जहां एक तरफ भारत में महिलाएं मंदिर जाने के हक के लिए लड़ रही हैं, वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि परिवार की सबसे बड़ी महिला संतान संयुक्त परिवार की कर्ता होगी.
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उत्तराधिकार के लिए बने हिन्दू सक्सेशन एक्ट 6 की व्याख्या करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि एक हिन्दू अविभाजित परिवार में महिला को पैतृक धन मिलने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुष को. अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस नजमी वजीरी ने कहा, "जब संपत्ति के संचालन की बात आती है, तो महिलाओं के अधिकारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता." उन्होंने कहा कि यह अजीब बात है कि महिला को संपत्ति रखने का हक तो हो, लेकिन उसे मैनेज करने का नहीं, "हिन्दू सक्सेशन एक्ट के सेक्शन 6 में कहीं भी ऐसी कोई रोक नहीं है." हाई कोर्ट ने यह फैसला 22 दिसंबर 2015 को सुनाया लेकिन इसे लगभग एक महीने बाद सार्वजनिक किया गया.
यह फैसला दिल्ली में एक महिला द्वारा दी गयी याचिका के जवाब में सुनाया गया. कारोबारी परिवार से नाता रखने वाली इस महिला ने अपने पिता के देहांत के बाद यह मुकदमा दायर किया. उनकी शिकायत थी कि भाई बहनों में सबसे बड़ी होने के बावजूद उन्हें संपत्ति का काम नहीं संभालने दिया जा रहा था. आम परंपरा के तहत परिवार में पैदा हुआ सबसे पहला लड़का यानि उसका छोटा भाई यह काम अपने जिम्मे लेना चाहता था.
कोर्ट ने कहा कि पहले परिवार के सबसे बड़े पुरुष उत्तराधिकारी को ही उसका कर्ता माना जाता था क्योंकि महिलाओं के पास संपत्ति रखने का ही हक नहीं होता था. लेकिन सेक्शन 6 के साथ जब उन्हें यह हक मिला, तो उसके साथ ही परिवार की कर्ता होने पर भी कोई विवाद खड़ा नहीं हो सकता. जस्टिस वजीरी ने कहा कि 2005 में महिलाओं और पुरुषों को विरासत में बराबरी वाला कानून पास किया गया और उसके साथ महिलाओं को परिवार का कर्ता होने का अधिकार भी मिला.
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले का खूब स्वागत किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र महिला अधिकार संस्था यूएन वूमेन ने भी इसकी सराहना की है. ट्विटर के माध्यम से लोग कह रहे हैं कि यह महिलाओं और पुरुषों की समाज में समान जगह बनाने की दिशा में एक अहम कदम है. इस कानून के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के परिवार आते हैं.
भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
भारत में महिलाओं के लिए ऐसे कई कानून हैं जो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से जीने के लिए सुविधा देते हैं. देखें ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार...
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पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
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पति की संपत्ति से जुड़े हक
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
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पति-पत्नी में ना बने तो
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
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अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है. अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता. महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है.
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घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है. आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना.
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क्या है घरेलू हिंसा
केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना भी घरेलू हिंसा के बराबर है. ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है. किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है. लिव इन संबंधों में भी यह लागू होता है.
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पुलिस से जुड़े अधिकार
एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
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मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति की महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.