लंगूर की एक खास प्रजाति सिर्फ वियतनाम में मिलती है. लेकिन युद्ध, लालच और देसी इलाज के टोटकों ने इन लंगूरों की आफत निकाल दी. इन्हें बचाने के लिए अब नया जंगल बसाया जा रहा है.
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मध्य वियतनाम के क्वांग प्रांत में अधिकारियों ने ग्रे शैंक्ड डूक लंगूरों को बचाने की कवायद में एक नया कदम उठाया है. क्वांग ने कृषि और ग्रामीण विकास विभाग के निदेशक हून टान ने कहा कि उनके विभाग ने न्यूई थान जिले के जंगल का 80 हेक्टेयर जंगल ग्रे शैंक्ड लंगूरों के लिए बहाल किया है.
उन्होंने कहा कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस प्रजाति के आखिरी 20 लंगूर इस वक्त सिर्फ 5 हेक्टेयर के जंगल में झुंड बनाकर रह रहे हैं. लगातार जंगलों की कटाई इसके लिए जिम्मेदार है.
इस कदम को उन स्थानीय लोगों ने भी बहुत सराहा है जो लंबे वक्त से इस प्रजाति को सरंक्षित करने की कोशिश कर रहे थे.
एजुकेशन फॉर-नेचर वियतनाम के उप निर्देशक बुई थी ने कहा, "हम क्वांग नाम के अधिकारियों द्वारा लिए गए फैसले का स्वागत करते हैं क्योंकि वन्य प्राणियों को बचाने में उनके लिए जंगलों को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है." एजुकेशन फॉर-नेचर वियतनाम एक समूह है जो वन्य प्राणियों की मदद करने का काम करता है.
प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने ग्रे शैंक्ड डूक लंगूरों को विलुप्तप्राय प्रजाति माना है. इस वक्त इस प्रजाति के सिर्फ एक हजार लंगूर बचे हुए हैं. ये लंगूर दुनिया भर में सिर्फ वियतनाम के ही कुछ जंगलों में पाए जाते हैं.
जंगलों की कमी के अलावा शिकार की वजह से भी ग्रे शैंक्ड लंगूरों की संख्या इतनी कम हुई. इन लंगूरों को मीट और पारंपरिक दवाएं बनाने के लिए मार दिया जाता है. इनकी हड्डियों से कई प्रकार की दवाएं बनाई जाती हैं. ऐसा माना जाता है कि वे दवाएं शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाती हैं. इन लंगूरों की तस्करी भी की जाती है. बड़े लंगूरों को इस्तेमाल की चीजों के लिए मार दिया जाता है वहीं छोटे लंगूरों को पालतू बनाने के लिए भी बेचा जाता है. वियतनाम के युद्ध को भी इनके विलुप्त होने की बड़ी वजहों में माना जाता है. सैनिक इन बंदरों पर निशाना लगाने का अभ्यास किया करते थे.
एसएस/ओएसजे (डीपीए)
खतरे में धरती, खतरे में जीवन
चाहे भारत के बाघ हों या चीन के पांडा, वर्षावन हों या फिर कोरल रीफ, सभी को इंसानी गतिविधियों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. पर अगर ये लुप्त हो गए, तो क्या इंसानों के जीवन पर असर नहीं होगा?
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कहां जा रहे हैं बाघ
आमुर टाइगर जैसे जानवर अचानक लुप्त होते जा रहे हैं. भारत के हैदराबाद में जैव विविधता पर हुए सम्मेलन में शामिल लोगों ने इस दिशा में कदम उठाने का भरोसा दिया.
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गायब होते जंगल
हमारे ग्रह पर वर्षावन बहुत अहम माने जाते हैं. इसे धरती का हरा फेफड़ा कहा जाता है. लेकिन पिछले 50 साल से इसके आधे हिस्से को साफ कर दिया गया. लकड़ी के लिए या तेल के लिए.
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गायब होते ओरांगउटन
वर्षावन को नष्ट करने से ओरांगउटन को भी नुकसान पहुंचा है. लगभग 80 फीसदी ओरांगउटन वर्षावन वाले इलाके में रहते हैं और जंगल कटने से उन्हें नुकसान हुआ है.
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ताड़ से नुकसान
भले ही तेल के लिए इन पेड़ों की बहुत जरूरत महसूस होती हो लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए खराब हैं. इंडोनेशिया और मलेशिया के जंगल इन पेड़ों के लिए साफ किए जा रहे हैं.
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कोरल रीफ गायब
इन्हें समुद्र का वर्षावन कहा जाता है. इनमें हजारों जानवर और पौधे बसर करते हैं. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से 20 फीसदी कोरल रीफ गायब हो गए हैं.
सिर्फ 1600 पांडा
चीन की पहाड़ियों में अब सिर्फ 1600 विशाल पांडा बचे हैं. प्रकृति की लड़ाई लड रहे लोगों का कहना है कि उनके लिए नई जगह तैयार करने की जरूरत है.
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शेर को जहर
अफ्रीका के कई लोग शेरों से नफरत करते हैं क्योंकि शेर उनकी गायों और बकरियों को खा जाते हैं. इस वजह से वे उन्हें जहर देकर मार देते हैं. उनकी संख्या लगातार घटती जा रही है.
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सवाना को खतरा
जंगली बिल्लियों के घूमने की खुली जगह कम होती जा रही है. अकसर खेती और जंगली जानवरों की जमीन को लेकर विवाद होता है और नुकसान पर्यावरण को पहुंचता है.
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जमीन की कीमत
विकास के लिए जमीन इस्तेमाल किया जा रहा है और इसका खामियाजा जंगलों और खुद इंसानों को उठाना पड़ रहा है.
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कहां गए तालाब
सिर्फ भारत नहीं, दुनिया भर के तालाब सूख रहे हैं. इसकी वजह से मेंढक और तालाबों में रहने वाले दूसरे जानवरों का घर छिन रहा है.