कभी बंधुआ मजदूर रहे तीन लोगों का ग्राम पंचायत के लिए चुना जाना भारत के उन लाखों लोगों की जिंदगी बदलने वाला साबित हो सकता है, जो कर्ज चुकाने के लिए गुलाम बनाए जाते हैं. कम से कम विशेषज्ञ तो यही मान रहे हैं.
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तेलंगाना के पंचायत चुनाव में तीन ऐसे लोग चुन कर आए हैं जो पहले बंधुआ मजदूर थे. इनमें एक विजेता हैं दक्षिण तेलंगाना की 40 साल की कुदुमुला देवम्मा. देवम्मा को दो दशक तक मछुआरों के बीच बंधुआ मजदूरी करनी पड़ी ताकि पति और ससुर के लिए कर्ज की भरपाई हो सके.
100 से ज्यादा मजदूरों को हर रोज अपनी पकड़ी हुई मछलियां उन परिवारों को बेचनी पड़ती थीं जिनके नाव होते थे. नाव के मालिक उन्हें जबरन गांव में रोक कर रखते और इनमें से कई तो ऐसे थे जो तीन पीढ़ियों से इनकी गुलामी झेल रहे थे. 2016 में इन लोगों को मुक्त कराया गया. देवम्मा कहती हैं, "यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में मैं सपना भी नहीं देख सकती थी. मेरी प्राथमिकता है मेरे समुदाय की स्थिति को बेहतर करना और उन्हें आजाद रहने में मदद देना."
दुनिया में 4 करोड़ लोग अब भी गुलाम
दुनिया हर रोज तरक्की के नये आयाम स्थापित कर रही है, विज्ञान भी प्रगति कर रहा है लेकिन अब भी दुनिया भर में तकरीबन 4 करोड़ लोग गुलामों की तरह जिंदगी बिता रहे हैं.
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कैसी है गुलामी
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और वॉक फ्री फाउंडेशन ने इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ माइग्रेशन (आईओएम) के साथ मिलकर एक स्टडी की है जिसके मुताबिक दुनिया में 2.5 करोड़ लोग बेगारी करने के लिए मजबूर हैं तो वहीं 1.5 करोड़ लोग जबरन शादियों में जीवन बिता रहे हैं.
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बाजार तक पहुंच
रिपोर्ट के मुताबिक लगभग डेढ़ से ढाई करोड़ लोग निजी क्षेत्रों में बेगारी करने के लिए मजबूर हैं. निजी क्षेत्रों में ऐसे लोग निर्माण कार्य, कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बेगारी से जूझते इन मजदूरों की सेवाएं और इनकी बनाई वस्तुयें बाजार में वैध चैनलों के जरिये पहुंचती हैं.
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हमारे ही आसपास
रिपोर्ट की मानें तो जो भोजन हम कर रहे हैं, जो कपड़े हम पहन रहे हैं इन्हें भी ये मजदूर तैयार कर रहे हैं. यहां तक कि हमारे आस-पास की इमारतों में भी ये साफ-सफाई का काम करते हैं.
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एशिया, अफ्रीका और अरब देश
बेगारी और जबरन विवाह जैसे मामले अफ्रीका और एशिया प्रशांत क्षेत्र में अधिक सामने आते हैं. डाटा की कमी के चलते अरब देशों की स्थिति का ठीक-ठीक ब्यौरा नहीं मिलता लेकिन आशंका है कि इस क्षेत्र में गुलामी में जीवन बिता रहे लोगों की संख्या अधिक भी हो सकती है.
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बेगारी बनी मजबूरी
ऋण न चुका पाने वाले आधे से अधिक लोग बेगारी करने के लिए मजबूर हैं. वहीं तकरीबन 40 लाख लोग प्रशासनिक दवाब के चलते बेगारी कर रहे हैं. रिपोर्ट मानव तस्करी और अवैध आप्रवासियों की भी चर्चा करती है साथ ही आप्रवासन नीतियों को बेहतर बनाने पर जोर देती है.
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पीड़ित वर्ग
जबरन विवाह की शिकार अधिकतर लड़कियां और महिलाएं बलात्कार पीड़ित और मानव तस्करी का शिकार हैं. इनमें से कुछ घरेलू कामकाज करने के लिए मजबूर हैं, वहीं तकरीबन 40 लाख लोग और 10 लाख से भी अधिक बच्चे यौन शोषण का शिकार हैं.
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बच्चों के खराब हालात
इसके पहले आईएलओ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि दुनिया में 5-17 साल के तकरीबन 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम से पीड़ित हैं. इनमें से एक तिहाई बच्चे शिक्षा से वंचित हैं तो 38 फीसदी बच्चे खतरनाक जगहों पर काम कर रहे हैं.
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भारत के खेतों, ईंट के भट्ठों, चावल की मिलों और कोठों में आज भी लाखों लोग बंधुआ मजदूरी करते हैं ताकि कर्ज चुका सकें. इनमें से ज्यादातर अनपढ़ हैं, इनके पास कोई हिसाब किताब नहीं, इन्हें बहुत मामूली मजदूरी मिलती है और ये नहीं जानते कि उनका कर्ज कब चुकता होगा.
भारत में गुलाम बनाने की प्रथा बहुत पहले से थी लेकिन 1976 में ही इस पर रोक लगा दी गई हालांकि अब भी बहुत से लोग इसका दंश झेल रहे हैं.
कर्ज चुकाने के लिए गुलाम बनाए गए लोगों में से दो और लोग भी इसी इलाके में पंचायत के लिए चुने गए हैं. 2016 में भारत ने एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की जिसके तहत 1.8 करोड़ बंधुआ मजदूरों को 2030 तक मुक्त कराने का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि सिर्फ आजादी मिलने भर से ही कभी गुलाम रहे इन लोगों की मुश्किलें खत्म नहीं होंगी. ज्यादातर छुड़ाए गए मजदूर "गुलामी की मानसिकता" से जूझ रहे हैं. वो इतने भयभीत हैं कि प्रताड़नाओं से भी इनकार करते हैं. इनसे बात करने वाले काउंसलरों का कहना है कि इनके मन में फिर से पकड़े जाने का डर लगातार बना हुआ है और इसलिए ये उनकी शिकायत नहीं करना चाहते.
बंधुआ मजदूरों को छुड़ाने के लिए काम करने वाले एक समाज सेवी संगठन के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर सीएच वासुदेव राव कहते हैं, "इन पुरुषों और महिलाओं ने जो हासिल किया है वह बड़ी उपलब्धि है और इससे यहां की तस्वीर बदल सकती है. गुलामी से निकल कर नेता बनने की इन लोगों की यात्रा प्रेरणादायी है...आज की जीत ने इलाके के दूसरे लोगों के पुनर्वास को तेज करने का एक शानदार अवसर पैदा किया है."
2017 में कहां कितने गुलाम
दुनिया में दासता आज भी जारी है. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक आज भी तीन करोड़ 58 लाख आधुनिक गुलाम हैं. बीते एक साल में शीर्ष 10 देशों की कतार में कई नए देश शामिल हुए हैं. भारत यहां सबसे ऊपर दिखता है.
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नंबर 10, इंडोनेशिया
इंडोनेशिया में सात लाख से ज्यादा लोग गुलाम हैं. यह शीर्ष के 10 देशों में इसी साल शामिल हुआ है.
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नंबर 9, डीआर कांगो
इस अफ्रीकी देश में एक साल के भीतर दासों की संख्या दोगुनी हो गई है अब यहां 8 लाख से ज्यादा गुलाम हैं.
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नंबर 8, नाइजीरिया
यहां 8 लाख 75 हजार गुलाम हैं.
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नंबर 7, रूस
दुनिया की ताकत बनने को लड़ते रूस में 10 लाख गुलाम हैं.
देश की 1.13 फीसदी आबादी यानी करीब 21 लाख 34 हजार लोग गुलाम हैं.
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नंबर 2, चीन
दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में 33 लाख गुलाम हैं. आबादी के लिहाज से 0.247 फीसदी.
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नंबर 1, भारत
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एक करोड़ 83 लाख लोग गुलाम हैं. ये भारत की कुल आबादी का 1.4 फीसदी है.
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बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अभियान चला रहे लोगों को उम्मीद है कि इस जीत से आधुनिक युग की गुलामी के बारे में लोगों की जगरूकता बढ़ेगी. मुक्त कराए गए लोगों तक सरकार की मुआवजे, घर और रोजगार वाली योजनाओं का पहुंचना आसान होगा. खासतौर से ग्राम पंचायतों के जरिए.
उत्तर बिहार के इलाके से 2014 में रेणु देवी को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया गया. 2017 में उन्होंने अपने "मालिक" के उम्मीदवार को पंचायत के चुनाव में हरा दिया. इसके बाद उन्होंने पहला काम यह किया कि अपने इलाके को राज्य के बाकी हिस्से से जोड़ने वाली सड़क बनवाई.
स्थानीय स्तर पर मानव तस्करी से लड़ने वाली एक समाजसेवी संस्था के प्रोग्राम कॉर्डिनेटर जाहिद हुसैन कहते हैं, "गुलामी से मुक्त हुए किसी मजदूर में बोलने का भरोसा पैदा करने के लिए 'महीनों की ट्रेनिंग' की जरूरत पड़ती है." हुसैन बताते हैं, "जब मैं पहली बार रेणु देवी से मिला तो वो इतनी डरी हुई थीं कि कुछ बोल भी नहीं पाती थीं. अब वो काफी बोल्ड हो गई हैं."