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चक्रवाती तूफान निसर्ग से निबटने की तैयारी के बीच उठते सवाल

हृदयेश जोशी
२ जून २०२०

चक्रवाती तूफान अम्फान की तबाही से अभी पूर्वी तट उबरा भी नहीं है कि पश्चिमी तट पर निसर्ग दस्तक दे रहा है. पश्चिम में आम तौर पर चक्रवाती नहीं आते. एक पखवाड़े के भीतर भारत में दूसरे ताकतवर चक्रवाती तूफान के क्या मायने हैं?

Zyklon Amphan trifft Indien und Bangladesch
तस्वीर: Reuters/Courtesy of Rahul Ojha

अम्फान एक सुपर साइक्लोन के रूप में समंदर में उठा था. पश्चिम-बंगाल और बांग्लादेश तट पर पहुंचते पहुंचते इसकी ताकत थोड़ा कम जरूर हो गई थी लेकिन फिर भी इसने दोनों देशों में कुल 100 से अधिक लोगों की जान ली और करोड़ों रुपये का नुकसान किया. अरब सागर से उठने वाला निसर्ग बुधवार दोपहर तक महाराष्ट्र के अलीबाग में तट से टकराएगा. भारतीय मौसम विभाग में चक्रवाती तूफानों की विशेषज्ञ और प्रभारी सुनीता देवी ने डीडब्ल्यू से कहा, "इस चक्रवात के सुपर साइक्लोन बनने की संभावना नहीं है. हमारे पूर्वानुमान के हिसाब से इसकी तीव्रता सीवियर साइक्लोनिक स्टोर्म की होगी. अभी यह इससे भी निचले दर्जे की तीव्रता पर है जिसे साइक्लोनिक स्टोर्म कहा जाता है. यह (तीव्रता के मामले में) एक पायदान और ऊपर जाएगा और फिर तट से टकरा जाएगा.”

अगर किसी तूफान की रफ्तार 222 किलोमीटर (120 नोट्स) से अधिक हो तो तभी वह सुपर साइक्लोन कहलाता है. निसर्ग मंगलवार सुबह तक 70 किलोमीटर की स्पीड पार कर चुका था और मौसम विज्ञानी कहते हैं कि यह तूफान 120 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक रफ्तार हासिल करने से पहले ही तट से टकरा जाएगा.

पश्चिमी तट पर बढ़ रहा है खतरा

चक्रवाती तूफान अक्सर भारत पूर्वी तट पर ही टकराते हैं. फायलिन (2013), हुदहुद (2014, वर्धा (2016) के अलावा गज और तितली (2018) पूर्वी तट पर ही आए. इसी तरह 2019 में फानी और इस साल 2020 में अम्फान पूर्वी पर ही टकराए हैं. जानकार कहते हैं कि पश्चिमी हिस्से में स्थित अरब महासागर में तूफान तो उठते हैं लेकिन वह भारत की तट रेखा से नहीं टकराते इसलिए उसका कोई बड़ा नुकसान नहीं होता.

"पिछले 2 सालों से हम विशेष रूप से यह बात नोट कर रहे हैं कि अरब सागर में हलचल बढ़ रही है जिसका असर पश्चिमी तट पर पड़ रहा है. लेकिन अगर हम लैंडफॉल को देखें तो यहां समुद्र तट से तूफान नहीं टकराते. अगर पिछले साल आए चक्रवात वायु को देखें तो वह तट से दूर चला गया था. उसके अलावा एक और बहुत शक्तिशाली चक्रवात (अरब सागर में) उठा और वह भी समुद्र में दूसरी दिशा में चला गया. हमने देखा है कि ये तूफान अब तक भारत की ओर आने की बजाय ओमान और यमन जैसे देशों की ओर मुड़ जाते हैं.” सुनीता देवी कहती है.

बुधवार को तट से टकराएगा निसर्गतस्वीर: DW/D. Dey

भारत के लिहाज से यह काफी खुशकिस्मती वाली बात है क्योंकि पश्चिमी तट पर आबादी काफी घनी है और गरीब बस्तियां समंदर किनारे निचले इलाकों में बसी हैं. साल 2017 में ओखी तूफान केरल में समुद्र के भीतर आया और तब भी उसने 300 से अधिक लोगों की जान ली. समुद्री इकोलॉजी पर शोध कर रहे कार्यकर्ता एजे विजयन कहते हैं, "केरल का समुद्र तट अब काफी अशांत हो गया है. यहां पहले इस तरह की हलचल नहीं दिखती थी. यहां ओखी तूफान समुद्र के भीतर आया था तब भी सैकड़ों लोग उसमें मरे. सोचिए अगर केरल के तट पर वह तूफान टकराता तो क्या होता. मुझे डर है कि हम पूर्वी तट के मुकाबले अधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं क्योंकि यहां लोग तट पर ही रहते हैं.”

तापमान के बढ़ने का हो रहा है असर

असल में चक्रवाती तूफान का रिश्ता तापमान से है. तूफान की भयावहता वॉर्मिंग और नमी के साथ बढ़ती जाती है. संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिक पैनल – आईपीसीसी - ने यह चेतावनियां दी हैं कि जलवायु परिवर्तन मौसम में अप्रत्याशित बदलाव ला रहा है. चक्रवाती तूफानों की बढ़ती ताकत, उनके आबादी के भीतर अधिक दूरी तक मार करने की क्षमता और साथ लाए गए पानी की बढ़ती मात्रा सभी कुछ क्लाइमेट चेंज से जोड़कर देखा जा रहा है.

पूर्वी तट पर विरल आबादी और लोगों के तटों से दूर होने के कारण तूफानों का नुकसान काफी हद तक सह लिया जाता है लेकिन पश्चिमी तट पर बसे राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और केरल के शहरों की सघन तट रेखा यह जोखिम मोल नहीं ले सकती. आईपीसीसी से जुड़े समुद्र विज्ञानी डॉ रॉक्सी मैथ्यू कहते हैं, "अम्फान और अब निसर्ग के मामले में हमने देखा कि गर्म होता समुद्र इन चक्रवातों को ताकतवर बना रहा है. बंगाल की खाड़ी में अम्फान से पहले 30-33 डिग्री तापमान था और अरब सागर में समुद्री सतह तूफान बनने से पहले 30-32 डिग्री पर रही. ऐसे ऊंचे तापमान इन चक्रवाती तूफानों को तेजी से शक्ति प्रदान करते हैं और हमारे मौसम जानने की प्रणाली इसे रिकॉर्ड नहीं कर पाती.”

अम्फान तूफान से बर्बादीतस्वीर: AFP/D. Sarkar

जलवायु परिवर्तन का जीडीपी पर असर

ग्लोबल वॉर्मिंग और उससे जन्मे जलवायु परिवर्तन का असर हमारी खेती और व्यापार से लेकर कार्यक्षमता पर हर जगह पर रहा है. इसके कारण आने वाली आपदायें इंसानी जिंदगी के साथ साथ उसकी अर्थव्यवस्था को अधिक तेजी से चौपट कर रही हैं. हर साल पड़ रहा सूखा, फिर बेमौसमी बारिश और अचानक बाढ़ कृषि के लिए बड़ा संकट खड़ा कर रही है क्योंकि भारत की 50% से अधिक खेती बरसात पर निर्भर है.

चक्रवाती तूफान तो देश की बड़ी आबादी के लिए और भी बड़ा खतरा है क्योंकि भारत के 7,500 किलोमीटर लम्बे समुद्र तट पर रहने वाले करीब 25 करोड़ लोग अपने जीवन यापन के लिए समुद्री जीवन या कोस्टल टूरिज्म पर निर्भर हैं. चक्रवातों की बढ़ती संख्या और ताकत इस लिहाज से कतई अच्छा संकेत नहीं है. हालांकि पिछले कुछ सालों टेक्नोलॉजी ने इन आपदाओं के बारे में पूर्व जानकारी को लेकर काफी तरक्की की है लेकिन अगर आपदायें बढ़ती रहीं तो लोगों को विस्थापित करने और फिर नए सिरे से बसाने में संसाधनों की काफी बर्बादी होगी.

अमेरिकी जर्नल प्रोसीडिंग ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपे शोध में बताया गया है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव गरीब और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को निचोड़ रहे हैं. इस अध्ययन में दुनिया के 165 देशों के तापमान वृद्धि और जीडीपी के तमाम पहलुओं पर 50 साल (1961 से लेकर 2010) तक रिसर्च की गई. इससे मिले आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर बताया गया कि ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों ने गरीब देशों में प्रति व्यक्ति आय को 17 से 31 प्रतिशत तक घटाया. यह रिसर्च बताती है कि भारत की अर्थव्यवस्था को इन प्रभावों ने 31 प्रतिशत कम किया है यानी इकोनॉमी पर तिहाई चोट. 

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