गाजा में युद्ध पर बाइडेन और नेतन्याहू में बढ़ता तनाव
१० मई २०२४
हमास से लड़ाई के बीच ही अमेरिकी राष्ट्रपति और इस्राएली प्रधानमंत्री के रिश्तों में खटास बढ़ गई है. एक महीने से ज्यादा समय तक दोनों में बोलचाल बंद थी. अब बातचीत हो रही है तो उसमें कड़वाहट और धमकियों के सुर गूंज रहे हैं.
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने अपने जटिल रिश्तों को लंबे समय से बचा रखा है, हालांकि गाजा युद्ध पर उनकी सोच में फर्क, उनके लिए एक दूसरे को असहनीय बना रहा है. इसकी एक वजह दोनों ही नेताओं के राजनीतिक भविष्य का अधर में लटका होना भी है.
पिछले हफ्ते बाइडेन ने इस्राएल को भारी बमों की आपूर्ति रोक दी. इसके साथ चेतावनी दी कि अमेरिका टैंक के लिए गोला बारूद और दूसरे हथियारों को भेजना भी रोक सकता है, अगर इस्राएल गाजा के रफाह में बड़े पैमाने पर सैनिक कार्रवाई शुरू करता है.
नेतन्याहू ने बाइडेन की चेतावनियों को कंधे उचका कर झाड़ दिया और खम ठोक कर कहा, "अगर हमें अकेले खड़ा होना पड़ा तो हम अकेले ही डट जाएंगे. अगर हमें जरूरत पड़ी तो अपने नाखूनों के सहारे लड़ेंगे लेकिन हमारे पास नाखूनों से बहुत कुछ ज्यादा है."
बाइडेन को लंबे समय तक इस बात पर गर्व रहा है, कि वह नेतन्याहू को सजा की बजाय इनामों से संभालते आए हैं. हालांकि पिछले सात महीनों में जिस तरह दोनों में टकराव बढ़ा है, उससे लगता है कि यह बीते दिनों की बात हो गई. दोनों नेता मध्यपूर्व की विस्फोटक स्थिति से घरेलू राजनीतिक समस्याओं को भी संतुलित करने की कोशिश में हैं. बाइडेन के सार्वजनिक हमलों और निजी अनुरोधों के सामने नेतन्याहू का रवैया तेजी से प्रतिरोध की ओर बढ़ रहा है.
इसके नतीजे में बाइडेन बीते हफ्तों में और ज्यादा दृढ़ हुए हैं. बाइडेन ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "अगर वे रफाह जाते हैं, तो मैं उन्हें वो हथियार नहीं दूंगा जिनका इस्तेमाल पहले से रफाह में होता रहा है, शहरों और समस्याओं से वो निपटें." बाइडेन के सहयोगी अब भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में अमेरिका-इस्राएल के संबंधों को बिगड़ते नहीं देखना चाहते. वो सिर्फ राजनीति का जिक्र नहीं करते, ज्यादातर अमेरिकी इस्राएल का समर्थन करते हैं, साथ ही बाइडेन का निजी इतिहास इस्राएल के साथ रहा है, और वो उसके आत्मरक्षा के अधिकार में यकीन रखते हैं.
राष्ट्रपति के सहयोगी यह देख रहे हैं कि कैसे फलीस्तीन समर्थक प्रदर्शनों ने उनकी पार्टी और कॉलेज परिसरों को अपने घेरे में ले लिया है, जो डेमोक्रैटिक वोटरों के लिए कभी जमीन तैयार करती थी. कई महीनों से ऐसा लग रहा है कि कहीं बाइडेन, व्हाइट हाउस में पहुंचने वाले आखिरी इस्राएल समर्थक नेता ना बन जाएं. नेतन्याहू को नियंत्रित करने की उनकी क्षमता को लेकर लोगों की उम्मीदें उसी विवादित घेरे में फंस रही हैं जिसमें इस्राएल से उलझने वाले कई अमेरिकी राष्ट्रपति बीते दशकों में फंसते आए हैं.
बाइडेन और नेतन्याहू एक दूसरे को तब से जानते हैं जब बाइडेन एक युवा सीनेटर और नेतन्याहू इस्राएली दूतावास में वरिष्ठ अधिकारी थे. उनके बीच पहले भी टकराव हो चुके हैं. बराक ओबामा के दौर में बाइडेन के उपराष्ट्रपति रहते, पश्चिमी तट पर इस्राएली बस्तियों को लेकर भी उनमें विवाद हुआ था. बाद में नेतन्याहू ने ईरान के साथ परमाणु करार को फिर से बहाल करने का भी जम कर विरोध किया. यह करार ओबामा के शासन काल में हुआ था जिसे डॉनल्ड ट्रंप ने खत्म कर दिया.
2021 में इस्राएल की हमास के साथ 11 दिन चली जंग को शांत करने के लिए जब बाइडेन ने उनपर दबाव डाला तब भी वह बहुत झल्लाए थे. गाजा में बढ़ते मानवीय संकट की वजह से ही बाइडेन की निराशा बढ़ने लगी और उसके बाद दोनों नेताओं के बीच इस साल एक महीने से ज्यादा बातचीत बंद थी. इन विवादों के बावजूद मध्य वामपंथी डेमोक्रैट नेता और इस्राएल के सर्वकालिक धुर दक्षिणपंथी गठबंधन सरकार के प्रमुख के बीच रिश्ता बना रहा. हालांकि यह अब पहले की तुलना में बहुत ज्यादा तनावपूर्ण हो गया है, जिसमें यह कहना मुश्किल है कि ये दोनों उसे कैसे आगे ले जाएंगे.
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ताजा विवाद में नेतन्याहू की चुनौतियां
नेतन्याहू पर बंधकों को छुड़ाने के लिए सार्वजनिक दबाव है. दूसरी तरफ उनके गठबंधन के कट्टरपंथी चाहते हैं कि वह अपने हमले का विस्तार कर उसे रफाह तक ले जाएं. रफाह में करीब 13 लाख फलीस्तीनियों ने शरण ले रखी है. अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद नेतन्याहू ने साफ कहा है कि वह रफाह अभियान को आगे बढ़ाएंगे चाहे बंधकों के लिए करार हो या न हो. इस्राएली नेता ने7 अक्टूबर के हमलेके बाद हमास को ध्वस्त करने की शपथ ली है. हमास के आकस्मिक हमले में 1,200 इस्राएली लोगों की मौत हुई और करीब 250 लोगों को बंधक बनाया गया.
हालांकि नेतन्याहू के लिए लोगों का समर्थन उसके बाद से लगातार घट रहा है. अब उन पर दबाव है कि वह युद्ध रोक कर ऐसा समाधान निकालें, जिससे कि बंधकों और मारे गए इस्राएलियों के अंतिम अवशेषों को सुरक्षित वापस लाया जा सके. नेतन्याहू ने हमास के हमले के बारे में खुफिया और सैन्य नाकामी की जांच कराने से इनकार किया है. सारी घटनाओं के बीच उनके खिलाफ कानूनी समस्याएं बनी हुई हैं. इनमें लंबे समय से चल रहा भ्रष्टाचार का एक मुकदमा भी है, जो उनके खिलाफ धोखाधड़ी और घूस लेने के आरोपों से जुड़ा है.
नेतन्याहू की राजनीतिक मुश्किलें
नेतन्याहू का राजनीतिक भविष्य रफाह पर हमले से जुड़ा हुआ है. अगर वह बंधकों के लिए करार कर लेते हैं, और रफाह पर हमला रोक देते हैं, तो गठबंधन के कट्टरपंथी उनकी सरकार गिराने और नया चुनाव कराने की धमकी दे रहे हैं. दूसरी तरफ ओपिनियन पोल इस समय चुनाव में उनकी हार की भविष्यवाणी कर रहे हैं. नेतन्याहू की जीवनी लिखने वाले स्तंभकार आंशेल फेफर ने एक इस्राएली अखबार में लिखा है, "अपने सहयोगियों को साथ रखने और समय से पहले चुनाव रोकने के लिए, जिसमें लिकुड का पतन होगा और उनका पद छिन जाएगा, उन्हें 'संपूर्ण विजय' के मिथक को जीवित रखना होगा, और यह सिर्फ तभी संभव है, जब हमास से समझौता ना हो."
नेतन्याहू के पूर्व प्रवक्ता और चीफ ऑफ स्टाफ आविव बुशिंस्की का कहना है कि इस्राएली नेता का ध्यान पूरी तरह युद्ध के प्राथमिक उद्देश्य, हमास को हराने पर है, क्योंकि उन्हें अपनी छवि और विरासत की चिंता है. नेतन्याहू ने अपने पूरे करियर में खुद को "आतंक पर कठोर शख्स" के रूप में दिखाया है. बुशिंस्की कहते हैं, "वह समझते हैं कि इसी तरह से उन्हें याद रखा जाएगा. वह एक दशक से हमास को मसलने का वादा करते रहे हैं. उन्हें लगता है कि अगर वह ऐसा नहीं कर सके तो उन्हें सबसे बुरे प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाएगा."
अमेरिका की बदलती हवा
उधर अमेरिका में इस वक्त बाइडेन युवा अमेरिकियों के विरोध प्रदर्शनों से जूझ रहे हैं. यह उनके वोटरों का वह धड़ा है जो दोबारा चुने जाने में अहम भूमिका निभाएगा. इसके अलावा उन्हें अमेरिकी मुसलमानों की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है जो मिशिगन में प्रमुख स्थिति में हैं. कुछ ने तो उन्हें युद्ध को संभालने में उनकी भूमिका पर विरोध जताने के लिए नवंबर में वोट नहीं देने की धमकी देनी भी शुरू कर दी है.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी: कैंपस में घुसी पुलिस, क्या है पूरा मामला
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में चल रहे फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शनों के बीच 30 अप्रैल की रात न्यूयॉर्क पुलिस विश्वविद्यालय परिसर में दाखिल हुई. कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं. जानिए क्या है पूरा मामला.
तस्वीर: Caitlin Ochs/REUTERS
दुनियाभर में हो रहे हैं प्रदर्शन
7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इस्राएल पर हमला किया. इसके बाद से ही इस्राएल और हमास में सैन्य संघर्ष जारी है. कहीं इस्राएल, तो कहीं फलीस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं. फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शनों पर कई बार यहूदी-विरोधी होने के आरोप लगे. नवंबर 2023 में जो बाइडन प्रशासन ने अमेरिकी स्कूलों और कॉलेजों को चेतावनी दी कि वे यहूदी-विरोध और इस्लामोफोबिया, दोनों को रोकने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाएं.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
प्रदर्शनों में यहूदी-विरोध पर चिंता
इसी क्रम में रिपब्लिकन पार्टी ने अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में यहूदी-विरोध माहौल और मामलों की जांच का अभियान शुरू किया. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट क्लॉडिन गे, पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट लिज मैगिल और एमआईटी की प्रेसिडेंट सैली कोर्नब्लूठ को दिसंबर 2023 में कांग्रेस के आगे पेश होना पड़ा.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कॉलेज परिसर में एंटीसेमिटिज्म!
इन सभी से कैंपस में यहूदी-विरोध के मुद्दे पर सवाल-जवाब हुए. पूछा गया कि उनके संस्थान ने विश्वविद्यालय परिसर में यहूदी-विरोध की घटनाओं पर क्या कदम उठाए हैं. कई लोगों को उनके जवाब बेहद नपे-तुले और एहतियाती लगे. रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रैटिक पार्टी के कुछ नेताओं समेत व्हाइट हाउस ने भी इन जवाबों से असंतुष्टि दिखाई.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट्स की आलोचना
9 दिसंबर को पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट लिज मैगिल ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जनवरी 2024 में हार्वर्ड की प्रेसिडेंट क्लॉडिन गे ने भी इस्तीफा दे दिया. आरोप था कि कांग्रेस के आगे पूछताछ में वह स्पष्ट तौर पर नहीं कह पाईं कि विश्वविद्यालय परिसर में यहूदियों के खिलाफ नरसंहार की अपील कॉलेज के कायदों का उल्लंघन होगा.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कोलंबिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट पर भी सवाल उठे
इन बड़े विश्वविद्यालयों के साथ ही कोलंबिया परिसर पर भी सवाल उठे. यहां इस्राएल के खिलाफ हुए प्रदर्शनों पर यहूदी-विरोधी होने के आरोप लगे. यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शाफिक की आलोचना हुई कि वह परिसर में यहूदी-विरोध से निपटने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही हैं. रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया कि शाफिक ने विश्वविद्यालय को एंटीसेमिटिज्म का गढ़ बनने दिया.
तस्वीर: Mariam Zuhaib/AP/picture alliance
"यहूदी-विरोध की कैंपस में कोई जगह नहीं"
इन्हीं आरोपों के मद्देनजर 17 अप्रैल को नेमत शाफिक सवाल-जवाब के लिए कांग्रेस के आगे पेश हुईं. उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया. स्पष्ट कहा कि यहूदी-विरोध की कैंपस में कोई जगह नहीं. पेशी की इसी तारीख से कोलंबिया यूनिवर्सिटी में फलीस्तीन-समर्थक छात्रों ने प्रदर्शन के लिए एक शिविर बना लिया.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी शुरू हुई
18 अप्रैल को इन्हें हटाने के लिए न्यू यॉर्क शहर की पुलिस को बुलाया गया. पुलिस ने प्रदर्शन शिविर हटाया और 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया. प्रदर्शन में शामिल कई छात्रों ने कहा कि उन्हें कोलंबिया और बर्नार्ड कॉलेज से निलंबित कर दिया गया है. इनमें मिनेसोटा से डेमोक्रैटिक पार्टी की सांसद इलहान ओमर की बेटी इसरा हिरसी भी शामिल हैं.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कई कॉलेज कैंपसों में प्रदर्शन
कैंपस में पुलिस के पहुंचने के बाद से कोलंबिया यूनिवर्सिटी में तनाव बढ़ने लगा. कई जगहों पर, खासकर कॉलेजों में प्रदर्शन बढ़ गए. हार्वर्ड की तर्ज पर मिशिगन यूनिवर्सिटी, एमआईटी, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना में भी फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शन शिविर बन गए.
तस्वीर: Fatih Aktas/Anadolu/picture alliance
प्रदर्शनकारियों की मांग
हार्वर्ड में फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शनकारियों ने मांग रखी कि विश्वविद्यालय उन कंपनियों से ताल्लुक खत्म करें, जिनका इस्राएल से संबंध है. प्रदर्शनकारियों और कॉलेज प्रशासन के बीच जारी गतिरोध के बीच 22 अप्रैल से यूनिवर्सिटी में इन-पर्सन क्लासें रद्द कर दी गईं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में भी पुलिस बुलाई गई, दर्जनों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया.
तस्वीर: Eduardo Munoz/REUTERS
राष्ट्रपति बाइडेन का बयान
कॉलेजों में बढ़ते तनाव को देखते हुए राष्ट्रपति बाइडेन ने बीच का रास्ता निकालने की अपील की. उन्होंने यहूदी-विरोध की निंदा की. साथ ही, यह भी जोड़ा कि जो नहीं जानते कि फलीस्तीनियों के साथ क्या हो रहा है, वह उनकी भी निंदा करते हैं.
तस्वीर: Stringer/SNA/IMAGO
कोलंबिया में गतिरोध जारी रहा
इधर 24 अप्रैल को कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को शिविर खत्म करने का अल्टीमेटम दिया. कई प्रदर्शनकारी समयसीमा खत्म होने के बाद भी वहीं रहे. उनकी मांग थी कि जब तक कॉलेज इस्राएल या गाजा में जारी युद्ध का समर्थन करने वाली कंपनियों से संबंध तोड़ने को राजी नहीं होता, तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
देशभर के कई कॉलेज कैंपसों में तनाव
इस दौरान और भी जगहों पर विश्वविद्यालय परिसरों में तनाव बना रहा. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस में पुलिस और प्रदर्शनकारी भिड़े. प्रदर्शनकारियों को कैंपस से बाहर कर दिया गया. यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में भी पुलिस ने कई प्रदर्शनकारी छात्रों को गिरफ्तार किया.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रशासन ने दिया अल्टीमेटम
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, 29 अप्रैल तक देशभर के कॉलेज कैंपसों से गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों की संख्या 1,000 तक पहुंच गई. कोलंबिया में भी प्रदर्शनकारी छात्रों द्वारा लगाए गए तंबुओं की संख्या 100 से ज्यादा हो गई. प्रशासन ने कहा कि दोपहर दो बजे की समयसीमा तक शिविर खाली ना करने वाले छात्रों को निलंबित किया जाएगा.
तस्वीर: Caitlin Ochs/REUTERS
कॉलेज के एक हॉल पर प्रदर्शनकारियों का नियंत्रण
30 अप्रैल को तनाव तब और गहरा गया, जब प्रदर्शनकारियों ने कोलंबिया परिसर स्थित हैमिल्टन हॉल पर कब्जा कर लिया. उन्होंने प्रवेश की जगहों पर बैरिकेड्स लगा दिए. खिड़की पर "फ्री पैलेस्टाइन" का बैनर टांग दिया. प्रदर्शनकारियों ने तीन मांगें रखीं: इस्राएल और गाजा में युद्ध का समर्थन करने वाली कंपनियों में निवेश ना हो, वित्तीय पारदर्शिता और प्रदर्शनकारी छात्रों पर लगाए गए आरोपों पर माफी.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
पुलिस कैसे पहुंची कैंपस?
30 अप्रैल की रात यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शाफिक ने न्यूयॉर्क पुलिस को एक चिट्ठी भेजी. इसमें उन्होंने पुलिस से दखल देने और कार्रवाई करने की मांग की. शाफिक ने लिखा, "प्रदर्शनकारियों की गतिविधियां हमारे दरवाजे के बाहर भी प्रोटेस्टर्स के लिए चुंबक का काम कर रही हैं, जिससे हमारे कैंपस के लिए जोखिम बढ़ गया है."
तस्वीर: Jose Luis Magana/AP/picture alliance
दर्जनों प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए
इसके बाद बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी परिसर पहुंचे. उन्होंने कॉलेज के एक प्रवेश द्वार के पास जमा हुए प्रदर्शनकारियों को हटने का आदेश दिया. इसके बाद दर्जनों पुलिसकर्मी परिसर में दाखिल हुए. उन्होंने हैमिल्टन हॉल से प्रदर्शनकारियों को हटाया. कइयों को गिरफ्तार किया गया. यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शाफिक ने पुलिस से कहा है कि वो कम-से-कम 17 मई तक परिसर में मौजूदगी बनाए रखे.
तस्वीर: Julius Motal/AP Photo/picture alliance
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बाइडेन के सहयोगी बर्नी सांडर्स भी युद्ध पर प्रशासन के रवैये से परेशान हैं. सांडर्स का कहना है कि बाइडेन को आगे बढ़ कर इस्राएल को सभी हमलावर हथियारों की आपूर्ति रोक देनी चाहिए. सांडर्स ने कहा है, " निश्चित रूप से हमें अपनी स्थिति का पूरा फायदा उठा कर गाजा की तबाही को और ज्यादा बढ़ने से रोकना चाहिए." सांडर्स का यह भी कहना है कि अमेरिका अपने सहयोगियों का साथ देता है और देना भी चाहिए, लेकिन सहयोगियों को भी अमेरिकी मूल्यों और कानूनों के साथ खड़ा होना चाहिए.
इसी दौर में बाइडेन को रिपब्लिकन पार्टी की आलोचना भी झेलनी पड़ रही है. पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का कहना है, "इस्राएल के संदर्भ में जो बाइडेन कर रहे हैं वह अपमानजनक है. अगर किसी यहूदी ने जो बाइडेन को वोट दिया है तो वह खुद पर शर्मिंदा होगा. उन्होंने इस्राएल को छोड़ दिया है."