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समाज

घरेलू हिंसा से मुकाबले के लिए महिलाओं की मदद

१७ जनवरी २०१९

घरेलू हिंसा के पीड़ितों को कई बार यह पता ही नहीं होता कि वे मदद मांगने किसके पास जा सकती हैं. मोरक्को में एक अभियान चला कर पीड़ित महिलाओं को कानूनी मदद देकर उनके हिंसक पतियों के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद की जा रही है.

Tetouan: Kampf gegen Frauengewalt
तस्वीर: DW/ F. Ouazzouz

23 साल की सलमा दो बच्चों की मां और शिक्षा कार्यकर्ता हैं. सात सालों तक शादीशुदा रहीं सलमा को अब भी उस दौरान झेली मारपीट और चोटें सिहरा जाती हैं. उसका पति उस पर यौन जबर्दस्ती भी किया करता था. सलमा बताती हैं कि पति उन्हें पीटता और जान से मारने की धमकियां भी देता था. चेहरा हमेशा मार खाने के कारण सूजा रहता था. उसको काबू में रखने में आसानी के लिए पति उसे नशीली दवाएं देता था, जिसकी उसे लत पड़ चुकी थी. ऐसी में सलमा तलाक तक मांगने की हालत में नहीं थी. वह कहती हैं, "घरेलू हिंसा महिला की गरिमा को छिन्न भिन्न कर देती है."

फिर एक दिन उसने अपनी चुप्पी तोड़ी और एक रेडियो चैनल पर सुनने वालों से अपनी हालत बयान की. यह रेडियो स्टेशन मोरक्को में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करने वाले एक अभियान 'मेक योर स्टोरी हर्ड' से जुड़ा हुआ है. देश में इस समय ऐसे कई अभियान चल रहे हैं. अफ्रीकी देश मोरक्को में पति के हाथों बलात्कार की शिकार हुई महिलाओं के लिए भी 2018 में सख्त कानून बन गए हैं. लेकिन इस पर बात करना अब भी बहुत सी महिलाओं के लिए कठिन है. ऐसे में इन अभियानों की अहम भूमिका है जो ऐसी महिलाओं को मानसिक और कानूनी मदद दे रहे हैं.

रेडियो स्टेशन पर जब सलमा ने हिम्मत कर अपनी बात रखी. इसके बाद सशक्त महसूस करने वाली सलमा ने अपने हिंसक पति से तलाक लेने और उसके खिलाफ मारपीट और बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत भी बटोर ली.

पीड़ितों तक पहुंचने का अभियान

इस अभियान को 'यूरो-मेडिटेरेनियन फाउंडेशन ऑफ सपोर्ट टू ह्यूमन राइट डिफेंडर्स' से सहायता प्राप्त है. यह उन महिलाओं को प्रोत्याहित करता है जो घरेलू हिंसा झेल रही हैं लेकिन अपनी तकलीफ के बारे में सार्वजनिक रूप से बताने में डरती हैं. यह फाउंडेशन उन्हें ऐसे दुर्व्यवहारों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मौजूद कानूनी विकल्पों के बारे में जागरुक करती हैं और हिंसक रिश्तों से बाहर निकलने के लिए उनका हौसला बढ़ाती हैं. इसके अलावा, सार्वजनिक जगहों पर भी किसी महिला के साथ होने वाली हिंसा या दुर्व्यवहार की शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.

अभियान की संस्थापिका खादिजा खाफिदतस्वीर: DW/E. Ouazzouz

अभियान की संस्थापिका खादिजा खाफिद कहती हैं, "हमने जो सेमिनार आयोजित किए उनमें अब तक 120 के करीब महिलाएं हिस्सा ले चुकी हैं." रेडियो स्टेशन के साथ मिल कर काम करने के अलावा, संगठन एक मल्टीमीडिया वेबसाइट भी चलाता है जिसमें घरेलू हिंसा के बारे में बताया जाता है. कौन कौन से व्यवहार घरेलू हिंसा के दायरे में आते हैं और किस तरह से महिलाएं उनके खिलाफ कदम उठा सकती हैं, यह सब जानकारी भी इस प्लेटफार्म पर दी जाती है. जो महिलाएं ऐसे हिंसक पार्टनरों के चंगुल से निकल अब आजाद हो चुकी हैं, वे और उनके परिजन अब इस अभियान से जुड़ने लगे हैं.

सन 2009 में हुए एक राष्ट्रीय सरकारी सर्वे में पता चला कि देश की 18 से 65 साल की महिलाओं में से 62 फीसदी ने शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, यौन या आर्थिक हिंसा झेली है. इसी सैंपल में से 55 फीसदी महिलाएं "वैवाहिक" हिंसा की शिकार थीं. भारत की बात करें तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े दिखाते हैं कि 15 से 49 साल की महिलाओं में से करीब 27 फीसदी के साथ कभी ना कभी शारीरिक हिंसा हुई थी.

रिपोर्ट: फातिमा एजाहरा उजूज/आरपी

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