ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते खतरों के बीच विश्व पर्यावरण सम्मेलन
२ दिसम्बर २०१९
स्पेन की राजधानी मैड्रिड में हो रहे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलन में ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लक्ष्यों पर अमल के नियम बनाए जा रहे हैं. सम्मेलन में 200 देशों के वार्ताकार पहुंचे हैं.
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दो हफ्ते तक चलने वाला पर्यावरण सम्मेलन कॉप 25 भी दो साल पहले बॉन में हुए सम्मेलन की तरह अपनी नियत जगह के बदले कहीं और हो रहा है. सम्मेलन इस बार चिली में होने वाला था लेकिन वहां लंबे समय तक चले सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण उसे स्पेन में कराया जा रहा है. सम्मेलन की शुरुआत में अध्यक्षता चिली की पर्यावरण मंत्री कारोलिना श्मिट को सौंपी गई जिन्होंने इसे पेरिस संधि पर अमल का सम्मेलन बताया है.
मैड्रिड में 200 देशों के प्रतिनिधि उन विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करेंगे, जिन पर पिछले साल पोलैंड के काटोवित्से में सहमति नहीं हो पाई थी. इसमें एक कामकाजी अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार व्यवस्था बनाना और गरीब देशों को पर्यावरण से संबंधित नुकसान के लिए हर्जाना देना शामिल था. गरीब देशों को उनके नुकसानों के लिए अगले साल से 100 अरब डॉलर की राशि दी जाएगी, लेकिन यह तय नहीं है कि पिछले नुकसानों का क्या होगा.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने सम्मेलन से पहले कहा है कि 2015 में पेरिस संधि के तहत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अब तक तय कमी विश्व तापमान में वृद्धि को 1.5 से 2 डिग्री तक सीमित करने के लिए कतई पर्याप्त नहीं है. प्रतिनिधियों पर इस बात का भी दबाव है कि स्वीडन की किशोर छात्रा ग्रेटा थुनबर्ग के फ्राइडे फॉर फ्यूचर आंदोलन के कारण क्लाइमेट एक्शन लेने के लिए मांग बढ़ती जा रही है.
इलेक्ट्रिक बसें चलाने से लेकर प्रदूषण को सोखने वाले अर्बन गार्डनों तक, दुनिया भर के शहर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए काफी कुछ कर रहे हैं. जानिए ऐसे सात शहर जो इस मामले में दुनिया के लिए मिसाल हो सकते हैं.
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मेडेलिन, कोलंबिया
लातिन अमेरिकी देश कोलंबिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर मेडेलिन 2016 से 30 ग्रीन कोरिडोर बनाने में जुटा है. इसके लिए शहर भर में नौ हजार पेड़ लगाए गए हैं जिन पर 1.6 करोड़ डॉलर खर्च हुए. प्रदूषक तत्वों को सोखने के अलावा इन पेड़ों ने शहर के औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस कम किया है. इससे शहर में जैवविविधता भी बढ़ी है और वन्यजीवों को बसेरे मिल रहे हैं.
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अकरा, घाना
पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अकरा का प्रशासन वर्ष 2016 से अनौपचारिक तौर पर कचरा उठाने वाले 600 लोगों के साथ काम कर रहा है. ये लोग पहले कचरा जमा करते थे और उसे जला देते थे, जिससे प्रदूषण होता था. अब पहले से ज्यादा कचरा जमा हो रहा है, उसे रिसाइकिल किया जा रहा है और सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाया जा रहा है.
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कोलकाता, भारत
कोलकाता 2030 तक ऐसी पांच हजार बसें खरीदने की योजना बना रहा है जो बिजली से चलेंगी. गंगा में बिजली से चलाने वाली नौकाएं लाने की भी तैयारी हो रही है. अभी तक ऐसी 80 बसें खरीदी जा चुकी हैं और अगले साल ऐसी 100 बसें और खरीदी जानी हैं.
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लंदन, ब्रिटेन
लंदन ने 2019 में दुनिया का सबसे पहला अल्ट्रा लो एमिशन जोन बनाया. इसके तहत सिटी सेंटर में आने वाले सभी वाहनों को सख्त उत्सर्जन मानकों को पूरा करना होगा, वरना भारी जुर्माना देना होगा. चंद महीनों में ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गई. लोग पैदल, साइकिल या फिर सार्वजनिक परिवहन से चलने लगे.
सैन फ्रांसिस्को के क्लीनपावरएसएफ कार्यक्रम के तहत लोगों को उचित दामों पर अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बनने वाली बिजली मुहैया कराई गई. शहर प्रशासन को उम्मीद है कि वे 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 40 प्रतिशत कटौती के अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे.
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गुआंगजू, चीन
शहर प्रशासन ने 2.1 अरब डॉलर की रकम खर्च कर शहर की सभी 11,200 बसों को इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया और उनके लिए चार हजार चार्जिंग स्टेशन भी बनाए. इससे ना सिर्फ शहर में वायु प्रदूषण घटा है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है. यही नहीं, बसों को चलाने पर लागत भी कम हुई है.
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सियोल, दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया की राजधानी में दस लाख घरों की बालकनी और छत पर सोलर पैनल लगाने के लिए सब्सिडी दी गई है. स्कूल और पार्किंग सेंटर जैसी जगहों पर ऐसे पैनल लगाए जा रहे हैं. शहर को उम्मीद है कि वह 2022 तक एक गीगावॉट सोलर बिजली पैदा कर पाएगा. इतनी ही बिजली परमाणु रिएक्टर से वहां पैदा हो रही है.
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पिछले शुक्रवार को भी ऑस्ट्रेलिया से लेकर भारत तक और यूरोप में हजारों लोगों ने पर्यवरण सुरक्षा के लिए प्रदर्शन किया. उन्होंने यूरोपीय संसद द्वारा घोषित क्लाइमेट इमरजेंसी और ग्लोबल वॉर्मिग के खतरों के लिए बढ़ते वैज्ञानिक सबूतों का हवाला दिया.
कॉप 25 को अगले वर्ष के ज्यादा महत्वपूर्ण सम्मेलन की दिशा में अहम कदम बताया जा रहा है, लेकिन सिर्फ नियमों पर दिया जा रहा उसका जोर दुनिया की पर्यवरण चिंताओं के अनुपात में नहीं है. कई सालों से सम्मेलन पर रिपोर्ट कर रहे भारतीय पत्रकार अमिताभ सिंहा का कहना है कि मैड्रिड सम्मेलन कामकाजी सम्मेलन है जहां आम लोगों से ज्यादा पर्यावरण पत्रकारों की नजर होगी. अगले सम्मेलन में सदस्य देशों को पेरिस संधि की अपनी प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करनी होगी.
नासा के वैज्ञानिक जेम्स हानजेन ने तीन दशक पहले अमेरिकी कांग्रेस को चेतावनी दी थी कि ग्लोबल वॉर्मिंग शुरू हो चुकी है और उसके नतीजे इतने साफ हैं कि पर्यावरण परिवर्तन को झूठ कहना पृथ्वी को समतल कहने जैसा होगा. अब संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेश कह रहे हैं कि वापस लौट न सकने वाली जगह करीब आती जा रही है. उन्होंने कार्बन गैसों के उत्सर्जन में कमी के औद्योगिक देशों के प्रयासों को अत्यंत अपर्याप्त बताया है. यूरोपीय क्लाइमेट फाउंडेशन के लॉरेंस टुबियाना कहते हैं, "चीन और जापान जैसे देश अपनी प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने में अनिच्छा का संकेत दे रहे हैं." अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने देश को पेरिस संधि से बाहर निकाल लिया है और भारत, रूस और ब्राजील जैसे देश भी अपनी जिम्मेदारियों को बढ़ाने के लिए उत्साहित नहीं दिख रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन हमारी जिंदगी को आश्चर्य से भर देगा. न केवल पर्यावरण पर इसका असर होगा बल्कि यह इंसानों के मस्तिष्क को भी प्रभावित करेगा. बिजली कड़केगी, ज्वालामुखी फटेगा और हो सकता है कि रेगिस्तान की मिट्टी भी उड़ जाये.
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आकाश में बढ़ेगी हलचल
ब्रिटेन की एक स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर विमानों की उड़ान पर भी होगा. विमानों को आकाश में अधिक हलचल (टर्ब्युलेंस) का सामना करना होगा. इसमें तकरीबन 149 फीसदी की वृद्धि होगी.
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जहाजों के रास्ते होंगे बाधित
विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते बड़े ग्लेशियर टूट सकते हैं, जो समुद्री यातायात प्रभावित करेंगे. असर कितना होगा, इस पर मोटा-मोटी कुछ कहना फिलहाल मुश्किल है.
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बिजली की कड़कड़ाहट बढ़ेगी
ताप ऊर्जा, तूफानी बादलों के लिये ईंधन का काम करती है. आशंका है कि अगर तापमान बढ़ता रहा तो आकाश में बिजलियों की कड़कड़ाहट बढ़ जायेगी, जिसके चलते जंगली आग एक समस्या बन सकती है.
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ज्वालामुखी होंगे सक्रिय
निष्क्रिय अवस्था में पड़े ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं. ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की भीतरी परत पर पड़ने वाला दबाव घटेगा, जिसका असर मैग्मा चेंबर पर पड़ेगा और ज्वालामुखियों की गतिविधियों में वृद्धि होगी.
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आपका गुस्सा बढ़ेगा
हमारा मूड भी बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी लोगों में गुस्सा बढ़ेगा. यहां तक कि हिंसा की प्रवृत्ति में भी इजाफा होगा.
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समुद्रों में बढ़ेगा अंधेरा
कयास हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर समंदरों में दिखेगा. तापमान बढ़ने से जलस्तर बढ़ेगा साथ ही इनका अंधेरा और भी गहरा होगा. कई इलाकों में वार्षिक वर्षा के स्तर में भी वृद्धि होगी.
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एलर्जी की समस्या
आपको न सिर्फ जल्दी गुस्सा आयेगा बल्कि इंसानों में एलर्जी की शिकायत भी बढ़ेगी. तापमान बढ़ने से मौसमी क्रियायें बदलेगी, पर्यावरण का रुख बदलेगा और बदले माहौल में ढलना इंसानों के लिये आसान नहीं होगा.
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पशुओं का आकार घटेगा
तापमान का एक असर स्तनपायी जीवों के आकार पर दिखेगा. एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 5 करोड़ साल पहले जब तापमान बढ़ा था तब स्तनपायी जीवों का आकार घटा था, जो भविष्य में भी नजर आ सकता है.
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रेगिस्तान में रेत होगी कम
रेगिस्तान में कुछ ऐसे बैक्टरीया होते हैं जो मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिये बायोक्रस्ट जैसी मजबूत परत का निर्माण करते हैं लेकिन तापमान बढ़ने से इनका आवास स्थान प्रभावित होगा और मिट्टी का क्षरण बढ़ेगा.
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चींटियों का व्यवहार बदलेगा
चींटियां पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका अदा करती है. अध्ययन बताते हैं कि चींटियां खेतों में कीड़े-मकौड़ों का सफाया करती हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाये रखने में मददगार साबित होती है.
रिपोर्ट- इनेके म्यूल्स
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मुश्किल की बात ये है कि यदि दुनिया के सारे देश ग्रीनहाउस गैसों में कमी के अपने वादों को पूरा कर भी देते हैं तो दुनिया का तापमान औद्योगिक काल से पहले के स्तर से कम से कम तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका पर्यावरण पर बहुत ही बुरा असर होगा. जर्मन शहर पोट्सडम के पर्यारण रिसर्च इंस्टीट्यूट के योहान रॉकस्ट्रोम के अनुसार तापमान 2 डिग्री से ज्यादा बढ़ने पर "खुद से तापमान बढ़ने का जोखिम होगा."
एक दशक पहले यूरोपीय संघ ने पर्यावरण संधि के लिए 2015 की समयसीमा तय करने की पहल की थी. लेकिन बाद में उसने बहुत सारा नेतृत्व चीन और अमेरिका पर छोड़ दिया था. अमेरिका के संधि से बाहर निकलने के बाद मैड्रिड में यूरोपीय संघ फिर से अपने आपको उसकी भूमिका में पाएगा. टुबियाना का कहना है, "यूरोपीय आयोग एक नया राजनीतिक तत्व है. वह 2030 तक प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने और 2050 तक जीरो उत्सर्जन हासिल करने के इरादे की घोषणा कर सकता है." दुनिया के छोटे और खतरे में पड़े देशों के लिए ये पहल जितनी जल्दी आए उतना अच्छा है. छोटे द्वीपों के संघ के अध्यक्ष बेलिज के प्रतिनिधि लुइस यंग कहते हैं, "राष्ट्रीय योजनाओं के जरिए उत्सर्जन घटाने की प्रतिबद्धता बढ़ाने से कुछ भी कम प्रलय को स्वीकार करने की तैयारी जैसा होगा."