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समाज

घरों में कैद बच्चों की छटपटाहट

क्रिस्टीने लेनन
१ मई २०२०

लॉकडाउन के दौरान घरों के भीतर रहने को मजबूर बच्चे अब ऊबने लगे हैं. बाहर जाने की जिद करने वाले बच्चों को समझाना अभिभावकों के लिए भी आसान नहीं है. 

Spanien Coronavirus
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/T. Calle

लॉकडाउन के दौरान घरों के भीतर रहने को मजबूर बच्चे अब ऊबने लगे हैं. बाहर जाने की जिद करने वाले बच्चों को समझाना अभिभावकों के लिए आसान नहीं है. 

पूरी दुनिया की तरह भारत में भी कोरोना वायरस का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. इसके चलते लोग घरों के भीतर रहने को मजबूर हैं. देशव्यापी लॉकडाउन से अब उन लोगों को भी परेशानी होने लगी है जो शुरुआती दिनों में इसे एक मौका मानकर परिवार के साथ समय बिता रहे थे. खासतौर पर उन बच्चों के अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है जिनके बच्चे घर की चारदीवारी में ऊबने लगते हैं.

बच्चों के अनगिनत सवाल

"मैं बाहर क्यों नहीं जा सकता?” ये सवाल 7 साल के नन्हे अनिकेत का है जो आज कल अपनी मां से पूछता है. वह लगभग 40 दिनों से घर से बाहर नहीं निकल पाया है. अनिकेत की मां सविता अपने बेटे के इस तरह के सवालों से परेशान हैं. वह कहती हैं, "मेरा बेटा घर के भीतर रहना पसंद नहीं करता, उसे शाम को बाहर खेलने जाना पसंद है. स्कूल नहीं जाने से उसे उतनी परेशानी नहीं लेकिन शाम होते ही खेलने के लिए बाहर जाने की जिद करता है. उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ रहा है." 

दो छोटे बच्चों की मां कविता दास का कहना है कि छोटे से फ्लैट के भीतर लगातार बच्चों को रख पाना मुश्किल होता है, लेकिन टीवी पर कोरोना वायरस को लेकर इतना सब कुछ बताया जाता है इसलिए बच्चों को अधिक नहीं समझाना पड़ता. कविता के अनुसार, "अभी सोसाइटी में कोई भी बच्चे बाहर नहीं निकल रहे हैं इसलिए मेरे बच्चे जिद नहीं करते लेकिन खुली हवा में सांस ना ले पाने की परेशानी तो हो ही रही है.

 

तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/T. Calle

बच्चों को समझाने की चुनौती

अब कोरोना वायरस का भय घर करने लगा है. भारत मे कोरोना संक्रमण के मामले जैसे जैसे बढ़ते जा रहे हैं, तनाव और घबराहट बढ़ती जा रही है. छोटे बच्चों के अभिभावक बच्चों को समझाने के लिए अलग अलग तरीके अपना रहे हैं. डॉक्टर रिचा सक्सेना जैसी कुछ मांएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का सहारा ले रही हैं.

रिचा कहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का असर मेरी नन्ही बेटी पर भी है. हालांकि वह सिर्फ ढाई साल की है और राजनीति की कोई समझ नहीं है लेकिन टीवी पर मोदीजी को देखते ही खुश हो जाती है. इसलिए हमें जब भी अपनी कोई बात मनवानी हो तो मोदीजी का नाम लेकर कहते हैं. रिचा आगे कहती हैं, क्योंकि कोई भी बच्चा घर से बाहर नहीं निकल रहा है तो उसे कोई खेलने के लिए बुलाता भी नहीं है.

सभी बच्चों पर मोदीजी का जादू चले ऐसा भी नहीं है. हेमा चौधरी के बेटे मानस घर से बाहर नहीं निकल पाने से परेशान हैं. बाहर जाने से कोरोना वायरस का खतरा है, इसकी जानकारी भी मानस को है. पिछले 1 महीने से अधिक समय से घर मे बंद मानस अक्सर उदास हो जाते हैं. अपने बेटे के व्यवहार मे आ रहे चिड़चिड़ेपन से असहज हेमा और उनके पति हर्ष इन दिनों अपने बेटे के साथ दोस्त बन कर खेलते हैं ताकि घर मे उसे बोरियत या एकाकीपन ना लगे.

मोबाइल या टीवी के स्क्रीन बने दुश्मन

लॉकडाउन के दौरान घरों के भीतर रहने को मजबूर बच्चों के लिए मोबाइल या टीवी एक बड़ा सहारा साबित हो रहे हैं. अधिकतर अभिभावकों के पास इतना अधिक काम है कि वह बच्चों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. घर से ऑफिस के काम के अलावा नौकरानी के ना आने से घर का काम भी कामकाजी लोगों को करना पड़ रहा है. ऐसी स्थिति मे अकेले पड़े बच्चे, पढ़ाई और मनोरंजन के नाम पर मोबाइल, टीवी या कम्प्यूटर पर अपना अधिकतर समय बिताते हैं. कोरोना काल में बच्चों का दोस्त बने ये डिजिटल स्क्रीन्स दरअसल बच्चों के दुश्मन साबित हो रहे हैं.

कविता दास कहती हैं कि होली के बाद से ही बच्चे घर में हैं, 10 से 12 घंटे मोबाइल, टीवी या कम्प्यूटर की स्क्रीन के सामने आंखें गड़ा कर बैठे रहते हैं. यह सब कुछ डेढ़ महीने से चल रहा है अब आंखों मे जलन और मितली आने की शिकायत करते हैं. डॉक्टर हिमांशु शर्मा का कहना है कि मोबाइल, टीवी या कम्प्यूटर के अत्यधिक उपयोग से बच्चों मे कई तरह की समस्याएं आ सकती हैं. आंखों में समस्या, नींद मे कमी और सिर दर्द बहुत आम है लेकिन अगर लत लग जाये तो मानसिक समस्या भी पैदा हो जाएगी.

डॉक्टर की सलाह और जागरूकता के चलते बहुत से अभिभावक बच्चों को घरों के भीतर रखने और किसी रचनात्मक काम मे लगाने की कोशिश भी कर रहे हैं. पूजा कटियार अपनी बेटी को मोबाइल, टीवी और कम्प्यूटर से दूर रखने के लिए योग और पेंटिंग का सहारा लेती हैं. वह अपनी बेटी को योग सिखाती हैं और पेंटिंग भी और साथ ही किचन के काम के दौरान भी उससे मदद लेती हैं. वैसे, अगर लॉकडाउन और लंबा चलता है तो बच्चों को घरों के भीतर रख पाना अभिभावकों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. खासतौर पर, मुंबई जैसे महानगर में जहां छोटी सी जगह में, बिना पर्याप्त रोशनी और हवा के लाखों बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं.

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