दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी एक विशेष प्रकार का दूध बेच रही है, जो खेती वाले कीटों से बना है. कंपनी ने इसे 'एंटोमिल्क' का नाम दिया है.
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गुर्मे ग्रब नाम की यह कंपनी इसे अगला सुपरफूड बता रही है. वेबसाइट पर लिखा गया है, "एंटोमिल्क की कल्पना टिकाऊ, प्रकृति के अनुकूल, पौष्टिक, लैक्टोज मुक्त, स्वादिष्ट और भविष्य के डेयरी विकल्प के रूप में की जा सकती है." कंपनी के अनुसार एंटोमिल्क का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बहुत ज्यादा प्रोटीन है और आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे खनिज भी हैं. इस दूध से कंपनी एक खास किस्म की आइसक्रीम बनाती है, जो तीन फ्लेवर में उपलब्ध है: चॉकलेट, पीनट बटर और चाय.
एंटोमिल्क का नाम एंटोमोफेगी शब्द से आता है. इसका मतलब है कीड़ों को खाने की प्रथा. चूंकि कीड़े प्रोटीन से भरपूर होते हैं, इसलिए पिछले कई सालों से इन्हें आहार का हिस्सा बनाने पर चर्चा चल रही है. दुनिया भर में हो रहे फूड फेस्टिवल में भी कीड़ों से बने तरह तरह के व्यंजन पेश किए जाते हैं, ताकि लोगों में इनके प्रति रुचि बढ़ाई जा सके. बावजूद इसके अब तक कीड़ों वाला खाना दुकानों में बिकना शुरू नहीं हुआ है. एंटोमिल्क के जरिए एक बार फिर इस ओर ध्यान खींचा जा रहा है कि जानवरों के इस्तेमाल से पर्यावरण पर कितना बुरा असर पड़ता है.
अब कीड़े वाले खाने के लिए हो जाएं तैयार
दुनिया का खाद्य उद्योग अब पर्यावरण पर दबाव डालने लगा है. बढ़ती आबादी के चलते अब सब के लिए भोजन जुटाना आसान नहीं है. ऐसे में वैज्ञानिकों और उद्योग जगत की नजर ऐसे कीड़े-मकौड़ों पर जा टिकी है जिन्हें खाया जा सकता है.
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कीट युक्त भोजन
दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है जिसके चलते अब कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है. पिछले 40 सालों में दुनिया की तकरीबन एक तिहाई कृषि भूमि समाप्त हो गई है. वहीं पर्यावरण का असर मांस उत्पादन पर भी पड़ा है. ऐसे में कई लोगों का मानना है कि भविष्य में कीट युक्त भोजन ही एक बेहतर विकल्प होगा. मसलन जापान में अंड़े के साथ खाए जा रहे इस टिड्डे को एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है.
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कांगो में झींगा और इल्ली
इंसान प्रागैतिहासिक काल से कीट खा रहा है और आज भी यह सिलसिला जारी है. दुनिया में आज भी कुछ खास संस्कृतियां इनका इस्तेमाल किसी न किसी तरीके से करती हैं. कांगों में एक व्यक्ति जैतून के तेल में पकी इस भुनी हुई इल्ली को खा रहा है. यह खाना सस्ता है, साथ ही प्रोटीन का बहुत बड़ा खजाना है.
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धीरे-धीरे लोकप्रिय
कीट युक्त भोजन दुनिया के कई देशों में खाया जाता है. लेकिन यूरोप और उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रों में कीटों को इस तरह खाना आम नहीं है. हालांकि अब पर्यावरणविदों से मिलने वाले प्रोत्साहन के चलते इनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. इस तस्वीर में सिडनी का एक बावर्ची ऐसी ही एक डिश को दिखा रहा है.
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लाभ कितना?
लेकिन इस तरह कीटों की खेती करने का लाभ क्या है? अगर पशुपालन युक्त खेती को देखें, तो उसके मुकाबले कीटों की खेती में कम भूमि और पानी का इस्तेमाल होता है. साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी इसमें कम होता है. इसके अलावा कीटों को बहुत कम भोजन की आवश्यकता होती है और इन्हें जानवरों और मछलियों के लिए भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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तेल का विकल्प
इंडोनेशिया का एक स्टार्टअप बाइटबैक ऐसे ही कीटों वाले पौष्टिक आहार के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहा है ताकि तारपीन के तेल का इस्तेमाल कम किया जा सके. इंडोनेशिया और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में इस तेल को तैयार करने के तरीके को पर्यावरण के अनुकूल नहीं माना जाता है, जिसके चलते लंबे समय से इसकी आलोचना हो रही थी. बाइटबैक के संस्थापकों का जोर कीड़े वाले ऐसे पौष्टिक खाने पर है, जो प्रोटीन युक्त हो.
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कीड़े वाली लॉलीपॉप
दुनिया भर में मांस की मांग साल 2050 तक 75 फीसदी बढ़ सकती है. इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन के लिए जरूरी कृषि भूमि और पशुओं आवश्यकता होगी. साथ ही प्रोटीन के अच्छे विकल्पों की तलाश तेज करनी होगी. एंटोमौफैजी को लेकर आश्वस्त लोग पाक कला में कीटों पर विश्वास जताते हैं. मानव द्वारा कीटों का भोजन के रूप में इस्तेमाल एंटोमौफैजी कहलाता है. तस्वीर में कीटों से बनी लॉलीपॉप को दिखाया गया है.
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आसान नहीं अपनाना
कीटों से बना भोजन भविष्य की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में सहायक हो सकता है लेकिन अब भी इस क्षेत्र में विकास की आवश्यकता है. स्वयं को ऐसे खाने के लिए तैयार करना आसान नहीं है. तस्वीर में नजर आ रहा भुनी हुई मधुमक्खियों से बना केक बर्लिन के पर्यावरण मेले मे खाया गया था. लेकिन दुनिया को अधिक व्यावहारिक कीट वाले भोजन के इस्तेमाल पर गौर करना चाहिए. (आर्थर सुलिवान/एए)
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
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गाय चारा खाने के दौरान मीथेन को हवा में छोड़ती है, जो एक जहरीली गैस है. लंबे समय से पर्यावरणविद् आरोप लगाते आए हैं कि बीफ और दूध के लिए गाय के इस्तेमाल से पर्यावरण में मीथेन की मात्रा बढ़ रही है. ऐसे में एंटोमिल्क को एक ऐसे विकल्प के तौर पर पेश किया जा रहा है, जिससे ना ही मीथेन हवा में घुलेगा और ना ही पानी की अत्यधिक खपत होगी.
एंटोमिल्क तथाकथित 'कॉकरोच मिल्क' की शुरुआत के दो साल बाद बाजार में आया है. कॉकरोच मिल्क डिप्लोपटेरा पुक्टाटा से बना हुआ है. यह विशेष प्रकार का तिलचट्टा आमतौर पर हवाई जैसे प्रशांत द्वीपों पर पाया जाता है. यह एकमात्र प्रजाति है, जो अंडे देने के बजाय बच्चों को जन्म देती है. इनका दूध प्रोटीन, वसा और शुगर का क्रिस्टल होता है, जो तिलचट्टे के बच्चों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है.
साल 2016 में भारतीय शोधकर्ताओं के एक शोध में तिलचट्टे के दूध में समान द्रव्यमान के गाय के दूध की तुलना में तीन गुना से ज्यादा ऊर्जा होने का अनुमान लगाया गया था. हालांकि वैज्ञानिकों ने सुपरमार्केट में जल्द तिलचट्टे के दूध आने की उम्मीद नहीं की थी. इसके अलावा, इसके इस्तेमाल में सुरक्षित होने पर भी अभी स्थिति साफ नहीं है.
ईशा भाटिया (आईएएनएस)
कहीं आपको भी कोई फोबिया तो नहीं
फोबिया यानि डर कई तरह के होते हैं. लोगों को कुत्ते, बिल्ली, कीड़े, परिंदे और यहां तक कि इंसानों से भी डर लगता है. जितने अजीब ये डर हैं, उतने ही अजीब उनके नाम भी हैं.
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एरेकनोफोबिया
मकड़ी से डर सबसे आम तरह का फोबिया है और इसके शिकार एक तिहाई लोग अमेरिका में हैं. हालांकि मकड़ी की 40,000 में से केवल 20 ही प्रजातियां इंसान को नुकसान पहुंचाने लायक जहरीली होती हैं.
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ओफिडियोफोबिया
दूसरे नंबर पर है सांप का डर. रिसर्चर इसे एक सर्वाइवल इंस्टिंक्ट यानि जीवित रहने के लिए इंसानों में कुदरत द्वारा डाला गया एक जरूरी डर बताते हैं. दुनिया की एक तिहाई आबादी को सांप से डर लगता है.
ऊंचाई से डर. 100 में से करीब पांच लोगों को इस तरह का फोबिया होता है. कई बार डर की हद यह हो जाती है कि वह पैनिक अटैक में तब्दील हो जाता है. ऐसे में सांस लेना तक मुश्किल हो सकता है.
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एगोराफोबिया
ऐसे लोगों को खुली जगह और भीड़ भाड़ दोनों से डर लगता है. किसी खुले खेत में जा कर उन्हें लग सकता है कि वे वहां खो जाएंगे और कभी बाहर नहीं आ सकेंगे. ऐसे लोग अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं.
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सायनोफोबिया
कुत्ते से डर ज्यादातर महिलाओं को लगता है. इस डर की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है. सांप और मकड़ी के बाद जानवरों से डर के मामले में कुत्तों का डर सबसे आम है.
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एस्ट्राफोबिया
ऐसे लोगों को बिजली के कड़कने और बादलों के गरजने से डर लगता है. यह डर ज्यादातर बच्चों में पाया जाता है. इंसानों के अलावा जानवरों में भी ऐसा डर देखा गया है.
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क्लॉस्ट्रोफोबिया
तंग जगहों का डर. इस तरह के डर के कारण लोग लिफ्ट में जाने से कतराते हैं. एमआरआई मशीन में जाना उनके लिए नामुमकिन होता है. हालांकि इसे दूर किया जा सकता है लेकिन बहुत कम ही लोग अपना इलाज करवाते हैं.
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मायजोफोबिया
कीटाणुओं का डर. ऐसे लोग बार बार नहाते हैं, अपने हाथ धोते हैं, सैनिटाइजर लगाते हैं, लोगों से हाथ मिलाने से कतराते हैं. इस तरह के लोगों को अक्सर ओसीडी यानि ऑब्सेसिव कम्पल्जिव डिसऑर्डर भी होता है.
तस्वीर: BilderBox
एरोफोबिया
उड़ान से डर. जिन लोगों को काम के सिलसिले में काफी यात्रा करनी होती है, उनके करियर पर इस डर का प्रभाव पड़ता है. फ्लाइट लेने के ख्याल से ही सांस फूलने लगती है और चक्कर आने लगता है.
तस्वीर: Imago
डेंटोफोबिया
डेंटिस्ट के पास जाने से बहुत लोग कतराते हैं. जिन्हें डेंटोफोबिया होता है उन्हें दांतों में ड्रिल से डर लगता है. हालांकि आधुनिक तकनीक में दांतों को पहले की तरह ड्रिल नहीं किया जाता लेकिन डर बरकरार है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte
त्रिसकेडेकाफोबिया
नंबर 13 से डर. बहुत लोग 13 नंबर को अशुभ मानते हैं. दुनिया के कई मशहूर लेखक और संगीतकार भी इससे डरते रहे हैं. यहां तक कि कई इमारतों में तो इस डर के कारण 13वां माला ही नहीं होता.
तस्वीर: DW/C. Chimoy
कार्सिनोफोबिया
यह है कैंसर से डर. ऐसे लोग अपने खान पान पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देते हैं. उन्हें डर लगा रहता है कि कहीं वे कुछ ऐसा ना खा लें जिससे उन्हें कैंसर हो जाए.
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ग्लॉसोफोबिया
एक अच्छा वक्ता लोगों को मंत्रमुग्ध कर सकता है लेकिन ऐसे भी बहुत लोग होते हैं जिनके स्टेज पर जाते ही पसीने छूट जाते हैं. इसी को ग्लॉसोफोबिया कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Gambarini
मोनोफोबिया
अकेलेपन से डर. ऐसे लोगों को जीवन में अकेले छूट जाने का डर तो होता ही है, साथ ही अकेले बैठ कर खाना खाना या फिर बिस्तर में अकेले सोना भी इनके लिए मुमकिन नहीं होता.
तस्वीर: Fotolia
ऑर्निथोफोबिया
परिंदों से डर. जरूरी नहीं कि इन्हें जानवरों या कीड़ों से भी डर लगता हो. ऐसे लोग अक्सर कुत्ते, बिल्लियों से काफी प्यार करते हैं. इन्हें बस परिंदों का अपने इर्द गिर्द उड़ना बर्दाश्त नहीं होता.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange/M. Raedlein
टेलेगफोनोफोबिया
ऐसे लोगों को फोन पर बात करने से डर लगता है. वे एसएमएस या फिर ईमेल के जरिये बात करना पसंद करते हैं. बाकी कई डरों की तरह यह भी बेतुका है लेकिन सच है.
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Tetra
कैटोपट्रोफोबिया
आईने से डर. ऐसे लोग खुद को आईने में देखने से डरते हैं. अधिकतर वे खुद को बदसूरत या मोटा समझते हैं. एक कमरे में अगर बहुत सारे आईने हों, तो उन्हें पैनिक अटैक भी हो सकता है.
तस्वीर: Fotolia/giorgiomtb
टोकोफोबिया
ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था और बच्चे को जन्म देने से डर लगता है. डॉक्टर मानते हैं कि इस डर को अधिकतर संजीदगी से नहीं लिया जाता, जबकि महिलाओं की मानसिक स्थिति पर इसका काफी बुरा असर हो सकता है.
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सोमनीफोबिया
ऐसे लोगों को नींद से डर लगता है. उन्हें लगता है कि उनके सोने के बाद उनके साथ कुछ ऐसा बुरा हो सकता है जिसका नींद के कारण वे सामना नहीं कर पाएंगे. इसलिए वे जगे रहते हैं. इस स्थिति को इनसोमनिया कहते हैं.
तस्वीर: Fotolia/Focus Pocus LTD
निक्टोफोबिया
ऐसे लोगों को अंधेरे से डर लगता है. वे रात में बत्ती जला कर सोना पसंद करते हैं. अक्सर बच्चों में ऐसा डर देखने को मिलता है.