से मुक्त हो और यह ऐसी दुनिया होगी जिसमें हर महिला के पास पर्याप्त शिक्षा हो और वो यह तय कर सके कि उसके कितने बच्चे होंगे.

रिपोर्टः हेले येप्पेनसन/एनआर

संपादनः आभा मोंढे

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