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गिलहरियों के लिए बनेगा खास बसेरा

२९ नवम्बर २०१०

पुणे के पास भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य में रहने वाली और अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही बड़ी गिलहरियों के लिए खास बसेरा बनाया जाएगा. वन विभाग के अधिकारी इस काम में बैंगलोर के भारतीय विज्ञान संस्थान की मदद ले रहे हैं.

तस्वीर: AP

भारत की बड़ी गिलहरी या रातुसा इंडिका प्रजाति के ये अनोखे जीव अपनी शर्मीले स्वभाव और तेज रफ्तार के लिए जाने जाते हैं. ये गिलहरियां भीमाशंकर वन में आने वाले वन्यजीव प्रेमियों के खास आकर्षण हैं. इसी वन में मशहूर शिव मंदिर भी है जो 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है. वन संरक्षक एमके राव कहते हैं, "भारतीय विज्ञान संस्थान के साथ मिल कर हम जियोग्राफिकल इनफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) पर काम कर रहे हैं ताकि गिलहरियों के लिए मौजूद खतरों का पता लगाया जा सके. साथ ही ये भी पता लगाया जाएगा कि उनका रहने की जगह कहीं सिमट तो नहीं रही है."

तस्वीर: AP

फिलहाल इन गिलहरियों की गिनती का काम चल रहा है जिसमें उनके घोंसलों को आधार बनाया गया है. साथ ही जीआईएस सिस्टम से गिलहरियों की जिंदगी में मानवीय दखलंदाजी की भी पड़ताल की जाएगी. राव कहते हैं, "गिलहरियों के लिए अच्छा जंगल बहुत जरूरी है क्योंकि वे सिर्फ पत्ते और फलों पर ही निर्भर हैं."

बड़ी गिलहरी के लिए अनुकूल परिस्थितियों को समझने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञ वन कर्मचारियों से बात करेंगे. यह गिलहरी एक पेड़ से दूसरे पेड़ों पर ही उछल कूद करती रही हैं और कभी जमीन पर नहीं उतरती. वह मॉनसून आने से पहले पांच से छह घोंसले तैयार करती है. भीमाशंकर इलाके में घटता वन क्षेत्र बड़ी गिलहरी के लिए खास तौर से खतरा पैदा कर रहा है.

रिपोर्टः पीटीआई/ए कुमार

संपादनः एन रंजन

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