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घर की सबसे बड़ी बेटी होगी "कर्ता"

१ फ़रवरी २०१६

जहां एक तरफ भारत में महिलाएं मंदिर जाने के हक के लिए लड़ रही हैं, वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि परिवार की सबसे बड़ी महिला संतान संयुक्त परिवार की कर्ता होगी.

Indien Zwei Marktfrauen in Meghalaya
तस्वीर: DW/H. Jeppesen

उत्तराधिकार के लिए बने हिन्दू सक्सेशन एक्ट 6 की व्याख्या करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि एक हिन्दू अविभाजित परिवार में महिला को पैतृक धन मिलने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुष को. अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस नजमी वजीरी ने कहा, "जब संपत्ति के संचालन की बात आती है, तो महिलाओं के अधिकारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता." उन्होंने कहा कि यह अजीब बात है कि महिला को संपत्ति रखने का हक तो हो, लेकिन उसे मैनेज करने का नहीं, "हिन्दू सक्सेशन एक्ट के सेक्शन 6 में कहीं भी ऐसी कोई रोक नहीं है." हाई कोर्ट ने यह फैसला 22 दिसंबर 2015 को सुनाया लेकिन इसे लगभग एक महीने बाद सार्वजनिक किया गया.

यह फैसला दिल्ली में एक महिला द्वारा दी गयी याचिका के जवाब में सुनाया गया. कारोबारी परिवार से नाता रखने वाली इस महिला ने अपने पिता के देहांत के बाद यह मुकदमा दायर किया. उनकी शिकायत थी कि भाई बहनों में सबसे बड़ी होने के बावजूद उन्हें संपत्ति का काम नहीं संभालने दिया जा रहा था. आम परंपरा के तहत परिवार में पैदा हुआ सबसे पहला लड़का यानि उसका छोटा भाई यह काम अपने जिम्मे लेना चाहता था.

कोर्ट ने कहा कि पहले परिवार के सबसे बड़े पुरुष उत्तराधिकारी को ही उसका कर्ता माना जाता था क्योंकि महिलाओं के पास संपत्ति रखने का ही हक नहीं होता था. लेकिन सेक्शन 6 के साथ जब उन्हें यह हक मिला, तो उसके साथ ही परिवार की कर्ता होने पर भी कोई विवाद खड़ा नहीं हो सकता. जस्टिस वजीरी ने कहा कि 2005 में महिलाओं और पुरुषों को विरासत में बराबरी वाला कानून पास किया गया और उसके साथ महिलाओं को परिवार का कर्ता होने का अधिकार भी मिला.

दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले का खूब स्वागत किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र महिला अधिकार संस्था यूएन वूमेन ने भी इसकी सराहना की है. ट्विटर के माध्यम से लोग कह रहे हैं कि यह महिलाओं और पुरुषों की समाज में समान जगह बनाने की दिशा में एक अहम कदम है. इस कानून के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के परिवार आते हैं.

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