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गोलकीपर को सम्मान दो

१८ जून २०१४

"हमारा साहेब जिस पोजीशन पर खेलता है, उसकी कोई डिमांड नहीं. टीम में जब और 10 खिलाड़ी बॉल लेकर आगे पीछे दौड़ते हैं, गोल करके लोगों की वाह वाह लेते हैं, तो ये.. ये गोलपोस्ट पर खड़े खड़े हवा खाता रहता है."

तस्वीर: Reuters

ब्राजील और मेक्सिको का मैच देख कर फिल्म साहेब में उत्पल दत्त का यह डायलॉग बरबस याद आता है. फिल्म का हीरो साहेब यानि अनिल कपूर एक गोलकीपर है, जिससे पिता उत्पल दत्त को कोई उम्मीद नहीं. लेकिन जीवन के इम्तिहान में उसी साहेब ने बाजी मारी थी. अस्सी के दशक की इस फिल्म को जितनी बार देखा जाए, कम है.

फुटबॉल में जितनी भूमिका 10 दूसरे खिलाड़ियों की होती है, उससे कहीं ज्यादा अलग रंग की जर्सी पहने एक गोलकीपर की भी होती है. ऐसा खिलाड़ी, जो पूरी टीम से अलग थलग रहता है. जब स्ट्राइकर गोल करके खुशियां मना रहे होते हैं, एक दूसरे से लिपट रहे होते हैं, तो गोलकीपर उनसे दूर गोलपोस्ट पकड़ कर अपने आप में ही खुश हो रहा होता है या हवा में मुक्के भांज रहा होता है.

पांच बार के विश्व विजेता ब्राजील की ताकतवर टीम के खिलाफ मेक्सिको के गुइलेरमो ओचोआ ने जिस खूबसूरती से गोल बचाए, उनकी तारीफ लाजिमी है. गोल पर एक के बाद एक 14 प्रहार हुए और रबड़ के गुड्डे की तरह मुड़ तुड़ कर ओचोआ ने सारे प्रहार झेल लिए. एक निश्चित हेडर को उन्होंने गोल लाइन पार होने से ठीक पहले रोका, तो नेमार के शॉट को जब दस्तानों पर लेने में नाकाम रहे, तो पूरा शरीर ही भिड़ा दिया.

चौकन्ने ओचोआतस्वीर: AFP/Getty Images

कमेंटेटरों का मानना है कि उन्होंने छह पक्के गोल बचा लिए. उनकी खूब चर्चा हो रही है. उन्हें बेहतरीन गोलकीपर बताया जा रहा है. वह खुद इसे "जीवन का सर्वश्रेष्ठ मैच" बता रहे हैं. लेकिन क्या पांच पक्के गोल बचा लेने और एक गोल हो जाने पर भी उनकी ऐसी ही चर्चा होती? शायद नहीं.

फुटबॉल का नतीजा गोल से निकलता है और गोल करने का जितना श्रेय स्ट्राइकर को मिलता है, गोल खाने का उतना ही श्रेय गोलकीपर को चला जाता है. 11 खिलाड़ियों की टीम में गोल होते भी टीम वर्क से हैं और खाए भी जाते हैं टीम वर्क की कमी से. लेकिन इसका जिम्मेदार सिर्फ गोलकीपर ठहरा दिया जाता है. अभी पांच दिन पहले ही तो स्पेन के बेहतरीन गोलकीपर इकर कासियास ने पांच गोल खाए हैं. देखिए, कितनी आसानी से कह दिया जाता है कि कासियस ने पांच गोल खाए. दरअसल वह पूरी टीम की नाकामी थी, जिसने 33 साल के विश्वस्तरीय गोलकीपर को अपने करियर के आखिरी लम्हों में यह कहने को मजबूर कर दिया, "नीदरलैंड्स के खिलाफ यह मैच मेरे जीवन का सबसे बुरा मैच था."

पस्त कासियासतस्वीर: Javier Soriano/AFP/Getty Images

पिछले वर्ल्ड कप में गोल्डन ग्लोब जीतने वाले कासियास एक मैच की वजह से हारे और नाकाम साबित किए जाते हैं. ऐसे कई मामले हैं. जर्मनी के मौजूदा गोलकीपर मानुएल नॉयर भी इसी साल चैंपियंस लीग मुकाबले में चार गोल खा बैठे थे. जबकि नॉयर को मौजूदा फुटबॉल का इतना बड़ा स्टार माना जाता है कि इटली के कद्दावर गोलकीपर ग्यानलुगी बूफोन कहते हैं कि फुटबॉल के एक युग को "नॉयर युग" के तौर पर जाना जाएगा. ओलिवर कान, एडविन फान डेर सार और लेव याशीन के करियर में भी नाकामी के पल आए होंगे. इससे उनकी महानता कम नहीं होती.

यह समझना बहुत जरूरी है कि गोलकीपर भले ही दूसरे रंग की जर्सी पहनता हो, होता वह भी टीम का ही हिस्सा है. मैच की जीत और हार का असर उस पर भी पड़ता है. भले ही वह गोल की चौकीदारी करता हो, सुरक्षा और आक्रमण का जिम्मा पूरी टीम पर होता है. गोलकीपरों को वह सम्मान दिए जाने की जरूरत है, जो फुटबॉल उन्हें आज तक नहीं दे पाया है.

ब्लॉगः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

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