गर्भवती औरतों के प्लेसेंटा तक पहुंच रहे हैं कार्बन कण
१८ सितम्बर २०१९
गर्भवती महिलाएं जब प्रदूषित हवा में सांस लेती हैं तो यह उनके फेफड़ों से आगे जा कर प्लेसेंटा तक पहुंच सकती है. गर्भ मे पलते शिशु पर इसके असर के बारे में बहुत कुछ नया पता चला है.
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प्रदूषित हवा में कार, फैक्ट्री या फिर दूसरे स्रोतों से निकले धुएं में मिले छोटे छोटे कार्बन कण मौजूद होते हैं. यह छोटे कण किसी भी जीव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. गर्भवती महिलाओं के इनके संपर्क में आने का असर समय से पहले बच्चे के जन्म और उसके कम वजन के होने के रूप में दिख सकता है. हालांकि वैज्ञानिक इसका कारण नहीं जान सके हैं लेकिन इसका असर कुछ ऐसा है जो ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में महिलाओं की देखरेख पर असर डाल सकता है.
एक सिद्धांत यह भी कहता है कि ये कण मां के फेफड़ों में जमा हो जाते हैं और नुकसानदेह किस्म की सूजन और जलन पैदा करते हैं. बेल्जियम के रिसर्चरों ने इससे जुड़ी एक और आशंका जताई है. उनका कहना है कि इन कणों के कारण और सीधा खतरा हो सकता है. स्कैनिंग की एक नई तकनीक ने 28 नई मांओं के दान दिए प्लेसेंटा में कार्बन के कणों को दिखाया, जिनके बारे में नेचर कम्युनिकेशन नामक जर्नल में रिपोर्ट छपी है.
प्लेसेंटा उस झिल्ली को कहते हैं जो उनके गर्भ की रक्षा करती है. यह विकसित होते भ्रूण को पोषण देने का काम करता है. इसके साथ ही मां के खून के साथ आने वाली हानिकारक चीजों को भ्रूण तक पहुंचने से रोकता है. हासेल्ट यूनिवर्सिटी की टीम ने देखा कि भ्रूण के सबसे करीब रहने वाले प्लेसेंटा के उस हिस्से में जहां गर्भ नाल होती वहां कुछ कण जमा हो गए हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर के डॉ योएल सादोव्स्की सावधान कहते हुए कहते हैं कि यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि ये कण प्लेसेंटा को पार कर वहां पहुंचे हैं या फिर इनका कोई बुरा प्रभाव होता है. डॉ सादोव्स्की खुद इस रिसर्च में शामिल नहीं थे लेकिन वह प्लेसेंटा के प्रमुख विशेषज्ञ माने जाते हैं. उनका यह भी कहना है कि यह एक छोटी रिसर्च है हालांकि फिर भी उन्होंने माना कि "प्लैसेंटा पर इसका मिलना भी एक बड़ी बात है. अब बड़ा सवाल यह है कि कितने कणों की वहां मौजूदगी नुकसानदेह हो सकती है."
वैज्ञानिकों को कुछ जानवरों के अध्ययन से पहले ही इस बात का अंदेशा हो चुका था कि ये कण प्लेसेंटा तक पहुंच सकते हैं. हालांकि बेल्जियम के रिसर्चरों ने पहली बार इसे इंसानों के प्लेसेंटा में देखा है. इन रिसर्चरों ने एक तरीका विकसित किया है जिससे प्लेसेंटा के नमूनों को स्कैन किया जा सकता है. इसमें लेजर की बेहद छोटी स्पंदन का इस्तेमाल किया जाता है. यह कार्बन कणों को चमकदार सफेद रोशनी में बदल देता है जिन्हें मापा जा सकता है.
विकास की तेज रफ्तार में सांस लेना भी हुआ मुश्किल
पर्यावरण इंजीनियर भूषण तुलाधकर कहते हैं कि तेजी से विकास होने की वजह से नेपाल की राजधानी काठमांडू दुनिया की सबसे अधिक वायु प्रदूषण वाले शहरों में शामिल हो गई है. यहां रहने वाले लोग स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं.
तस्वीर: Marco Panzetti
तब और अब
काठमांडू के पश्चिम में एक पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थल स्वयंभू मंदिर से कश्मीर के दो रूप दिख रहे हैं. तस्वीर में जो दिख रहा है वह 1967 का है और दूसरा नजारा पिछले साल का है. हरे भरे जगहों पर घर बना लिए गए हैं और पहाड़ धुंए की दीवार में छिप गया है. 2018 में नेपाल को वैश्विक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 180 देशों की सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले स्थान पर रखा गया.
तस्वीर: Marco Panzetti
कारों का शहर
नेपाल की राजधानी काठमांडू एक घाटी में स्थित है. इस वजह से प्रदूषित वायु पहाड़ों के बीच ही रह जाती है. इसमें ज्यादातर हिस्सा कच्चे धुंए और सड़कों की धूल का है. शहर के बाहरी इलाके में मौजूद ईंट भट्टे से भी प्रदूषण होता है लेकिन सबसे बड़ी वजह यातायात है.
तस्वीर: Marco Panzetti
पार्क भी सैर करने लायक नहीं
काठमांडू में गाड़ियों की संख्या प्रतिवर्ष 14 प्रदिशत की दर से बढ़ रही है, जो आबादी के मुकाबले तीन गुना अधिक है. जैसे-जैसे ट्रैफिक बढ़ रहा है, पैदल चलने वाले लोग घबरा रहे हैं. गाड़ियों के शोर और धुंए की वजह से आंखों में जलन होती है और सांस लेने में तकलीफ होती है.
तस्वीर: Marco Panzetti
प्रदूषित वायु
प्रदूषित वायु की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है. काठमांडू के व्यस्त कलंकी में घूम रहे 63 वर्षीय नारायण दहल कहते हैं, "मेरा नाक सूख गया है. मेरे फेफड़े ठीक से काम नहीं कर रहे. मेरे सिर में दर्द रहता है. मैं खुद को धूल से बचाने के लिए मास्क का प्रयोग कर रहा हूं."
तस्वीर: Marco Panzetti
सीमित सुरक्षा
काठमांडू में दो दिन पहनने के बाद मास्क पूरी तरह गंदा हो जाता है. यह मास्क धुएं और धुल में मौजूद सूक्ष्म कणों से बचाने में काफी मदद करते हैं. मास्क ना हो तो ये सूक्ष्म कण फेफड़ों में बहुत गहराई तक जाते हैं. इससे हृदय और श्वास से संबंधित बीमारियां और यहां तक कि कैंसर हो सकता है.
तस्वीर: Marco Panzetti
फेफड़े को पहुंच रहा नुकसान
काठमांडू में रहने वाले कई लोग हमेशा मास्क नहीं पहनते हैं. तस्वीर में बच्चों के लिए मिठाई बेच रहे दुकानदार ने मास्क नहीं पहन रखा है. जिस जगह ये मिठाईवाला बैठा है, वह व्यस्त चौराहा है. यह एक व्यवसायिक खतरा है.
तस्वीर: Marco Panzetti
आधुनिक युग में भागना
आधी सदी पहले नेपाली राजधानी में कुछ लाख लोग रहते थे. आज यह 30 लाख लोगों की आबादी वाला महानगर है. सही योजना के बिना लोग यहां बसते गए और आज यह शहर पूरी तरह अनियंत्रित हो गया है. शहर की प्रमुख गलियां जैसे कि कांति पथ पूरी तरह धुएं से भर गई है.
तस्वीर: Marco Panzetti
हांफ रहे लोग
काम के दौरान आराम मिलने पर यह महिला छत पर चढ़ गई है. ऐसा लग रहा है जैसे वह प्रदूषित शहर का इतनी ऊंचाई से मुआयना कर रही है. अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद काठमांडू का फिर से निर्माण हो रहा है. कुछ लोगों को उम्मीद है कि नई इमारतों के लिए ईंट बनाने वाले भट्ठों में ऊंची चिमनियों का प्रयोग होगा.
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अब यादों में ही स्वच्छ हवा
29 साल के बौद्ध भिक्षु पासंग थंगलू कहते हैं, "मैं बचपन में काठमांडू आया करता था. उस समय हवा इतनी खराब नहीं थी. लेकिन जब मैं 2015 में यहां आया तो हवा सांस लेने लायक नहीं रही. भूकंप के बाद से हालात और खराब हो गए हैं क्योंकि नए निर्माण की वजह से काफी ज्यादा धूल उड़ रही है.
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गंदगी और शैतान
काठमांडू में देवता तक सुरक्षित नहीं हैं. काठमांडू शिल्पकार के शोरूम में देवी तारा की इस मूर्ति के चेहरे को बचाने के लिए कागज लपेटा गया है. ऐसा नहीं करने पर धूल की वजह से यह खराब हो सकता है. (रिपोर्टः मार्को पंजेटी)
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रिसर्चरों ने 10 ऐसी मांओं के प्लेसेंटा को इस रिसर्च में शामिल किया जो बेहद प्रदूषित इलाके में रहती हैं. उन्होंने 10 अन्य ऐसी मांओं को भी चुना जो कम प्रदूषित शहरों में रहती हैं. जितना ज्यादा प्रदूषण था उतने ही ज्यादा कार्बन कण प्लेसेंटा में मिले.
रिसर्च रिपोर्ट के वरिष्ठ लेखक टिम नावरोट का कहना है, "जब भ्रूण के अंग पूरी तरह से विकसित होने लगते हैं तब यह स्वास्थ्य के लिए कुछ जोखिम पैदा कर सकता है." टिम नावरोट इस बारे में अपने रिसर्च को और आगे बढ़ाने वाले हैं.