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ग्रीन इनर्जी से क्या स्वच्छ भविष्य का सपना पूरा होगा

अविनाश द्विवेदी
१० जून २०२१

बदलती ऊर्जा तकनीकों को लेकर कई पर्यावरण विशेषज्ञ और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता डरे हुए हैं. वे मानते हैं कि इससे न सिर्फ संसाधनों की खींचतान बढ़ सकती है बल्कि नागरिक अधिकार हनन के मामलों में भी बढ़ोतरी हो सकती हैं.

BdT | Deutschland | Photovoltaik-Park liefert Strom für die Deutsche Bahn
तस्वीर: Jens Büttner/dpa/picture alliance

साल 2022 के अंत तक जर्मनी अपनी ऊर्जा जरूरत का सबसे बड़ा हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करेगा. परमाणु ऊर्जा मुक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य उसने पा लिया है, वह 2038 तक बिजली उत्पादन के लिए कोयले के प्रयोग को भी पूरी तरह खत्म करने वाला है. भारत ने भी 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 30-35% तक घटाने का लक्ष्य रखा है. दुनिया के 135 देश अन्य देश भी 2050 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 90-95 प्रतिशत घटाने की शपथ ले चुके हैं.

इन बातों को पढ़कर दुनिया की एक खूबसूरत तस्वीर दिमाग में बनती है. लगता है कि ऐसी दुनिया में बहुत शांति होगी क्योंकि बड़े-बड़े देश तेल और कोयले के बड़े भंडारों पर एकाधिकार के लिए झगड़े और षड्यंत्र नहीं कर रहे होंगे. सूरज, हवा और पानी हमारी सभी ऊर्जा जरूरतें पूरी कर देंगे. यह सोचना सुखद तो है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा होता नहीं दिख रहा है. बदलती ऊर्जा तकनीकों को लेकर कई पर्यावरण विशेषज्ञ और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता डरे हुए हैं. वे मानते हैं कि आने वाली दुनिया में न सिर्फ संसाधनों को लेकर खींचतान बढ़ने वाली है बल्कि बदलते ऊर्जा परिदृश्य में नागरिक अधिकार हनन के मामले भी बढ़ सकते हैं.

सोलर पैनलों के लिए खनिजों की जरूरततस्वीर: Jens Büttner/dpa/picture alliance

सीमित मात्रा में मौजूद खनिजों की भारी जरूरत

यह बात तभी समझी जा सकती है, जब हमें पता हो कि सौर और पवन ऊर्जा से बिजली कैसे बनती है? सौर ऊर्जा का निर्माण फोटोवोल्टिक सेल के जरिए किया जाता है. इससे पर्याप्त बिजली निर्माण के लिए सोलर पैनल को बहुत बड़े भू-भाग लगाया जाता है. ऐसी ही हवा से बिजली बनाने के लिए बड़ी-बड़ी पवनचक्कियों की जरूरत होती है. इसके अलावा यातायात में काम आने वाली इलेक्ट्रिक कार और ट्रकों में बड़ी-बड़ी बैटरियां लगानी पड़ती हैं. इन उपकरणों और बैटरियों में भारी मात्रा में खनिजों का इस्तेमाल किया जाता है. इनके लिए जरूरी कुछ प्रमुख खनिज हैं, कोबाल्ट, तांबा, मोलिब्डेनम, ग्रेफाइट, लिथियम, मैंगनीज, निकल, जिंक और दुर्लभ खनिज.

ये सभी खनिज कच्चे तेल और कोयले की तरह ही सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं. मतलब यह हुआ कि भले ही यह सच हो कि सूरज और हवा अक्षय ऊर्जा के स्रोत हैं लेकिन इनके जरिए बिजली बनाने के लिए हमें जिन खनिजों की जरूरत होगी, उनके भंडार सीमित हैं. अभी दुनिया के कुल बिजली उत्पादन में पवन और सौर ऊर्जा का हिस्सा सिर्फ 7 प्रतिशत है. वहीं दुनिया की कुल गाड़ियों में सिर्फ 1 प्रतिशत ही इलेक्ट्रिक हैं. इसलिए फिलहाल इन खनिजों की पर्याप्त उपलब्धता है. लेकिन जबकि दुनिया के देश तेजी से ग्रीन इनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं, इन खनिजों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है लेकिन इनकी आपूर्ति सीमित है.

दुर्लभ खनिज के खनन में मानवाधिकार की चिंताएंतस्वीर: Wang chun lyg/Imaginechina/picture alliance

कच्चे तेल की तरह इन खनिजों के लिए भी खींचतान

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की हालिया स्टडी के मुताबिक अगर दुनिया तेजी से इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ओर बढ़ी तो साल 2040 तक लीथियम की मांग 50 गुना और कोबाल्ट-ग्रेफाइट की मांग 30-30 गुना तक बढ़ जाएगी. ऐसा होते ही इन खनिजों की कीमतों और आपूर्ति को लेकर दुनिया के देशों के बीच राजनीति भी बढ़ जाएगी. अमेरिका के हैम्पशर कॉलेज में पीस एंड वर्ल्ड सिक्योरिटी स्टडीज के प्रोफेसर माइकल क्लेयर के मुताबिक, "दुनिया के बड़े देशों ने पेट्रोलियम आपूर्ति को लेकर जैसा संघर्ष किया था, वैसा ही संघर्ष इन खनिजों पर एकाधिकार के लिए भी देखने को मिल सकता है क्योंकि ज्यादातर खनिजों के भंडार सिर्फ कुछ देशों में ही सीमित हैं."

2030 तक दुनिया में कुल कारों में से 15 प्रतिशत के इलेक्ट्रिक हो जाने की उम्मीद है. दुनिया में अभी 370 मॉडल की इलेक्ट्रिक कारें हैं, जिनके 2022 तक बढ़कर 450 हो जाने की उम्मीद है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक एक साधारण इलेक्ट्रिक कार में तेल से चलने वाली कार के मुकाबले 6 गुना ज्यादा खनिजों का प्रयोग होता है. माइकल क्लेयर कहते हैं, "जाहिर है दुनिया के बड़े देशों को इन खनिजों की जरूरत होगी. ये देश तेल उत्पादन और उसके निर्यात पर अधिकार जमाने जैसी कोशिश ग्रीन इनर्जी के लिए जरूरी खनिजों के मामले में भी कर सकते हैं. याद रहे कि कच्चे तेल को अमेरिका के 'इराक युद्ध' की बड़ी वजह माना जाता है."

जर्मनी का सबसे बड़ा सोलर पार्क

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खनिज भंडार अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक दुनिया के कुल कोबाल्ट में से 80 प्रतिशत से ज्यादा की सप्लाई सिर्फ डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो करता है. ऐसा ही चीन में कुल दुर्लभ खनिजों का 70 प्रतिशत हिस्सा है. कुल लीथियम का 80 प्रतिशत से ज्यादा सिर्फ अर्जेंटीना और चिली सप्लाई करते हैं. क्लाइमेट ट्रेंडस की संस्थापक और पूर्व में WWF से जुड़ी रही आरती खोसला इस मामले में कहती हैं, "इन खनिजों की उपलब्धता वाले ज्यादातर देश अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में हैं. जो कई मामलों में कमजोर स्थिति में हैं. ऐसे में डर है कि विकसित देश या उनकी कंपनियां इनका फायदा न उठाएं."

आरती खोसला कहती हैं, "इन देशों में खनन को लेकर कड़े कानून नहीं हैं, जिससे मानवाधिकारों के हनन का डर है. वहीं अगर यहां कड़े नियम बना दिए गए तो दुनिया की बड़ी कॉरपोरेट खनन कंपनियों को यहां इंट्री मिल जाएगी, क्योंकि स्थानीय खनन कंपनियां नियम पालन की स्थिति में नहीं होतीं. डर इस बात का है कि ये कंपनियां न सिर्फ किसी देश में एकाधिकार जमा सकती हैं बल्कि स्थानीय निवासियों का शोषण भी कर सकती हैं. 2019 में पांच अमेरिकी टेक कंपनियों टेस्ला, एप्पल, अल्फाबेट, डेल और माइक्रोसॉफ्ट पर बाल मजदूरी कराने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था. यह गंभीर मामला था क्योंकि कांगो में कोबाल्ट की खदान धंसने से 14 बच्चे उसमें दब गए थे. इनमें से 6 की मौत हो गई थी."

पवन ऊर्जा पार्कतस्वीर: Martin Bernetti/AFP

वैश्विक नीतियों के बिना मुसीबत बन सकती है ग्रीन इनर्जी

आरती खोसला कहती हैं, "बात इतनी ही नहीं है. ग्रीन एनर्जी के लिए जरूरी इन खनिजों का रिसाइकिल किया जाना भी समस्या है." इलेक्ट्रिक कारों के लिए बैटरियां तो बनने लगी हैं, लेकिन अभी तक उसकी रिसाइक्लिंग के समाधान सामने नहीं आए हैं. इन खनिजों के प्रयोग वाले उपकरण और बैटरियां खराब होने के बाद उनके पर्यावरण सम्मत निबटारे की चुनौती होगी. मसलन भारत की बात करें तो यहां मोबाइल-लैपटॉप बैटरी और पावर बैंक में इन खनिजों का इस्तेमाल होता है लेकिन इनके खराब होने के बाद सिर्फ 1-2 प्रतिशत की रिसाइक्लिंग हो पाती है. बाकी कचरे के तौर पर इन्फॉर्मल सेक्टर में चली जाती है. जहां उन्हें घटिया ढंग से रिसाइकल किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी भी इसे लेकर चिंता जता चुका है. एजेंसी के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर फातिह बिरोल का कहना है, "सोलर पैनल, पवन चक्कियों और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए कई महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता बहुत कम है. हमें यह देखना होगा कि यह हमें स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ाएंगे या इसमें बाधा बन जाएंगे." फिलहाल जरूरी खनिजों की दुर्लभता को देखते हुए ऊर्जा रणनीतिकार ज्यादा से ज्यादा जगहों पर नए स्रोत खोजने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन इस ग्रीन इनर्जी से कुछ फायदा तभी लिया जा सकेगा, जब कंपनियों और देशों को इस बड़े ऊर्जा बदलाव के लिए आजाद छोड़ देने से पहले इसके लिए वैश्विक स्तर पर दूरगामी नीतियां बनाई जाएं.

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