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गर्भावस्था की जानलेवा समस्या जो आपने कभी नहीं सुनी

९ फ़रवरी २०२४

ज्यादातर महिलाओं को तभी पता चलता है जब उनमें इस बीमारी की पहचान होती है. लेकिन मातृ मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी की एक बड़ी वजह प्रीक्लैम्पसिया है. आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में.

गर्भवती महिलाओँ का हर केस अपने अपा में अनोखा होता है
भ्रूण की अल्ट्रासाउंड तस्वीर के साथ एक गर्भवती महिलातस्वीर: IMAGO/Pond5 Images

2012 में कोइवा कोई-लार्बी को 25 हफ्ते का गर्भ था. वो पहली बार मां बन रही थी. वो और उनका परिवार उत्साहित थे, कोइवा की टांगों, पांवों और हाथों में सूजन थी. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि घाना में गर्भावस्था के दौरान पेट का बड़ा आकार मतलब माना जाता है कि शर्तिया लड़का होगा.

हालांकि कोई-लाब्री ने सूजन के अलावा दूसरे लक्षणों पर भी गौर किया. उन्हें सिरदर्द रहने लगा था और एक तरह का पेटदर्द भी, पेट के ऊपरी दायें हिस्से में. उन्हें छाती में जलन रहने लगी थी और "कई किस्म के धब्बे" दिख रहे थे. जब उन्होंने अपने लक्षणों के बारे में नर्स को बताया, तो उन्हें बताया गया, "यही तो होता है."

कोई-लार्बी को प्रीक्लैम्पसिया बीमारी का जो पता चला उसकी एक चुनौती ये है कि उसके कई लक्षण ऐसे हैं जिनकी खुद पहचान करना गर्भवती महिलाओं के लिए काफी मुश्किल हो जाता है. उनके स्वास्थ्य की देखरेख करने वाले लोग भी नहीं कर पाते जैसे कि उनकी नर्स. जबकि उन्हें ऐसे लक्षणों को चिह्नित करने की ट्रेनिंग मिली होती है.

हर सात सेकेंड में एक गर्भवती महिला या शिशु की मौत

प्रीक्लैम्पसिया दुनिया भर में मांओं की मौत की प्रमुख वजहों में से एक है. इस बीमारी में गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर रहता है. जिसे कभी कभार महिलाएं खुद महसूस भी नहीं कर पाती.

नीदरलैंड्स में यूएमसी उट्रेष्ट में ग्लोबल हेल्थ और एपिडेमियोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर जॉयस ब्राउने कहते हैं, "आपको हाई ब्लड प्रेशर होगा लेकिन आपको पता भी नहीं चलेगा." ब्राउने कहती हैं कि अगर आपने गौर कर लिया तो आपको कोई-लार्बी के जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं या "आपको अपनी तबीयत खराब लग सकती है."

भारत के एक अस्पताल में गर्भवती महिला की जांच करती डॉक्टरतस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

हर देश में प्रीक्लैम्पसिया अलग अलग है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि विकासशील देशों में बीमारी की दर विकसित देशों के मुकाबले सात गुना ज्यादा है. वैश्विक स्तर पर,  हर साल मांओं की करीब 12 प्रतिशत मौतों के लिए यही बीमारी जिम्मेदार है. 

प्रीक्लैम्पसिया की अवस्थाएं: दौरा, कोमा, मृत्यु

महीने के अंत में कोई-लार्बी को दौरे पड़ने लगे और उन्हें तड़के दो बजे अस्पताल ले जाना पड़ा. उन्हें बताया गया कि वो इक्लैम्पसिया से पीड़ित हैं. प्रीक्लैम्पसिया का इलाज नहीं कराने के कारण यह स्थिति आती है. यह मरीज को समय पर इलाज ना मिलने पर, कोमा में डाल सकती है या उसकी मौत भी हो सकती है.

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अकेली चीज जो उस मोड़ पर कोई-लार्बी और उनके शिशु को बचा सकती थी वो था आपात सीजेरियन ऑपरेशन. अस्पताल ले जाते समय उनके तत्कालीन पति ने उनकी मां से फोन पर बात की. उनकी मां को अपनी बेटी की हालत पर अचरज नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "ओह, ये तो मेरी वाली बीमारी है." कोई-लार्बी ने कहा कि पहली बार उन्हें ये पता चला कि उनकी मां को प्रीक्लैम्पसिया हुआ था.

ब्राउने कहती हैं कि गर्भ धारण करने वाली सभी महिलाओं को वे यह सलाह देती हैं कि वे अपनी माओं से पूछें कि क्या उन्हें भी अपनी गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लडप्रेशर रहता था. वो कहती हैं, "यह एक महत्वपूर्ण रिस्क फैक्टर है. अगर आप जानती हैं कि आपकी मां को भी ये था तो आपको अतिरिक्त रूप से सतर्क रहना चाहिए."

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कोई-लार्बी डिलीवरी के तीन दिन बाद अपने नवजात शिशु से मिल पाईं. वो छोटा सा था, उसे स्तनपान नहीं कराया जा सकता था. एक कॉम्प्लिकेशन उभर आया और नवजात शिशु की 48 घंटे बाद मौत हो गई. वो कहती हैं, "हम लोग टूट गए थे."

दूसरी और तीसरी गर्भावस्था

कोई-लार्बी ने बच्चा पैदा करने की ठान ली थी. वो कहती हैं, दरअसल उनका सपना था पांच बच्चे पैदा करने का. एक साल बाद 2013 में वो दोबारा प्रेग्नेंट हुईं.

पांच महीने की प्रेग्नेंसी में वो आगे की देखरेख के लिए अमेरिका चली गईं. और दोबारा उन्होंने प्रीक्लैम्पसिया के लक्षणों का अनुभव किया, लेकिन 37वें हफ्ते में वो बेटी को जन्म देने में कामयाब रहीं.

जन्म देने के सकारात्मक अनुभव से प्रेरित होकर, तीसरी बार वो 2012 में प्रेग्नेंट हुईं. वही लक्षण फिर उभर आए. लेकिन इस बार उनकी तीव्रता कम थी. वो कहती हैं ज्यादातर थकान ही महसूस करती थीं.

26 सप्ताह की गर्भावस्था में वो ब्लड प्रेशर की जांच कराने अस्पताल गईं. उन्हें कोई तीव्र लक्षण नहीं महसूस हो रहे थे लेकिन जानती थी कि अपनी पूर्व गर्भावस्थाओं की वजह से ये निरीक्षण बहुत जरूरी हैं. उनका ब्लड प्रेशर 150 और 100 था. ये देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी.

अस्पताल में कोई-लार्बी का चौथा दिन था, जब दाई ने शिशु की हृदयगति चेक की और उसे धड़कन नहीं महसूस हुई. डॉक्टर ने पुष्टि कर दी कि वो अपना शिशु गंवा चुकी हैं. मेडिकल टीम ने सर्जरी कर मृत भ्रूण को कोई-लार्बी की देह से बाहर निकालकर उनकी जान बचाई.

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कोई-लार्बी कहती हैं, "इस मोड़ पर, हां मैं सदमे में थी. सवाल पर सवाल पूछे जा रही थी. बार बार." स्वास्थ्य सुधार के दौरान वो ऑनलाइन जवाबों की तलाश करने लगीं. उन्हें प्रीक्लैम्पसिया सपोर्ट ग्रुप मिले लेकिन सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में. उन्होंने उनसे बात की और खुद का हेल्प ग्रुप शुरू किया जिसे उन्होंने नाम दिया 'एक्शन ऑन प्रीक्लैंम्पसिया घाना.'

कोई-लार्बी का लक्ष्य इस बीमारी के बारे में सूचना मुहैया कराना और महिलाओं और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच जागरूकता जगाने का था.

वो शोधकर्ताओं के साथ भी जुड़ना चाहती थी जिससे घाना में स्थिति सुधारी जा सके. एक केंद्रीय बिंदु के रूप में भी वो काम करना चाहती थीं जहां प्रीक्लैम्पसिया की पीड़ित महिलाओं को काउंसलिंग मुहैया कराई जा सके.

वो कहती हैं, "हमारे यहां अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बोलना या बात करना आसान काम नहीं है इसलिए जब तक इस तरह के आघात भरे पलों के दौरान आपके पास एक मददगार पति या मददगार परिवार ना हो तो आपको इस किस्म की चीजों से अकेले ही गुजरना और निपटना पड़ता है."

हेल्प सिंड्रोमः सबसे बदतर प्रीक्लैम्पसिया

एक्शन ऑन प्रीक्लैम्पसिया घाना को चलाते हुए और वर्षों के अनुभव और ज्ञान से लैस, कोई-लार्बी 2019 में चौथी बार प्रेग्नेंट हुई.

वो कहती हैं, "इस शिशु को लेकर ढेर सारी उम्मीदे थीं."

लेकिन इस दफा उन्हें हेल्प (एचईएलएलपी) सिंड्रोम ने घेर लिया. ये प्रीक्लैम्पसिया का सबसे गंभीर रूप है. उन्हें अपनी खुद की जिंदगी बचाने के लिए बच्चे की डिलीवरी करनी थी. जन्म के तीन दिन बाद एक किलो वजन का नवजात नहीं रहा.

तीन विलंब: मांओं की मृत्यु को देखने के तरीके

ब्राउने कहती हैं कि मातृ स्वास्थ्य इस बात का एक सूचक है कि कैसे स्वास्थ्य प्रणाली काम करती है और महिला स्वास्थ्य को हम कितनी प्राथमिकता देते हैं.

"गर्भ धारण करते समये अधिकांश महिलाएं स्वस्थ होती हैं. लेकिन ऐसी समस्याएं आ सकती हैं जिन्हें तत्काल, समय पर और अच्छी देखरेख की जरूरत होती हैं. और अगर ऐसी देखरेख आपको ना मिले, तो इसका मतलब नतीजे खराब हो सकते हैं और जानलेवा भी."

ब्राउने जैसे विशेषज्ञ मातृ मृत्यु को "तीन विलंब" मॉडल के रूप में देखती हैं.

पहला विलंब, खुद महिलाओं की ओर से होता है. उन्हें लगता है कि उन्हें हो रहा दर्द गंभीर नहीं कि चिकित्सा सलाह लेने की जरूरत पड़े और वे उसे अनदेखा कर देती हैं.

दूसरा विलंब लॉजिस्टिक्स यानी संचालन-प्रबंधन का होता है- स्वास्थ्य सेवा केंद्र में पहुंचने की कोशिश के दौरान महिलाएं जिस तरह के अवरोधों का सामना कर सकती हैं. खासकर दूरदराज के गांवों में जहां महिलाएं किसी स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल से बहुत दूर रहती हैं.

तीसरा विलंब महिला के अस्पताल पहुंचने पर देखरेख की गुणवत्ता से जुड़ा है.

घाना के एक डॉक्टर टिटुस बेयु का शोध, प्रीक्लैम्पसिया पर केंद्रित रहा है. वो कहते हैं कि एकबारगी महिला अस्पताल पहुंच जाती है तो उनके और डॉक्टर के बीच होने वाले संचार की गुणवत्ता भी तीसरे विलंब का समाधान कर सकती है.

बेयु कहते हैं, गर्भवती महिलाओं के लिए ये असामान्य बात नहीं कि क्यों को लेकर कोई स्पष्टीकरण दिए बगैर या डॉक्टर की बात को समझे बगैर, उन्हें तत्काल बच्चा पैदा करने को कह दिया जाए.

स्वास्थ्य सेवाओं से दूरी गर्भवती महिलाओं के लिए अकसर जानलेवा बन जाती हैतस्वीर: DW

इस वजह से मरीज अपनी अवस्था या बीमारी के उपचार को मना भी कर सकते हैं, सिर्फ इसलिए कि उन्हें नहीं पता चल पाता कि हो क्या रहा है.

कोई-लार्बी कहती हैं कि उनके पहले बच्चे की मौत संचार में इसी नाकामी की वजह से हुई थी. "अज्ञानता ने मेरे बच्चे को मार डाला. क्या हो रहा है मुझे बताया ही नहीं गया."

धार्मिक मुश्किलें

ये एक अजीब विडंबना है कि जब महिलाओं को स्वास्थ्य की जरूरी देखरेख तक भले ही पहुंच हासिल हो जाए लेकिन उनमें से कुछ अपनी धार्मिक मान्यताओं की वजह से उपचार को खारिज कर सकती हैं. बेयु कहते हैं कि इससे एक दूसरी किस्म की गलतफहमी पैदा होती है.

बेयु कहते हैं, "वे पूछेंगीः 'समय से पहले बच्चा क्यों पैदा करने को कह रहे हैं आप?'" उनके मुताबिक अपने पादरी या धर्मगुरू से बात किए बिना वे महिलाएं उपचार लेने से मना कर देती हैं. जो कि जरूरी होता है, बच्चे की पूर्व डिलीवरी जान बचा सकती है.

बेयु कहते हैं कि घाना के अस्पतालों ने इस समस्या से निपटने के बारे में सोचा है. इसके लिए कुछ पादरी रखे गए हैं जो कॉल करने पर बुलाए जा सकते हैं. बेयु के मुताबिक, घाना में बहुत सारे अलग अलग धर्मों को मानने वाले लोग हैं, और हरेक धर्म के अपने अपने बहुत से पंथ या संप्रदाय हैं लिहाजा इसका कोई एक सीधा सर्वमान्य समाधान नहीं है.

हालांकि मुख्य बात शायद यही है कि प्रत्येक महिला और उनकी प्रेग्नेंसी व्यक्तिगत और अपने आप में खास है. कोई-लार्बी ने जैसा पाया, उनकी हर प्रेग्नेंसी अलग अलग थी. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि गर्भावस्था में देखभाल सिर्फ जन्म को लेकर या आपात स्थिति पड़ने पर ही नहीं की जाती. देखभाल तो शुरुआत से ही शुरू होनी चाहिए.

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