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समाज

गोता लगा कर मछली मारने वाली नानी दादी

२४ नवम्बर २०१८

इन मछुआरनों को मछली पकड़ते देखिए तो लगेगा कि कोई जलपरी पानी में कुलांचे मार कर मछलियां समेट रही है. पानी से बाहर निकलने पर करीब से देखें तो नानी और दादी नजर आती है.

Japan freitauchende Fischerinnen "Ama"
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Bureau

प्रशांत महासगर में मछली का शिकार कर जापान के किनारों की ओर बढ़ते बोट पर सवार बुजुर्ग औरतों का जोश देखते बनता है. काले रंग के वेटसूट में ऊर्जा से भरी दादी, नानी गोता लगाने वाली मछुआरन हैं जिन्हें यहा "अमा" कहते हैं इसका मतलब है "समुद्र की मां". पकड़ी हुई मछलियों के ढेर के साथ खड़ी इन औरतों की उम्र 60 से 80 साल के बीच है. 

तटवर्ती शहर टोबा में अमा के रूप में काम करने वाली हिदेको कोगुची ने कहा, "सचमुच मुझे लगता है कि जैसे मैं मछलियों के बीच जलपरी हूं, यह शानदार अनुभूति है." किनारों पर घुटने के सहारे बैठक कर ये समुद्री घोंघे की गिनती करती हैं जो इन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर जमा किया है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Bureau

गोताखोरी की पोशाक में कोगुची शानदार दिखती है. आंखों और नाक को ढंकने वाले मास्क, फ्लिपर और काला वेटसूट जो 1960 के दशक में इस रंग को अपनाने से पहले सफेद हुआ करता था. बीते सालों में उन्होंने काफी वजन भी कम किया है. पिछले तीन दशक से वह समुद्र में गोता लगा रही है और "अगले 20 साल तक" लगाते रहने की उम्मीद कर रही है.

गोताखोरी का मौसम यहां साल के 10 महीने रहता है. इस दौरान मछली पकड़ने वालों के स्थानीय संघ मौसम के पूर्वानुमानों और समुद्री पशुधन की बारीकी से जांच करते हैं. इसके बाद लाउड स्पीकरों पर इन औरतों को आवाज लगाई जाती है. हर अमा के हाथ में बहुत मामूली औजार होते हैं. एक समुद्र तल पर बहने वाला छल्ला जो यह बताता है कि अमा ने कहां गोता लगाया है और एक जाल जिसमें वो अपना शिकार जमा करती हैं.

समुद्र तल पर महिलाएं अपने छल्लों को सेट करती है और फिर पानी में गोता लगाती है. कई बार वे अंदर अपनी सांस मिनट भर से ज्यादा तक रोके रखती हैं. एक सत्र में बिना थके वो दर्जनों बार गोता लगाती हैं. गोता मार कर मछली पकड़ने वाली अमा अब जापान में महज 2000 बची हैं. 1930 के दशक में यह संख्या 12000 से ऊपर थी. दक्षिण कोरिया में भी यह पेशा अभी चल रहा है. यहां गोताखोरों को हाइन्यो कहा जाता है हालांकि यहां भी उनकी तादाद बहुत कम रह गई है. ऐतिहासिक कलाकृतियों से पता चलता है कि जापान में यह परंपरा कम से कम 3000 साल पुरानी है. यह पेशा कभी सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं रखा गया लेकिन इसमें ज्यादातर उन्हीं का दबदबा रहा है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Bureau

पुरानी तस्वीरों और पोस्टकार्डों में गोताखोरों को टॉपलेस भी दिखाया गया है. 20वीं सदी में यह प्रथा खत्म हो गई हालांकि अमा और उन्हें "कल्पनाओं का मोहक सामान" समझने की प्रथा जारी रही. एक सच्चाई यह भी है कि महिलाओं को अपने परिवार का पेट पालने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, खासतौर से सुदूर ग्रामीण इलाकों में जहां दूसरे तरह की नौकरियां बेहद कम हैं. स्थानीय फिशिग कोऑपरेटिव के निदेशक साकिची ओकुदा बताते हैं, "पुराने दिनों में युवतियां मिडिल स्कूल से निकलने के बाद अमा बन जाती थीं."

तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Bureau

कोगुची और उनकी बहन ने भी अपना यह कौशल अपने परिवार में सीखा जो उनके यहां कई पीढ़ियों से चला आ रहा है. हालांकि अब यह उनसे आगे नहीं जाएगा. उनके बच्चे अच्छी नौकरी की तलाश में कहीं और चले गए हैं. इन औरतों को अच्छे पैसे नहीं मिलते और खतरा भी रहता है. यही वजह है कि अमा खुद भी नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे यह काम करें. कोगुरे का कहना है, "अगर हमें अमा की परंपरा और उनके जीने के तरीके को बचाना और आगे बढ़ाना है, तो फिर नए लोगों के लिए यहां के दरवाजे खोलने होंगे, पारिवारिक परंपराओं से बाहर जाना होगा."

तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Bureau

इसी बीच पास के गांव ओसात्सु में नई अमा का बड़े उत्साह से स्वागत हो रहा है. 39 साल की अयामी नागाटा पांच बच्चों की मां हैं. उन्होंने अपनी दादी की राह पर चलते हुए पिछले साल अमा की ट्रेनिंग ली. अयामी ने बताया, "मैं तैरना नहीं जानती लेकिन मैं छिछले इलाकों में अभ्यास कर रही हूं." एक बार में पकड़ी गई मछलियों के बदले इन्हें करीब 88 डॉलर की रकम मिलती है. हालांकि वो पैसों के लिए यह नहीं सीख रहीं उनके लिए तो यह पारिवारिक जिम्मेदारियों से दूर जा कर कुछ पल आजादी से बिताने का मौका है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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