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पाकिस्तान ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी?

१६ नवम्बर २०२०

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलगित बल्तिस्तान को अस्थायी रूप से प्रांत का दर्जा देने का वादा किया है. जानकार कहते हैं कि पाकिस्तान के इस कदम से कश्मीर विवाद अप्रासांगिक हो सकता है.

Pakistan Wahlen in Gilgit-Baltistan (Bildergalerie)
तस्वीर: DW/S. Raheem

विवादित जम्मू-कश्मीर का जो भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में है, उसका एक हिस्सा है गिलगित बल्तिस्तान. पाकिस्तान के उत्तर में स्थित यह इलाका 2009 से अब तक स्वायत्त क्षेत्र रहा है जहां का प्रशासन सीधे पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से चलता है. लेकिन इसी महीने पाकिस्तान के अधिकारियों ने इस इलाके को पूरी तरह प्रांत का दर्जा देने की घोषणा की.

गिलगित बल्तिस्तान 1947 में जम्मू कश्मीर का हिस्सा था. लेकिन 1948 में यह इलाका इस उम्मीद में पाकिस्तान का हिस्सा बना था कि उसे संवैधानिक दर्जा दिया जाएगा. लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने इसे देश का हिस्सा तो माना लेकिन इसे विवादित जम्मू कश्मीर से अलग नहीं समझा.

पाकिस्तान की सरकार जहां पूरे कश्मीर क्षेत्र पर अपना दावा जताती है, वहीं भारत पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान को अपना इलाका बताता है.

गिलगित बल्तिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत घोषित करने के पाकिस्तान के इरादे पर सीमा के दोनों तरफ रहने वाले कश्मीरियों की मिली जुली प्रतिक्रिया है. कश्मीर को एक अलग देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे कश्मीरी राष्ट्रवादियों ने इस कदम की आलोचना की है. उन्हें डर है कि इस कदम से संयुक्त जम्मू-कश्मीर की उनकी मांग अप्रासांगिक हो जाएगी.

पाकिस्तान ने पहले भी गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत का दर्जा देने की कोशिश की है. लेकिन ऐसी कोशिशों का तीखा विरोध हुआ है. कई कश्मीरी समूहों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है.

स्थायी सीमाओं की तरफ कदम ?

पाकिस्तान में सक्रिय जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकएलएफ) के अध्यक्ष तौकीर गिलानी कहते हैं कि जिस तरह भारत ने पिछले साल अपने नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया था, उसी तरह का कदम अब पाकिस्तान गिलगित बल्तिस्तान में उठा रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "गिलगित बल्तिस्तान प्रांत कश्मीर के बंटवारे की दिशा में एक कदम होगा. यह कदम ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कानूनों के भी विपरीत है बल्कि इस इलाके के विवादित दर्जे को लेकर खुद पाकिस्तान के रुख के भी विपरीत है."

दिल्ली स्थित ऑबर्जवर रिसर्च फांडेशन (ओआरएफ) के एसोसिएट फेलो खालिद शाह भी यही मानते हैं कि गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत का दर्जा देने से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का रुख कमजोर होगा. उनकी राय में, "यह ठीक वैसा ही कदम है जैसा भारत ने 5 अगस्त 2019 को उठाया था और जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसे बाकी देश के साथ मिला दिया था."

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यूरोपीयन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक जुनैद कुरैशी कहते हैं कि पाकिस्तान के कदम से संयुक्त राष्ट्र में उसका खुद का रुख कमजोर होगा. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "पाकिस्तान जब भी कश्मीर के आत्मनिर्धारण की बात करता है, तो उसका इशारा सिर्फ भारत के नियंत्रण वाले कश्मीर की तरफ होता है. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के मुताबिक, पाकिस्तान इस बात के लिए सहमत हुआ था कि पहले वह इलाके से अपने सभी सैनिक हटाएगा और फिर भारत ऐसा करेगा."

लेकिन अब गिलगित बल्तिस्तान को अपना प्रांत घोषित करने के बाद पाकिस्तान इस इलाके को "गैर-विवादित" इलाके की तरह देखेगा, ठीक ऐसा ही भारत अपने नियंत्रण वाले इलाके के साथ करेगा. ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रांतीय दर्जा मिलने से मौजूदा सीमाएं स्थायी सीमाओं में बदल सकती हैं.

विवादित इलाके के किसी भी हिस्से को स्थायी दर्जा देना संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन है. सीमा के दोनों तरफ संयुक्त कश्मीर के लिए संघर्ष कर रहे कश्मीर कार्यकर्ताओं ने जिस तरह जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारत के फैसले का विरोध किया था, उसी तरह वे गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत का दर्जा देने के पाकिस्तान के कदम का विरोध कर रहे हैं. ऐसे कदमों को वे मौजूदा नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा में तब्दील करने की कोशिश मानते हैं.

चीन को खुश करने की कोशिश?

कुरैशी मानते हैं कि गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत घोषित कर पाकिस्तान चीन को खुश करना चाहता है जिसकी अरबों डॉलर की चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना (सीपैक ) इस इलाके से होकर गुजरती है.

नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट में रिसर्चर कमल मैडिशेट्टी कहते हैं, "चीन गिलगित बल्तिस्तान में अपनी मौजूदगी और प्रभाव को बढ़ा रहा है और पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ मिलकर इस इलाके पर अपना कब्जा मजबूत कर रहा है."

मैडिशेट्टी कहते हैं, "वहां पर चीन की मौजूदगी भारत के लिए सामरिक चुनौती पैदा कर रही है. मिसाल के तौर पर भविष्य में चीनी सैनिक गिलगित बल्तिस्तान में दाखिल हो सकते हैं, सीपैक परियोजना को सुरक्षा देने के नाम पर."

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विश्लेषक कुरैशी मानते हैं कि सीपैक विवादित क्षेत्र से गुजरता है, जिसके कारण यह प्रोजेक्ट गैरकानूनी हो जाता है, इसीलिए चीन चाहता है कि पाकिस्तान इस इलाके को अपना प्रांत घोषित करे. वह कहते हैं, "अगर आप किसी इलाके में 51 अरब यूरो निवेश करते हैं, तो आप नहीं चाहोगे कि उस पर विवाद रहे. इसीलिए चीन के लिए यह जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान गिलगित बल्तिस्तान को कानूनी रूप से अपना प्रांत घोषित करे."

कुछ स्थानीय लोग भी इस बात से सहमत हैं. गिलगित बल्तिस्तान की असेंबली के पूर्व सदस्य नवाज नाजी कहते हैं, "चीन का प्रभाव गिलगित बल्तिस्तान में बढ़ रहा है, जिसके बाद भारत और अमेरिका हस्तक्षेप कर रहे हैं. इससे इलाके की स्थिरता के लिए खतरा पैदा होता है." वह कहते हैं, "अगर पाकिस्तान अपनी योजना पर आगे बढ़ता है तो हम उसका शांतिपूर्ण और राजनीति रूप से विरोध करेंगे."

वहीं एक पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी इजाज आवान इस बात से इनकार करते हैं कि गिलगित बल्तिस्तान को प्रांत बनाने के पीछे मकसद चीन को खुश करना है. वह कहते हैं, "पाकिस्तान की सरकार चाहती है कि गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को सीपैक और विकास से जुड़ी अन्य योजनाओं का फायदा मिले. प्रांत का दर्जा अस्थायी तौर पर दिया जा रहा है. व्यापक मकसद तो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार कश्मीर समस्या का हल तलाशना है."

कुछ स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि सीपैक से उनके लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होगा. दूसरी तरफ कुछ लोगों को यह चिंता भी सता रही है है कि सीपैक के कारण पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से जाकर लोग गिलगित बल्तिस्तान में बसेंगे. इससे स्थानीय संस्कृति और आर्थिक हितों को नुकसान होगा.

रिपोर्ट: अंकिता मुखोपाध्याय (नई दिल्ली से), एस खान (इस्लामाबाद से)

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