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चरित्र बदलेगा शंघाई सहयोग संगठन का

कुलदीप कुमार९ जुलाई २०१५

शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्यता प्रदान करने के लिए आवश्यक औपचारिक प्रक्रिया शुरू होने के साथ अगले साल तक दोनों देश इस संगठन का पूरी तरह से हिस्सा बन जाएंगे.

तस्वीर: Reuters/S. Karpukhin

भारत और पाकिस्तान के शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने से इसका चरित्र भी बदलेगा क्योंकि अभी तक यह चीन और रूस के नेतृत्व वाला मुख्यतः मध्य एशियाई देशों का संगठन है और इन दो देशों के अलावा ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान और किर्गिस्तान ही इसके पूर्ण सदस्य हैं जबकि भारत और पाकिस्तान के साथ ही ईरान, अफगानिस्तान और मंगोलिया इसमें पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित हैं. इस साल बेलारूस को यह दर्जा मिल रहा है.

चीन की उम्मीद है कि भारत और पाकिस्तान का सदस्य बनना इस संगठन के विकास में तो महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ही, वह उनके द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की प्रक्रिया को और अधिक गति देगा. जहां तक इस संगठन का सवाल है, तो भारत और पाकिस्तान के सदस्य बनने से इसमें डेढ़ अरब की आबादी और जुड़ जाएगी जिसके कारण निश्चित रूप से इसकी शक्ति में इजाफा होगा. अभी तक इस संगठन के बारे में पश्चिमी जगत में कुछ गलतफहमियां हैं और इसे रूस-चीन के नेतृत्व में नाटो के जवाब के रूप में देखा जाता है. अब भारत और पाकिस्तान के पूर्ण सदस्य बनने से इसकी यह छवि खत्म होगी क्योंकि ये दोनों ही देश अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ छत्तीस का आंकड़ा नहीं रखते.

इसके अलावा चीन और भारत तथा भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक समझदारी बनना बाकी है. चीन और भारत के बीच सीमा विवाद है और अन्य क्षेत्रों में भी प्रतिस्पर्धापरक संबंध हैं, लेकिन शत्रुता का भाव नहीं है. इसके विपरीत भारत और पाकिस्तान के बीच न केवल जम्मू-कश्मीर के ऊपर सीमा विवाद है बल्कि दोनों के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर लगभग शत्रुता की हद तक कटुतापूर्ण संबंध हैं. उधर चीन और पाकिस्तान सदाबहार मित्र हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे की मदद करते रहते हैं. हाल ही में चीन ने लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख आतंकवादी नेता जकीउर्रहमान लखवी के खिलाफ कार्रवाई करने के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव को अपने वीटो का इस्तेमाल करके रोक दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी बातचीत में उठाया है और भारत की अप्रसन्नता जताई है.

हाल ही में पाकिस्तान के जिम्मेदार और उच्च पदस्थ अधिकारियों ने यह बयान देकर माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है कि अपनी रक्षा के लिए पाकिस्तान भारत के खिलाफ आणविक हथियारों का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकेगा. ऐसे में यह उम्मीद करना कठिन है शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनना दोनों देशों के लिए इतने महत्व की घटना होगी जिसके कारण उनके इतने तनावपूर्ण और कटु संबंध एकाएक सुधरने लगेंगे. इस समय दोनों देशों के बीच संवाद लगभग टूटा हुआ है.

लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि ऐसे वक्त में इस बात का भी महत्व होगा कि दोनों देशों के प्रधानमंत्री एक मंच पर इकट्ठे होकर बैठते हैं और इस अवसर का इस्तेमाल संवाद बहाल करने की कोशिश करने के लिए करते हैं. आशा की जा रही है कि मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उफा में एक-दूसरे के साथ मिल-बैठ कर बातचीत करेंगे. क्योंकि इस संगठन में रूस और चीन जैसे प्रभावशाली देश भी हैं, इसलिए यदि वे चाहें तो पर्दे के पीछे से भारत और पाकिस्तान को एक-दूसरे के करीब लाने के लिए प्रयास कर सकते हैं. रूस और भारत के बीच और चीन तथा पाकिस्तान के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध हैं. इसलिए ये देश यदि चाहें तो शंघाई सहयोग संगठन के मंच का इस्तेमाल सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान के आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए भी कर सकते हैं. लेकिन यह सिर्फ एक संभावना भर है. वास्तव में क्या होगा यह तो भविष्य का घटनाक्रम ही बताएगा.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

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