सत्ता में आने से पहले नरेंद्र मोदी ने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का वादा किया था. लेकिन आर्थिक प्राथमिकताओं में परिवर्तन से देहातों में विकास गति धीमी हो रही है और उसका असर मोदी के वादे को खतरे में डाल रहा है.
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गन्ना उत्पादक नीलेश कदम ने ट्रैक्टर खरीदने का विचार छोड़ दिया है. खराब मौसम और गिरती कीमतों से परेशान दूसरे किसानों की तरह उनके पास भी अभी ट्रैक्टर खरीदने के लिए धन नहीं है. गांवों में बढ़ती कठिनाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बुरी खबर है जो बेहतर दिनों और लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए नई नौकरियों और विकास के नारे के साथ पिछली मई में सत्ता में आए थे.
महाराष्ट्र के 29 वर्षीय किसान कदम का कहना है, "मैं इस साल गन्ने की कीमतें बढ़ने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन शुगर मिल पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी कम भाव दे रहे हैं. ट्रैक्टर तो छोड़िए मेरे पास मोटरसाइकिल खरीदने के लिए भी पैसा नहीं है." मुंबई से 280 किलोमीटर दूर स्थिति कदम के गांव की कठिनाईयों के लिए सिर्फ मौसम या बाजार जिम्मेदार नहीं है. मोदी सरकार द्वारा सरकारी खर्च में कटौती के आदेश का भी देहाती उपभोक्ताओं और उनसे जुड़े उद्योगों पर असर हो रहा है.
रेटिंग एजेंसी मूडी के भारतीय सहयोगी आईसीआरए की अर्थशास्त्री अदिति नायर का कहना है, "देहाती उपभोग विकास का एक पाया था." उनका कहना है कि भारत के देहाती इलाकों में मांग में कमी अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में विकासदर में आई कमी के लिए जिम्मेदार है. इसके पहले की तिमाही में विकास दर 5.3 फीसदी थी. ट्रैक्टर कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा साल के अंतिम महीनों में बिक्री में करीब एक तिहाई की गिरावट के बाद अब महीने में कुछ दिन फैक्ट्री को बंद कर दे रही है.उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियों और कार निर्माताओं ने भी बिक्री में कमी की रिपोर्ट दी है.
भविष्य के लिए नए लक्ष्य
2015 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की जगह नए लक्ष्य तय किए गए हैं. शुरुआत में 17 लक्ष्यों का प्रस्ताव रखा गया लेकिन यह आंकड़ा बढ़ते बढ़ते 69 पर पहुंच गया है.
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लक्ष्य 1: गरीबी मुक्त विश्व
2030 तक दुनिया में बेहद गरीब हालात में कोई नहीं रहेगा. सहस्राब्दी लक्ष्यों में गरीबी को आधा करने की बात थी. संयुक्त राष्ट्र बेहद गरीब उन लोगों को मानता है जो 1.25 डॉलर यानी 76 रुपये में दिन का गुजारा करते हैं.
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लक्ष्य 2: भूख से मुक्त दुनिया
इस वक्त दुनिया में 80 करोड़ लोगों के पास खाने को पर्याप्त नहीं है. विश्व खाद्य संगठन एफएओ ने इन आंकड़ों को आधार बना कर तय किया है कि 2030 तक कुपोषण पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा.
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लक्ष्य 3: दुनिया भर में स्वास्थ्य
हर पांच सेकेंड में दुनिया के किसी कोने में एक छोटा बच्चा मरता है. हर साल पांच साल के उम्र से कम करीब 66 लाख बच्चे मारे जाते हैं. करीब तीन लाख महिलाएं गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मारी जाती हैं. इसे रोकने के लिए 2030 तक हर व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी.
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लक्ष्य 4: सबके लिए शिक्षा
चाहे लड़कियां हों या लड़के, गरीब हों या अमीर, 2030 तक हर बच्चे को स्कूली शिक्षा देने की कोशिश की जाएगी ताकि उसके भविष्य को सुरक्षित किया जा सके. पुरुष, महिलाएं और विकलांगों के पास एक से मौके होंगे.
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लक्ष्य 5: समानता का अधिकार
महिलाओं के पास राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने के बराबर अधिकार होने चाहिए. 2030 तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा और जबरन विवाह की प्रथा को खत्म करने की कोशिश होगी. महिलाओं को परिवार नियोजन की सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगीं.
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लक्ष्य 6: पानी एक मानवाअधिकार
पानी की उपलब्धि मानवाधिकार का हिस्सा है. फिर भी दुनिया भर में करीब 77 करोड़ लोगों के पास पीने के लिए साफ पानी नहीं है. एक अरब लोगों के पास जल निकास के विकल्प नहीं हैं. 2030 तक सभी को पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने की कोशिश होगी. पानी के संसाधनों के संरक्षण पर ध्यान दिया जाएगा.
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लक्ष्य 7: ऊर्जा की खपत
2030 तक सारे लोगों को बिजली और ऊर्जा दिलाने की कोशिश की जाएगी. ज्यादातर ऊर्जा अक्षय स्रोतों से मिलेगी. साथ ही विकासशील और गरीब देशों में मूलभूत संसाधनों को ऊर्जा की खपत के लिहाज से बनाया जाएगा. इस वक्त करीब 1.3 अरब लोग बिना बिजली के रह रहे हैं.
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लक्ष्य 8: सब के लिए काम
इस लक्ष्य के तहत संयुक्त राष्ट्र सबके लिए काम की पहल कर रहा है. 2030 तक कोशिश की जाएगी कि ज्यादा से ज्यादा लोग अच्छे और बिना अत्याचार के माहौल में काम करें. इस लक्ष्य के तहत बाल श्रमिकों की संख्या को भी कम करने की कोशिश होगी.
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लक्ष्य 9: टिकाऊ मूलभूत संसाधन
अच्छे संसाधन से आर्थिक विकास भी इस तरह का होगा जिससे सब मुनाफा कमा सकेंगे. औद्योगिकरण समाज और पर्यावरण को संवारने के मकसद से किया जाएगा. और नौकरियां पैदा करने की कोशिश होगी और ऐसे आविष्कारों को बढ़ावा मिलेगा जिससे सामाजिक संतुलन बना रहे.
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लक्ष्य 10: न्यायपू्र्ण विभाजन
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि विश्व में एक प्रतिशत से कम लोगों के पास आर्थिक विकास का आधा से ज्यादा हिस्सा जा रहा है. गरीब और अमीर में फर्क बढ़ता जा रहा है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय विकास राजनीति को दुनिया के सबसे गरीब जनसंख्या और सबसे गरीब देशों को उबारने में मदद करनी होगी.
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लक्ष्य 11: रहने लायक शहर
दुनिया के बड़े और लोगों से भरे शहरों में कोशिश होगी कि मकानों के किरायों को कम किया जाए ताकि लोग अच्छी तरह रह पाएं. शहरों को हरा भरा बना कर टिकाऊ संसाधनों को लाने की कोशिश होगी. विकासशील देशों की मदद की जाएगी ताकि वह प्राकृतिक आपदाओं का बेहतर सामना कर सकें.
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लक्ष्य 12: टिकाऊ उपभोग और उत्पादन
रीसाइक्लिंग और कूड़े की मात्रा को कम करने की कोशिश की जाएगी, खास तौर से उत्पादन और दुकानों में उनकी बिक्री के दौरान. सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि संसाधनों का पर्यावरण के लिहाज से इस्तेमाल हो और इनके उत्पादन में किसी पर अत्याचार न किया गया हो. प्राकृतिक ईंधन पर सबसिडी को खत्म कर दिया जाएगा.
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लक्ष्य 13: जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण
संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण करने के लिए कुछ मानक बनाने होंगे. अमीर देश गरीब देशों की तकनीकी मदद करेंगे और अपने देशों में उत्सर्जनों में कमी लाएंगे.
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लक्ष्य 14: समुद्रों का बचाव
2020 तक मछली पकड़ने को नियंत्रण में लाया जाएगा और समुद्री तटों और समुद्रों की पारिस्थितिकी को सामान्य करने की कोशिश होगी. 2025 तक समुद्र से कचरे को हटाने की कोशिश की जाएगी.
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लक्ष्य 15: पर्यवरण के विनाश पर रुकावट
पानी के स्रोतों, जंगलों और जैव विविधता को बचाए रखने के लिए 2020 का लक्ष्य तय किया गया है. इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल पर ध्यान दिया जाएगा.
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लक्ष्य 16: अधिकार और कानून का क्रियान्वयन
कानून के लिए सभी व्यक्ति बराबर होने चाहिए. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग से आतंकवाद, भ्रष्टाचार और हिंसा पर रोक लगाने की कोशिश होगी. 2030 तक दुनिया में सभी लोगों के पास एक पहचान पत्र और एक जन्म प्रमाण पत्र होगा.
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लक्ष्य 17: भविष्य में एक साथ
विकसित देशों को संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी लक्ष्यों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 प्रतिशत देना होता है. जर्मनी केवल 0.39 प्रतिशत देता है. लेकिन नॉर्वे, डेनमार्क, लक्जेम्बर्ग, स्वीडन और ब्रिटेन 0.7 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए खर्च करते हैं.
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भारत की 125 करोड़ की आबादी में करीब 80 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं. वे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में लगभग 35 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं. 2015 के अंत में नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को बिहार में चुनावों का सामना करना है जहां देश के ज्यादातर गरीब रहते हैं. अगले साल तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी चुनाव होंगे. देहाती मतदाताओं को लुभाने के लिए पिछली सरकार ने अनाजों की खरीद दर बढ़ा दी थी, किसानों का कर्ज माफ कर दिया था और साल में कम से कम 100 दिनों के काम की गारंटी दी थी.
इन कदमों से देहात में लोगों की क्रयशक्ति बढ़ी और 2008 के वित्तीय संकट के बाद शहरों में मांग की कमी को पूरा करने में उद्योग को मदद मिली. लेकिन उसकी वजह से मुद्रास्फीति भी बढ़ी और रिजर्व बैंक को ब्याज दर बढ़ानी पड़ी. मुद्रास्फीति और सरकारी कर्ज को रोकने के लिए मोदी ने कृषि समर्थन मूल्य को बढ़ाने पर रोक लगा दी है और रोजगार कार्यक्रमों पर खर्च को कम कर दिया है. इस विपरीत वे ढांचागत संरचना के विकास और कौशल को बढ़ावा देने पर खर्च करना चाहते हैं, जो देश के दूरगामी विकास के लिए जरूरी है.
नरेंद्र मोदी की सरकार उत्पादों की मांग बढ़ाने वाली नीतियों के बदले निवेश और उत्पादकता को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों पर जोर दे रही है. यह ऐसे समय में हुआ है जब खाद्य पदार्थों की वैश्विक कीमतों में भी भारी कमी आई है. इसने आयात सस्ता हुआ है और भारत से निर्यात महंगा. कोटक कमोडिटी सर्विसेस के फैयाज हुदानी कहते हैं, "बहुत से उत्पादों का निर्यात फायदेमंद नहीं रह गया है." रोड, रेल और सिंचाई परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाकर गांव के लोगों को फायदा पहुंचाने की सरकार की क्षमता बजट बाधाओं के कारण लड़खड़ाई है.