पहले की तुलना में गर्म वातावरण में पल रहे बच्चों के सामने स्वास्थ्य से जुड़ी ज्यादा समस्याएं होंगी, कम से कम उनके मां बाप की तुलना में.
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डॉक्टरों की एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में ये बात कही गई है. डायरिया के बढ़ते मामले, ज्यादा खतरनाक गर्म हवाएं, वायु प्रदूषण और मच्छरों से फैलने वाली डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों ने पहले ही दुनिया भर के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रही हैं. दुनिया के स्वास्थ्य के बारे में मेडिकल जर्नल लांसेट में इस बारे में सालाना रिपोर्ट छपी है. रिपोर्ट और उसे तैयार करने वाले लेखकों का कहना है कि अगर गर्मी बढ़ाने वाली गैसों के उत्सर्जन पर रोक नहीं लगी तो दुनिया की नौजवान पीढ़ी के लिए भविष्य में स्वास्थ्य की समस्या गंभीर होगी.
रिपोर्ट की सहलेखिका डॉ रेनी सालास ने कहा, "आज पैदा होने वाला बच्चा जब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ेगा तो वह ज्यादा से ज्यादा ऐसे नुकसान के संपर्क में आएगा जो मैंने नहीं झेला है. मुझे नहीं लगता कि स्वास्थ्य के लिहाज से इससे ज्यादा आपात स्थिति हो सकती है."
डायरिया फैलाने वाले बैक्टीरिया विब्रियो के फैलने के लिए अनुकूल दिनों की संख्या 1980 के बाद पहले ही दोगुनी हो चुकी है. पिछले साल इस बीमारी की चपेट में जितने लोग आए वह अब तक की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. गर्म होते वातावरण में अमेरिका के तटीय इलाकों का 29 फीसदी विब्रियो के लिहाज से संवेदनशील हो चुका है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विब्रियो का हैजा वाला संस्करण भी 10 फीसदी बढ़ चुका है.
रिपोर्ट के मुताबिक ये बीमारियां बच्चों को ज्यादा प्रभावित करती हैं. बच्चे, बुजुर्ग और बीमार लोग अत्यधिक गर्मी के कारण खतरनाक बुखार, सांस की बीमारी और किडनी की समस्या के शिकार बनते हैं. रिपोर्ट के मुख्य लेखक निक वाट्स का कहना है, "बच्चे सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बोझ उन्हीं पर पड़ेगा. उनके स्वास्थ्य पर इसका बिल्कुल अलग तरीके से असर होगा."
बीते दशकों में मेडिसिन और सार्वजनिक स्वास्थ्य बेहतर हुआ है, लोग लंबा जी रहे हैं. हालांकि डॉ रेनी सालास का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, "उन सबको खत्म कर देगा जो हमने हासिल किया है." सालास का कहना है कि कई बीमारियां जलवायु में बदलाव के कारण बहुत दूर तक फैल रही हैं. इसी साल जुलाई में एक बुजुर्ग मरीज उनके पास आया था जिसके शरीर का तापमान 106 डिग्री तक चला गया था. एंबुलेंस के कर्मचारी ने बताया कि वह एक सार्वजनिक घर की सबसे ऊपरी मंजिल पर रहता था जिसमें एयरकंडिशन नहीं लगा था. जब घर का दरवाजा खुला तो तेज गर्म हवा का झोंका कर्मचारियों से आ कर टकराया. सालास ने मरीज की जान तो बचा ली लेकिन एक डॉक्टर के रूप में उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा. कई बार तो कुछ मामलों में उनके पास भी कोई उपाय नहीं होता. जैसे कि दिमाग में घातक रक्तस्राव के मामले में.
एनआर/एमजे (एपी)
इन शहरों से सीखिए ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ना
इलेक्ट्रिक बसें चलाने से लेकर प्रदूषण को सोखने वाले अर्बन गार्डनों तक, दुनिया भर के शहर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए काफी कुछ कर रहे हैं. जानिए ऐसे सात शहर जो इस मामले में दुनिया के लिए मिसाल हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Kielwasser
मेडेलिन, कोलंबिया
लातिन अमेरिकी देश कोलंबिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर मेडेलिन 2016 से 30 ग्रीन कोरिडोर बनाने में जुटा है. इसके लिए शहर भर में नौ हजार पेड़ लगाए गए हैं जिन पर 1.6 करोड़ डॉलर खर्च हुए. प्रदूषक तत्वों को सोखने के अलावा इन पेड़ों ने शहर के औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस कम किया है. इससे शहर में जैवविविधता भी बढ़ी है और वन्यजीवों को बसेरे मिल रहे हैं.
तस्वीर: DW/D. O'Donnell
अकरा, घाना
पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अकरा का प्रशासन वर्ष 2016 से अनौपचारिक तौर पर कचरा उठाने वाले 600 लोगों के साथ काम कर रहा है. ये लोग पहले कचरा जमा करते थे और उसे जला देते थे, जिससे प्रदूषण होता था. अब पहले से ज्यादा कचरा जमा हो रहा है, उसे रिसाइकिल किया जा रहा है और सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाया जा रहा है.
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कोलकाता, भारत
कोलकाता 2030 तक ऐसी पांच हजार बसें खरीदने की योजना बना रहा है जो बिजली से चलेंगी. गंगा में बिजली से चलाने वाली नौकाएं लाने की भी तैयारी हो रही है. अभी तक ऐसी 80 बसें खरीदी जा चुकी हैं और अगले साल ऐसी 100 बसें और खरीदी जानी हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar
लंदन, ब्रिटेन
लंदन ने 2019 में दुनिया का सबसे पहला अल्ट्रा लो एमिशन जोन बनाया. इसके तहत सिटी सेंटर में आने वाले सभी वाहनों को सख्त उत्सर्जन मानकों को पूरा करना होगा, वरना भारी जुर्माना देना होगा. चंद महीनों में ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गई. लोग पैदल, साइकिल या फिर सार्वजनिक परिवहन से चलने लगे.
सैन फ्रांसिस्को के क्लीनपावरएसएफ कार्यक्रम के तहत लोगों को उचित दामों पर अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बनने वाली बिजली मुहैया कराई गई. शहर प्रशासन को उम्मीद है कि वे 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 40 प्रतिशत कटौती के अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे.
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गुआंगजू, चीन
शहर प्रशासन ने 2.1 अरब डॉलर की रकम खर्च कर शहर की सभी 11,200 बसों को इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया और उनके लिए चार हजार चार्जिंग स्टेशन भी बनाए. इससे ना सिर्फ शहर में वायु प्रदूषण घटा है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है. यही नहीं, बसों को चलाने पर लागत भी कम हुई है.
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सियोल, दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया की राजधानी में दस लाख घरों की बालकनी और छत पर सोलर पैनल लगाने के लिए सब्सिडी दी गई है. स्कूल और पार्किंग सेंटर जैसी जगहों पर ऐसे पैनल लगाए जा रहे हैं. शहर को उम्मीद है कि वह 2022 तक एक गीगावॉट सोलर बिजली पैदा कर पाएगा. इतनी ही बिजली परमाणु रिएक्टर से वहां पैदा हो रही है.