गुलबर्ग सोसाइटी केस की सुनवाई करते हुए विशेष एसआईटी कोर्ट ने 24 लोगों को दोषी करार दिया, तो वहीं एक बीजेपी नेता समेत 36 लोगों को मामले से बरी किया. 6 जून को सुनाई जानी है सजा.
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2002 में हुए गुजरात के गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड पर स्पेशल एसआइटी कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए दो दर्जन लोगों को दोषी जबकि 36 लोगों को बेगुनाह करार दिया है. कोर्ट ने जिन 36 लोगों को बरी किया है उनमें एक पुलिस इंस्पेक्टर और भाजपा नेता बिपिन पटेल शामिल है. आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया गया. दोषियों को 6 जून को सजा सुनाई जानी है.
फरवरी 2002 में गुजरात के गोधरा कांड के बाद उत्तेजित भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी पर धावा बोल कर बहुत से लोगों की हत्या कर डाली थी. इस सोसायटी में रहने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी समेत 69 मुसलमानों को जला कर मार डाला गया था. इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप एक स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर समेत कुल 61 लोगों पर लगा था. इनमें से केवल नौ लोग जेल में बंद हैं.
गुलबर्ग सोसायटी कांड में मारे गए कांग्रेस नेता जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की अपनी अर्जी में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई लोगों पर आरोप लगाया था. स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम, एसआईटी ने मार्च 2010 को नरेंद्र मोदी ने लंबी पूछताछ की जिसमें मोदी ने उन पर लगाए गए आरोपों से इंकार किया था. इस मामले में एसआईटी कोर्ट के फैसले पर जाकिया जाफरी ने असंतोष जाहिर किया है. जाफरी ने कहा कि यह आधा न्याय है, जिसे मिलने में भी 14 साल लग गए.
जज पीबी देसाई ने अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में हुए इस हत्याकांड पर फैसला सुनाते हुए कहा कि वह घटना "एक औचक हमला था, कोई सोची समझी आपराधिक साजिश नहीं" थी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम को 2002 के गुजरात दंगों में गुलबर्ग कांड समेत नौ और मामलों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी है.
27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में अयोध्या से वापसी की यात्रा कर रहे 58 हिंदू कारसेवकों को ट्रेन के डिब्बे में ही जला कर मार डाला गया था. इस हत्याकांड के लिए मुसलमानों पर उंगली उठी और इसी गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में तीन दिन तक चली सांप्रदायिक हिंसा में 1,000 से भी अधिक मुसलमानों की जान ले ली गई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी पर देश और दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन इन दंगों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम ना उठाने का आरोप लगाते रहे हैं. 2012 में मोदी को भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों से दोषमुक्त घोषित कर दिया था.
विभिन्नता में एकता
दुनिया के तमाम धर्मों में भोजन और उपवास से जुड़ी अलग अलग मान्यताएं हैं. हिंदुओं का व्रत, मुसलमानों का रोजा, ईसाइयों और यहूदियों का उपवास तो बौद्ध धर्म में खाने में भी संतुलन का अभ्यास. मकसद एक - शारीरिक और मानसिक शुद्धि.
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नश्वरता की याद
एश वेडनसडे के साथ ही कार्निवाल खत्म होता है और कैथोलिक ईसाइयों के लिए उपवास के समय की शुरुआत होती है. ईस्टर तक कुल 46 दिन. राख का यह क्रॉस नश्वरता की याद दिलाता है.
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त्याग का अभ्यास
कई धर्मों में उपवास का नियम होता है. कोशिश होती है कि स्वादिष्ट खाने से मन हटा कर भगवान में लगाया जाए और उसके नजदीक जाया जाए. ईसाई धर्म में उपवास ईसा मसीह के उपवास की याद दिलाता है.
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अल्लाह का आदेश
इस्लाम में रमजान के दौरान उपवास किए जाते हैं. इस दौरान इस्लाम को मानने वाले सूरज निकलने के बाद और डूबने से पहले कुछ नहीं खा, पी सकते. यौन संबंधों पर भी रोक होती है. इस उपवास का उद्देश्य होता है अल्लाह के नजदीक पहुंचना.
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हिंदू व्रत
हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों में व्रत की लंबी परंपरा है. यह कोई वार हो सकता है, भगवान हो सकता है या फिर एकादशी या चतुर्थी. लोग अक्सर उपवास के लिए बनाए जाने वाले खास पदार्थ खाते हैं... जैसे साबुदाना, आलू की सब्जी या फिर दही... कड़े उपवास भी नवरात्री के दौरान किए जाते हैं.
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यहूदियों में उपवास
यहूदी लोग भी उपवास करते हैं. योम किपुर उत्सव के दौरान खाने, पीने और धूम्रपान पर भी रोक है. नहाना भी नहीं और शारीरिक संबंध भी नहीं. काम भी नहीं करना. इसके अलावा यहूदी इतिहास को याद दिलाने वाले उपवास के दिन भी होते हैं.
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त्याग करो
जर्मनी में उपवास अब लोग बिना धार्मिक कारण से भी करने लगे हैं. वह स्वास्थ्य, फिटनेस के लिए उपवास करते हैं. कुछ अल्कोहल छोड़ते हैं, तो कुछ मिठाई या मांसाहार. जबकि कुछ लोग मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर से परहेज करने की कोशिश करते हैं.
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मदद करें
कैथोलिक संगठन मिसेरेओर उपवास के दौरान दान का अभियान चलाता है. इस बार अभियान का टाइटल है हम भूख से तंग आ गए हैं. इसके जरिए दुनिया भर में भूखमरी से जूझ रहे 87 लाख लोगों के लिए धन इकट्ठा किया जाएगा.
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आत्मशुद्धि
स्वास्थ्य के लिए उपवास यानी कम से कम कैलोरी वाला भोजन लेना. चाहे उसमें सिर्फ जूस हो, छाछ हो या कुछ और. लेकिन इस तरह के उपवास के लिए काफी किताबें बाजार में हैं
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बिन भगवान ध्यान
उपवास के दौरान तरह तरह के ऑफर होते हैं. कुछ होटलों में खास पोषक भोजन बनाया जाता है तो कहीं योग या पेंटिंग के कोर्स होते हैं. शारीरिक शुद्धि के साथ आत्मा की शुद्धि पर भी जोर.
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संतुलित जीवन
बौद्ध धर्म में न तो भूखा रहना चाहिए और न ही बहुत खाना चाहिए. पर कम खाना ध्यान के लिए अच्छा.