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आज मुलायम-मायावती 24 साल बाद साथ दिखाई दिए

ऋषभ कुमार शर्मा
१९ अप्रैल २०१९

मुलायम-मायावती ने 1993 के चुनाव में साथ मिल कर बीजेपी को सत्ता हासिल नहीं करने दी थी. लेकिन इसके बाद जो हुआ वो भारतीय राजनीति का एक काला अध्याय है. आज 24 साल बाद मुलायम मायावती फिर से साथ दिखाई दिए हैं.

Indien BSP Politikerin Mayawati
तस्वीर: Ians

4 दिसंबर, 1993. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नए मुख्यमंत्री की शपथ का कार्यक्रम चल रहा था. मुख्यमंत्री के समर्थक नारे लगा रहे थे- मिल गए मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम. शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री का नाम था मुलायम सिंह यादव. वो दूसरी बार सूबे के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे. जो नारे लगाए जा रहे थे उनके पीछे एक पूरी कहानी थी. इस शपथ से लगभग एक साल पहले राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे. 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. इसके बाद केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से भाजपा की सरकारों को बर्खास्त कर दिया. 1991 के विधानसभा चुनाव में भाजपा राम मंदिर के नाम पर ही चुनाव जीतकर आई थी.

1991 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव, चंद्रशेखर की पार्टी में थे. 1992 में  उससे अलग होकर उन्होंने समाजवादी पार्टी बना ली. 1984 में दलित नेता कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी बनाई थी. कांशीराम उत्तर प्रदेश में दलितों के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित हो गए थे. बाबरी मस्जिद टूटने के बाद भारत में अलग-अलग जगहों पर दंगे हुए. इनसे ध्रुवीकरण का माहौल बन गया. नवंबर, 1993 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में सपा और बसपा ने गठबंधन कर उतरने का फैसला किया. भाजपा राम लहर पर सवार थी तो सपा-बसपा दलित और पिछड़ों के मुद्दे लेकर चुनाव में उतरे. नतीजों में भाजपा को नुकसान हुआ. पिछले चुनाव में 221 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार 177 सीटें मिलीं. सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिलीं. सपा-बसपा ने कांग्रेस और जनता दल से गठबंधन कर सरकार बना ली. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए और मिल गए मुलायम-कांशीराम का नारा बन गया. तय हुआ कि सपा-बसपा बारी-बारी से सरकार चलाएंगे. इसलिए बसपा इस सरकार में शामिल नहीं हुई.

मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कांशीराम की कई मूर्तियां भी लगवाई थीं.तस्वीर: DW

1994 की शुरुआत से ही कांशीराम अस्वस्थ रहने लगे. उन्होंने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. मायावती ने दलितों के बीच तेजी से पहचान बनाई थी. उनकी लोकप्रियता के चलते वो भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजरें जमाए हुईं थीं. सदन में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद विपक्ष में बैठी भाजपा भी मायावती को समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का सपना दिखाती रहती थी. मुलायम भी मायावती की राजनीतिक हसरतों से वाकिफ थे. ऐसे में वो भी बसपा के विधायकों को तोड़ने की कोशिश करते रहते थे.

कांशीराम बीमार रहते थे लेकिन वो मायावती और बसपा के भविष्य को लेकर चिंतित थे. मई, 1995 में गुडगांव के एक अस्पताल में कांशीराम भर्ती थे. उन्होंने मायावती को बुलाकर पूछा कि क्या तुम उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनोगी. मायावती को लगा कांशीराम मजाक में ऐसा बोल रहे हैं. लेकिन कांशीराम ने मायावती को एक चिट्ठी दिखाई. ये भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से आई थी. इस चिट्ठी में लिखा था कि अगर मायावती मुख्यमंत्री बनती हैं तो भाजपा विधायक उन्हें समर्थन देंगे. मायावती इसके लिए तैयार हो गईं. मायावती लखनऊ पहुंची. उनके पास दो चिट्ठियां थीं. एक मुलायम सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने की और दूसरी भाजपा विधायकों के समर्थन से अपनी सरकार बनाने की. उन्होंने दोनों चिट्ठियां राज्यपाल मोतीलाल वोरा को सौंप दी. वोरा ने मायावती को समय पर जवाब देने की बात कही.

मुलायम को इस सबकी भनक पहले ही लग चुकी थी. उन्होंने बसपा के 12 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया था. लेकिन ये संख्या बसपा के कुल विधायकों की संख्या के एक तिहाई से कम थीं ऐसे में दल-बदल कानून के चलते वो अयोग्य घोषित हो जाते. वहीं मायावती, समर्थन वापसी के बाद लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में 2 जून, 1995 को बसपा नेताओं के साथ मीटिंग कर रही थीं. तभी इस गेस्ट हाउस को सपा के कार्यकर्ताओं ने घेर लिया. वहां मौजूद बसपा कार्यकर्ताओं से मारपीट शुरू की. ये सपा कार्यकर्ता मायावती को भद्दी गालियां दे रहे थे. मायावती समझ गईं कि ये उनकी जान लेने की कोशिश हो सकती है. ऐसे में वो एक कमरे में छिप गईं. उनके साथ में उनके कुछ समर्थक भी थे. वहां से उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस के बड़े अधिकारियों को फोन किए लेकिन किसी ने बात नहीं की. कुछ लोग कहते हैं कि सपा के कुछ कार्यकर्ता उस कमरे के दरवाजे तोड़ते हुए घुस आए थे और उन्होंने मायावती के साथ भी मारपीट की. तब भाजपा के एक विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने वहां पहुंच कर मायावती की जान बचाई. लेकिन किसी जांच रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं हुई.

गेस्ट हाउस कांड के बाद कहा जाने लगा कि मुलायम-मायावती कभी साथ नहीं आ सकते.तस्वीर: UNI

इस गेस्ट हाउस कांड की जांच करने वाली रमेश चंद्र समिति के मुताबिक 2 जून की शाम तक सपा के कार्यकर्ता वहीं जमे रहे और वे मायावती को धमका रहे थे. मायावती गेस्ट हाउस के अंदर थीं. राज्यपाल को जब इसकी खबर लगी तो उन्होंने लखनऊ के कलेक्टर और सिटी एसपी को तुरंत गेस्ट हाउस भेजा. वहां ज्यादा पुलिस फोर्स भेजी गई. तब जाकर मायावती को स्टेट गेस्ट हाउस से बाहर निकाला गया. राज्यपाल ने मुलायम सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया. राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने अगले दिन 3 जून को मायावती को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. 20 जून को विधानसभा का सत्र बुलाया गया. एक हंगामेदार सत्र के बाद नए स्पीकर का चुनाव हुआ और मायावती ने बहुमत साबित कर दिया.

मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के बाद स्टेट गेस्ट हाउस कांड की जांच के लिए एक कमेटी बनाई. इस कमेटी ने मुलायम सिंह यादव समेत 74 लोगों को इसके लिए दोषी माना. इस गेस्ट हाउस कांड के बाद से सपा और बसपा में दूरियां बन गईं. कभी मुलायम और मायावती को एक साथ या एक दूसरे का नाम लेते नहीं देखा गया. मायावती मुलायम सिंह यादव की सरकार को गुंडों की सरकार कहती थीं. चुनाव में इसके लिए बसपा ने अपना एक नारा भी बनाया था. ये नारा था- चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर.

स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद कभी एक दूसरे का नाम ना लेने वाले मुलायम-मायवती आज करीब 24 साल बाद एक साथ एक मंच पर दिखाई दिए. मुलायम की सीट मैनपुरी में मायावती उनके लिए रैली करने आईं. 

 

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