चांद पर मिली बर्फ के बाद वहां इंसानी जीवन की क्या संभावना है
१६ अगस्त २०१९![Vollmond und Wolken](https://static.dw.com/image/49596897_800.webp)
चांद की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है. पिछले दशकों में कई देशों के ढेर सारे शोध उपग्रहों ने चांद को अपनी नज़रों में कैद किया है. इस बीच चंद्रमा सौरमंडल में मौजूद ऐसा पिंड बन गया है जिस पर धरती के बाद सबसे ज्यादा शोध हुआ है. सदियों तक माना जाता था कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी हो सकता है. वहां ज्वालामुखी के विस्फोट के बाद ऐसे गड्ढे पैदा हुए हैं जिन पर अरबों सालों से धूप नहीं पड़ी है. इन्हें कोल्ड ट्रैप कहा जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि गड्ढों का तल चांद के दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा ठंडा है. यहां तापमान माइनस 240 डिग्री होता है.
2009 में अमेरिकी शोध उपग्रह को ज्वालामुखी का रहस्य खोलने में कामयाबी मिली. इससे लंबे समय से लगाए जा रहे अनुमान की पुष्टि हुई. लूनर टोही ऑरबिटर ने निचली कक्षा में चांद का चक्कर लगाया. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने उसी समय ज्वालामुखी में एक रॉकेट स्टेज गिराया. उसके पीछे एक अंतरिक्ष यान भेजा गया जिसने वहां पैदा हुए गुबार का अध्ययन किया. उसके बाद ज्वालामुखी में जा गिरा. लूनर खोजी ऑर्बिटर रॉकेट स्टेज और अंतरिक्ष यान के गिरने की जगहों का कई यंत्रों की मदद से मुआयना किया और गुबार में उसे वहां पानी मिला.
भारत ने अपना पहला चंद्रयान 2008 में भेजा था. उसके रडार को उत्तरी ध्रुव पर 40 से ज्यादा गड्डों में बर्फ की शक्ल में पानी मिला. शोधकर्ताओं को लगता है कि वहां 60 करोड़ टन बर्फ हो सकती है. चांद पर बनाए जाने वाले अंतरिक्ष केंद्र के लिए यह जरूरी संसाधन होगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि धूमकेतुओं और छुद्र ग्रहों के जरिए पानी चांद पर पहुंचा होगा. और शायद सूरज के जरिए भी क्योंकि सूरज चांद पर हाइड्रोजन कणों की बमबारी करता है. फिर ये कण धरातल में घुस गए होंगे और वहां पत्थरों में मौजूद ऑक्सीजन से मिलकर पानी बना होगा. फिर उसका एक हिस्सा बाहर निकलकर ठंडे गड्ढों में जमा हो गया होगा.
नासा के यान लाडी ने एक सनसनीखेज खोज की. उसने पाया की चांद के धरातल से बारबार पानी बाहर निकलता है. खासकर तब जब वहां छुद्र ग्रहों की बरसात होती है. पानी वाले पत्थर एक सेंटीमीटर मोटी धूल से ढंके होते हैं. चांद पर सचमुच कितना पानी है इसका पता आने वाले सालों में चांद पर भेजे जाने वाले रोबोट करेंगे. जनवरी 2019 में चीन को पहली बार चांद के पिछले हिस्से में दक्षिण ध्रुवीय इलाके में यान उतारने में कामयाबी मिली. चांद के शोध में यह एक महत्वपूर्ण कदम था. रोवर पता करेगा कि सूरज के हाइड्रोजन कणों का चांद की ऊपरी सतह के साथ कैसा तालमेल होता है.
इस बीच भारत के चंद्रयान 2 पर भी पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं. चीन की तरह भारत ने भी एक रोवर भेजा है. यूरोप में यूरोपीय स्पेस एजेंसी एक हाइटेक प्रयोगशाला बना रही है. जहां चांद की सतह से एक मीटर नीचे के सैंपल लिए जाएंगे और इस बात का पता किया जाएगा कि उसमें कितना पानी और कितना ऑक्सीजन है.
शोध करने वाले रोबोट सारी जांच नहीं कर सकते. इसलिए सैंपल चांद से वापस धरती पर भी लाए जाएंगे. पत्थरों को जमा करने और उन्हें धरती पर भेजने के लिए जटिल तकनीक की जरूरत होती है. भारत और चीन की अंतरिक्ष एजेंसियां अपने अगले चंद्र अभियानों के साथ इस चुनौती का सामना करना चाहती हैं.
लेकिन इतने सारे रिसर्च के बीच कम से कम 2030 तक तो चांद पर इंसान के लौटने की को योजना नहीं है.
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