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गिलानी ने नहीं मांगी सुप्रीम कोर्ट से माफी

१९ जनवरी २०१२

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर मानहानि वाले मुकदमे में अपना बचाव किया है लेकिन माफी मांगने से इंकार कर दिया है. इस मामले में उनका पद दांव पर लगा है.

गिलानी ने नहीं मांगी माफीतस्वीर: Reuters

सात सदस्यों वाली बेंच ने मुकदमे की सुनवाई 1 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है. जज नसीर उल मुल्क ने गिलानी के वकील एतजाज अहसान से कहा, "हम आपकी सुनवाई 1 फरवरी को करेंगे." प्रधानमंत्री गिलानी को अगली तारीख पर अदालत में पेश होने से छूट दे दी गई है. राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा फिर से शुरू नहीं करने के कारण अदालत ने गिलानी को तलब किया.

पाकिस्तान के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब किसी पदासीन प्रधानमंत्री के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्रवाई शुरू की है. इस मामले ने पद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे प्रधानमंत्री की स्थिति और कमजोर कर दी है. यदि अवमानना के मामले में उन्हें सजा मिलती है तो पाकिस्तान में मध्यावधि चुनाव करवाने पड़ सकते हैं.

दबाव जाहिर नहीं कियातस्वीर: AP

सरकार की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री से पूछा कि उन्होंने स्विट्जरलैंड से राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार वाले मामले की जांच फिर से करने के अदालत के आदेश की तामील क्यों नहीं की. सरकार की दलील रही है कि राज्य प्रमुख के रूप में जरदारी को मुकदमों से छूट मिली हुई है. इसलिए उसने स्विस अधिकारियों को लंबे समय से चल रहे मामले को फिर से खोलने के लिए कहने के अदालत के आदेश को नहीं माना. स्विस अधिकारियों ने 2008 में जरदारी और उनकी पत्नी बेनजीर भुट्टो के खिलाफ मनी लाउंडरिग के आरोपों की जांच रोक दी थी.

अपने फैसले का बचाव करते हुए प्रधानमंत्री गिलानी ने न्यायपालिका का आदर करने की बात कही लेकिन न तो अपने फैसले के लिए माफी मांगी और न ही अपने रुख से हटे. बेंच को गिलानी ने कहा, "मैं आज यहां अदालत को अपना आदर दिखाने आया हूं. एक राष्ट्रपति के खिलाफ कार्रवाई करना जो दो तिहाई बहुमत से चुना गया है, अच्छा संदेश नहीं देगा." उन्होंने जोर देकर कहा, "हर कहीं राष्ट्रपतियों को मुकदमों से पूरी छूट है."

प्रधानमंत्री पर दबाव

सीनियर कैबिनेट मंत्रियों और सहयोगी पार्टियों के नेताओं के साथ सुप्रीम कोर्ट गए प्रधानमंत्री किसी तनाव में नहीं दिखे. वे मुस्कुरा रहे थे और बाहर इंतजार कर रहे टेलिविजन कैमरामैन की ओर हाथ हिला रहे थे. कोर्ट के बाहर सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त था. एक हेलिकॉप्टर इलाके पर चक्कर लगा रहा था.

विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमंत्री को या तो इस्तीफा देना होगा या अपने पद पर बने रहने के लिए अदालत को संतुष्ट करना होगा. सरकार पर मेमोगेट कांड में सेना और सुप्रीम कोर्ट ने भारी दबाव बना रखा है. अमेरिकी सैनिकों द्वारा ऐबटाबाद में अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारे जाने के बाद सैनिक तख्तापलट की आशंका से अमेरिका से मदद मांगे जाने के कथित मेमो पर सेना नाराज है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक जांच आयोग बिठा दिया है.

अपने रुख पर बने रहेतस्वीर: picture-alliance/dpa

प्रधानमंत्री की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ऐतजाज अहसान वकील हैं. अहसान गिलानी की पीपल्स पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और पाकिस्तान के जाने माने और सम्मानित वकील हैं. मार्च 2009 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित पाकिस्तान के स्वतंत्र जजों को फिर से बाहल करने के वकीलों के आंदोलन में अगुआ भूमिका निभाई थी.

अदालत के विकल्प

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस मामले में छह विकल्प दिए हैं, जिसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को शपथ के हनन के कारण अयोग्य घोषित करने के अलावा प्रधानमंत्री के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी शामिल है. दूसरा विकल्प राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विशेषाधिकार का ममाला उठाया जाना या फिर मामले को जनता या संसद के बेहतर फैसले पर छोड़ दिया जाना चाहिए.

जरदारी के खिलाफ आरोपों पर कार्रवाई 2007 में भूतपूर्व सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ के राजनीतिक क्षमादान के बाद रोक दी गई थी. लेकिन अदालत ने 2009 में मुशर्रफ के क्षमादान को निरस्त कर दिया था और सरकार से भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई करने की मांग की थी.भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण जरदारी को मिस्टर टेन परसेंट भी कहा जाता है और उन्होंने भ्रष्टाचार से लेकर हत्या के आरोपों में 10 साल जेल में गुजारे हैं. उनके समर्थकों का कहना है कि उन्हें किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है.

रिपोर्ट: एएफपी/महेश झा

संपादन: आभा एम

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