प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आज शंघाई सहयोग संगठन की वर्चुअल बैठक में मिलेंगे. क्या इस बैठक का वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा स्थिति पर कोई असर पड़ेगा?
विज्ञापन
प्रधानमंत्री मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्र प्रमुखों के कॉउन्सिल की बैठक में 20 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करेंगे. बैठक की अध्यक्षता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन करेंगे. रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान समेत आठों देशों के राष्ट्र प्रमुख बैठक में हिस्सा लेंगे.
चार ऑब्जर्वर देशों के राष्ट्र प्रमुख भी मौजूद रहेंगे. इनमें ईरान, अफगानिस्तान, बेलारूस और मोंगोलिया शामिल हैं. ये संगठन की पहली वर्चुअल बैठक होगी. राष्ट्र प्रमुखों की बैठक संगठन का मुख्य हिस्सा है और इसी में तय होता है कि अगले साल संगठन का अजेंडा और मुख्य लक्ष्य क्या होंगे.
जानकारों का कहना है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ कई महीनों से चल रहे तनाव के बीच आयोजित होने वाली बैठक में भारत को स्थिति में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करने का मौका मिलेगा. भारत इससे पहले भी एससीओ के बैनर तले ही विवाद को सुलझाने का प्रयास कर चुका है.
सितंबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर रूस की राजधानी मॉस्को गए थे, जहां एससीओ की ही बैठकों के तहत दोनों की मुलाकात चीन के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री से हुई थी. जानकारों का मानना है कि लद्दाख में मौजूदा गतिरोध को सुलझाने के लिए भारत प्रत्यक्ष रूप से तो किसी भी तीसरे देश को बीच में नहीं ला रहा है, लेकिन चूंकि सिर्फ रूस ही एक ऐसी बड़ी शक्ति है जिसके दोनों देशों से दोस्ताना संबंध हैं, इसलिए भारत रूस के जरिए बैक-चैनल डिप्लोमेसी की कोशिश कर रहा है.
गलवान मुठभेड़ को पांच महीने बीत चुके हैं लेकिन उसके बाद सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं ने हजारों सैनिकों और सैन्य उपकरण की जो तैनाती कर दी थी वो वैसी की वैसी है. भारत के लिए काफी बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि सर्दियां शुरू हो गई हैं और अगर गतिरोध चलता ही रहा वो उस बर्फीले इलाके में सर्दियों का पूरा मौसम काटना भारतीय सेना के जवानों के लिए अत्यंत कठिन हो जाएगा.
संभव है कि भारत ऐसी स्थिति आने से पहले समाधान के रास्ते खोज रहा हो. हालांकि चीन ने अभी तक नरमी का कोई भी संकेत नहीं दिया है. हाल ही में दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत का आठवां दौर भी पूरा हुआ लेकिन उसका भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला.
1962 के बाद पहली बार भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए. इसके पहले भी दोनों सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
लद्दाख (2020)
अप्रैल महीने से ही लद्दाख में चीन और भारतीय सेना की हलचल बढ़ गई थी. चीनी सेना की भारतीय क्षेत्र में हस्तक्षेप बढ़ने और गश्त बढ़ने के बाद भारत ने ऐतराज जताया और सैन्य स्तर पर भी बातचीत चल रही थी. लेकिन 15 जून को गलवान घाटी में जो हुआ शायद ही किसी ने इसके बारे में सोचा होगा. एलएसी पर खूनी संघर्ष के बाद 20 भारतीय सैनिक मारे गए और कुछ जख्मी हो गए.
तस्वीर: Reuters/PLANET LABS INC
डोकलाम (2017)
2017 की गर्मियों में चीन की सेना ने डोकलाम के पास सड़क निर्माण की कोशिश की. यह वह इलाका है जिसपर भूटान और चीन दावा पेश करता आया है. इसलिए भारतीय सेना ने विवादित क्षेत्र का हवाला देते हुए सड़क निर्माण का कार्य रुकवा दिया था. 28 अगस्त को दोनों देशों की सेना के पीछे हटने के बाद इस संकट का समाधान हुआ. यह गतिरोध 72 दिनों तक बना रहा.
अरुणाचल (1987)
जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश को 1986 में राज्य का दर्जा दे दिया तब चीनी सरकार ने इसका विरोध किया. चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पार की और समदोरांग चू घाटी में दाखिल होने के बाद हेलीपैड निर्माण शुरू कर दिया. भारतीय सेना ने इसका विरोध किया. दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध शुरू हो गया.
तस्वीर: Prabhakar Mani
1975 का हमला
1967 के युद्ध के बाद एक बार फिर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं थी. 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया था. असम राइफल्स के जवान गश्त लगा रहे थे और उसी दौरान उन पर हमला हुआ. हमले में भारत के चार जवानों की मौत हो गई थी.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Wong
नाथु ला और चो ला (1967)
1967 में भारत और चीनी सैनिकों के बीच टकराव दो महीने तक चला. उस दौरान चीनी सैनिकों ने सिक्किम सीमा की तरफ से घुसपैठ कर दी थी. नाथु ला की हिंसक झड़प में 88 भारतीय सैनिकों की मौत हुई वहीं 300 से अधिक चीनी सेना के जवान मारे गए.
तस्वीर: Getty Images
1962 का युद्ध
1962 में चीन और भारत के बीच टकराव बढ़ते हुए युद्ध में तब्दील हो गया. 20 अक्टूबर से लेकर 21 नवंबर तक युद्ध चला और भारतीय सेना के करीब 1,383 जवानों की मौत हुई और चीनी सेना के 722 सैनिक मारे गए.