भूटान के सांख्यिकी ब्यूरो के सर्वे के मुताबिक भूटान की 68 फीसदी महिलाएं मानती हैं कि अगर औरत बच्चों की अनदेखी करती है, पति से बहस करती है, खाना जला देती है या यौन संबंध से मना कर देती है तो उसे पीटा जाना सही है.
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भूटान निवासी सोनम जांग्मो दो साल तक हर रोज पति के हाथों पिटती थी. लेकिन बेटी के जन्म के बाद उन्होंने अहम पैसला किया. आज वह बेटी को अकेले पाल रही है और पहले से कहीं ज्यादा खुश है. सोनम ने बताया, "वह मौका मिलते ही मुझपर हाथ छोड़ देता था." वह भूटानी जिले भुमथांग के एक रिजॉर्ट में काम करती है. यह जगह अपने प्राचीन बौद्ध मंदिर और मठ के लिए मशहूर है. वह कहती है, "इससे बेहतर कोई और उपाय नहीं था. मैं अपनी बेटी के लिए अच्छा जीवन चाहती हूं."
लेकिन भारत और चीन की सीमा से लगे भूटान में जब तक हालात बहुत हद तक बदल नहीं जाते उनकी बेटी के लिए भविष्य में घरेलू हिंसा से बचने की गारंटी नहीं है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक साल 2012 में देश की 74 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार रहीं.
2008 में बने खुशहाली कमीशन की सचिव कर्मा शीतीम के मुताबिक, "यह हैरान करने वाली और सदमे की बात है. यह बर्ताव बौद्ध शिक्षाओं के विरुद्ध है." घरेलू हिंसा की शिकार एक अन्य 49 वर्षीय महिला मेवांग जाम ने अपने पति को शादी के 20 साल बाद छोड़ दिया. वह एक स्कूल की सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं, और पति शराबी. वह उन्हें और उनके बच्चों को पीटता था. एक दिन जब उसने उन्हें लोहे के छड़ से पीटने की धमकी दी तो जाम ने उसे घऱ से धक्के देकर बाहर निकाल दिया. 20 साल वह उसमें सुधार की उम्मीद करती रहीं, लेकिन वह दिन कभी नहीं आया.
भूटान में 2004 से गैर सरकारी संस्था रिन्यू सक्रिय है. इसके चलते लिंग भेद संबंधी मारपीट के 4000 मामले दर्ज हुए हैं. लेकिन देश में घरेलू हिंसा के अधिकांश मामले दर्ज नहीं होते. रिन्यू के करीब 2400 प्रतिनिधि घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरुकता बढ़ाने के लिए देश भर में काम कर रहे हैं. वे पीड़ितों के यौन स्वास्थ्य, घरेलू हिंसा से बचाव और उन्हें रहने की जगह मुहैया कराने में मदद करते हैं.
महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
महिलाओं के खिलाफ दुनिया भर से आने वाली शोषण और अत्याचार की खबरें आम हैं. कई देशों में महिलाओं के खिलाफ ऐसे कानून हैं जो उनके मानवाधिकारों का गला घोंटते दिखते हैं...
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शादीशुदा महिला का बलात्कार
दिल्ली में 2012 के निर्भया कांड के बाद दुनिया भर में भारत की थूथू हुई. लेकिन एक साल बाद ही कानून में एक नई धारा जोड़ी गई जिसके मुताबिक अगर पत्नी 15 साल से ज्यादा उम्र की है तो महिला के साथ उसके पति द्वारा यौनकर्म को बलात्कार नहीं माना जाएगा. सिंगापुर में यदि लड़की की उम्र 13 साल से ज्यादा है तो उसके साथ शादीशुदा संबंध में हुआ यौनकर्म बलात्कार नहीं माना जाता.
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अगवा कर शादी
माल्टा और लेबनान में अगर लड़की को अगवा करने वाला उससे शादी कर लेता है तो उसका अपराध खारिज हो जाता है, यानि उस पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा. अगर शादी फैसला आने के बाद होती है तो तुरंत सजा माफ हो जाएगी. शर्त है कि तलाक पांच साल से पहले ना हो वरना सजा फिर से लागू हो सकती है. ऐसे कानून पहले कोस्टा रीका, इथियोपिया और पेरू जैसे देशों में भी होते थे जिन्हें पिछले दशकों में बदल दिया गया.
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सुधारने के लिए पीटना सही
नाइजीरिया में अगर कोई पति अपनी पत्नी को उसकी 'गलती सुधारने' के लिए पीटता है तो इसमें कोई गैरकानूनी बात नहीं मानी जाती. पति की घरेलू हिंसा को वैसे ही माफ कर देते हैं जैसे माता पिता या स्कूल मास्टर बच्चों को सुधारने के लिए मारते पीटते हैं.
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ड्राइविंग की अनुमति नहीं
सऊदी अरब में महिलाओं का गाड़ी चलाना गैरकानूनी है. महिलाओं को सऊदी में ड्राइविंग लाइसेंस ही नहीं दिया जाता. दिसंबर में दो महिलाओं को गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. इस घटना के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संस्थानों ने आवाज भी उठाई.
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पत्नी का कत्ल भी माफ
मिस्र के कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को किसी और मर्द के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखता है और गुस्से में उसका कत्ल कर देता है, तो इस हत्या को उतना बड़ा अपराध नहीं माना जाएगा. ऐसे पुरुष को हिरासत में लिया जा सकता है लेकिन हत्या के अपराध के लिए आमतौर पर होने वाली 20 साल तक के सश्रम कारावास की सजा नहीं दी जाती.
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रिन्यू के साथ काम करने वाली 28 वर्षीय रिनजिन लामो ने कहा, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा स्वास्थ्य, मानसिक उत्पीड़न और मानव अधिकार का मुद्दा है. हमें इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए ताकि हम अपनी बेटियों का भविष्य सुरक्षित कर सकें." रिन्यू के लिए काम करने वाली कई ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने जीवन में घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं और अब इसके खिलाफ लड़ रही हैं.
एसएफ/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
कामकाजी मांओं की मुश्किलें
कामकाजी महिलाओं के जीवन में मातृत्व एक निर्णायक मोड़ होता है. कई बार मां की जिम्मेदारियों के चलते पेशवर जिम्मेदारियां पूरी कर पाना असंभव हो जाता है और नौकरी छोड़ने का ही विकल्प रह जाता है. ऐसे कीजिए इस चुनौती को पार.
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जानकारी
गर्भधारण के साथ ही महिलाओं के लिए करियर संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. वजन बढ़ना, सूजन, उल्टियां और ना जाने कितनी स्वास्थ्य समस्याएं लगी रहती हैं. ऐसे में अपनी संस्था, कंपनी या नौकरी देने वाले को अपनी कठिनाईयों के बारे में जानकारी देनी चाहिए.
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जिम्मेदारी
कंपनी और अपने बॉस को जानकारी देना इसलिए भी जरूरी है ताकि वह समय रहते आपके लिए छुट्टियों की योजना बना सके और यह भी सोच सके कि उस दौरान काम कैसे चलाना है. ध्यान रखें कि जिस तरह कंपनी की आपके प्रति कुछ जिम्मेदारी है, आप की भी उसके हित के प्रति जवाबदेही है.
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रेस में बने रहें
दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों के प्रमुखों में कुछ ही महिलाएं हैं और विश्व के 197 राष्ट्रप्रमुखों में केवल 22 महिलाएं. किसी भी क्षेत्र में टॉप स्तर पर इतनी कम महिलाओं के होने का कारण महिलाओं का इस रेस से बहुत जल्दी बाहर होना है, जो कि सबसे अधिक मां बनने के कारण होता है.
कामकाजी महिलाओं के जीवन में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवरोध आते हैं. गहरे बसे लैंगिक भेदभाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक. ऐसे में घबरा कर रेस छोड़ देने के बजाए इन रोड़ों को बहादुरी से हटाते हुए आगे बढ़ने का रवैया रखें. अमेरिकी रिसर्च दिखाते हैं कि पुरुषों को उनकी क्षमता जबकि महिलाओं को उनकी पूर्व उपलब्धियों के आधार पर प्रमोशन मिलते हैं.
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सपोर्ट नेटवर्क
एक ओर बाहर के रोड़ हैं तो दूसरी ओर कई महिलाएं अपने मन की बेड़ियों में कैद होती हैं. समाज की उनसे अपेक्षाओं का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वे अपनी उम्मीदें और महात्वाकांक्षाएं कम कर लेती हैं. आंतरिक प्रेरणा के अलावा अपने आस पास ऐसे प्रेरणादायी लोगों का एक सपोर्ट नेटवर्क बनाएं जो मातृत्व, परिवार और करियर की तिहरी जिम्मेदारी को निभाने में आपका संबल बनें.
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पार्टनर की भूमिका
कामकाजी मांओं के साथ साथ उनके पति या पार्टनर को भी घर के कामकाज में बराबर का योगदान देना चाहिए. परिवार को समझना चाहिए कि महिला के लंबे समय तक वर्कफोर्स में बने रहने से पूरा परिवार लाभान्वित होता है. अपनी पूरी क्षमता और समर्पण भाव के साथ किया गया काम हर महिला की सफलता सुनिश्चित कर सकता है. जरूरत है बस रेस पूरी करने की.