पूरी दुनिया में अपने रसीले स्वाद के लिए उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद के आम मशहूर हैं. बाजार में आम बेचते वक्त भी मलीहाबाद की दशहरी की आवाज लगाई जाती है. लेकिन इन मशहूर आमों के अस्तित्व पर अब खतरा मंडरा रहा है.
विज्ञापन
पुराने लखनऊ में चौक से सीधी सड़क मलीहाबाद को जाती है. जैसे जैसे आबादी कम होने लगती है, वैसे वैसे सड़क के दोनों ओर आम के बाग शुरू हो जाते हैं. ये इस बात का सूचक है कि आप मलीहाबाद के आम की फलपट्टी क्षेत्र में पहुंच चुके हैं. लेकिन पिछले कई दशकों में आम के बागान अब धीरे धीरे कम हो रहे हैं. लखनऊ शहर तेजी से फैल रहा है. नतीजा यह हुआ कि अब आपको जगह जगह कॉलोनी, रिसॉर्ट, स्कूल और कॉलेज दिखते हैं. ये सब आम के बागों को काट कर बनाए गए हैं. यह बात सिर्फ मलीहाबाद ब्लॉक तक ही सीमित नही हैं, बल्कि पड़ोस के माल और काकोरी ब्लॉक में भी यही स्थिति है. आंकड़ो के हिसाब से पिछले 34 साल में आम के बागों का क्षेत्रफल 88 हजार हेक्टेयर से सिमट कर 45 हजार हेक्टेयर रह गया है. मलिहाबाद के निवासियों के अनुसार पहले जहां आम के 1100 बाग होते थे, अब कुल 700 ही बचे हैं.
वसीक अहमद सिद्दीकी आम के बाग के मालिक हैं. वे दूसरे आम की बागों की फसल भी खरीदते हैं. उनके अनुसार इस डेवलपमेंट से बचना मुश्किल है. वे बताते हैं, "अब प्रॉपर्टी डीलर गांव की तरफ रुख कर रहे हैं. वे खेत और बाग खरीद लेते हैं. उसके बाद उसमें प्लाटिंग करते हैं. ऐसे में उस बाग के आस पास के किसान भी बेचने को मजबूर हो जाते हैं. कभी कभी वे पीछे का बाग खरीद लेते हैं और फिर रास्ते के नाम पर दबाव बनाते हैं और बागों का अस्तित्व खत्म हो जाता है." ऐसा तब है जब इस क्षेत्र के लगभग 300 गांव आम फलपट्टी क्षेत्र घोषित हैं और इनका रकबा लगभग 28 हजार हेक्टेयर है लेकिन अब इनमें से लगभग 100 गांव आम के बागों से विहीन हो चुके हैं. अब वहां पर रियल एस्टेट कंपनियां पहुच चुकी हैं. धीरे धीरे हरियाली ख हो ती जा रही है.
सबसे ज्यादा आम कौन सा देश पैदा करता है?
आम को फलों का राजा कहा जाता है और पूरी दुनिया में इसकी मांग है. आइए जानते हैं कि आम की पैदावार के मामले में सबसे ऊपर कौन से देश हैं.
तस्वीर: Imago/Arnulf Hettrich
9. बांग्लादेश
बांग्लादेश को आम का उत्पादन करने वाले अहम देशों में नौवें पायदान पर गिना जाता है. बांग्लादेश हर साल साढ़े 11.5 लाख टन से ज्यादा आम पैदा करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Singh
8. मिस्र
अफ्रीकी महाद्वीप में मिस्र आम का उत्पादन करने वाला सबसे अहम देश है. वहां हर साल 12.5 लाख टन आम पैदा होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/C. Kober
7. ब्राजील
ब्राजील में हर साल 14.5 लाख टन से ज्यादा आम पैदा होता है. अमेरिका और यूरोप के कई देशों में ब्राजील से आम मंगाए जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/A. Burgi
6. पाकिस्तान
आमों की पैदावार के मामले में दुनिया भर में पाकिस्तान का छठा नंबर है. वहां हर साल 15 लाख टन आम होता है, जिसमें कई तरह के आम होते हैं.
तस्वीर: DW/T. Shahzad
5. इंडोनेशिया
दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया भी अग्रणीय आम उत्पादक देशों में शामिल हैं. वहां हर साल 21 लाख टन आम होते हैं.
तस्वीर: Nike Kurnia
4. मेक्सिको
मध्य अमेरिकी देश मेक्सिको में हर साल लगभग 22 लाख टन आम पैदा होता है. कई देशों में वह आम निर्यात करता है.
तस्वीर: DW
3. थाईलैंड
आम के बड़े उत्पादकों में दक्षिण पूर्व एशियाई देश थाईलैंड का नंबर तीसरा है और वह सालाना 34 लाख टन आम होता है.
तस्वीर: Museum Rietberg Zürich/Rainer Wolfsberger
2. चीन
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन आमों के उत्पादन में दूसरे पायदान पर है. चीन हर साल 47 लाख टन आम पैदा करता है.
तस्वीर: Museum Rietberg Zürich/Rainer Wolfsberger
1. भारत
आमों के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सरताज है. वहां हर साल 1.87 करोड़ लाख टन आम की पैदावार होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh
9 तस्वीरें1 | 9
आम के बागों के काटे जाने के अलावा और भी कई कारण हैं. साल 1984 में यह क्षेत्र फलपट्टी क्षेत्र घोषित हुआ लेकिन आज भी यहां सुविधाओ का अभाव है. किसानों को यहां पानी की कमी से भी जूझना पड़ता है. आम के एक किसान अब्दुल्लाह बताते हैं कि पानी की जरूरत सिर्फ सिंचाई के लिए ही नहीं, बल्कि बागों की धुलाई के लिए भी पड़ती हैं और वह अक्सर उपलब्ध नहीं हो पाता है. सककार ने 16 से 18 घंटे बिजले देने का दावा भी किया था लेकिन वैसा भी नहीं हुआ. एक अत्याधुनिक मैंगो हाउस बनाया गया है लेकिन इसमें सिर्फ पैकिंग का काम होता है. सुविधाओं के अभाव में पिछले दस साल में एक भी किसान निर्यातक नहीं बन पाया है. एक्सपोर्ट का बढ़ता खर्च भी एक कारण है. साथ ही रोगों से ग्रसित होने पर ठीक जानकारी नहीं मिल पाती. इस वजह से भी बागों से स्पॉटलेस एक्सपोर्ट क्वॉलिटी के आम नहीं मिलते.
ऑल इंडिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली, जो खुद भी मलीहाबाद में आम के एक बाग के मालिक हैं, बताते हैं, "न नहरों में पानी है, ना ही अवैध कटान रोकने के लिए कोई मुहीम. प्रॉपर्टी के दाम बढ़ गए हैं, बिजली भी नहीं आती, कीटनाशक दवा भी नकली मिलती है, खर्चा ज्यादा है और आमदनी घट रही है. एक मैंगो हाउस है जिसमे सिर्फ पैकिंग होती है. इसके अलावा कुदरती मौसम की मार. इन सब को मिला कर आम की खेती से लोग विमुख हो रहे हैं." इंसराम के अनुसार कृषि बीमा पॉलिसी में भी आम की फसल को शामिल नहीं किया गया है.
ऐसा नहीं है कि मलिहाबाद के आम की डिमांड कम हैं. हर साल जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अमेरिका, सिंगापुर और चीन में मलिहाबाद के आम जाता हैं. सरकार इन्हें नवाब ब्रांड के नाम से भेजती है. सरकार का भी मानना है कि आम के बाग घट रहे हैं. प्रदेश के हॉर्टिकल्चर विभाग के निदेशक आरपी सिंह बताते हैं कि अब जोर इस बात पर है कि किसी तरह कम क्षेत्रफल में उत्पादन बढ़ाया जाए. इसके लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं. वे किसानों को सुविधाएं देने की बात भी कहते हैं, "अब हम लोग जमीन का क्षेत्रफल तो बढ़ा नहीं सकते, उत्पादन ही बढ़ाना होगा."
लीची वाले बिहार में अब स्ट्रॉबेरी की मिठास
लीची और आम के लिए विख्यात बिहार अब स्ट्रॉबेरी भी उगा रहा है. ठंडे इलाकों में उगने वाले इस फल के बिहार जैसे वातावरण में उगने की कल्पना नहीं की थी लेकिन वैज्ञानिकों की कोशिश और किसानों के हौसले ने इसे मुमकिन कर दिखाया है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
बिहार में स्ट्रॉबेरी
भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और कुछ दूसरे ठंडे इलाकों में स्ट्रॉबेरी की खेती हो रही थी. बिहार के किसानों और कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिकों ने इसे अपने इलाके उगा लिया है. यहां नवंबर से फरवरी तक का मौसम ठंडा रहता है और इसी मौसम में स्ट्रॉबेरी उगाई जा रही है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
अक्टूबर में शुरुआत
अक्टूबर में इसके लिए पौधे लगाने के साथ काम शुरू होता है. दिसंबर तक पौधे तैयार होते हैं और फिर उनमें फूल आने शुरू हो जाते हैं. इसके बाद के दो तीन महीनों में इनसे फल निकलते हैं. गर्मी आने के साथ ही पौधे सूख जाते हैं इसलिए हर साल नए पौधे लगाने पड़ते हैं.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
हर साल नए पौधे
यूरोपीय देशों और दूसरे ठंडे इलाकों या फिर ग्रीनहाउस में हो रही खेती का यही लाभ है कि यहां हर साल नए पौधे लगाने की जरूरत नहीं होती. एक बार पौधा लगाइए तो कई कई साल तक स्ट्रॉबेरी पैदा होती रहती है. जर्मनी में स्ट्रॉबेरी की कुछ किस्मों से तो छह साल तक फल निकलने का दावा किया जाता है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
स्वीट चार्ली, कामरोजा, विंटरडॉन, नबीला
बिहार कृषि विश्वविद्यालय में स्ट्रॉबेरी की विशेषज्ञ डॉ रूबी रानी ने बताया कि कई सालों तक 10-12 किस्मों पर प्रयोग किए और फिर देखा कि कुछ किस्में हैं जो यहां उगाई जा सकती हैं. बिहार में उपजाई जा रही स्ट्रॉबेरी की प्रमुख किस्मों में स्वीट चार्ली, कामरोजा विंटरडॉन, नबीला, फेस्टिवल शामिल हैं.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
गर्मी और बारिश का संकट
तमाम कोशिशों के बावजूद पौधों को अप्रैल के बाद जीवित रखने में काफी मुश्किल हो रही है. गर्मी और भारी बारिश के कारण पौधे नष्ट हो जाते हैं, इस वजह से किसानों को हर साल ठंडे इलाकों से पौधे मंगाने पड़ते हैं और फिर उन्हीं को दोबारा खेत में लगाया जाता है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
पोषक तत्वों से भरपूर
दिल के आकार वाली खूबसूरत स्ट्रॉबेरी दिल के साथ ही ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने और कैंसर को दूर रखने में कारगर है. इसके अलावा कई पोषक तत्वों की मौजूदगी इसे बेहद फायदेमंद बनाती है. यही वजह है कि दुनिया भर में इसकी बड़ी मांग है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
मुश्किलों से पार पाई
मुश्किलें कई थीं लेकिन वैज्ञानिकों की जुटाई जानकारी और किसानों की मेहनत के बलबूते यह संभव हुआ. फिलहाल भागलपुर, औरंगाबाद, और आसपास के कई इलाकों में करीब 25-30 एकड़ में स्ट्रॉबेरी कारोबारी तरीके से उगाई जा रही है. इसके अलावा छोटे स्तर पर भी कई इलाके में इसे उगाया जा रहा है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
आस पास के इलाकों में भारी मांग
बिहार में उपजी स्ट्रॉबेरी की आसपास के इलाकों में काफी मांग है. पटना, कोलकाता और बनारस के बाजारों में ही सारी पैदावर खप जाती है. यहां स्टोरेज की सुविधा भी नहीं है इसलिए ज्यादातर स्ट्रॉबेरी तुरंत ही बेच दी जाती है. वैज्ञानिक इन्हें प्रोसेसिंग के जरिए लंबे समय तक रखने की तकनीक पर भी काम कर रहे हैं.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
नगदी फसल
यहां किसानों को एक किलो स्ट्रॉबेरी के लिए 200 से 250 प्रति किलो की कीमत मिल रही है. नगदी फसल की भारी मांग को देख कर आसपास के इलाकों के किसान काफी उत्साहित हैं. स्ट्रॉबेरी की खेती में सफलता देख उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों से भी यहां लोग जानकारी के लिए आ रहे हैं.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
लीची नहीं स्ट्रॉबेरी
बिहार बासमती धान और अच्छे गेहूं के साथ ही आम और लीची जैसे फलों के लिए विख्यात है हालांकि बदलते वक्त की मार इन पर भी पड़ी है और किसानों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. स्ट्रॉबेरी ने लोगों को एक नयी फसल उगाने का रास्ता दिखा दिया है.