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गैस विवाद पर रूस यूक्रेन फिर आमने सामने

प्रिया एसेलबोर्न४ जनवरी २००९

रूस और यूक्रेन में गैस के बक़ाया भुगतान और 2009 में गैस क़ीमतों को लेकर तनाव फिर बढ़ गया है. इससे यूरोप को होने वाली रूसी गैस सप्लाई की निर्बाध आपूर्ति पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि यह गैस यूक्रेन होकर यूरोप आती हैं.

रूस और यूक्रेन के बीच होता रहा है गैस को लेकर तनावतस्वीर: picture-alliance/ dpa

गैस भी तेल की तरह बेहद महत्वपूर्ण बनता जा रहा है. दुनिया भर की उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपने विकास के लिए ऊर्जा की ज़रूरत है. ऐसे में उन देशों का महत्व बढ़ रहा है, जिनमें गैस या तेल के भंडार हैं. ऐसा ही एक बेशुमार संसाधनों वाला देश रूस है. अमेरिका ने रूस पर कई बार आरोप लगाया है कि वह अपने संसाधनों को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है क्योंकि बहुत सारे यूरोपीय देश रूसी गैस पर निर्भर हैं. इसके अलावा रूस के नेतृत्व में अब 14 गैस निर्यात करने वाले देशों ने एक संगठन की स्थापना की. इस संगठन का लक्ष्य है ओपेक यानी तेल निर्यात करने वाले देशों के संगठन की तरह सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ाना. लेकिन यूरोप के देशों का डर है कि रूस या ईरान जैसे सदस्य देश गैस के दाम बढाने और सप्लाई की शर्तों में बदलाव लाने का सोच रहे हैं.

गैसप्रॉम के प्रमुख मिलरः पूरा भुगतान करे यूक्रेनतस्वीर: AP

लीबिया, वेनेज़ुएला, ईरान और रूस, यह ऐसे कुछ देशों के नाम हैं जो गैस निर्यात करने वाले देशों के नए संगठन के सदस्य हैं. इन सदस्यों के रिश्ते पश्चिमी देशों के साथ हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं. ख़ासकर रूस पर आरोप लगे हैं कि वह गैस के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की सोच रहा है. उदाहरण के लिए रूस का अपने पड़ोसी देश यूक्रेन के साथ विवाद चल रहा है. रूस यूक्रेन को गैस निर्यात करता है, पश्चिमी देशों की तुलना में काफ़ी सस्ते दाम पर. लेकिन यूक्रेन ने रूस को बक़ाया रक़म नहीं चुकाई है जो रूस के मुताबिक़ 2 अरब डॉलर है. इसमें से रूस ने तीन चौथाई रक़म दे दी है. रूस की सबसे बड़ी गैस कंपनी गैसप्रॉम के अध्यक्ष आलेक्सेय मिलर ने कहा, 'यदि यूक्रेन 31 दिसंबर तक अपने कर्ज़ नहीं चुकाएगा, तब गैसप्रॉम की यूक्रेन को गैस सप्लाई करने की ज़िम्मेदारी भी खत्म हो जाती है.'

आख़िरी वक्त पर यूक्रेन ने रूस को पैसा दे दिया और अब रूस और यूक्रेन एक नए समझौते पर बातचीत कर रहे हैं. जर्मनी के अर्थनीति मंत्री मिशाएल ग्लोस ने दूसरे नेताओँ के साथ दोनों देशों से अपील की थी कि वह जल्द ही बातचीत के रास्ते पर वापस आए. यूरोपीय संघ के विदेश नीति आयुक्त खाविये सोलाना ने यूक्रेन की प्रधानमंत्री युलिया टिमोशेंको को फ़ोन किया. आख़िरकार पश्चिमी देशों की तरफ़ से यह कूटनीतिक प्रयास क्यों? यदि रूस यूक्रेन को गैस सप्लाई करना बंद कर देता है तो पश्चिमी देश भी प्रभावित हो सकते हैं. तीन साल पहले भी जब एक विवाद की वजह से रूस ने यूक्रेन को गैस सप्लाई करना बंद कर दिया था तो यूक्रेन ने पश्चिम की तरफ जाने वाली गैस पाईपलाईन से अपनी ज़रूरत का गैस निकाल लिया था. ऐसे में यूरोप में गैस का संकट बढ़ गया था. रूस ने कहा कि यूक्रेन ने फिर से ऐसा करने कि दोबारा धमकी दी. लेकिन विवाद यहां ख़त्म नहीं होता.

यूक्रेन के रास्ते आती है यूरोप तक रूसी गैसतस्वीर: AP

यूक्रेन यूरोपीय संघ का सदस्य बनना चाहता है और संघ और यूक्रेन ने सहयोग भी बढा दिया है. रूस इसके सख़्त ख़िलाफ़ है क्योंकि वह नहीं चाहता है कि वह नाटो या यूरोपीय संघ जैसे संगठन के सदस्य देशों से घिरा हो. हालांकि रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन की ओर इशारा करते हुए कहा है कि जिन देशों में से पाइपलाइनें गुज़रती हैं उन देशों कि ज़िम्मेदारी बनती है कि वह बिना किसी समस्या के गैस की दूसरे देशों को होने वाली सप्लाई सुनिश्चित करें. इस सप्लाई को लेकर किसी तरह का जोखिम नहीं होना चाहिए. साथ ही इस क्षेत्र में कभी राजनीतिक हितों का हस्ताक्षेप नहीं होना चाहिए.

बहुत सारे मध्य एशिआई देशों में मसलन तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान या कज़ाखस्तान में गैस के भंडार हैं और रूस चाहता है कि वहं से पश्चिमी देशों को गैस सप्लाई करने वाली पाइपलाइनें रूस से होकर जाएं. रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन ने धमकी दी है कि तेल संकट के विपरीत गैस संकट अभी शुरू ही होने वाला है.

गैस के मामले में बेहद धनी है रूसतस्वीर: AP

60 के दशक से लेकर तेल के दाम और गैस के दामों का क़रीबी संबंध तय किया गया था. दोनों संसाधन प्रतिस्पर्धी संसाधन है और इस लिए विश्व बाज़ार में गैस के दाम तेल के दामों पर निर्भर हैं. जब तेल के दाम बढ़ते हैं तब कुछ ही समय बाद गैस के दाम भी बढ़ जाते हैं. अब तेल के दाम गिरने लगे हैं लेकिन इसका असर गैस के दामों पर कुछ हफ़्तों बाद ही पड़ेगा. हालांकि जर्मनी के एक ऊर्जा विशेषज्ञ का कहना है कि जर्मनी के नागरिकों को रूस की धमकी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है. गैस की सप्लाई को लेकर रूस के साथ कुछ समझौते तय किए हुए दामों के साथ 2035 तक चलनेवाले है.

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