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समाज

उन्नाव में कुलदीप सिंह के खिलाफ कोई नहीं बोलता

समीरात्मज मिश्र
२० अप्रैल २०१८

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अपने जिस विधायक कुलदीप सिंह के कारण चौतरफा आलोचना में घिरी है, उनके खिलाफ इलाके में कोई भी अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं है.

Indien Kuldeep Singh Sengar, Angeklagter in Vergewaltigungsfall
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में सत्तारूढ़ दल के एक विधायक पर उन्हीं की पड़ोसी नाबालिग लड़की ने गैंगरेप का आरोप लगाया और इस घटना के एक साल बाद विधायक बड़ी मुश्किल में पूछताछ के लिए सीबीआई की गिरफ्त में आए हैं, पुलिस की गिरफ्त में फिर भी नहीं.

यह घटना न सिर्फ इस लिहाज से गंभीर है कि एक जनप्रतिनिधि पर उसी जनता में से किसी के साथ इतने गंभीर अपराध के आरोप हैं जिसके बल पर वह विधान सभा में पहुंचते हैं बल्कि इस लिहाज से भी चिंताजनक है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी व्यवस्था किस तरह से नव सामंती तत्वों के इर्द-गिर्द ठीक उसी तरह से मंडरा रही है, जिसके आधार पर कभी ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस' जैसा मुहावरा गढ़ा गया होगा.

उन्नाव के बांगरमऊ से विधायक कुलदीप सिंह उत्तर प्रदेश की लगभग सभी प्रमुख पार्टियों से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं. उनकी हैसियत का अंदाजा इस बात से लगता है कि उन्नाव के जिस माखी गांव में उनका आलीशान घर है, उसका मुकाबला गांव भर में किसी अन्य मकान से करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

विधायक के घर के सामने ही कुछ दूर पर उस पीड़ित लड़की का भी दो कमरे का एक छोटा सा घर है. घरों की हैसियत का ये अंतर इस घटना के अभियुक्त और पीड़ित को मिलने वाली सजा और न्याय में भी साफ झलकता है.

तस्वीर: DW/S. Mishra

पीड़ित लड़की ने पिछले साल ही पुलिस में शिकायत दर्ज की थी कि उसके साथ विधायक और उनके लोगों ने रेप किया था लेकिन पहले तो लड़की की शिकायत ही पुलिस में नहीं दर्ज हुई और जब कोर्ट के स्तर पर दबाव पड़ने पर एफआईआर दर्ज हुई तो उसमें विधायक का नाम नहीं था. ये आरोप खुद पीड़ित लड़की ने और उसके चाचा ने लगाए हैं.

भारत में खासतौर पर छोटे शहरों में प्रशासनिक तंत्र की उसी कारगुजारी का नमूना दिखता है, जहां आम तौर पर देखने को मिलता है कि नियम-क़ानून सिर्फ़ अमीरों और प्रभावशाली लोगों के लिए होते हैं, गरीबों के लिए नहीं. पीड़ित परिवार एक साल तक संघर्ष करता रहा लेकिन एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि अब उसके ऊपर इस बात का दबाव डाला गया कि वह मुकदमा वापस ले ले.

आरोप हैं कि ऐसा न करने पर पीड़ित लड़की के पिता को गांव में सबके सामने मारा-पीटा गया, उसी पर केस दर्ज करके पुलिस ने जेल भेज दिया और फिर जेल में ही उस पिता की मौत हो गई.

पीड़ित लड़की फरियाद लेकर मुख्यमंत्री आवास पर गई, आत्मदाह करने की कोशिश की लेकिन उसकी बात तब तक नहीं सुनी गई जब तक कि अगले दिन उसके पिता की पुलिस हिरासत में मौत की खबर नहीं आ गई और मीडिया में इस मामले ने तूल नहीं पकड लिया.

तस्वीर: DW/S. Mishra

विधायक के रसूख और प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर तो उनके खिलाफ सरकार तक कार्रवाई नहीं कर रही है दूसरी ओर पूरे गांव तो क्या पूरे उन्नाव जिले में विधायक के खिलाफ एक शब्द बोलने वाला कोई व्यक्ति नहीं मिल रहा है.

बड़ी मुश्किल से चोरी-छिपे एक दो लोग जो कुछ उनके बारे में बताते हैं, उससे न सिर्फ़ विधायक कुलदीप सिंह की हैसियत का पता चलता है, बल्कि उनके जैसी हैसियत रखने वालों के सामने क़ानून और प्रशासनिक व्यवस्था की विवशता का भी अंदाजा लगता है.

ऐसा नहीं है कि जघन्य अपराध जैसे मामलों में यह पहली बार हो रहा है जब गरीब और असहाय पीड़ित को न्याय के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ा हो और समर्थ आरोपी या अभियुक्त अपने रसूख के चलते व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे हों.

दिल्ली में प्रियदर्शिनी मट्टू, नैना साहनी की हत्या से लेकर सूर्यनेल्ली और निर्भया बलात्कार तक ऐसे ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे. ये अलग बात है कि जब इन मामलों ने मीडिया के जरिए तूल पकड़ा तब आम जनता के दबाव में कुछ हद तक पीड़ित पक्ष को अदालतों से जरूर न्याय मिला है, लेकिन उनकी संख्या भी उंगलियों पर गिनने लायक है. ये स्थिति किसी एक जगह या एक इलाके में नहीं बल्कि कमोबेश भारत के हर इलाके में देखी जा सकती है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे बलात्कार के 15,2165 नए-पुराने मामलों में से केवल 25 का निपटारा किया जा सका था, जबकि इस एक साल में 38,947 नए मामले दर्ज किए गए. ये भी केवल रेप के आंकड़े हैं, बलात्कार की कोशिश, छेड़खानी जैसी घटनाएं इसमें शामिल नहीं हैं. 

तस्वीर: DW/S. Mishra

विशेषज्ञों की मानें तो बलात्कार दुनिया भर में सबसे कम रिपोर्ट होने वाला अपराध है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये ऐसा अपराध है जिसे साबित किया जाना शायद सबसे मुश्किल है. अधिकतर मामलों में पीड़ित महिला पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत जुटाने में इतना वक्त ले लेती है कि फोरेंसिक साक्ष्य न के बराबर बचते हैं.

उसके बाद भी कानूनी पेचीदगियों के चलते किसी भी पीड़ित महिला का खुद पर हुए अत्याचार को साबित करना जितना मुश्किल है, अभियुक्त को खुद को निर्दोष साबित करना उतना ही आसान. वह भी तब जबकि अभियुक्त रसूखदार हो, पैसे वाला हो और सिस्टम के हर अंग को ‘मैनेज' करने की क्षमता रखता हो.

उन्नाव की घटना में भी कुछ ऐसा ही हुआ. विधायक के रसूख ने न सिर्फ़ पुलिस और प्रशासन को अपनी तरफ कर रखा था बल्कि आस-पास के लोग भी विधायक के गुण-गान करते मिले. यहां तक कि जब सीबीआई की टीम जांच के लिए गांव में उनके घर गई तो विधायक के समर्थकों ने सीबीआई की टीम को ही घेर लिया.

यही नहीं, वहां मौजूद कुछ महिलाएं तो न सिर्फ पीड़ित लड़की के चरित्र पर उंगली उठा रही थीं बल्कि इस बात पर भी सवाल उठा रही थीं कि मीडिया में पीड़ित लड़की के तौर पर बयान देने वाली लड़की दरअसल पीड़ित नहीं बल्कि कोई और है.

लेकिन कई लोग ‘ऑफ द रिकॉर्ड' उस दिन की घटना के बारे में खुलकर बताते भी हैं जब पीड़ित लड़की के पिता को गांव के चौराहे पर जमकर मारा पीटा गया और फिर पूरे गांव में घसीटते हुए उनके घर तक पहुंचाया गया. इस दौरान लोग या तो घरों के भीतर बंद हो गए थे या फिर तमाशबीन बने थे.

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