गर्भपात पर बंटा हुआ है आयरलैंड
२५ मई २०१८आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वरड़कर के अनुसार यह एक ऐसा वोट है जो एक पीढ़ी में एक ही बार देखने को मिलता है. अगर फैसला गर्भपात के पक्ष में आता है, तो यह आयरलैंड और महिला अधिकारों के इतिहास में एक बड़ा कदम होगा. देश के मौजूदा कानून में गर्भपात पर पूरी तरह से रोक है. हालांकि कभी कभार अपवाद भी देखने को मिले हैं. मिसाल के तौर पर 1992 में एक बलात्कार पीड़ित नाबालिग लड़की के मामले में अदालत ने गर्भपात के पक्ष में फैसला सुनाया. बच्ची डिप्रेशन में थी और गर्भवती होने के कारण आत्महत्या करना चाहती थी. ऐसे में अदालत ने माना कि अगर भ्रूण के कारण मां की जान को खतरा है, तो गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है. लेकिन इसके अलावा आयरलैंड में ऐसे मामले देखे गए हैं, जो बताते हैं कि वहां के कानून का कितनी सख्ती से पालन किया जाता है.
साल 2014 में एक ब्रेन डेड महिला को इसलिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया क्योंकि उसकी कोख में 15 हफ्ते का भ्रूण पल रहा था. हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि बच्चा स्वस्थ पैदा हो सकेगा लेकिन डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें सपोर्ट सिस्टम हटाने की अनुमति है या नहीं. चूंकि ऐसा करने का मतलब भ्रूण की हत्या करना होता, इसलिए इस पर बहस चलती रही. आखिरकार लगभग एक महीने बाद अदालत ने सिस्टम हटाने के आदेश दिए.
सविता का मामला
भारत की सविता हलप्पनवार के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. गर्भावस्था के दौरान कुछ परेशानी आने पर 31 वर्षीय सविता को आयरलैंड के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. हालत बिगड़ने के कारण उन्होंने डॉक्टरों से गर्भपात की गुजारिश की लेकिन कानून का पालन करते हुए डॉक्टरों ने इनकार कर दिया. हालांकि उनका सेप्टिक मिसकैरेज हुआ और उसके एक हफ्ते बाद उनकी मौत हो गई. डॉक्टरों को गर्भ गिरने के बाद अहसास हुआ कि उनके खून में इंफेक्शन है. सेप्सिस बढ़ता गया और उन्हें दिल का दौरा पड़ा. सविता के पति ने आरोप लगाया कि अगर डॉक्टरों ने वक्त रहते गर्भपात कर दिया होता, तो उनकी पत्नी की जान बच सकती थी.
इस मामले के बाद आयरलैंड में काफी विरोध प्रदर्शन हुए और 2013 में सरकार ने कानून में बदलाव किया. संशोधन के अनुसार अगर भ्रूण के कारण मां की जान को खतरा हो, तो ऐसे में गर्भपात किया जा सकता है. और किसी भी दूसरे मामले में ऐसा करने पर डॉक्टर को 14 साल की कैद हो सकती है.
कानून को समझें
आयरलैंड के संविधान में 1983 में एक अनुच्छेद जोड़ा गया. इसे आठवें संशोधन का नाम मिला. इसके तहत मां और भ्रूण दोनों को जीने का बराबर हक है. इसलिए गर्भपात पर पूरी तरह से रोक है. हालांकि देश में 1861 से ही गर्भपात पर मनाही रही है लेकिन फिर भी इस संशोधन को इसलिए शामिल किया गया क्योंकि आसपास के देशों में गर्भपात पर चर्चा हो रही थी और कई देश गर्भावस्था की पहली तिमाही यानि 12 हफ्ते तक इसकी अनुमति देने लगे थे. आयरलैंड एक कैथोलिक देश है और वह दुनिया के आगे साफ कर देना चाहता था कि वह भ्रूण की हत्या नहीं होने देगा.
जानकारों का मानना है कि आठवें संशोधन का उल्टा असर हुआ है. महिलाएं गर्भपात के लिए आसपास के देशों में चली जाती हैं. आयरलैंड के स्वास्थ्य मंत्री सायमन हैरिस ने डब्लिन में डॉयचे वेले के गैवन रीली को बताया, "अगर इसका मकसद गर्भपात को रोकना था, तो यह बुरी तरह विफल रहा है. हर रोज आयरलैंड से नौ महिलाएं ब्रिटेन में गर्भपात कराने जाती हैं और कम से कम तीन आयरिश महिलाएं अवैध रूप से बगैर किसी डॉक्टरी मदद के अबॉर्शन की गोलियां लेती हैं. इस तरह के संवेदनशील मुद्दे के लिए सही कानून बनाने की जरूरत है."
वोट पर ऑनलाइन असर
अमेरिकी चुनावों और ब्रेक्जिट जैसे मुद्दों पर कैम्ब्रिज एनेलिटिका और फेसबुक की भूमिका सामने आने के बाद इस बार ऑनलाइन प्लैटफॉर्म सतर्क हैं. इंटरनेट के माध्यम से लोगों को प्रेरित ना किया जा सके, इस बात का ध्यान रखा जा रहा है. फेसबुक ने किसी भी विदेशी यूजर द्वारा आयरलैंड के वोट से जुड़े विज्ञापनों पर रोक लगा दी है. गूगल ने भी किसी भी तरह के विज्ञापनों को चलाने से इनकार कर दिया है. यूट्यूब पर वीडियो के शुरू होने से पहले वाले विज्ञापनों में भी यह मुद्दा नजर नहीं आ रहा है. हालांकि गर्भपात के खिलाफ प्रचार करने वाले गूगल के इस फैसले से खुश नहीं हैं.
आयरलैंड के लोग शुक्रवार सुबह सात बजे से रात दस बजे तक अपना मत डाल सकते हैं. सरकार ने फिलहाल एक ड्राफ्ट तैयार किया है. यदि इसे लोगों का समर्थन मिलता है, तो कानून बनने से पहले इस पर संसद में चर्चा होगी. यूरोप के अधिकतर देशों में गर्भपात की अनुमति है लेकिन ऐसा ज्यादातर मामलों में केवल पहले तीन महीने में ही किया जा सकता है और इस दौरान बच्चे के लिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है.