चांसलर मैर्केल की पार्टी में उठा पटक से साफ है कि अपनी पार्टी में चीजें उनके हाथ से फिसल रही हैं. DW की मुख्य संपादक इनेस पोल कहती हैं कि पार्टी में अव्यवस्था से मैर्केल सरकार की समय से पहले विदाई का खतरा पैदा हो रहा है.
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संसदीय समूह के नेताओं के काम की थोड़ी सी भी सार्वजनिक चर्चा होने लगे तो उन्हें सबसे सफल मान लिया जाता है. जर्मनी की राजनीतिक व्यवस्था में, उनका काम पार्टी के भीतर अपने नेताओं के लिए बहुमत जुटाना होता है. अगर पार्टी का नेता चांसलर भी हो तो, संसदीय समूह के नेताओं का काम यह सुनिश्चित करना है कि सरकार प्रमुख कम से कम टकराव के साथ अपना काम कर पाए. सैद्धांतिक रूप से ऐसा है.
लेकिन जर्मनी की मौजूदा संघीय सरकार में कुछ भी इतना सहज नहीं चल रहा है. जब गठबंधन के लिए लंबी वार्ताएं चल रही थीं तो उनके साथ साजिशें, इस्तीफे और नए चुनावों की आशंकाएं भी चल रही थीं. और आम चुनावों के लगभग एक साल बाद, अब यह बस कुछ समय की बात दिखती है जब सत्ताधारी गठबंधन भरभरा कर गिर जाएगा और जर्मनी को नई सरकार तलाशनी होगी.
बगावत
बात सिर्फ सत्ताधारी पार्टियों में चल रही कुत्ते बिल्ली जैसी लड़ाई की नहीं है और ना ही इसकी वजह यह है कि उन्होंने सत्ता के अंदरूनी संघर्ष के कारण जनता के बीच अपनी बची खुची विश्वसनीयता भी खो दी है
अब अंगेला मैर्केल ने अपनी पार्टी के भीतर ही बहुमत खो दिया है. लंबे समय से उनके विश्वासपात्र और संसदीय समूह के नेता रहे फोल्कर काउडेर को अंदरूनी बगावत के तहत मतदान के जरिए पद से हटा दिया गया है. इस बगावत को खत्म करने का एक ही तरीका है: नए चुनाव और वो भी मैर्केल के बिना. मैर्केल वह महिला हैं जो पिछले 13 साल से जर्मनी और यूरोप का भाग्य तय कर रही है.
एक अंजान से वित्तीय विशेषज्ञ राल्फ ब्रिंकहाउस को उस समय सीडीयू संसदीय समूह का नेता चुना गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉ़नल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र में भाषण दे रहे थे और उन्होंने फिर एक बार जर्मनी पर जुबानी हमला किया, यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति पर अजीबो गरीब छींटाकशी की.
मौजूदा जर्मन संसद के बहुत सारे सदस्यों को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें स्थिति की गंभीरता का अहसास ही नहीं है. नागरिकों ने उन्हें इसलिए चुना था कि देश की भलाई के लिए काम करें, ना कि इसलिए कि फालतू की बातों पर चर्चा करने के लिए वे हफ्तों तक सरकार को ना चलने दें. इससे दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी और मजबूत हो रही है.
पहले ही दिन से, इस संघीय सरकार के पास कोई साझा राजनीतिक एजेंडा नहीं था. और सबसे बड़ी बात, इस मुश्किल समय में जर्मनी का नेतृत्व करने के लिए काबलियत वाले अहम नेताओं की जरूरत है. इन नेताओं के बीच अकेली भरोसेमंद नेता मैर्केल थीं. वही थीं जो सत्ताधारी गठबंधन और अपनी पार्टी में गहरे मतभेदों को दूर करती रहीं. लेकिन अब ऐसा नहीं रहा.
मैर्केल की रु़ढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी बवेरियाई सहोदर पार्टी सीएसयू के सदस्यों ने ना सिर्फ काउडेर को पद से हटा दिया है, बल्कि इस मुश्किल वक्त में चांसलर को भी सार्वजनिक तौर पर नुकसान पहुंचाया है. ऐसे में, अब सवाल यह नहीं है कि क्या मैर्केल का सियासी अंत निकट है, बल्कि सवाल यह है कि अब हमें कितनी जल्दी यह झेलना होगा.
इन देशों में महिलाओं की सत्ता है
दुनिया में इस समय 195 स्वतंत्र देश हैं और ज्यादातर की कमान पुरुषों के हाथ में है. कुछ ही देश ऐसे हैं जहां सत्ता की बागडोर महिलाओं के हाथों में है. एक नजर ऐसी ही ताकतवर महिला राजनेताओं पर.
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अंगेला मैर्केल
62 वर्षीय अंगेला मैर्केल पहली बार 2005 में जर्मनी की चांसलर बनीं. इस पद तक पहुंचने वाली वह पहली महिला हैं. सितंबर 2017 के आम चुनाव में वह चौथी बार चांसलर पद की उम्मीदवार हैं. फिजिकल कैमिस्ट्री में डॉक्ट्रेट करने वाली मैर्केल को 2015 में टाइम्स पत्रिका ने "पर्सन ऑफ द ईयर" चुना था. दुनिया भर में बढ़ते दक्षिणपंथ के बीच मीडिया में उन्हें अकसर मुक्त दुनिया की नेता कहा जाता है.
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टेरीजा मे
टेरीजा मे ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हैं. 1980 के दशक में मारग्रेट थैचर इस पद तक पहुंचने वाली पहली महिला थीं. 60 वर्षीय मे ने जुलाई 2016 में ब्रेक्जिट के तुरंत बाद प्रधानमंत्री पद संभाला. इससे पहले वह ब्रिटेन की गृह मंत्री थीं. वह कितने समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहेंगी, इसका फैसला 8 जून को होने वाले आम चुनाव में होगा.
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साई इंग वेन
साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला हैं. मई 2016 में उन्होंने पद संभाला, जिसके बाद चीन के साथ ताइवान के रिश्तों में तनाव दिखने लगा. ताइवान खुद को अलग देश मानता है जबकि चीन उसे अपना एक अलग हुआ हिस्सा कहता है, जिसे एक दिन चीन में मिलना है. साई ने कहा है कि वह संप्रभुता के मुद्दे पर समझौता नहीं करेंगी.
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एलन जॉनसन सरलीफ
78 वर्षीय सरलीफ 2006 से लाइबेरिया की राष्ट्रपति हैं. अफ्रीकी महाद्वीप में राष्ट्रपति बनने वाली वह पहली महिला हैं. 2011 में उन्हें लाइबेरिया और यमन की दो महिला कार्यकर्ताओं के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. उन्हें यह सम्मान महिलाओं और उनके अधिकारों के लिए अहिंसक संघर्ष में योगदान के लिए दिया गया.
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दालिया ग्रिबोस्काइते
ग्रिबोस्काइते बाल्टिक देश लिथुआनिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं. उन्हें अकसर "लौह महिला" कहा जाता है. वह कराटे में ब्लैक बेल्ट हैं और कभी अनापशनाप नहीं बोलती हैं. 2009 में राष्ट्रपति बनने से पहले वह सरकार में कई अहम पदों पर रह चुकी हैं. 2014 में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना गया.
तस्वीर: Reuters/E. Vidal
एरना सोलबर्ग
नॉर्वे में भी एक महिला का ही शासन है. एरना सोलबर्ग 2013 से ही नॉर्वे की प्रधानमंत्री हैं. ग्रो हारलेम के बाद वह नॉर्वे की प्रधानमंत्री बनने वाली दूसरी महिला हैं. उनकी सख्त शरणार्थी नीति के कारण उन्हें "आयरन एरना" का नाम मिला है. वह नॉर्वे की कंजरवेटिव पार्टी की प्रमुख भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Wivestad Groett
बेएता सिदवो
बेएता सिदवो पोलैंड की तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं और वह नवंबर 2015 से इस पद पर हैं. संसद में अपने पहले संबोधन में उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार की प्राथमिकता पोलिश लोगों की सुरक्षा और यूरोपीय संघ की सुरक्षा में योगदान देना है. वह लंबे समय से राजनीति में है. प्रधानमंत्री बनने से पहले वह मेयर और सांसद रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/W. Dabkowski
सारा कुगोंगेल्वा-अमादिला
49 साल की कुगोंगेल्वा-अमादिला नामीबिया की चौथी प्रधानमंत्री हैं. वह 2015 से इस पद पर हैं. कुगोंगेल्वा-अमादिला जब किशोरी थीं तो उन्हें सिएरा लियोन में निर्वासित जीवन जीना पड़ा. उन्होंने अमेरिका से पढ़ाई की और 1994 में स्वदेश लौटने से पहले उन्होंने अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की. वह नामीबिया में सरकार का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं और महिला अधिकारों की हितैषी हैं.
तस्वीर: Imago/X. Afrika
मिशेल बेशलेट
मिशेल बेशलेट 2014 से लातिन अमेरिकी देश चिली की राष्ट्रपति हैं. राष्ट्रपति के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल है. इससे पहले वह 2006 से 2010 तक भी इस पद पर थीं. चिली में युवा अवस्था में कैद और उत्पीड़न का शिकार बनीं बेशलेट ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी जर्मनी में निर्वासन में रहीं, जहां उन्होंने मेडिसिन की पढ़ाई की. 1979 में स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने चिली में लोकतंत्र कायम करने में योगदान दिया.
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शेख हसीना वाजेद
फोर्ब्स पत्रिका ने 2016 के लिए दुनिया की सबसे ताकतवर 100 महिलाओं में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी शामिल किया था. वह दशकों से बांग्लादेश की राजनीति में सक्रिय हैं. बांग्लादेश दुनिया का आठवां सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है जहां 16.2 करोड़ लोग रहते हैं. वह 2009 से सत्ता में हैं. इससे पहले वह 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री रहीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Bildfunk
कोलिना ग्राबर-कितारोविच
ग्राबर-कितारोविच क्रोएशिया की पहली महिला और सबसे युवा राष्ट्रपति हैं. उन्हें 2015 में इस पद पर चुना गया था. इससे पहले वह सरकार में कई अहम पदों पर रहने के अलावा अमेरिका में क्रोएशिया की राजदूत भी रही हैं. वह 2011 से 2014 तक नाटो में सार्वजनिक कूटनीति के मुद्दे पर सहायक महासचिव भी रही हैं. नाटो की प्रशासनिक टीम में किसी महिला को मिला यह सबसे अहम पद था.