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गर्म होते समंदरों में ऑक्सीजन की कमी

३० सितम्बर २०१७

गर्म होते महासागरों में ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा है. अगर यही सिलसिला चलता रहा तो धरती पर हर तरह का जीवन अस्त व्यस्त होने लगेगा.

USA Korallen in  Florida Keys
तस्वीर: Joe Berg/Way Down Video

प्रशांत महासागर के तट पर एक सुबह. पेरु की राजधानी लीमा के इस बंदरगाह के आस पास इस समय बड़ी शांति सी है. यह अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रोजेक्ट है, जिसकी अगुवाई जर्मनी का गियोमार हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर ओसियनोग्राफी कर रहा है.

कई हफ्तों से यहां 10 देशों के 70 वैज्ञानिक प्रशांत महासागर के व्यापक अध्ययन के लिए तैयार इस जगह पर काम कर रहे हैं. यहां उपकरणों का अजीब सा दिखने वाला तामझाम नजर आता है.

मेसोकोस्मेन एक बड़ी टेस्टट्यूब जैसा है. इसके सहारे वैज्ञानिक अलग अलग गहराई पर मौजूद पानी के नमूने लेते हैं. अलग अलग स्तर के पानी के सैंपल से वे ऑक्सीजन के स्तर और वहां मौजूद प्लांकटन जैसे सूक्ष्म जीवों का अध्ययन करेंगे. सबसे पहले पानी का सैंपल लिया जाता है. इसमें बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है. पानी में मौजूद गैस का रिसाव नहीं होना चाहिए. रिसाव हुआ तो गलत आंकड़े मिलेंगे.

समुद्र का यह इलाका जैव विविधता के लिहाज से बेहद संपन्न है. लेकिन अभी यह संकट में हैं. पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है. इस शोध में पेरु भी खूब दिलचस्पी ले रहा है. हो भी क्यों न, यह देश अंतरराष्ट्रीय बाजार को 10 फीसदी समुद्री आहार मुहैया कराता है. यही वजह है कि रिसर्च के लिए एकदम परफेक्ट एरिया चुना गया.

रिसर्च की अगुवाई कर रहे प्रोफेसर उल्फ रीबेसेल हेल्महोल्त्स इंस्टीट्यूट के समुद्र विज्ञानी हैं, प्रोफेसर रीबेसेल के मुताबिक, "यह आदर्श इलाका है, जहां समुद्र में ऑक्सजीन की कमी पर शोध किया जा सकता है. इस इलाके में वैसे ही बहुत कम प्राकृतिक ऑक्सीजन है, ऊपर से अगर ऑक्सीजन की मात्रा और भी घटे तो यह इलाका ही सबसे पहले प्रभावित होगा. वो भी व्यापक रूप से, इसकी वजह से पूरे समुद्र का इकोसिस्टम प्रभावित हो सकता है. इन बदलावों की टोह यहां मिलेगी, इसीलिए हम रिसर्च के लिए यहां आए हैं ताकि इस प्रक्रिया का अध्ययन कर सकें."

फरवरी 2017 में वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने लीमा पहुंचकर बड़े उपकरण यहां महासागर में लगाए. ये बहुत ही गहराई तक जाते हैं ताकि गहरे पानी के सैंपल भी जुटाए जा सकें. भविष्य में समुद्र में कैसे बदलाव होंगे, मेसोकोस्मेन पर सिम्युलेशन के जरिये इसका अंदाजा लगाया जा सकेगा. गहरे समंदर से नमूने लेने के कुछ घंटे बाद लीमा के बदंरगाह पर वापसी. कनिस्टर अलग अलग गहराई पर मिले समुद्री जल से भरे हैं. एक कामयाबी, जिसके सहारे प्रयोगशाला में कई जानकारियां सामने आएंगी.

 वैज्ञानिकों ने पेरू के तट पर लंबे समय में दर्ज किया है कि समुद्री जल का तापमान बढ़ा है. मार्च में तापमान औसत से कई डिग्री ज्यादा था. ऊंचे तापमान के चलते ज्यादा वाष्पीकरण भी हुआ और अंत में मूसलाधार बारिश हुई. मार्च और अप्रैल में इस इलाके ने भीषण बाढ़ का सामना किया. यह जलवायु परिवर्तन का असर है. वैज्ञानिकों के शोध दिखा रहे हैं कि बीते 50 साल में दुनिया भर के समुद्रों में ऑक्सीजन का स्तर दो फीसदी गिर चुका है.

प्रोफेसर रीबेसेल के मुताबिक, "समुद्र तीन बड़े बदलावों का सामना कर रहे हैं. पहला बदलाव है उनका गर्म होना, जलवायु परिवर्तन, इससे वे खारे हो रहे हैं और इंसान द्वारा छोड़ी गई सीओटू को ज्यादा सोख रहे हैं. तीसरा असर यह है कि पूरे समुद्र में ऑक्सीजन कम होती जा रही है."

यह एक बड़ी चिंता है. गर्म समुद्री पानी, ठंडे की तुलना में कम ऑक्सीजन सोखता है. सतह पर ही अगर ऑक्सीजन कम सोखी जाए तो गहराई तक उसका प्रवाह प्रभावित होता है. पेरु भी रिसर्च में खासी दिलचस्पी ले रहा है. इंस्टीट्यूटो देल मार देल की मिशेल ग्राको नतीजों से चिंता में है, "अब हम समझ रहे हैं कि हमारे समुद्र में क्या हो रहा है. ऊपर से जलवायु परिवर्तन जैसा बाहरी कारण भी है. हमारे सामने कैसे हालात ऊपज रहे हैं, हम ये जानने की कोशिश कर रहे हैं."

समुद्र में जीने वाले जीवों के कई समूह ऐसी दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं. लंबे शोध से पता चलेगा कि पानी में ऑक्सीजन के गिरते असर से जलीय इकोसिस्टम में कैसा बदलाव आता है. लेकिन एक बात साफ है कि जलवायु परिवर्तन का असर जमीन ही नहीं बल्कि पानी में भी बड़ी गहराई तक पहुंच रहा है.

(समुद्री दुनिया के 10 अजूबे)

मिषाएल स्टोक्स/ओएसजे

 

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