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आतंकवादसंयुक्त राज्य अमेरिका

दुनिया की सबसे कुख्यात जेलों में क्यों शामिल है गुआंतानामो

ओलिवर सालेत
११ जनवरी २०२२

अमेरिका में 9/11 हमले के चार महीने बाद जनवरी 2002 में अफगानिस्तान से लाए गए कैदियों की खेप कैंप एक्स-रे लाई गई. अफगानिस्तान में दो दशकों से जारी अमेरिकी युद्ध खत्म हो चुका है, मगर गुआंतानामो डिटेंशन कैंप अब भी चालू है.

Guantanamo-Häftlinge mit orangener Kleidung
गुआंतानामो के बंदियों की पहली तस्वीरतस्वीर: DOD US Navy/picture-alliance/dpa

11 जनवरी, 2002 को खींची गई यह तस्वीर गुआंतानामो स्थित कैंप एक्स-रे डिटेंशन सेंटर की है. इसमें 20 कैदी नारंगी वर्दी पहने घुटने पर बैठे दिखते हैं. ये सभी कैंप में लाए गए शुरुआती कैदी थे. 11 जनवरी, 2002 को इस कैंप की शुरुआत हुई थी. यह तस्वीर 9/11 हमलों के बाद की अमेरिका की विवादित डिटेंशन पॉलिसी से जुड़ी सबसे चर्चित तस्वीरों में गिनी जाती है.

महमदू सलाही ने जिंदगी के 14 साल जेल में बिताए. 70 दिनों तक उन्हें यातनाएं दी गईं. तीन साल तक, दिन के 18 घंटे उनसे पूछताछ की गई. गिरफ्तार किए जाने से पहले वह जर्मनी में रहते थे. शक था कि वह अल-कायदा के बड़े ऑपरेटिव हैं और 9/11 हमले में शामिल रहे हैं. ये सारे आरोप कभी सामान्य अदालत में साबित नहीं हुए. सलाही 14 साल तक गुआंतानामो के डिटेंशन सेंटर में बंद रखे गए. इस दौरान ना तो उनपर आरोप तय हुए, ना ही उन्हें दोषी मानकर सजा ही सुनाई गई. मूल रूप से मॉरितियाना के रहने वाले सलाही अब 50 साल के हो चुके हैं. मगर उनकी जिंदगी से चुरा लिए गए उन 14 सालों का उन्हें आज तक मुआवजा नहीं मिला.

डिफेंस अटॉर्नी नैन्सी हॉलेंडर के जीवन का सबसे हाई-प्रोफाइल केस आज भी उन्हें परेशान करता है. सलाही की आपबीती हाल ही में एक फिल्म की शक्ल में सामने आई. उनका अपराध यह था कि उन्होंने अफगानिस्तान स्थित एक आतंकी प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया. और, ओसामा बिन लादेन के सैटेलाइट फोन पर आए एक कॉल का जवाब दिया. यह अपराध ऐसा नहीं है कि पूरी तरह अनदेखा कर दिया जाए. मगर उनके वकीलों का कहना है कि ये उन्हें दोषी ठहराने के लिए भी पर्याप्त नहीं है.

सलाही की आपबीती अकेली नहीं है

गुआंतानामो के साथ ऐसी कई आपबीतियां जुड़ी हैं. नैन्सी हॉलेंडर बताती हैं कि गुआंतानामो के माध्यम से अमेरिका की जो तस्वीर सामने आती है, वह ऐसे देश की है जो कानून-व्यवस्था का सम्मान नहीं करता है. हॉलेंडर इसे बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति मानती हैं. यह बात केवल उन 13 लोगों पर ही लागू नहीं होती, जो बिना आरोप तय किए वहां बंद रखे गए हैं और सालों से रिहा किए जाने की राह देख रहे हैं. यह बात 9/11 हमलों के उन कथित आरोपियों पर भी लागू होती है, जिनके लिए शब्द चलता है, ताउम्र कैदी. हमले के 20 साल बाद भी ये लोग मुकदमा शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं.

फिल्म मॉरितेनियन में महमदू सलाही की भूमिका तहर रहीम ने निभाई हैतस्वीर: Graham Bartholomew/tobis Film/dpa/picture alliance

डाफने इविएटर, एमनेस्टी इंटरनेशनल में गुआंतानामो की विशेषज्ञ हैं. उनका कहना है कि इस प्रक्रिया को कानूनी दायरे के मुताबिक न करना कोई भूल नहीं थी. बल्कि पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन का यही मकसद था. वह कहती हैं, "बुश प्रशासन ने विदेश में जेल बनाई ही इसलिए थी कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की कानूनी व्यवस्था से बचा जा सके."

जानबूझकर न्याय व्यवस्था को अटकाया गया

डाफने इविएटर ने एमनेस्टी की एक रिपोर्ट में गुआंतानामो के भीतर हुए मानवाधिकार उल्लंघनों की निंदा की थी. इस रिपोर्ट में बिना आरोप तय किए अनिश्चितकालीन समय तक हिरासत में रखे जाने से जुड़े मामलों का ब्योरा दर्ज है. साथ ही, कैदियों को दी गई यातनाओं की भी जानकारी है. हालांकि इन आरोपों की पुष्टि के लिए सार्वजनिक तौर पर कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. लेकिन डाफने इविएटर बताती हैं कि अमेरिकी सीनेट की इंटेलिजेंस कमिटी द्वारा की गई जांच समेत और कई जांचों में यह दर्ज हो चुका है कि गुआंतानामो में किस तरह दर्जनों कैदियों को क्रूर यातनाएं दी गईं.

क्यूबा स्थित गुआंतानामो बे में बना अमेरिकी नौसेना का अड्डा 100 साल से ज्यादा पुराना है. मगर 9/11 हमलों के कुछ महीनों बाद जनवरी 2002 में यहां एक डिटेंशन सेंटर शुरू किया गया. यह सेंटर काफी कुख्यात है. एंथनी नटाले अल-कायदा के आरोपी ऑपरेटिव अब्दल-रहीम अल-नशीरी के वकील हैं. गुआंतानामो पर निराशा जताते हुए वह कहते हैं, "हम शर्मिंदा हैं कि वे सारी बातें जिन्होंने हमारे देश को यूं गढ़ा कि हम इसे आजाद मुल्क कह सकें, जहां हर व्यक्ति के लिए समान न्याय का प्रावधान है, उसी देश ने उन आदर्शों से मुंह मोड़ लिया."

डीडब्ल्यू को गुआंतानामो में क्या दिखा?

गुआंतानामो को देखना आसान नहीं है. इसे देखने के इच्छुक पत्रकारों को कई मुश्किलों से पार पाना होता है. मसलन, वॉशिंगटन से उड़ान भरने वाले साप्ताहिक चार्टर विमानों को क्यूबा के हवाईक्षेत्र से होकर गुजरने की इजाजत नहीं है. विमानों को पहले पूरब की ओर क्यूबा का चक्कर लगाना होगा. जब तक विमान नीचे उतरने के लिए सीधा रनवे की ओर न बढ़े, तब तक उसे मिलिटरी बेस की ओर बढ़ने की अनुमति नहीं होगी.

अब्द अल रहीम अल नशीरी को यूएसएस कोल पर हमले का संदिग्ध मास्टरमाइंड माना जाता हैतस्वीर: AP

डीडब्ल्यू को कई हफ्तों तक चली सुरक्षा जांच के बाद बहुत शॉर्ट नोटिस पर यहां जाने की इजाजत मिली. रवाना होने से पहले कई नियमावलियों पर दस्तखत लिए गए. इससे पत्रकारों को गुआंतानामो के स्वभाव का संकेत मिल सकता है. वहां अपनी मर्जी से कहीं आने-जाने की इजाजत नहीं है. न ही प्रेस की स्वतंत्रता ही है. हमें जेल को बाहर से देखने तक की अनुमति नहीं दी गई. डिटेंशन सेंटर के भीतर की सारी जानकारियां बेहद गोपनीय रखी जाती हैं. यह प्रक्रिया यहां कैद लोगों के वकीलों के लिए बेहद खिझाने वाली है.

11 जनवरी गुआंतानामो डिटेंशन सेंटर की क्रूर वर्षगांठ है. यह तारीख सवाल उठाती है कि इस सेंटर में हो रहे मानवाधिकार और कानूनी प्रक्रिया के स्पष्ट उल्लंघन के बावजूद इसे आज तक बरकरार क्यों रखा गया है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ चली अमेरिका की लंबी लड़ाई अब खत्म हो चुकी है. अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान से लौट चुकी हैं. अफगानिस्तान का युद्ध ही इस डिटेंशन सेंटर के अस्तित्व को बनाए रखने का आधार बताया जाता था.

टलती रहीं सेंटर बंद करने की योजनाएं

गुआंतानामो डिटेंशन सेंटर को बंद किए जाने की शुरुआती योजना जॉर्ज बुश प्रशासन के आखिरी दिनों में बनी. बराक ओबामा ने कई बार इसे बंद करने का वादा किया. मगर अमेरिकी कांग्रेस में उनकी डेमोक्रैटिक पार्टी का बहुमत चला गया. रिपब्लिकिन बहुमत ने एक कानून पास कराया. इसकी व्याख्या करते हुए नैन्सी हॉलेंडर कहती हैं कि इस कानून के मुताबिक, ऐसा कोई इंसान जो गुआंतानामो में कैद रहा हो, किसी भी वजह से अमेरिका में दाखिल नहीं हो सकता है. फिर चाहे ट्रायल हो, या कोई मेडिकल जरूरत. नैन्सी बताती हैं कि इस कानून के चलते गुआंतानामो के कैदियों को अमेरिका लाना कानूनी तौर पर असंभव हो जाता है.

पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने नीति में बदलाव लाते हुए ऐलान किया कि गुआंतानामो चालू रहेगा. रिपब्लिकन पार्टी के मुताबिक, गुआंतानामो आतंकवादी हमलों के खतरे से अमेरिका की सुरक्षा करता है. यहां बंद लोगों को अमेरिका में शिफ्ट करना बहुत खतरनाक होगा. जबकि गुआंतानामो के विरोधियों का तर्क है कि इस डिटेंशन सेंटर की मौजूदगी भी युवा मुसलमानों को कट्टरपंथ की ओर मोड़ रही है.

बचाव पक्ष की वकील नैन्सी हॉलेंडरतस्वीर: Stefanie Loos/AFP/dpa/picture alliance

गुआंतानामो से जुड़ी नीति में अगला बदलाव वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन के दौर में आया है. बाइडेन ने कार्यकाल संभालने के बाद अपनी प्रवक्ता के द्वारा ऐलान करवाया कि वह राष्ट्रपति रहते हुए इस कैंप को बंद करने की योजना बना रहे हैं. लेकिन इस मसले पर हुई अमेरिकी सीनेट की इंटेलिजेंस कमिटी की हालिया मीटिंग में बाइडेन प्रशासन का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था. इस घटनाक्रम से पता चलता है कि सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं. नैन्सी कहती हैं कि सरकार अभी तक अपने कहे पर अमल करती हुई दिखाई नहीं दे रही है.

सबूतों की कमी के बावजूद कैद रखना

बाइडेन प्रशासन का इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम नाकाम रहा है. मिडटर्म चुनाव पास आ रहे हैं. बाइडेन प्रशासन के आगे अभी गुआंतानामो से बड़ी समस्याएं हैं. इस डिटेंशन सेंटर का भविष्य अभी अनिश्चित लग रहा है. कुछ कैदी रिहा किए जा सकते हैं. बाकियों को उनके-उनके देश वापस भेजा जा सकता है. डाफने इविएटर कहती हैं कि उन्हें भविष्य से उम्मीदें हैं. फिर इस वाक्य में वह जोड़ती हैं, "लेकिन जैसे-जैसे कैदियों की संख्या घटेगी, स्पष्ट होता जाएगा कि यह सब कितना अतार्किक और निरर्थक था."

यह भी स्पष्ट है कि इस मामले में नैतिक कारणों के अलावा आर्थिक पहलू भी शामिल है. गुआंतानामो में बंद एक कैदी पर अमेरिकी करदाताओं का सालाना करीब 1.3 करोड़ डॉलर खर्च होता है. अगर इन्हें अमेरिका में कैद रखा जाए, तो खर्च कम आएगा. मगर यह इस मसले का समाधान नहीं है.

नैन्सी हॉलेंडर मांग करती हैं कि यहां बंद लोगों को तत्काल रिहा किया जाए. उनका कहना है, "हम बिना आरोप तय किए लोगों को 20-20 साल तक कैद नहीं रख सकते हैं. अमेरिका का कहना है कि उसके पास इन कैदियों पर आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं, लेकिन उन्हें इतना पता है कि ये लोग खतरनाक हैं." गुआंतानामो के भविष्य का सवाल अब केवल तर्क की कसौटी पर हल नहीं हो सकता है. यह मसला एक राजनैतिक मोहरा बन गया है. इसके साये तले गुआंतानामो में बंद कैदी 20 साल से मुकदमा शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं.

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