गर्म होते महासागरों में ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा है. अगर यही सिलसिला चलता रहा तो धरती पर हर तरह का जीवन अस्त व्यस्त होने लगेगा.
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प्रशांत महासागर के तट पर एक सुबह. पेरु की राजधानी लीमा के इस बंदरगाह के आस पास इस समय बड़ी शांति सी है. यह अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रोजेक्ट है, जिसकी अगुवाई जर्मनी का गियोमार हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर ओसियनोग्राफी कर रहा है.
कई हफ्तों से यहां 10 देशों के 70 वैज्ञानिक प्रशांत महासागर के व्यापक अध्ययन के लिए तैयार इस जगह पर काम कर रहे हैं. यहां उपकरणों का अजीब सा दिखने वाला तामझाम नजर आता है.
मेसोकोस्मेन एक बड़ी टेस्टट्यूब जैसा है. इसके सहारे वैज्ञानिक अलग अलग गहराई पर मौजूद पानी के नमूने लेते हैं. अलग अलग स्तर के पानी के सैंपल से वे ऑक्सीजन के स्तर और वहां मौजूद प्लांकटन जैसे सूक्ष्म जीवों का अध्ययन करेंगे. सबसे पहले पानी का सैंपल लिया जाता है. इसमें बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है. पानी में मौजूद गैस का रिसाव नहीं होना चाहिए. रिसाव हुआ तो गलत आंकड़े मिलेंगे.
खतरे में ग्रेट बैरियर रीफ
2014 की एक रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ को संकट में बताती है. यहां बंदरगाह के विस्तार की योजना दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ के खात्मे में आखिरी कील साबित हो सकती है.
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समुद्र के नीचे विश्व धरोहर
उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में स्थित ग्रेट बैरियर रीफ को 1981 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया. यहां 625 प्रकार की मछलियां, 133 किस्मों की शार्क, नीले पानी में जेली फिश की कई प्रजातियां, घोंगा और कृमि मौजूद हैं. 30 से ज्यादा किस्मों की व्हेल और डॉल्फिन भी यहां रहती हैं. लेकिन पिछले कुछ दशकों से यहां की मूंगा चट्टानें और इसकी समृद्ध जैव विविधता प्रदूषण और इंसानी दखल से जूझ रहे हैं.
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बंदरगाह का विस्तार विवादित
1984 से उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के एबोट प्वाइंट पर स्थित बंदरगाह से दुनिया भर को कोयला निर्यात किया जा रहा है. अब सरकार ने इसकी विस्तार योजना को मंजूरी दे दी है. तीस लाख घन मीटर रेत और कीचड़ को इकट्ठा किया जाएगा और उसे मरीन पार्क के किसी हिस्से में फेंक दिया जाएगा. जानकारों का कहना है कि मूंगा चट्टानों पर इससे विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.
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दक्षिणी गोलार्ध में सबसे बड़ा बंदरगाह
विभिन्न जटिल स्तरों पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने बंदरगाह के विस्तार की योजना को मंजूरी दी है. ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क प्राधिकरण ने मरीन पार्क में गारे को फेंकने की मंजूरी दी है. इस पोर्ट से हर हाल 12 करोड़ टन कोयला निर्यात किया जाएगा. इतने बड़े पैमाने पर निर्यात से एबोट प्वाइंट भूमध्य रेखा के दक्षिणी हिस्से का सबसे बड़ा बंदरगाह बन जाएगा.
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भारत की बिजली के लिए कोयला
बंदरगाह की विस्तार योजना खासकर भारत से कोयले की मांग को देखते हुए किया गया है. भारतीय ऊर्जा कंपनियां जीवेके और अडानी ग्रुप के साथ खनन कंपनी हैनकॉक ने क्वींसलैंड की खदानों से बड़े पैमाने में कोयला खनन करने की योजना बनाई है. एबोट प्वाइंट से कोयला भारत भेजा जाएगा.
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जलवायु परिवर्तन से खतरा
ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया भर में मूंगों के लिए मशहूर है. बंदरगाह का विस्तार कोरल रीफ के लिए गंभीर क्षति का कारण हो सकता है. शोध से पता चला है कि पहले से ही जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे मूंगे के पत्थरों का गारे के कारण दम घूंट जाएगा. गुनगुने पानी के कारण प्रवाल ब्लीचिंग के शिकार हो रहे हैं. हाल के सालों में तूफान के कारण भी इन्हें भारी क्षति पहुंची है.
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गर्म पानी से समस्या
जलवायु परिवर्तन कई समुद्री जीवों के जीवन को कठिन बना रहा है, जैसे ग्रेट बैरियर रीफ के द्वीप पर पैदा होने वाले कछुए. यहां पैदा होने वाले कछुए का लिंग रेत के तापमान पर निर्भर करता है. अगर तापमान बढ़ता चला गया तो शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तरी रीफ में 20 साल के भीतर कछुओं की आबादी स्त्रीगुण संपन्न हो जाएगी.
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समंदर पर दबाव
पूर्वोत्तर ऑस्ट्रेलियाई तट पर गन्ने के खेतों में कीटनाशकों, उर्वरकों और खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल होता है. ये बहकर समंदर के पानी में मिल जाते हैं, जो समुद्री जीवन को प्रभावित करते हैं. एबोट प्वाइंट योजना के आलोचकों का कहना है कि मूंगों की बिगड़ती हालत को ध्यान में रखा जाना चाहिए और साथ ही किसी भी नए दबाव से बचा जाना चाहिए.
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समुद्र का यह इलाका जैव विविधता के लिहाज से बेहद संपन्न है. लेकिन अभी यह संकट में हैं. पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है. इस शोध में पेरु भी खूब दिलचस्पी ले रहा है. हो भी क्यों न, यह देश अंतरराष्ट्रीय बाजार को 10 फीसदी समुद्री आहार मुहैया कराता है. यही वजह है कि रिसर्च के लिए एकदम परफेक्ट एरिया चुना गया.
रिसर्च की अगुवाई कर रहे प्रोफेसर उल्फ रीबेसेल हेल्महोल्त्स इंस्टीट्यूट के समुद्र विज्ञानी हैं, प्रोफेसर रीबेसेल के मुताबिक, "यह आदर्श इलाका है, जहां समुद्र में ऑक्सजीन की कमी पर शोध किया जा सकता है. इस इलाके में वैसे ही बहुत कम प्राकृतिक ऑक्सीजन है, ऊपर से अगर ऑक्सीजन की मात्रा और भी घटे तो यह इलाका ही सबसे पहले प्रभावित होगा. वो भी व्यापक रूप से, इसकी वजह से पूरे समुद्र का इकोसिस्टम प्रभावित हो सकता है. इन बदलावों की टोह यहां मिलेगी, इसीलिए हम रिसर्च के लिए यहां आए हैं ताकि इस प्रक्रिया का अध्ययन कर सकें."
फरवरी 2017 में वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने लीमा पहुंचकर बड़े उपकरण यहां महासागर में लगाए. ये बहुत ही गहराई तक जाते हैं ताकि गहरे पानी के सैंपल भी जुटाए जा सकें. भविष्य में समुद्र में कैसे बदलाव होंगे, मेसोकोस्मेन पर सिम्युलेशन के जरिये इसका अंदाजा लगाया जा सकेगा. गहरे समंदर से नमूने लेने के कुछ घंटे बाद लीमा के बदंरगाह पर वापसी. कनिस्टर अलग अलग गहराई पर मिले समुद्री जल से भरे हैं. एक कामयाबी, जिसके सहारे प्रयोगशाला में कई जानकारियां सामने आएंगी.
कैसी है हमारी धरती की तबीयत
पहले से खस्ताहाल जलवायु पर बेपरवाही की दोहरी मार पड़ रही है. एक बार नजर डालते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती ग्लोबल वॉर्मिंग के कितने गंभीर खतरे में पड़ी हुई है.
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तापमान
धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है. 1880 से इसके आंकड़े जमा किए जा रहे हैं. 21वीं सदी के अब तक के 16 सालों में रिकॉर्ड तापमान दर्ज हुए हैं. विश्व के कुछ बड़े शहरों में सन 2100 तक तापमान आठ डिग्री सेल्सियस तक और बढ़ जाने का अनुमान है.
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बर्फ की चादर
आर्कटिक पर बर्फ की चादर सिमटती जा रही है और 2030 की गर्मियों तक आर्कटिक सागर से बर्फ खत्म होने का अनुमान है. दूसरे छोर पर, अंटार्कटिक में भी समुद्री बर्फ में भारी कमी दर्ज हुई है. लगातार 36 सालों से ग्लेशियरों का इलाका भी घटता जा रहा है.
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ग्रीनहाउस गैसें
2016 में कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी अहम ग्रीनहाउस गैसों की वातावरण में मात्रा उच्चतम रही. पेरिस समझौते में इनको 450 पीपीएम पर सीमित करने का लक्ष्य है. जिससे वैश्विक तापमान को 2 डिग्री की सीमा पर रोका जा सके.
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फॉसिल फ्यूल
इन ईंधनों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. बीते तीन सालों में अर्थव्यवस्था में विकास के बावजूद इनका स्तर स्थिर बना हुआ है. लेकिन मीथेन का स्तर बढ़ा है, जो कि वातावरण को CO2 से भी ज्यादा गर्म करता है. मीथेन के बढ़ने का कारण पता नहीं चल पाया है.
तस्वीर: Reuters/J. Revillard
समुद्री स्तर
बर्फ का पिघलना और पानी का गर्म होकर फैलना तेज हो गया है. 2005 से 2015 के बीच समुद्रस्तर उसके पहले के दशक के मुकाबले 30 फीसदी तेजी से ऊपर गया. यह दर और तेज होने की संभावना है, जिससे दुनिया के निचले इलाके डूब सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/E. Wray
प्राकृतिक आपदा
इंसानी गतिविधियों से जलवायु में आते बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं के बीच संबंध स्थापित हो चुका है. 1990 से आपदाएं दोगुनी हो चुकी है. विश्व बैंक बताता है कि हर साल इन आपदाओं के कारण करीब ढाई करोड़ लोग गरीबी में धकेले जा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/G. Pohl
जैव विविधता
आईयूसीएन की रेड लिस्ट में "खतरे में" दर्ज जानवरों और पौधों की 8,688 प्रजातियों में से करीब 19 फीसदी पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर पड़ा है. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ, जो कि अब कभी ब्लीचिंग के बुरे असर से उबर नहीं पाएगी. आरपी/एमजे (एएफपी)
तस्वीर: Karen Joyce/James Cook University
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वैज्ञानिकों ने पेरू के तट पर लंबे समय में दर्ज किया है कि समुद्री जल का तापमान बढ़ा है. मार्च में तापमान औसत से कई डिग्री ज्यादा था. ऊंचे तापमान के चलते ज्यादा वाष्पीकरण भी हुआ और अंत में मूसलाधार बारिश हुई. मार्च और अप्रैल में इस इलाके ने भीषण बाढ़ का सामना किया. यह जलवायु परिवर्तन का असर है. वैज्ञानिकों के शोध दिखा रहे हैं कि बीते 50 साल में दुनिया भर के समुद्रों में ऑक्सीजन का स्तर दो फीसदी गिर चुका है.
प्रोफेसर रीबेसेल के मुताबिक, "समुद्र तीन बड़े बदलावों का सामना कर रहे हैं. पहला बदलाव है उनका गर्म होना, जलवायु परिवर्तन, इससे वे खारे हो रहे हैं और इंसान द्वारा छोड़ी गई सीओटू को ज्यादा सोख रहे हैं. तीसरा असर यह है कि पूरे समुद्र में ऑक्सीजन कम होती जा रही है."
यह एक बड़ी चिंता है. गर्म समुद्री पानी, ठंडे की तुलना में कम ऑक्सीजन सोखता है. सतह पर ही अगर ऑक्सीजन कम सोखी जाए तो गहराई तक उसका प्रवाह प्रभावित होता है. पेरु भी रिसर्च में खासी दिलचस्पी ले रहा है. इंस्टीट्यूटो देल मार देल की मिशेल ग्राको नतीजों से चिंता में है, "अब हम समझ रहे हैं कि हमारे समुद्र में क्या हो रहा है. ऊपर से जलवायु परिवर्तन जैसा बाहरी कारण भी है. हमारे सामने कैसे हालात ऊपज रहे हैं, हम ये जानने की कोशिश कर रहे हैं."
समुद्र में जीने वाले जीवों के कई समूह ऐसी दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं. लंबे शोध से पता चलेगा कि पानी में ऑक्सीजन के गिरते असर से जलीय इकोसिस्टम में कैसा बदलाव आता है. लेकिन एक बात साफ है कि जलवायु परिवर्तन का असर जमीन ही नहीं बल्कि पानी में भी बड़ी गहराई तक पहुंच रहा है.
(समुद्री दुनिया के 10 अजूबे)
समुद्री दुनिया के 10 अजूबे
दुनिया में करीब मछलियों के करीब 30,000 प्रकारों की पहचान हो चुकी है - जिसमें से कुछ किस्में काफी असाधारण हैं. इलेक्ट्रिक ईल के अलावा मछलियों की दुनिया के कुछ और अजूबे सदस्यों से मिलिए.
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इलेक्ट्रिक ईल
इसका नाम भले ही इलेक्ट्रिक ईल हो लेकिन असल में यह मछली ईल नहीं बल्कि नाइफफिश नस्ल की है. अपने शिकार को यह 600 वोल्ट तक का बिजली का झटका दे सकती है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि यह अपनी हाई वोल्टेज ऊर्जा का इस्तेमाल एक ट्रैकिंग डिवाइस के तौर पर भी करती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे चमगादड़ का ईको-लोकेशन फॉर्मूला.
तस्वीर: imago/Olaf Wagner
बैंडेड आर्चरफिश
खारे पानी में रहने वाली यह मछली अपने शिकार पकड़ने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाती है. बैंडेड आर्चरफिश पानी की सतह पर आकर वहां से हवा में कीड़ों पर निशाना साधती है. इसके लिए वह अपने मुंह से पानी की एक फुहार हवा में फेंकती है और कीड़े उसमें फंस कर नीचे आ जाते हैं. बड़ी मछली तो करीब 3 मीटर दूर स्थित कीड़ों को भी निशाना बना लेती है.
यह मछली खुद को बालू में धंसा लेती है और फिर किसी शिकार के अपने पास से गुजरने का इंतजार करती है. जैसे ही शिकार करीब से निकलता है वह उछल कर उसे अपना भोजन बना लेती है. इसकी आंखें और मुंह और मछलियों की तरह बगल में नहीं बल्कि सामने की ओर होते हैं. स्टार गेजर्स मछलियां जहरीली भी होती हैं.
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स्टोन फिश
जहरीली और छुपने में उस्ताद - स्टोन फिश में यह दोनों गुण हैं. ये लगती भी एक पत्थर जैसी है और इसके ऊपर शैवाल उग जाते हैं. इसको छूते ही इतने सख्त सूई जैसे कांटे चुभ जाते हैं जो कि जहर बुझे होते हैं. यह दुनिया की कुछ सबसे जहरीली मछलियों में से एक है जिससे इंसान की जान भी जा सकती है.
तस्वीर: gemeinfrei
पफर फिश
इस मछली का पेट इतना लचीला होता है कि डर लगने पर यह अपने पेट में खूब सारा पानी भर के अपना आकार काफी बड़ा कर लेती है. यह टेट्रोडोटॉक्सिन नाम का एक बेहद खतरनाक जहर पैदा करती है जिससे इंसान मर सकता है. जापान में यही पफर फिश बड़े चाव से खाई जाती हैं. जाहिर है कि इन्हें पका कर खाने योग्य बनाना भी एक कला है.
तस्वीर: picture alliance/Arco Images
एंग्लर फिश
यह मछली अपने शिकार को सिर के ऊपर उगे इलिसियन नाम की संरचना से आकर्षित करती है. इसे मछली का फिशिंग रॉड भी कहा जाता है. इस रॉड के सिरे जगमगाते हैं जिससे उत्सुकतावश शिकार इनकी ओर खिंचा चला आता है और एंग्लर फिश का भोजन बन जाता है. यह मछली पूरी दुनिया में पाई जाती है यहां तक कि गहरे सागरों में भी.
तस्वीर: Flickr/Stephen Childs
वाइपर फिश
यह बेहद खतरनाक दिखने वाली मछली गहरे सागरों में पाई जाती है. उच्च् दबाव, अंधेरे और बहुत कम भोजन पर जीवित रहने वाली यह मछली मुश्किल वातावरण के लिए खास तौर पर ढली होती है. अगर कोई शिकार वाइपर फिश के पास से गुजरता है तो इसके बड़े मुंह और तीखे दांतों से बचने की कम ही संभावना होती है.
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सीहॉर्स या दरियाई घोड़ा
इतना सुंदर, परिकथा के किरदार सा दिखने वाला दरियाई घोड़ा दुनिया की उन कुछ जीव प्रजातियों में से है जो सीधे खड़े तैरते हैं. जाहिर है ऐसे उर्ध्वाकार तैरने से इनके शरीर पर खूब गतिरोध लगता है जिसके कारण ये बहुत तेज नहीं तैर पाते. सीहॉर्स की एक और विशेषता नर के पेट की वह थैली है जिसमें वह निषेचित अंडे लेकर घूमता है और बच्चे को जन्म भी देता है.
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मड स्किपर
इस मछली के बारे में कहा जाता है कि वह निर्णय नहीं कर पाती कि उसे पानी में रहना ज्यादा पसंद है या धरती पर. इसीलिए ये ऐसे समुद्री इलाके में रहती हैं जहां ज्वार के समय पानी हो और भाटा के समय सूखा. मेंढक जैसी एम्फीबियन प्रजाति की ही तरह यह भी अपनी त्वचा से सांस ले सकती हैं.
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हैमरहेड शार्क
इस हथौड़े जैसे सिर वाली शार्क से अजीब नजारा क्या होगा. रिसर्चर मानते हैं कि इसका चपटा, दोनों तरफ फैला हुआ सिर और उसके सिरों पर स्थित इसकी आंखें शार्क के दृश्य क्षेत्र को बढ़ा देती हैं. इससे वह ज्यादा बड़े क्षेत्र में देख पाता है और आसानी से शिकार भी कर पाता है.