महाराष्ट्र सरकार के महाराष्ट्र एनीमल प्रिजर्वेशन (संशोधित) एक्ट 1995 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सहमति मिल गई. महाराष्ट्र में गोवध पर पहले ही पाबंदी थी, लेकिन देवेंद्र फड़नवीस की सरकार इसे एक कदम आगे ले गई. अब राज्य में बैल, सांड और बछड़े के वध पर पाबंदी लगा दी है. भैंस और भैंस के बछड़े के वध के लिए भी इजाजत लेनी होगी.
बीफ बैन के उल्लंघन को गैरजमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है. नियम तोड़ने वालों को पांच साल की जेल और 10 हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है. सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर ने महाराष्ट्र सरकार के फैसले की तल्ख आलोचना की.
ऋषि कपूर का कहना है कि खाने को धर्म से अलग रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं एक गोमांस खाने वाला हिन्दू हूं. अपने कई मुस्लिम दोस्तों की ही तरह मुझे पोर्क चॉप्स पसंद हैं.
अभिनेत्री रवीना टंडन ने भी महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर हैरानी जताई. रवीना के मुताबिक, "बीफ मामले पर मैं इतना ही कहना चाहती हूं कि इसे नियम बनाकर लागू नहीं करना चाहिए, इसे वैकल्पिक होना चाहिए, खायें या न खायें, ये निजी चुनाव होना चाहिए."
संविधान के मुताबिक भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन मई 2014 में बीजेपी के केंद्र में आने के बाद से देश में धार्मिक अहिष्णुता बढ़ती दिख रही है. अभिनेता उदय चोपड़ा इस ओर इशारा कर रहे हैं.
लेकिन दूसरी तरफ कई लोग लोग प्रतिबंध का खुला समर्थन भी कर रहे हैं.
कुछ लोग इस फैसले को आर्थिक नजरिये से भी देख रहे हैं. उनका तर्क है कि गोमांस पर प्रतिबंध लगाने से भारत 14 अरब डॉलर के अपने चर्म उद्योग से हाथ धो बैठेगा.
बंगाल के ग्रामीण इलाकों में गाय बैलों की दौड़ लोगों को खूब लुभाती है. सालों पुरानी परंपरा पशु संरक्षण के नियम कायदों का ख्याल नहीं करती लेकिन फिर भी इसे रोकना मुमकिन नहीं
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayपश्चिम बंगाल के गांवों में जुलाई से अक्तूबर के बीच इस तरह का मंजर दिखाई देना कोई अजीब बात नहीं. गाय बैलों की दौड़ का आयोजन मॉनसून की खुशी मनाने का एक तरीका है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayगांव के बड़े बूढ़े बताते हैं कि पहली बारिश के बाद मिट्टी की ऊपरी परत खुरचने के लिए इस दौड़ का आयोजन किया जाता था, जो कि अब एक परंपरा बन गई है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayइन दिनों भूमि पर तरह तरह के यंत्रों और ट्रैक्टरों की मदद से यही काम किया जाता है. अब यह दौड़ सालाना परंपरा का हिस्सा है जिसमें पशुओं के मालिकों के बीच मुकाबला होता है और लोग जीतने वाले पर दांव लगाते है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayकुल मिला कर दौड़ को बड़ी संजीदगी और चाव से देखने वालों की भी कोई कमी नहीं है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayगांव के बच्चों के लिए भी यह रोचक खेल है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayगांव की महिलाएं, लड़कियां और बच्चे भी इसका मजा लेते हैं लेकिन जरा दूर से.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayमुकाबले वाले मैदान से जरा दूर रहना ही ठीक रहता है क्योंकि दौड़ में पशु बेतहाशा भाग रहे होते हैं. ऐसी अटकलें हैं कि कई मालिक अपने पशुओं को नशा भी करा देते हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayशायद इसी लिए रेस खत्म होने पर उन्हें नदी में ले जाया जाता है और कोशिश की जाती है कि वे जितना ज्यादा उसके अंदर रहें बेहतर है, ताकि नशे का असर खत्म हो और थकान भी उतरे.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayपशु संरक्षण संस्थाओं के जोर देने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की रेसों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन रेसों में पशुओं के साथ अमानवीय व्यव्हार किए जाने के भी आरोप हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyayक्षेत्रीय लोगों की इसमें दिलचस्पी इस तरफ भी इशारा करती है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी इन रेसों को इतनी आसानी से रोकना मुमकिन नहीं है.
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