पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलगित बल्तिस्तान को अस्थायी रूप से प्रांत का दर्जा देने का वादा किया है. जानकार कहते हैं कि पाकिस्तान के इस कदम से कश्मीर विवाद अप्रासांगिक हो सकता है.
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विवादित जम्मू-कश्मीर का जो भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में है, उसका एक हिस्सा है गिलगित बल्तिस्तान. पाकिस्तान के उत्तर में स्थित यह इलाका 2009 से अब तक स्वायत्त क्षेत्र रहा है जहां का प्रशासन सीधे पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से चलता है. लेकिन इसी महीने पाकिस्तान के अधिकारियों ने इस इलाके को पूरी तरह प्रांत का दर्जा देने की घोषणा की.
गिलगित बल्तिस्तान 1947 में जम्मू कश्मीर का हिस्सा था. लेकिन 1948 में यह इलाका इस उम्मीद में पाकिस्तान का हिस्सा बना था कि उसे संवैधानिक दर्जा दिया जाएगा. लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने इसे देश का हिस्सा तो माना लेकिन इसे विवादित जम्मू कश्मीर से अलग नहीं समझा.
पाकिस्तान की सरकार जहां पूरे कश्मीर क्षेत्र पर अपना दावा जताती है, वहीं भारत पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान को अपना इलाका बताता है.
गिलगित बल्तिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत घोषित करने के पाकिस्तान के इरादे पर सीमा के दोनों तरफ रहने वाले कश्मीरियों की मिली जुली प्रतिक्रिया है. कश्मीर को एक अलग देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे कश्मीरी राष्ट्रवादियों ने इस कदम की आलोचना की है. उन्हें डर है कि इस कदम से संयुक्त जम्मू-कश्मीर की उनकी मांग अप्रासांगिक हो जाएगी.
पाकिस्तान ने पहले भी गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत का दर्जा देने की कोशिश की है. लेकिन ऐसी कोशिशों का तीखा विरोध हुआ है. कई कश्मीरी समूहों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है.
स्थायी सीमाओं की तरफ कदम ?
पाकिस्तान में सक्रिय जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकएलएफ) के अध्यक्ष तौकीर गिलानी कहते हैं कि जिस तरह भारत ने पिछले साल अपने नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया था, उसी तरह का कदम अब पाकिस्तान गिलगित बल्तिस्तान में उठा रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "गिलगित बल्तिस्तान प्रांत कश्मीर के बंटवारे की दिशा में एक कदम होगा. यह कदम ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कानूनों के भी विपरीत है बल्कि इस इलाके के विवादित दर्जे को लेकर खुद पाकिस्तान के रुख के भी विपरीत है."
दिल्ली स्थित ऑबर्जवर रिसर्च फांडेशन (ओआरएफ) के एसोसिएट फेलो खालिद शाह भी यही मानते हैं कि गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत का दर्जा देने से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का रुख कमजोर होगा. उनकी राय में, "यह ठीक वैसा ही कदम है जैसा भारत ने 5 अगस्त 2019 को उठाया था और जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसे बाकी देश के साथ मिला दिया था."
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कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
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1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
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1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
तस्वीर: Reuters
2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
तस्वीर: picture-alliance
2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.
तस्वीर: Reuters
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यूरोपीयन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक जुनैद कुरैशी कहते हैं कि पाकिस्तान के कदम से संयुक्त राष्ट्र में उसका खुद का रुख कमजोर होगा. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "पाकिस्तान जब भी कश्मीर के आत्मनिर्धारण की बात करता है, तो उसका इशारा सिर्फ भारत के नियंत्रण वाले कश्मीर की तरफ होता है. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के मुताबिक, पाकिस्तान इस बात के लिए सहमत हुआ था कि पहले वह इलाके से अपने सभी सैनिक हटाएगा और फिर भारत ऐसा करेगा."
लेकिन अब गिलगित बल्तिस्तान को अपना प्रांत घोषित करने के बाद पाकिस्तान इस इलाके को "गैर-विवादित" इलाके की तरह देखेगा, ठीक ऐसा ही भारत अपने नियंत्रण वाले इलाके के साथ करेगा. ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रांतीय दर्जा मिलने से मौजूदा सीमाएं स्थायी सीमाओं में बदल सकती हैं.
विवादित इलाके के किसी भी हिस्से को स्थायी दर्जा देना संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन है. सीमा के दोनों तरफ संयुक्त कश्मीर के लिए संघर्ष कर रहे कश्मीर कार्यकर्ताओं ने जिस तरह जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारत के फैसले का विरोध किया था, उसी तरह वे गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत का दर्जा देने के पाकिस्तान के कदम का विरोध कर रहे हैं. ऐसे कदमों को वे मौजूदा नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा में तब्दील करने की कोशिश मानते हैं.
चीन को खुश करने की कोशिश?
कुरैशी मानते हैं कि गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत घोषित कर पाकिस्तान चीन को खुश करना चाहता है जिसकी अरबों डॉलर की चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना (सीपैक ) इस इलाके से होकर गुजरती है.
नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट में रिसर्चर कमल मैडिशेट्टी कहते हैं, "चीन गिलगित बल्तिस्तान में अपनी मौजूदगी और प्रभाव को बढ़ा रहा है और पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ मिलकर इस इलाके पर अपना कब्जा मजबूत कर रहा है."
मैडिशेट्टी कहते हैं, "वहां पर चीन की मौजूदगी भारत के लिए सामरिक चुनौती पैदा कर रही है. मिसाल के तौर पर भविष्य में चीनी सैनिक गिलगित बल्तिस्तान में दाखिल हो सकते हैं, सीपैक परियोजना को सुरक्षा देने के नाम पर."
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क्या है चीन का "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट
900 अरब डॉलर की लागत से चीन कई नए अंतरराष्ट्रीय रूट बनाना चाहता है. वन बेल्ट, वन रोड नाम के अभियान के तहत बीजिंग ये सब करेगा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. J. Brown
चीन-मंगोलिया-रूस
जून 2016 में इस प्रोजेक्ट पर चीन, मंगोलिया और रूस ने हस्ताक्षर किये. जिनइंग से शुरू होने वाला यह हाइवे मध्य पूर्वी मंगोलिया को पार करता हुआ मध्य रूस पहुंचेगा.
न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज
इस योजना के तहत चीन यूरोप से रेल के जरिये जुड़ चुका है. लेकिन सड़क मार्ग की संभावनाएं भी बेहतर की जाएंगी. 10,000 किलोमीटर से लंबा रास्ता कजाखस्तान और रूस से होता हुआ यूरोप तक पहुंचेगा.
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चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर
56 अरब डॉलर वाला यह प्रोजेक्ट चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत को कश्मीर और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Lavalée
चाइना-सेंट्रल एंड वेस्ट एशिया कॉरिडोर
सदियों पुराने असली सिल्क रूट वाले इस रास्ते को अब रेल और सड़क मार्ग में तब्दील करने की योजना है. कॉरिडोर कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की को जो़ड़ेगा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. J. Brown
दक्षिण पूर्वी एशियाई कॉरिडोर
इस कॉरिडोर के तहत चीन की परियोजना म्यांमार, वियतनाम, लाओस, थाइलैंड से गुजरती हुई इंडोनेशिया तक पहुंचेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP
चाइना-बांग्लादेश-इंडिया-म्यांमार कॉरिडोर
इस परियोजना के तहत इन चार देशों को सड़क के जरिये जोड़ा जाना था. लेकिन भारत की आपत्तियों को चलते यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है. अब चीन बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ेगा.
तस्वीर: Reuters/D. Sagoli
चाइना-नेपाल-इंडिया कॉरिडोर
म्यांमार के अलावा चीन नेपाल के रास्ते भी भारत से संपर्क जोड़ना चाहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने नेपाल को भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Mathema
प्रोजेक्ट का मकसद
वन बेल्ट, वन रूट जैसी योजनाओं की बदौलत चीन करीब 60 देशों तक सीधी पहुंच बनाना चाहता है. परियोजना के तहत पुल, सुरंग और आधारभूत ढांचे पर तेजी से काम किया जा रहा है. निर्यात पर निर्भर चीन को नए बाजार चाहिए. बीजिंग को लगता है कि ये सड़कें उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा बनेंगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Reynolds
अमेरिका नहीं, चीन
डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दुनिया भर के देशों को अमेरिका से मोहभंग हो रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है. बीजिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की धुरी बनाने का सपना देख रहा है. इसी वजह से इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
तस्वीर: Reuters/J. Lee
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विश्लेषक कुरैशी मानते हैं कि सीपैक विवादित क्षेत्र से गुजरता है, जिसके कारण यह प्रोजेक्ट गैरकानूनी हो जाता है, इसीलिए चीन चाहता है कि पाकिस्तान इस इलाके को अपना प्रांत घोषित करे. वह कहते हैं, "अगर आप किसी इलाके में 51 अरब यूरो निवेश करते हैं, तो आप नहीं चाहोगे कि उस पर विवाद रहे. इसीलिए चीन के लिए यह जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान गिलगित बल्तिस्तान को कानूनी रूप से अपना प्रांत घोषित करे."
कुछ स्थानीय लोग भी इस बात से सहमत हैं. गिलगित बल्तिस्तान की असेंबली के पूर्व सदस्य नवाज नाजी कहते हैं, "चीन का प्रभाव गिलगित बल्तिस्तान में बढ़ रहा है, जिसके बाद भारत और अमेरिका हस्तक्षेप कर रहे हैं. इससे इलाके की स्थिरता के लिए खतरा पैदा होता है." वह कहते हैं, "अगर पाकिस्तान अपनी योजना पर आगे बढ़ता है तो हम उसका शांतिपूर्ण और राजनीति रूप से विरोध करेंगे."
वहीं एक पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी इजाज आवान इस बात से इनकार करते हैं कि गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत बनाने के पीछे मकसद चीन को खुश करना है. वह कहते हैं, "पाकिस्तान की सरकार चाहती है कि गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को सीपैक और विकास से जुड़ी अन्य योजनाओं का फायदा मिले. प्रांत का दर्जा अस्थायी तौर पर दिया जा रहा है. व्यापक मकसद तो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार कश्मीर समस्या का हल तलाशना है."
कुछ स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि सीपैक से उनके लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होगा. दूसरी तरफ कुछ लोगों को यह चिंता भी सता रही है है कि सीपैक के कारण पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से जाकर लोग गिलगित बल्तिस्तान में बसेंगे. इससे स्थानीय संस्कृति और आर्थिक हितों को नुकसान होगा.
रिपोर्ट: अंकिता मुखोपाध्याय (नई दिल्ली से), एस खान (इस्लामाबाद से)