1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

गैस त्रासदी की कीमत चुकाता भोपाल

२ दिसम्बर २०१४

तीस साल बाद भी भोपाल गैस त्रासदी की कीमत चुका रहा है. यूनियन कार्बाइड में हुई दुर्घटना में हजारों लोग तुरंत मर गए थे, जबकि हजारों आज भी उसकी कीमत अपंगता से चुका रहे हैं.

तस्वीर: AP

कटे होंठ, कटे तालू और विकृत नाक के साथ जब चंपादेवी शुक्ला के घर पोती पैदा हुई तो सलाह देने वालों की कमी नहीं थी. चंपादेवी ने बताया, "उन्होंने कहा कि ये किसी काम की नहीं है, इसमें मुंह में तंबाकू ठूंस दो अपने आप दम घुट जाएगा."

सलाह सभी की एक थी कि उसे मार दिया जाए फर्क सिर्फ इतना था कि हर कोई अलग तरीके बताता था. चंपादेवी आगे कहती हैं, "मैंने तय कर लिया था कि मैं उसे मरने नहीं दूंगी. मैं गैस त्रासदी में पहले ही तीन बेटे खो चुकी हूं अब किसी और को नहीं खोना चाहती."

तीस साल पहले यानि 1984 में वह 2 दिसंबर की रात थी जब भोपाल जहरीली मेथाइल आईसोसायनेट गैस की चपेट में आ गया. जहरीली गैस के रिसाव के असर से करीब 3500 लोग उसी रात मर गए. यही नहीं आगे भी इस गैस से प्रभावित 25000 लोग धीरे धीरे जान गंवा बैठे. लेकिन यूनियन कार्बाइड प्लांट के पास रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए यही त्रासदी का अंत नहीं था. आज तक यहां पैदा होने वाले बच्चों में इसका असर किसी न किसी रूप में सामने आ रहा है.

चपेट में नस्लें

1984 में हुए इस हादसे के बाद से यहां पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चे या तो असामयिक मृत्यु का शिकार हो गए या जो बच गए उनमें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं सामने आईं. हादसे की रात चंपादेवी शुक्ला ने अपने पति और तीन बेटों को खो दिया. उनकी एक बेटी विद्या गैस के असर से अपंग हो गई. काफी लंबे इलाज के बाद उनकी हालत में सुधार हुआ.

तस्वीर: Image courtesy Amnesty International © Raghu Rai/Magnum Photos

जब विद्या गर्भवती हुई तो परिवार के लिए बेहद खुशी का मौका था. उसकी पहली संतान सुशील का विकास ठीक से नहीं हुआ, 18 वर्ष की आयु में उनका कद चार फुट से कम है. दूसरा बेटा संजय पांच महीने बाद मर गया. उसके बाद विद्या की बेटी सपना पैदा हुई. चंपादेवी शुक्ला ने बताया, "वह कटे होंठ और कटे तालू के साथ पैदा हुई थी. अब तक उसके तीन ऑपरेशन हो चुके हैं." अभी एक और ऑपरेशन उसकी नाक ठीक करने के लिए बाकी है. सपना 13 साल की है और डॉक्टर बनने के सपने देखती है.

चंपादेवी शुक्ला अपने निजी अनुभवों से बेहद प्रभावित हुईं. उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे बच्चों के लिए क्लीनिक स्थापित करने में मदद की. चिंगारी ट्रस्ट में ऐसे करीब 705 बच्चे हैं. कई ऑटिज्म और बहरेपन के शिकार हैं. संस्था उन्हें शारीरिक विकास और बोलना सिखाने में मदद करती है. उनके लिए यहां पढ़ाई और खेलकूद के भी इंतजाम हैं.

जहरीले पानी का असर

संस्था की सहट्रस्टी रशीदा बी मानती हैं कि ज्यादातर बीमारियों की वजह यहां का दूषित पानी है. उनकी बहन और तीन भांजियां श्वास संबंधी बीमारियों से ग्रसित हो जान गंवा बैठीं. इसके बाद वह जापान गईं जहां उन्होंने 1945 के हिरोशिमा हादसे से प्रभावित लोगों को देखा. वह खुद डॉक्टर तो नहीं, लेकिन वह 20 महिलाओं के दूध की जांच के कार्यक्रम में शामिल थीं. उन्होंने बताया, "दस में से 9 महिलाओं के दूध में पारे की भारी मात्रा मौजूद थी."

पारे की ऊंची मात्रा भ्रूण के विकास को प्रभावित करती है. करीब दशक भर पहले अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गैस से प्रभावित परिवारों में पैदा हुए बच्चों का कद सामान्य से करीब 3.9 सेंटीमीटर कम था. प्रभावित लोगों के मुआवजे के लिए आवाज उठा रही मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक पानी के जहरीले होने के साफ प्रमाण मौजूद हैं.

भोपाल त्रासदी के तीस साल पूरे होने पर एमनेस्टी इंटरनेशनल के महानिदेशक सलील शेट्टी ने कहा, "हम एक नस्ल से दूसरी नस्ल में पहुंची स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले सालों में कई रिसर्चें हुई हैं जिनसे साफ पता चलता है कि पानी दूषित हो चुका है." हालांकि कई बार इस बात को चुनौती भी दी गई है कि स्वास्थ्य समस्याओं का असल कारण क्या है. शेट्टी कहते हैं, "आखिर सरकार इस मामले की सही जांच और रिसर्च का बीड़ा क्यों नहीं उठा सकती? ऐसा भी नहीं है कि यह सरकार के बस की बात नहीं. प्रभावित लोगों के लिए इंतजार के 30 साल बहुत होते हैं."

एसएफ/एमजे (एएफपी/रॉयटर्स)

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें