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गे सेक्स में उलझ गई सरकार

२३ फ़रवरी २०१२

समलैंगिकता को लेकर भारत सरकार ऐसी उलझी कि उसकी जगहंसाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट में पहले दलील देते हुए इसे भयानक अनैतिक करार दिया और लताड़ पड़ने के बाद सफाई देते हुए कहा कि अदालत में गलती से पुराना बयान पढ़ दिया गया.

तस्वीर: AP

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारतीय समाज दूसरे देशों से अलग है और विदेशों की देखा देखी यहां समलैंगिकता को कानूनी दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए. जस्टिस जीएस सिंघवी और एसजे मुखोपाध्याय की बेंच में मल्होत्रा ने कहा, "गे सेक्स बेहद अनैतिक मामला है और समाज इसे स्वीकार नहीं करता. इसके अलावा समलैंगिकता से एड्स जैसी बीमारियों का भी खतरा रहता है."

उन्होंने कहा कि समाज इसे स्वीकार नहीं करता और इसे अपराध साबित करने के लिए यही वजह बहुत है. मल्होत्रा का कहना है, "हमारा संविधान अलग है और इस वजह से हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्य भी दूसरे देशों से अलग हैं. इसलिए हम उनका देखी देखी काम नहीं कर सकते हैं."

मीडिया में इस तरह की खबरें आते ही गृह मंत्रालय हरकत में आया. इसने फौरन खुद को मल्होत्रा के बयान से अलग कर लिया, हालांकि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के तौर पर मल्होत्रा पूरी तरह से सरकार का ही नेतृत्व कर रहे थे. गृह मंत्रालय ने अदालती कार्रवाई चलते चलते ही अपनी सफाई पेश कर दी और कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने गे सेक्स पर जो फैसला दिया है, वह उसके खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रहा है.

गृह मंत्रालय परेशान

मंत्रालय के बयान में कहा गया, "गृह मंत्रालय ने होमोसेक्सुआलिटी पर कोई स्टैंड नहीं लिया है. इसने कैबिनेट के फैसले को अदालत में रखने के अलावा और कोई निर्देश भी नहीं दिए हैं." बयान में कहा गया है कि मल्होत्रा को तो सिर्फ अदालती कार्रवाई में मदद करने के लिए कहा गया था. मंत्रालय ने कहा कि कैबिनेट में इस बात पर चर्चा के बाद यह तय हुआ था कि सरकार अदालत के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में नहीं जाएगी.

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में समलैंगिकता यानी होमोसेक्सुआलिटी को अपराध की श्रेणी से निकाल दिया था. भारत के कानून में इसे ऐतिहासिक निर्णय माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को चार घंटे की बहस जैसे ही खत्म हुई, दूसरे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मोहन जैन ने मोर्चा संभाल लिया और अदालत से कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई पक्ष नहीं ले रही है.

तस्वीर: Fotolia/Markus Schieder

सुप्रीम कोर्ट नाराज

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जैन की बात को सिरे से काटते हुए कहा कि वह ऐसी बातों का संज्ञान नहीं ले सकता, जिसमें किसी तरह का निर्देश हो. अदालत ने कहा, "अदालत में ऐसी बातें नहीं करते हैं. इससे आप सिर्फ शर्मिंदा होंगे."

बेंच ने कहा, "भारत सरकार इस मामले में शरीक है. उसने अपने तर्क रख दिए हैं. हम आपको यह कहने की इजाजत नहीं दे सकते कि गृह मंत्रालय ने एएसजी मल्होत्रा को निर्देश नहीं दिया होगा." जब जैन ने कहा कि वह चाहते हैं कि सरकार को इस मामले में हलफनामा दायर करने की इजाजत मिले, तो अदालत ने कहा कि अगली सुनवाई के लिए वक्त मुकर्रर कर दी गई है और आपको तब जो मन होगा, दलील दीजिएगा.

बाद में जब मल्होत्रा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह तो गृह मंत्रालय का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 फरवरी के लिए तय कर दी है.

क्यों हो रहा है विरोध

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को समलैंगिकता के अधिकार का विरोध करने वालों से पूछा था कि वे किस आधार पर इसे चुनौती देना चाहते हैं. उच्चतम न्यायालय ने उनसे यह भी कहा था कि इस बात का विरोध करने से पहले उन्हें अपनी सोच का दायरा बढ़ाना चाहिए. अदालत ने समलैंगिक मुकदमों के बारे में भी जानकारी चाही.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की बेंच का कहना था कि समलैंगिकता को समाज में हो रहे बदलाव के आधार पर देखना चाहिए क्योंकि बहुत सी चीजें समाज में पहले वर्जित हुआ करती थीं, जिन्हें अब स्वीकार कर लिया गया है. बेंच ने इसकी मिसाल देते हुए कहा कि अब तो समाज में लीव इन रिलेशन, कुंवारी होते हुए मां बनना और सरोगेसी मदर को मान्यता मिल चुकी है.

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे संगठनों के अलावा सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक गुटों की अर्जी पर सुनवाई चल रही है. ये लोग समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का विरोध कर रहे हैं. हाई कोर्ट के फैसले को लेकर भारत के कई हिस्सों में गहरा असंतोष भी फैला था, जबकि समलैंगिकता के लिए संघर्ष कर रही एजेंसियों ने इसे जीत बताया था.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीपी सिंघल ने हाई कोर्ट के फैसले का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया था. उन्होंने भी इसे भारतीय उसूलों के खिलाफ बताया था. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चर्च ने भी इसका विरोध किया था.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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