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गुप्त रास्तों से जीवाश्म ईंधन में पैसे लगा रहे हैं अमीर देश

३० जनवरी २०२०

एक नए विश्लेषण से पता चला है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रण के बावजूद कई अमीर देश तेल, गैस और कोयले की परियोजनाओं में सालाना 30 अरब डॉलर तक की धनराशि खर्च कर रहे हैं.

Braunkohle
तस्वीर: Imago Images/Panthermedia/P. Barz

एक नए विश्लेषण से पता चला है कि कई अमीर देश सरकारी समर्थन प्राप्त वित्तीय संस्थानों के जरिए हर साल 30 अरब डॉलर की धनराशि जीवाश्म ईंधन की परियोजनाओं में लगा रहे हैं, जो पेरिस संधि के खिलाफ है. इस विश्लेषण में बताया गया है कि जी20 देशों की एक्सपोर्ट क्रेडिट एजेंसियां (ईसीए) इस समय अपने अपने देशों की सीमाओं से बाहर अक्षय ऊर्जा की योजनाओं के मुकाबले तेल, गैस और कोयले की परियोजनाओं में 10 गुना ज्यादा सरकारी पैसा लगा रही हैं. पेरिस संधि के तहत इस तरह की परियोजनाओं से होने वाले उत्सर्जन की गिनती डोनर देश के कार्बन पदचिन्ह में नहीं होती. ईसीए सार्वजनिक संस्थाएं होती हैं जो दूसरे देशों में कंपनियों को सरकारी समर्थन प्राप्त ऋण और बीमा उपलब्ध कराती हैं. 

बाजार पर निगरानी रखने वाले 'ऑयल चेंज इंटरनैशनल' और 'फ्रेंड्स ऑफ दि अर्थ अमेरिका' ने दिखाया है कि 2015 की पेरिस संधि के बाद से अब तक, जी20 देशों ने कोयले की परियोजनाओं के लिए जितना पैसा दिया है उसकी करीब एक प्रतिशत पूंजी पेरिस संधि के राडार के नीचे ईसीए के जरिए लगाई गई है.

 

जर्मनी में स्थित कोयले से बिजली बनाने वाला एक पावर प्लांट.तस्वीर: Getty Images/L. Schulze

ये संधि पर हस्ताक्षर के शुरूआती सालों में लगभग सात अरब डॉलर सालाना के बराबर है. ऑयल चेंज के एक समीक्षक ब्रॉनवेन टकर का कहना है, "ये किसी भी सरकार के लिए लापरवाही और निंदा का विषय है कि वो अभी भी जनता की पूंजी से अरबों डॉलर तेल, गैस और कोयले पर खर्च कर रही है." उन्होंने ये भी कहा, "जब जीवाश्म ईंधन के लिए आने वाले ये पैसे उन सरकारों से आते हैं जो ऐतिहासिक रूप से जलवायु संकट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं तब ये और भी दुखदाई हो जाता है."

विश्लेषण में विशेष रूप से चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और कनाडा को सबसे बड़े दोषियों में से बताया गया है, जिन्होंने साथ मिलकर 2016 से 2018 के बीच जीवाश्म ईंधन को जी20 द्वारा मिले समर्थन की 78 प्रतिशत पूंजी दी. विश्लेषण में कहा गया है, "जलवायु आपातकाल के बावजूद, ईसीए जीवाश्म ईंधनों पर कई गुना ज्यादा खर्च कर रहे हैं." ये भी कहा गया है, "जापान में ईसीए कोयले की नई परियोजनाओं को समर्थन दे रहा है; कनाडा में ईसीए टार की रेत में पूंजी लगा रही है और कई ईसीए उत्तरी मोजाम्बिक और दूसरी जगहों पर एलएनजी को समर्थन देने के अवसर के लिए आतुर हो रहे हैं."

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में सालाना 7.6 प्रतिशत की गिरावट लाई जाए तभी पेरिस संधि के तहत निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की सीमा को हासिल करना संभव हो पाएगा. लेकिन हो ये रहा है कि ऊर्जा की मांग बढ़ने के साथ साथ जीवाश्म ईंधनों से उत्सर्जन हर साल बढ़ रहा है. टकर ने कहा, "ईसीए ऐसी चीज है जिसके बारे में लगभग किसी ने नहीं सुना है, लेकिन सरकारी वित्त संस्थान होने के नाते वो व्यापारिक रणनीतियों में सरकारों की मदद करते हैं और अलग अलग देश उनके इर्द गिर्द अपने निवेशों को छिपा सकते हैं." टकर ने बताया, "अधिकतर ईसीए के लिए धनराशि सरकारी खजाने से आती है. लेकिन ये ऋण पात्रता के लिहाज से निजी उपक्रमों के लिए एक अलग ही भूमिका निभाते हैं. इन्हें सरकार का समर्थन प्राप्त होता है और इनकी क्रेडिट रेटिंग कहीं ज्यादा होती है. इस वजह से उनकी गारंटी का मूल्य ज्यादा है".

सीके/आरपी (एएफपी)

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