ग्रामीण विरासत को संजोने में जुटा एक रिटायर अधिकारी
२७ मई २०१९
चालीस साल सरकारी सेवा में बिताने के बाद सेवानिवृत्त नौकरशाह एस.के. मिश्रा को महसूस हुआ कि उनका काम अभी तक अधूरा है. रिटायर होने के बाद अब वह ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण समेत कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं.
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एस.के. मिश्रा को महसूस हुआ कि वह अपने अनुभव और प्रतिष्ठा का उपयोग जनसेवा में बेहतर तरीके से कर सकते हैं. इसलिए उन्होंने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रधान सचिव रहे मिश्रा ने 1990 के दशक में अवकाश प्राप्त करने के बाद विरासत को संजोने के साथ-साथ ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण और सामुदायिक भागीदार के क्षेत्र में काम करना शुरू किया.
पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित 87 साल के मिश्रा गैर-सरकारी संगठन इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरीटेज एंड डेवलपमेंट (आईटीआरएचडी) के प्रमुख हैं. इस संस्था की नींव 2011 में रखी गई थी. संस्था खतरे में पड़ी ग्रामीण विरासत के संरक्षण के काम में जुटी है, जिसकी परियोजनाएं आठ राज्यों में चल रही हैंय
समाचार एजेंसी आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "मैं पूर्ण अवकाशप्राप्ति या बेकार बैठने के बारे में कभी नहीं सोच सकता. मुझे महसूस हुआ है कि मैंने जो अनुभव हासिल किया है, उसका उपयोग मुझे सामाजिक उद्देश्य से करना चाहिए. मैं 87 साल का हो चुका हूं फिर भी सिर्फ आराम करने के बारे में नहीं सोच सकता."
मिश्रा केंद्र सरकार में पर्यटन, नागरिक उड्डयन और कृषि सचिव के साथ-साथ हरियाणा के तीन मुख्यमंत्रियों के प्रधान सचिव रहे हैं.
उन्होंने कहा कि अधिकारियों को अपनी सेवा के दौरान प्राप्त अनुभव के बाद सेवानिवृत्त होने पर काम से संन्यास नहीं लेना चाहिए, बल्कि उनको काम करते रहना चाहिए, क्योंकि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां वे अपने अनुभव का उपयोग कर सकते हैं.
औरतें चलाती हैं स्टेशन तो मर्द करते हैं ताकझांक
जयपुर का गांधी नगर रेलवे स्टेशन भारत का पहला ऐसा स्टेशन है जिसे सिर्फ महिलाएं चलाती हैं.औरतों को सारे काम करते देख पुरुष हैरान होते हैं और ताकाझांकी करते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain
गांधीनगर स्टेशन पर सुपरिटेंडेंट से लेकर कंडक्टर और स्टेशन मास्टर की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही उठा रही हैं. भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन यहां नौकरियों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है.
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स्टेशन की सुरक्षा से लेकर तकनीकी कामों का जिम्मा भी महिलाओं के हाथ में है. भारत तो क्या दुनिया के ज्यादातर हिस्से में अब भी इसे सिर्फ पुरुषों का काम समझा जाता है लेकिन यह धारणा अब टूट रही है.
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गांधी नगर स्टेशन पर एक क्रेच की सुविधा भी है ताकि महिला कर्मचारी बच्चों को काम पर अपने साथ ला सकें. इसके साथ ही स्टेशन पर सैनिटरी नैपकीन की वेंडिंग मशीन भी लगाई गई है.
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स्टेशन सुपरवाइजर नीलम जाधव कहती हैं कि इस जिम्मेदारी ने एक तरह से उड़ने के लिए नए पंख दे दिए हैं लेकिन उन्हें अभी भी जूनियर कर्मचारियों में महिला बॉस को लेकर उठने वाली आशंकाओं का सामना करना पड़ता है
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गांधी नगर स्टेशन से हर रोज 50 ट्रेन गुजरती है इनमें से 25 ट्रेन यहां रुकती हैं. महिलाएं सभी सुरक्षा नियमों का पालन करती हैं और हर काम यहां तय मानकों के हिसाब से ही होता है.
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गांधी नगर स्टेशन से हर रोज तकरीबन 7000 यात्री आते जाते हैं. इनमें बहुत से लोग दूरदराज के गांवों से आए हैं, शहर पहुंचने पर पहली बार महिलाओं को स्टेशन पर इस तरह के काम करते देख उनकी आंखें चुंधिया जाती हैं.
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सौम्या माथुर जयपुर रेलवे डिविजन की प्रमुख हैं और दो बच्चों की मां भी. उन्हें उम्मीद है कि स्टेशन से गुजरने वाली लड़कियां यहां के कर्मचारियों से सबक लेंगी और "खुद पर भरोसा करना शुरू करेंगी."
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टिकट काउंटर में मुख्य टिकट कलेक्टर महिमा दत्त शर्मा और उनकी डिप्टी उषा चौहान, स्टेशन पर कुल 28 महिला कर्मचारी हैं जिनमें सफाई कर्मी से लेकर स्टेशन स्टेशन मास्टर तक शामिल हैं.
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महिमा दत्ता शर्मा टिकट काटती हैं. यहां आने वाले यात्री बार बार खिड़की में से अंदर झांकते हैं. महिमा कहती हैं कि बाहर बोर्ड पर सारी जानकारी है लेकिन इसके बाद भी वो ऊल जलूल सवाल लेकर खिड़की पर चले आते हैं.
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इस तरह की कोशिशें ना सिर्फ रुढ़िवादी राजस्थान में नई जमीन तैयार कर रही हैं बल्कि उन सामाजिक रीतियों को भी पलट रही हैं जिनमें महिलाओं के लिए सम्मानजनक स्थान सिर्फ घर में रहना होता है.
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सेवानिवृत्ति के बाद मिश्रा ने इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरीटेज (आईएनटीएसीएच) के चेयरमैन के रूप में करीब 10 साल तक अपनी सेवा दी. विरासत को संजोने वाला यह देश का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है. लेकिन विशेष रूप से ग्रामीण विरासत को संजोने की आवश्यकता से आईटीआरएचडी की नींव डाली गई.
उन्होंने कहा, "आईएनटीएसीएच मुख्य रूप से शहरी क्षेत्र से जुड़ा था और उसका मकसद सिर्फ विरासत का संरक्षण करना था. नया एनजीओ जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े विशिष्ट व्यक्तियों के सहयोग से बना है, जिसका मकसद ग्रामीण विरासत का संरक्षण करने के साथ-साथ सामुदायिक भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्र का विकास करना है."
उनका यह एनजीओ बुनियादी विकास, प्राथमिक शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार सृजन और ग्रामीण पर्यटन के विकास को प्रमुखता देता है. मिश्रा ने कहा, "हमारी सभी परियोजनाओं का उद्देश्य न सिर्फ महत्वपूर्ण धरोहरों की संपत्तियों का संरक्षण करना है, बल्कि वंचित ग्रामीण समुदायों को मदद करना है."
आईटीआरएचडी झारखंड में 17वीं सदी के टेराकोटा मंदिरों और एक ऐतिहासिक जेल के रखरखाव के लिए काम करता है. साथ ही हरियाणा के मेवात जिले में 700 साल पुरानी शेख मूसा की दरगाह के संरक्षण की परियोजना पर काम कर रहा है. शेख मूसा मध्यकाल के एक सूफी संत थे.
उन्होंने बताया, "झारखंड के मलुटी गांव में 62 टेरा कोटा मंदिर एक अनोखी धरोहर हैं. एक ही गांव में 108 मंदिर थे, जिनमें से अब सिर्फ 62 रह गए हैं." मिश्रा ने इसके संरक्षण की पहल 2011 में शुरू की और 2015 में झारखंड सरकार ने पूरी परियोजना के लिए सात करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी प्रदान की. मिश्रा ने बताया, "काम चालू है और हमें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक यह काम पूरा हो जाएगा."
उन्होंने बताया, "प्रदेश सरकार ने रांची में एक ऐतिहासिक जेल के संरक्षण की परियोजना का भी काम सौंपा है. इस जेल में मुंडा जनजाति के स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया था. संरक्षण कार्य पूरा होने के बाद इसे जनजाति संग्रहालय में तब्दील कर दिया जाएगा." उन्होंने कहा कि इस पर काम पिछले साल शुरू हुआ था और यह 2019 के आखिर तक पूरा हो जाएगा.
उत्तर प्रदेश में उनका एनजीओ आजमगढ़ जिले के तीन गांवों में ऐतिहासिक रचनात्मकता के कार्य का संरक्षण करने में जुटा है. ये गांव निजामाबाद, मुबारकपुर और हरिहरपुर हैं, जहां की सांस्कृतिक विरासत काफी समृद्ध रही है. हरिहरपुर में शास्त्रीय संगीत की परंपरा रही है तो निजामाबाद में काली मिट्टी के बर्तन बनाने की कला समृद्ध रही है और मुबारकपुर रेशम के बुनकरों का गांव है.
प्रभाकर शरण की कहानी पूरी फिल्मी नजर आती है. बिहार के छपरा से उन्होंने लातिन अमेरिकी देश कोस्टा रिका तक का सफर तय किया है. वहां उन्होंने बॉलीवुड स्टाइल स्पैनिश फिल्म बनाई.
तस्वीर: Enredados - La confusion/Prabhakar Sharan
बॉलीवुड में स्पैनिश तड़का
‘एनरेदादोस: ला कनफुसियोन’ को लैटिन अमेरिका की ऐसी पहली फिल्म है जो बॉलीवुड मसाला स्टाइल में बनी है. फिल्म में रोमांस, एक्शन, कॉमेडी और गाने सभी कुछ है, लेकिन स्पैनिश तड़के के साथ.
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देसी हीरो
इसमें हीरो का किरदार निभाने वाले प्रभाकर शरण भारतीय मूल के हैं. बिहार से संबंध रखने वाले प्रभाकर के लिए यह फिल्म उनका सपना है और इसके जरिए वह बॉलीवुड और लैटिन अमेरिका के बीच एक पुल बनाना चाहते हैं.
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बॉलीवुड ने किया मायूस
प्रभाकर ने बॉलीवुड में भी किस्मत आजमाने की कोशिश की, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्होंने कोस्टा रिका का रुख किया. उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्में कोस्टा रिका में रिलीज कराईं. लेकिन एक्टर बनने की तमन्ना उनके दिल में बनी रही.
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दमदार कास्ट
इस फिल्म में प्रभाकर के साथ नैंसी डोबलेस नजर आईं जो कोस्टा रिका की जानी-मानी टीवी अभिनेत्री हैं. इसके अलावा कोस्टा रिका के मशहूर कॉमेडियन मारियो चेकऑन ने भी इस फिल्म में एक अहम रोल किया.
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भरपूर एक्शन
फिल्म में विलेन की भूमिका में अमेरिकी प्रोफेशल रेसलर स्कॉट स्टाइनर को लिया गया. तीन बार के वर्ल्ड चैंपियन रहे स्टाइनर फिल्म में मारधाड़ करते नजर आए.
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खिलाड़ी निर्देशक
इस फिल्म को आशीष मोहन ने निर्देशित किया है. इससे पहले वह अक्षय कुमार स्टारर 'खिलाड़ी 786' और अरशद वारसी की 'वेलकम टू कराची' का निर्देशन कर चुके हैं. वह ब्लैकमेल, गोलमाल, गोलमाल रिटर्न्स, गोलमाल3 और सनडे जैसी फिल्मों के अस्टिटेंट डायरेक्टर भी रहे हैं.
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मजाक भी उड़ा
प्रभाकर का कहना है कि जब कोस्टा रिका में उन्होंने यह फिल्म बनानी शुरू की तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, लेकिन पूरी टीम की मेहनत को देखते हुए लोगों ने धीरे धीरे उन्हें गंभीरता से लेना शुरू कर दिया.
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लैटिन सुरताल
बॉलीवुड मसाला फिल्म गानों के बिना कैसे पूरी हो सकती है. इसलिए फिल्म में तीन गाने हैं और इनका संगीत भारत में तैयार कराया गया है. लेकिन प्रभाकर कहते हैं कि उन्हें लैटिन अमेरिकी अंदाज में पेश करने की कोशिश की गई है.
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नए अवसर
मशहूर सिनेमा चेन और वितरण कंपनी सिनेपोलिस इस फिल्म को लातिन और सेंट्रल अमेरिका में रिलीज किया. प्रभाकर को उम्मीद है कि उनकी फिल्म लैटिन अमेरिका में बॉलीवुड के लिए नए दरवाजे खोलेगी.
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पूरी हुई फिल्म
प्रभाकर का कहना है कि शूटिंग के दौरान उनके कंधों में चोट लगी और आंखों को भी नुकसान हुआ. लेकिन फिर भी वह खुश हैं कि यह फिल्म पूरी कर पाए.