साइकिल चलाना सेहत और पर्यावरण के लिए तो अच्छा है ही, इसके साथ ही साइकिल इंसान को विनम्र बनाए रखने में मदद करती है.
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जरा सोचिए कि आपको 50 किलोमीटर दूर जाना है. आपका टू व्हीलर या फोर व्हीलर वाहन एकदम फिट है. तेल की टंकी फुल है. ऐसे में हर किसी को लगता कि ये कौन सी बड़ी बात है. ये तो चुटकियों की बात है. जल्दी पहुंचना होगा तो गाड़ी की रेस बढ़ा दी जाएगी. ज्यादा से ज्यादा एक-दो घंटे में दूरी पूरी हो जाएगी.
अब इसी फासले को साइकिल से तय करने के बारे में सोचिए. सबसे पहले आपको ये देखना होगा कि शरीर 50 किलोमीटर साइकिल चलाने के लिए तैयार है या नहीं. फिर मौसम, यानि सेकेंडों के भीतर आपको अहसास हो जाएगा कि आप कई दूसरे कारकों पर निर्भर हैं.
इसके बाद आपको अपना बैग अच्छे से पैक करना होगा, उसमें एक पानी की बोतल जरूर रखनी होगी. अच्छे से साइकिल की हवा, चेन और उसके ब्रेक चेक करने होंगे. और बिना लेट लतीफी किए सही समय पर निकलना होगा.
साइकिल को बने 200 साल से ज्यादा हो चुके हैं. इसके सैकड़ों साल के सफर में दिखे हैं कई अजीबो गरीब रूप. देखिए पांच नई अलग सी दिखने वाली साइकिलें.
तस्वीर: AP
हाई व्हील
इसे पेनी-फार्दिंग भी कहते हैं. "बाइसिकिल" कहलाने वाली यह पहली मशीन थी. स्वीडन के आर्किटेक्ट पेयर-ओलॉफ किप्पेल ने 2013 में यह हाई व्हीलर बनायी, जो कि आम साइकिल से काफी ऊंची होती है.
तस्वीर: www.standardhighweels.de
क्विगल
इसका वजन 8.5 किलोग्राम होता है और यह आम तौर पर मिलने वाली फोल्डिंग साइकिलों से भी आकार में आधी होती हैं. क्विगल बनाने वाले इसे दुनिया की सबसे कॉम्पैक्ट बाइक बताते हैं. इसे पैडल पर खड़े खड़े ही चलाना होता है.
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हाफबाइक
खड़े होकर चलायी जाने वाले इस मॉडल को बाइसिकिल और स्केटबोर्ड का हाइब्रिड कहना गलत नहीं होगा. हैंडल से दिशा नहीं बदली जा सकती बल्कि उसके लिए अपने शरीर का भार किसी एक ओर डालना होता है. इसे बनाया है बुल्गारिया के दो आर्किटेक्ट्स ने.
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बेड बाइक
इतना वजनदार साइकिल का मॉडल आपने शायद ही पहले देखा हो. अगर आप अपने लिए इसे ना भी खरीदना चाहें, तो भी जर्मन राजधानी बर्लिन में इसकी सवारी कर सकते हैं. इस लाल बेड पर लेटे लेटे बर्लिन के नजारे देखते समय आप भी देखने लायक होंगे.
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लोपिफिट
डच डिजाइन की लोपिफिट में प्रोपेलर और इलेक्ट्रिक मोटर लगा होता है. देख कर लगेगा कि आप चल रहे हैं लेकिन इस पर चलते हुए आप पास में चलने वाले किसी पैदल यात्री से दोगुनी तेजी से आगे निकल जाएंगे. ब्रेक लगा है लेकिन जब भी आप चलना बंद करें, बाइक भी रुक जाती है. (आंत्ये बिंडर/आरपी)
तस्वीर: Lopifit/Gert de Veerd
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इसके साथ ही यात्रा के दौरान आपको साइकिल एकदम सड़क के किनारे पर चलानी होगी. रास्ता खराब हुआ तो गड्ढों से बचना होगा. इस दौरान आप लगातार ये उम्मीद करते रहेंगे कि रास्ते में टायर पंचर न हो जाए, बहुत चढ़ाई न आए, तेज गर्मी, ठंड, बरसात या आंधी से सामना न हो.
आधे घंटे तक पैडल मारते मारते आपका शरीर हल्का थकने लगेगा. लेकिन तब तक आप ऐसी कई चीजें देख चुके होंगे जिन्हें आप गाड़ी पर सवार होकर कभी नहीं देख पाए. कहीं प्रकृति, खेत खलिहान तो कहीं इंसान की नासमझी के नमूने.
रास्ते में आप ब्रेक लेने पर सबसे पहले अपना पसीना पोछेंगे. दो घूँट पानी पिएंगे. बहुत लंबे समय बाद आपको पानी की अहमियत का अहसास होगा. इसी दौरान आप अपनी साइकिल चेक करेंगे. टांगों को आराम देंगे. और बड़ी शालीनता से पूछेंगे कि खाने या पीने को क्या कुछ मिल सकता है. आपके दिमाग में दुनियादारी नहीं बल्कि आगे का रास्ता कैसे तय होगा, ये सवाल हावी रहेंगे.
कोरोना संकट के दौरान साइकिल सीखते लोग
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पीछे जो देखा या आगे जो दिखेगा उसके बारे में स्थानीय लोगों से पूछने के लिए आपके पास सवाल होंगे. जिज्ञासा होगी. मंजिल पर पहुंचने के बाद आपके भीतर, आगे क्या किया जाए जैसी ख्वाहिश नहीं रहेगी. बल्कि आप आज जो कुछ हुआ उसे समेटते हुए उन सब बातों को शुक्रगुजार होंगे, जिन्होंने आपको यहां तक पहुंचाने में मदद की.
गाड़ी का तेज रफ्तार सफर ऐसे मौके नहीं देता है. मोटर की ताकत लगातार आपको यकीन दिलाती है कि आप, दूसरों से कोई मतलब नहीं रखते हुए भी, जहां चाहे वहां पहुंच सकते हैं. साइकिल इसका उल्टा करती है. आपको इन बातों का अहसास हो या ना हो, लेकिन साइकिल धीरे घीरे आपको ये सब सिखा देगी, वो भी पर्यावरण की मदद करते हुए.
छोटी मोटी दूरी के लिए गाड़ी निकालने की बजाए पैदल या साइकिल लेना और अपने नेताओं पर पर्यावरण को बचाने के कदम उठाने का दबाव डालने जैसे आपके प्रयास बहुत बड़ा असर डाल सकते हैं.
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जिम्मेदारी से करें यात्रा
पैदल चलना या साइकिल चलाना आपके कार्बन फुटप्रिंट घटाने में काफी मदद करेगा. इसके साथ साथ आपकी सेहत भी सुधरेगी. अगर कम विमान यात्राएं करें तो हानिकारक गैसों का उत्सर्जन घटाने में भी मदद कर सकेंगे. यानि हो सके तो ट्रेन से यात्रा करें या आसपास की किसी जगह का आनंद लें.
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खरीदारी में समझदारी
केवल जरूरत की चीजें खरीदना और नई नई चीजों के लालच में ना पड़ना आपके ग्रह के लिए भी बहुत अच्छा है. ऐसी चीजें खरीदें जो पर्यावरण सम्मत तरीके से बनाई गई हों और जहां तक हो सके सैकेंड हैंड चीजों को भी मौका दें. जब आप कुल मिलाकर कम चीजों का उपभोग करेंगे तो उससे पृथ्वी के संसाधन बचेंगे और वह अमीर होगी.
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खाने की बर्बादी से तौबा
हर साल उगाया जाने वाला करीब एक तिहाई खाना बर्बाद हो जाता है. कम से कम अपने स्तर पर तो आप खाने की और बर्बादी को रोक ही सकते हैं. कुछ बच जाए तो अगली बार खा लें, बाकी बचे जैविक कचरे को डालकर कम्पोस्ट बना लें. इसे अपने लिए सब्जियां और फल उगाने में इस्तेमाल करेंगे तो खाने में रसायनों से भी बचेंगे.
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बत्ती बुझाएं, बिजली बचाएं
बिजली का इस्तेमाल बचत के साथ करें. कमरे से निकलते समय लाइट, पंखा ऑफ करना, काम के बाद कंप्यूटर या कोई और स्क्रीन ऑफ करना - ऐसे छोटे छोटे कदम दूरगामी बचत करते हैं. धीरे धीरे यह आदत बन जाती है और आप अपने पर्यावरण को बचाने के लिए अनजाने में ही योगदान कर रहे होते हैं.
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चुप्पी तोड़िए!
अगर अब तक नहीं तोड़ी है तो इस साल तो तय कर ही लीजिए कि जहां कहीं भी संभव हो वहां जलवायु परिवर्तन के कारकों को रोकने के लिए आवाज उठाएंगे. इसके लिए हर किसी को सड़क पर उतरने की जरूरत नहीं है लेकिन आप अपने स्थानीय नेता पर इसका दबाव बना सकते हैं. इस बारे में अपने जानने वालों से बात कर सकते हैं. याद रखिए, बात करने से ही बात बनती है.
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खानपान में थोड़ा बदलाव करें
जो लोग मांसाहारी हैं वे भी अपने खान पान में ज्यादा से ज्यादा पौधों से मिलने वाली चीजों को जगह देकर पर्यावरण को बचाने में मदद कर सकते हैं. मीट कभी कभी खाएं और डेयरी उत्पादों का सीमित उपयोग करें तो जंगलों को कटने से बचा सकेंगे, जिसके कारण कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा. निजी तौर पर शाकाहारी लोगों का कार्बन फुटप्रिंट कम होता है.
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रिसाइकिल, रिसाइकिल और रिसाइकिल
प्लास्टिक के कारण होते प्रदूषण और जीव जंतुओं पर उसके दुष्प्रभाव की जितनी बात की जाए कम है. समुद्र प्लास्टिकों से अट गए हैं. अगर आप चीजें ज्यादा से ज्यादा रिसाइकिल करेंगे तो कम प्लास्टिक इस्तेमाल में आएगा. अगर चाहें तो अपसाइकिल के विकल्प को भी आजमा सकते हैं. सोचिए, रचनात्मक बनिए और एक ही चीज का पूरा इस्तेमाल कीजिए.
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बाहर निकलिए, प्रकृति से मिलिए
जितना हो सके और जब जब मौका निकाल सकें, कमरों से बाहर निकलिए और प्रकृति के नजारों का आनंद उठाइए. बाहर निकल कर अपने इस खूबसूरत ग्रह को सराहिए और नए जोश के साथ जलवायु परिवर्तन के बुरे असर से इसे बचाने में जुट जाइए. (रिपोर्ट: इनेके म्यूल्स/आरपी)