धारणा बन गई है कि स्कूलों के बंद रहने के बीच ऑनलाइन पढ़ाई एक अच्छा विकल्प बन गई है, लेकिन असल में ऑनलाइन शिक्षा का दायरा बेहद सीमित है. एक नए सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में सिर्फ आठ फीसदी बच्चे ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/P. Waydande
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इस नए सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि महामारी की वजह से स्कूलों के बंद होने का बच्चों पर 'अनर्थकारी' असर पड़ा है. ग्रामीण इलाकों में यह असर और ज्यादा गंभीर है जहां सिर्फ आठ प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं. इन इलाकों में 37 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई तो ठप ही हो गई है.
यह सर्वेक्षण जाने माने अर्थशास्त्री ज्याँ द्रेज और रितिका खेड़ा के संचालन में कराया गया. इसमें 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक में पढ़ने वाले 1400 बच्चों और उनके अभिभावकों से बात की गई.
स्मार्टफोन हैं ही नहीं तो पढ़ाई कैसे हो
इन राज्यों में असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. सर्वे में शामिल किये गए परिवारों में से करीब 60 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. इसके अलावा लगभग 60 प्रतिशत परिवार दलित या आदिवासी समुदायों से संबंध रखते हैं.
महाराष्ट्र के एक गांव में स्कूल के सबक खुले में लाउडस्पीकर पर सुनते बच्चेतस्वीर: Reuters/P. Waydande
अध्ययन में यह भी पाया गया कि इन इलाकों में भी जो परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे थे, उनमें से एक चौथाई से भी ज्यादा परिवारों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में डाल दिया. ऐसा उन्हें या तो पैसों की दिक्कत की वजह से करना पड़ा या ऑनलाइन शिक्षा ना करा पाने की वजह से.
ऑनलाइन शिक्षा का दायरा इतना सीमित होने की मुख्य वजह कई परिवारों में स्मार्टफोन का ना होना पाई गई. ग्रामीण इलाकों में तो पाया गया कि करीब 50 प्रतिशत परिवारों में स्मार्टफोन नहीं थे. जहां स्मार्टफोन थे भी, उन ग्रामीण इलाकों में भी सिर्फ 15 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए क्योंकि उन फोनों का इस्तेमाल घर के बड़े करते हैं.
शहरों में भी स्थिति अच्छी नहीं
काम पर जाते समय इन लोगों को फोन साथ में लेकर जाना पड़ता है और ऐसे में फोन बच्चों को नहीं मिल पाता है. ऐसा भी नहीं है कि यह तस्वीर सिर्फ ग्रामीण इलाकों की है. शहरी इलाकों में चिंताजनक स्थिति ही पाई गई.
कश्मीर के तंगमर्ग में खुले में हो रही सामुदिक पढ़ाईतस्वीर: Dar Yasin/AP Photo/picture alliance
मिसाल के तौर पर जहां ग्रामीण इलाकों में नियमित ऑनलाइन शिक्षा पाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ आठ प्रतिशत पाई है, शहरी इलाकों में यह संख्या सिर्फ 24 प्रतिशत पाई है. यानी शहरों में भी हर 100 में से 76 बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं.
यही हाल स्मार्टफोन होने और ना होने के मोर्चे पर भी है. स्मार्टफोन वाले घरों में भी जहां ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 15 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं, शहरों में यह संख्या बस 31 प्रतिशत पाई गई.
बच्चों की क्षमता पर असर
कुल मिला कर इस स्थिति का असर बच्चों की लिखने और पढ़ने की क्षमता पर भी पड़ा है. शहरी इलाकों में 65 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 70 प्रतिशत अभिभावकों को लगता है कि इस अवधि में उनके बच्चों की लिखने और पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है.
त्रिपुरा में खुले में पढ़ते बच्चेतस्वीर: DW/P. Tewari
इन कारणों की वजह से ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा गरीब और सुविधाहीन अभिभावक चाहते हैं कि अब स्कूलों को खोल दिया जाए.
सर्वे में मध्यम वर्ग और अमीर परिवारों को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन कई राज्यों में इन वर्गों के परिवार अभी बच्चों को स्कूल भेजने से डर रहे हैं. भारत में अभी 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण शुरू नहीं हुआ है.
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
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जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
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कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
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अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
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ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.