गृह मंत्रालय ने सभी कंप्यूटरों की निगरानी की इजाजत दी
२१ दिसम्बर २०१८
एक गंभीर फैसले में सरकार ने 10 खुफिया व जांच एजेंसियों और दिल्ली पुलिस को 'किसी भी कंप्यूटर' में तैयार, ट्रांसमिट, प्राप्त या संग्रहित 'किसी भी सूचना' को इंटरसेप्ट करने, निरीक्षण करने और डिक्रिप्ट करने की इजाजत दी है.
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गृह सचिव राजीव गौबा की ओर से जारी आदेश के अनुसार,संबंधित विभाग, सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर में आदान-प्रदान किए गए, प्राप्त किए गए या संग्रहित सूचनाओं को इंटरसेप्ट, निगरानी और डिक्रिप्ट करने का अधिकार देता है."
यह 10 एजेंसियां खुफिया ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (केवल जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं.
अधिसूचना में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि किसी भी कंप्यूटर संसाधन के प्रभारी सेवा प्रदाता या सब्सक्राइबर इन एजेंसियों को सभी सुविधाएं और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य होंगे. इस संबंध में कोई भी व्यक्ति या संस्थान ऐसा करने से मना करता है तो 'उसे सात वर्ष की सजा भुगतनी पड़ेगी.'
सरकार की ओर से इस आदेश को जारी करने के बाद कांग्रस और अन्य पार्टियों ने कड़ा एतराज जताया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, "इस बार, निजता पर हमला."
सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, "मोदी सरकार खुले आम निजता के अधिकार का हनन कर रही है और मजाक उड़ा रही है. चुनाव में हारने के बाद, अब सरकार कंप्यूटरों की ताका-झाकी करना चाहती है? एनडीए के डीएनए में बिग ब्रदर का सिंड्रोम सच में समाहित है."
कांग्रेस के अन्य नेता अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा, "इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को सीधे मंजूरी देना नागरिकों के अधिकारों और निजी स्वतंत्रता पर सीधा हमला है."
एआईएमआईएम के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन औवैसी ने कहा, "मोदी ने हमारे संचार पर केंद्रीय एजेंसियों द्वारा निगरानी रखने के लिए एक साधारण सरकारी आदेश का प्रयोग किया है. कौन जानता था कि जब वे 'घर घर मोदी' कहते थे तो इसका यह मतलब था."
(सरकार फेसबुक से क्यों मांग रही है डाटा)
सरकार फेसबुक से क्यों मांग रही है डाटा
सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने अपनी ट्रांसपैरेंसी रिपोर्ट में कहा है कि भारत सरकार ने कंपनी से साल 2017 में पिछले साल के मुकाबले 55 फीसदी अधिक डाटा मांगा. डाटा मांगने में अमेरिका के बाद भारत दूसरे स्थान पर है.
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एकाउंट्स का जानकारी
फेसबुक की रिपोर्ट में साल 2017 की पहली छमाही का डाटा पेश किया गया है. इसके मुताबिक सरकार ने जनवरी-जून की अवधि में 9853 हजार एकाउंट्स की जानकारी मांगी. साल 2016 के मुकाबले इस मांग में 55 फीसदी का इजाफा हुआ है. पिछले साल यह मांग तकरीबन 6 हजार पर थी.
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बढ़ रही मांग
वहीं साल 2016 की दूसरी छिमाही में जुलाई से दिसंबर के दौरान तकरीबन 7200 एकाउंट्स का डाटा मांगा गया था. इससे साफ जाहिर है कि डाटा को लेकर सरकार की ओर से मांग लगातार बढ़ी है.
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क्यों मांगी जानकारी
फेसबुक के मुताबिक भारत सरकार की ओर से कुल 9690 डाटा आवेदन कानूनी मामलों से जुड़े थे. इसके चलते 13 हजार यूजर्स के एकाउंट का एक्सेस भी मांगा गया. इसके अलावा सरकारी एजेंसियों ने 163 डाटा अनुरोध, इमरजेंसी में किये थे. साथ ही 262 डाटा एकाउंट का एक्सेस मांगा था.
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आपराधिक मामले
फेसबुक को तमाम ऐसे अनुरोध भी प्राप्त हुए जिसमें किसी एकाउंट को सुरक्षित रखे जाने की बात कही गयी थी. ये अनुरोध आपराधिक मामलों की जांच से जुड़े थे. फेसबुक ने बताया कि उसे 1166 एकाउंट को सुरक्षित रखने और 1629 यूजर्स के एकाउंट का एक्सेस का अनुरोध मिला.
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अमेरिका सबसे आगे
जानकारी मांगने में भारत, अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है. अमेरिकी सरकार ने इस दौरान तकरीबन 32 हजार एकाउंट का डाटा और करीब 52 एकाउंट का एक्सेस मांगा. वहीं ब्रिटेन इस सूची में तीसरे स्थान पर है. ब्रिटेन ने 6 हजार यूजर का डाटा मांगा और तकरीबन 8 हजार एकाउंट का एक्सेस.
सामग्री से जुड़ी मांग
कंटेट से जुड़ी मांग फेसबुक के पास भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आने वाली एजेंसी, कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी) और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की ओर से आई. फेसबुक का कहना है कि मानहानि के स्थानीय कानूनों व धर्म कानूनों का उल्लंघन करने वाली सामग्री के मामले में अधिकतर बार ये अनुरोध उसे प्राप्त हुए.