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चमकती विरासत और त्रासद अंत

१९ मई २०११

उन्हें राजनीति विरासत में मिलती है. साथ ही मिलता है दुखद अतीत. वे अपने चमत्कार से दुनिया को फिर सम्मोहित करते हैं. पर फिर वैसा ही हो जाता है. भुट्टो, कैनेडी या गांधी नेहरू परिवार के सदस्यों का त्रासद अंत ऐसी ही कहानी है.

Supporters of Pakistan's slain former Prime Minister Benazir Bhutto arrive to attend a prayer ceremony at the site where she was assassinated in Rawalpindi, Pakistan, Saturday, Dec. 27, 2008. Up to 200,000 Pakistanis gathered at the mausoleum of Bhutto on the first anniversary of her assassination, some of them walking hundreds of miles (kilometers) to get there. (AP Photo/Anjum Naveed)
तस्वीर: AP

इस कड़ी में राजीव गांधी इकलौते नहीं. उनकी हमउम्र बेनजीर भुट्टो या 1960 के दशक में कैनेडी परिवार में भी कुछ ऐसा ही हुआ. दुनिया ने बार बार दिल तोड़ने वाले इस विध्वंस को देखा है. इन करिश्माई नेताओं को कभी भी प्राकृतिक मौत नसीब नहीं हुई.

इंदिरा गांधीः राजीव की ही तरह इंदिरा को भी राजनीति विरासत में मिली. सख्त प्रशासन और दूरदर्शिता ने उन्हें न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों में जगह दिला दी. इमरजेंसी जैसी विपदा को झेल जाने वाली इंदिरा ने ब्लू स्टार ऑपरेशन के साथ भारत की एक विशाल सुरक्षा चिंता तो दूर कर दी. लेकिन खुद उनकी सुरक्षा उसी दिन से नाजुक हो गई. आखिरकार 31 अक्तूबर, 1984 को उन्हीं के बॉडीगार्ड ने उन्हें मौत की नींद में सुला दिया.

तस्वीर: AP

संजय गांधीः इंदिरा के राजनैतिक उत्तराधिकारी बन कर उभरे संजय गांधी की हत्या तो नहीं हुई, लेकिन उन्हें भी औचक मौत ने बुला लिया. ऊंची उड़ान का ख्वाब रखने वाले सिर्फ 33 साल के संजय उस दिन दिल्ली में नए विमान को आजमा रहे थे. कांग्रेस दफ्तर से कोस भर दूर 23 जून 1980 को सफदरजंग हवाई अड्डे से उन्होंने सेफ टेक ऑफ किया लेकिन अपने दफ्तर के ऊपर हवाई गोता लगाते वक्त उनका विमान दुर्घटना का शिकार हो गया. संजय की इस असमय मौत ने राजीव गांधी को राजनीति में उतार दिया.

राजीव गांधीः सिर्फ तीन साल के अनुभव पर प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने साल भर के अंदर ही खुद को इंदिरा और नेहरू परिवार की छाया से अलग कर लिया. उन्होंने खुद अपनी जगह बना ली लेकिन तकदीर उनके लिए कोई और कहानी लिख रही थी, जो 20 मई 1991 को श्रीपेरंबदूर में सामने आई. बड़े मोर्चों पर जीत हासिल करने वाले गांधी नेहरू परिवार सिर्फ 11 साल के अंदर काल से हार गया.

तस्वीर: dpa

जुल्फिकार अली भुट्टोः पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय और जादुई शख्सियत वाले जुल्फिकार अली भुट्टो इकलौते पाकिस्तानी हैं, जो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों रहे. उनकी बनाई पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने रातों रात मुस्लिम लीग को पछाड़ दिया. लेकिन भुट्टो भी भाग्य से नहीं जीत पाए. उनके ही सिपहसलार जिया उल हक ने राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें 4 अप्रैल 1979 को फांसी के तख्ते पर लटकवा दिया.

बेनजीर भुट्टोः दक्षिण एशिया का इतिहास बेनजीर को वही रुतबा देता है, जो भारत में राजीव गांधी को मिला. दोनों बड़े नेताओं के बच्चे थे और दोनों ने अपनी पहचान खुद बनाई. बड़े फैसलों में माहिर बेनजीर भुट्टो तीन बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं लेकिन कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं. परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में उन्हें देश से बाहर रहना पड़ा और लौटने के बाद वह दो महीने भी जिंदा नहीं रह पाईं. रावलपिंडी में 27 दिसंबर 2007 को एक रैली में वह गोलियों का निशाना बन गईं.

तस्वीर: AP

भुट्टो बंधुः बेनजीर के दोनों भाई शहनवाज और मुतुर्जा भुट्टो भी बेवक्त मारे गए. 27 साल की उम्र में 18 जुलाई 1985 को शहनवाज फ्रांस के एक अपार्टमेंट में मृत पाए गए. शक गया उनकी पत्नी रेहाना भुट्टो पर कि उन्होंने शहनवाज को जहर दे दिया. वजह कभी साफ नहीं हो पाई. हालांकि उनके भाई मुतर्जा भुट्टो ने इस कांड के बाद अपनी बीवी को तलाक दे दिया, जो रेहाना भुट्टो की सगी बहन थीं. लेकिन शहनवाज का अंत भी कुछ अजीब हुआ. बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री रहते हुए 20 सितंबर 1996 को पुलिस फायरिंग में वह मारे गए. उनके मौत की सही वजह कभी सामने नहीं आ पाई.

जॉन एफ कैनेडीः जेएफके नाम से मशहूर कैनेडी के साथ अमेरिका की राजनीति में नई लहर आई. उनका बिजनेसमैन और राजनीतिक परिवार से ताल्लुक था. 1960 के दशक में कैनेडी ने युद्ध छोड़ चांद पर जाने की बात की और देखते देखते वह दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता बन गए. लेकिन एक खूनी त्रासदी हरदम उनका पीछा करती रही, जो 22 नवंबर 1963 को उनकी जान लेकर ही गई. उन्हें एक बंदूकधारी ने गोलियों से भून दिया. सिर्फ 46 साल में कैनेडी का अंत हो गया. इतनी कम उम्र में किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की मौत नहीं हुई है.

तस्वीर: AP

रॉबर्ट कैनेडीः रॉबर्ट कैनेडी में अपने भाई जेएफके जैसा जादू दिख रहा था. जेएफके की मौत के बाद वह तेजी से लोकप्रिय हो रहे थे और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी बन गए. लेकिन 1968 में चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें भी बेहद करीब से गोली मार दी गई और रॉबर्ट 41 साल की उम्र में चल बसे.

कैनेडी परिवारः जेएफके के बेटे जॉन जूनियर भी आकस्मिक मौत को चकमा नहीं दे पाए और 1999 में एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई. इतना ही नहीं, कैनेडी के सबसे छोटे भाई टेड कैनेडी ने यूं तो बहुत दिनों तक अमेरिकी संसद में सेवाएं दीं लेकिन उनका अंत भी 2009 में कैंसर से हो गया. उनके एक भाई जोजेफ कैनेडी भी द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सिर्फ 29 साल की उम्र में मारे गए.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः आभा मोंढे

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