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ग्रहों की मार से जख्मी है चांद

६ दिसम्बर २०१२

चमकता चांद, छोटे ग्रहों और धूमकेतुओं की मार से जख्मी है. चांद के बारे में मिली यह जानकारी मंगल के कुछ रहस्यों से पर्दा उठा सकती है.

तस्वीर: Getty Images

चांद से टकराने वाले छोटे छोटे ग्रह और धूमकेतू न सिर्फ उसकी सतह बल्कि भूपर्पटी को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. भूपर्पटी बाहरी सतह के ठीक नीचे मौजूद परत को कहा जाता है. नासा के वैज्ञानिकों ने इस बारे में जानकारी जुटाई है और इससे शायद मंगल की पहेली भी सुलझ सकती है. वैज्ञानिक इस बात की संभावना तलाश रहे हैं कि कहीं ऐसी ही चोटों ने मंगल की सतह पर मौजूद पानी को उसकी गहराई में तो नहीं पहुंचा दिया. हो सकता है कि वहां पानी अभी भी सुरक्षित हो. मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की खगोलशास्त्री मारिया जुबेर ने पत्रकारों को बताया, "मुमकिन है कि मंगल पर कोई प्राचीन सागर रहा हो और हम सब यह सोच रहे हैं कि आखिर वह गया कहां होगा. हो सकता है कि वह जमीन के नीचे चला गया हो."

तस्वीर: AP

चांद की भूपर्पटी को नुकसान पहुंचने के बारे में जानकारी वहां घूम रहे प्रोब (छोटे छोटे यानों) से मिली है. इनमें नासा का ग्रैविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लैबोरेट्री मिशन शामिल है. इस मिशन में एक तरह के अंतरिक्ष यान चांद की सतह पर करीब एक साल से चारों ओर एक दूसरे के पीछे चक्कर लगा रहे हैं. वैज्ञानिक दोनों यानों के बीच की दूरी की निगरानी रख रहे हैं और दोनों यान जब चांद के घने इलाकों के ऊपर से गुजरे तो उनके बीच की दूरी में हल्का सा फर्क आ गया. चांद के गुरुत्व बल ने पहले तो आगे चल रहे यान पर असर डाला और उसके बाद दूसरे की गति बढ़ा दी जिससे दोनों के बीच की दूरी में फर्क आया.

चांद के गुरुत्वीय नक्शे का पहली बार विस्तार से अध्ययन किया गया और पता चला कि छोटे छोटे ग्रहों और धूमकेतुएं की मार ने चांद की सतह पर गड्ढे बनाए हैं और भूपर्पटी तक नुकसान पहुंचाया है. जुबेर बताती हैं. "अगर आप चांद की सतह पर नजर डालें तो देख सकते हैं कि इस पर गड्ढों की भरमार है, यह पृथ्वी समेत नजर आने वाले दूसरे ग्रहों जैसा ही दिखता है." पृथ्वी पर इस तरह की निशान टेक्टॉनिक प्लेटों की गति, प्राकृतिक घटनाओं और भूमि के कटाव के कारण मिट गए हैं. जुबेर कहती हैं, "अगर हमें शुरुआती काल के दिनों के बारे में जानकारी जुटानी है तो इसके लिए कहीं और जाना होगा. चांद सबसे नजदीक और आसानी से पहुंच में आने वाली जगह है."

तस्वीर: AP

मंगल के बारे में अगर यह पता चल जाए कि ग्रह की भूपर्पटी टूटी फूटी है तो इससे पृथ्वी से बाहर जीवन की तलाश पर असर पड़ेगा. भूपर्पटी को होने वाला नुकसान पानी के लिए ग्रह के अंदरूनी हिस्से में पहुंचने का रास्ता बनाता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल ग्रह कभी गर्म और गीला था. आज की तरह ठंडा, सूखा और रेतीला नहीं. जुबेर कहती हैं, "अगर सतह पर सूक्ष्म जीव रहे होंगे तो वो अच्छे वातावरण में चले गए होंगे, संभव है कि वो मंगल की भूपर्पटी में बहुत अंदर चले गए हों. नासा का यह रिसर्च इस हफ्ते के साइंस जर्नल में छपा है.

एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)

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