जर्मन सरकार ने कहा है कि देश ग्रीस की सीमा पर रिफ्यूजी कैंपों में रह रहे 1,500 प्रवासी बच्चों को शरण देने जा रहा है. एक बयान जारी कर जर्मन प्रशासन ने कहा, "यूरोपीय देशों के स्तर पर एक मानवीय समाधान किए जाने को लेकर बातचीत चल रही है ताकि ऐसे 'इच्छुकों का एक गठबंधन' ऐसे बच्चों को स्वीकार कर सके." यह भी कहा गया कि इनमें से जर्मनी खुद भी जितना "उचित" होगा उतना भार उठाएगा.
राजधानी बर्लिन में सात घंटे तक चली बातचीत के बाद जारी हुए इस बयान में लिखा है, "हम ग्रीस द्वीपों पर फंसे 1,000 से 1,500 बच्चों को कठिन मानवीय हालातों से निकालने में ग्रीस की मदद करना चाहते हैं." यहां कई बच्चे ऐसी दुर्दशा झेल रहे हैं जिसमें उन्हें या तो मेडिकल सुविधा की जरूरत है या फिर वे बिना किसी बड़े के बेसहारा हो गए हैं.
हाल के दिनों में यूरोपीय देशों से इनके लिए द्वार खोलने की मांग काफी जोर शोर से उठी है. तुर्की की सीमा पर आप्रवासियों को यूरोप में दाखिल होने से ना रोकने के कारण ग्रीस में ऐसी स्थिति बन गई है. पिछले एक हफ्ते में कई बार यहां पहुंचे आप्रवासियों के साथ ग्रीस पुलिस की झड़पें हुईं जिसमें उन पर आंसू गैस से लेकर पानी की तेज धार तक छोड़ी गई. ऐसे हालात में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान ब्रसेल्स में ईयू के साथ बैठक करने वाले हैं. 2016 में दोनों पक्षों के बीच आप्रवासियों को लेकर हुए समझौते को हाल ही में तुर्की ने तोड़ दिया है. तुर्की का आरोप है कि ईयू ने 6 अरब यूरो की मदद राशि देने का जो वादा किया था उसे पूरा नहीं किया.
एक बार फिर रिफ्यूजी कैंपों में रह रहे अलग थलग पड़ गए बच्चों को ग्रीक द्वीप से निकाल कर बेहतर और सुरक्षित मुख्यभूमि में लाने की जरूरत महसूस की जा रही है. इसके लिए एक हफ्ते पहले ही यूरोपीय संघ की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लाएन ने सभी ईयू सदस्य देशों से अपील की थी कि वे बच्चों की मदद के लिए आगे आएं. फ्रांस, पुर्तगाल, लक्जमबर्ग, फिनलैंड, क्रोएशिया और जर्मनी ऐसा करने की मंशा जता चुके हैं. अब जर्मन सरकार की इस घोषणा के साथ ही उन बच्चों में से कम से कम 1,500 को जर्मनी द्वारा अपनाए जाने का रास्ता खुलेगा.
आरपी/आईबी (एएफपी, डीपीए)
आए दिन आप रिफ्यूजियों या शरणार्थियों के बारे में खबरें पढ़ते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में कुल कितने रिफ्यूजी हैं, वे आते कहां से हैं, उन्हें किन खतरों का सामना करना पड़ता है. यहां जानिए.
तस्वीर: Imago/ZUMA Press/G. Cloarecदुनिया में कुल 7 करोड़ लोग ऐसे हैं जो अपना घर छोड़ पलायन कर कहीं और रहने पर मजबूर हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी के अनुसार 2018 में पलायन करने वालों की संख्या 1.3 करोड़ रही. 2017 की तुलना में यह आंकड़ा करीब 27 लाख ज्यादा था.
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press/Km Asadदुनिया में शरणार्थियों की कुल संख्या का दो तिहाई महज पांच देशों से आता है. ये हैं सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान, म्यांमार और सोमालिया. जंग पलायन का सबसे बड़ा कारण है. पिछले पांच सालों में जंग से सबसे ज्यादा सीरिया के लोग प्रभावित रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Messinisअधिकतर लोग अपना देश छोड़ पड़ोसी देश में अपने लिए एक सुरक्षित जगह ढूंढने की कोशिश करते हैं. मिसाल के तौर पर म्यांमार से भाग कर लोग बांग्लादेश पहुंचे और अफगानिस्तान से भाग कर अब भी पाकिस्तान आ रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Jawashiदुनिया में सबसे ज्यादा शरणार्थियों को स्वीकारने वाला देश है तुर्की. 2011 से लोग सीरिया छोड़ कर भाग रहे हैं. तुर्की में इस वक्त 37 लाख शरणार्थी मौजूद हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/C. Gencoएक बार कोई अपना देश छोड़ दे तो लौट पाना मुश्किल हो जाता है. 2018 में अपने देश लौटने वालों का आधिकारिक आंकड़ा 5,93,800 था. इससे पहले 2017 में 6,67,400 लोग अपने देश लौटे. हालांकि सीरिया में हालात अब भी नाजुक हैं लेकिन 2,10,000 लोगों ने देश लौटने की हिम्मत की.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Tivonyपलायन करने वालों में आधे तो 18 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. इनमें से कई बच्चे अपने परिवार से बिछड़ जाते हैं. 2018 में बिना किसी अभिभावक के किसी दूसरे देश में शरण का आवेदन देने वाले बच्चों की संख्या 27,600 थी. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, असली आंकड़े का अनुमान लगाना मुमकिन नहीं है क्योंकि ज्यादातर देश ऐसे बच्चों का सही ब्यौरा नहीं रख पाते.
तस्वीर: Getty Images/J. Mooreमहिलाओं और बच्चों पर शोषण का खतरा सबसे ज्यादा होता है. परिवार से अलग हो चुके बच्चे अकसर तस्करों के हाथ लग जाते हैं और उन्हें जबरन देह व्यापार में झोंक दिया जाता है.
तस्वीर: Imago/ZUMA Press/G. Cloarec __________________________
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